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पति-पत्नी के बिखरते रिश्ते को चित्रित करता है ‘पूर्ण पुरुष’

पति-पत्नी के बिखरते रिश्ते को चित्रित करता है ‘पूर्ण पुरुष’

मधुबाला शुक्ला

विजय पंडित द्वारा लिखित ‘पूर्ण पुरुष’ नाटक का हाल ही में लोकार्पण दिल्ली के पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन द्वारा संपन्न हुआ। सोशल मीडिया पर इस नाटक की बहुत चर्चा हो रही है। विजय मीडियाकर्मी होने के साथ-साथ रचनाकार भी हैं। कई फिल्मों और धारावाहिकों का लेखन कार्य आपने बड़े बैनरों के लिए किया है। नाटकों का निर्देशन व मंचन भी आपके द्वारा समय-समय पर होता रहा है। ‘पूर्ण पुरुष’ (Purna Purush) नाटक का मंचन कई संस्थानों द्वारा अलग-अलग शहरों में निरंतर होता रहा है। इस नाटक के लिए उन्हें दिल्ली सरकार के ‘साहित्य कला परिषद’ द्वारा ‘मोहन राकेश सम्मान’ से सम्मानित भी किया गया है।

रचनाकार ने इस नाटक का मंचन लगातार कई मंचों पर किया है। इस नाटक में संशोधन करके, 20 वर्षों बाद इसे एक क़िताब का स्वरूप दिया है। पाठकों के लिए यह बड़ी ख़ुशी की बात है कि नाटक को यदि वे नहीं देख सकें तो कम से कम यह क़िताब ज़रूर पढ़ सकते हैं। ‘पूर्ण पुरुष’ नाटक पति-पत्नी के रिश्ते पर आधारित है। जहाँ नाटककार पति-पत्नी के बीच टूटते-बिखरते संबंधों के बारे में चित्रित करते हैं, वहीँ वे यह भी संकेत करते हैं कि पति-पत्नी के रिश्तों में बहुत से उतार-चढ़ाव होते हैं। दोनों ही अच्छे-बुरे समय को एक साथ रहते हुए स्वयं ही जीते हैं, तभी तो वह पति-पत्नी संबंध कहलाता है। यह नहीं कि सुख के समय पति-पत्नी साथ हो और कठिन समय में दोनों एक दूसरे का साथ छोड़ दें। तब वह पति-पत्नी का संबंध नहीं रह जाता। तब वह स्त्री और पुरुष का संबंध कहलाता है।

सदियों से हमारे समाज का एक ढाँचा बना है। जब एक स्त्री-पुरुष, पति-पत्नी के संबंध में बँधते हैं तो उन्हें आखिरी साँस तक उस वैवाहिक संबंध को निभाना ही पड़ता है। हमारी भारतीय सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि पति-पत्नी का तलाक़ लेना या विवाह विच्छेद होना सामाजिक दृष्टि से अपराध माना जाता था। समाज की दृष्टि में वह ग़लत होता था। परंतु, एक समय ऐसा आया जब स्त्रियाँ अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुई, समाज में अपना अस्तित्व स्थापित करने के लिए उन्होंने संघर्ष किया और इसका प्रभाव (वैवाहिक संबंधों) पति-पत्नी के रिश्ते पर भी पड़ा, इस जागरूकता (बदलाव) ने पति-पत्नी के संबंधों की धारणा ही बदल दी।

‘पूर्ण पुरुष’ नाटक में, नाटककार ने पति-पत्नी के संबंधों की बात कही है। किस तरह प्रेम विवाह के 15 वर्षों बाद शाश्वती (नाटक की नायिका) अपने पति समग्र (नाटक के नायक) से तलाक़ लेना चाहती है। समग्र एक कलाकार है, वह पेंटिंग बनाता है। इसी कला पर मोहित होकर शाश्वती ने पागलों की तरह चूर होकर उससे प्रेम किया था क्योंकि तब उसे समग्र की आँखों में एक बच्चे सी मासूमियत, पवित्रता दिखाई देती थी। उसे ऐसा लगता था जैसे समग्र कैनवास पर ब्रह्मा की तरह सृष्टि का निर्माण कर रहा हो। वही समग्र आज उसके लिए बोझ हो गया है। समग्र के पास यश, कीर्ति तो है परंतु वह आर्थिक रूप से कमज़ोर है। यही बात नायिका शाश्वती को खाए जा रही है। जो पति अपनी पत्नी की इच्छाओं, अपनी बेटी की इच्छाओं को पूरा नहीं कर पा रहा है, वह उसके साथ नहीं रह सकती। शाश्वती को लगता है कि समग्र एक काल्पनिक दुनिया में जी रहा है। उसे समग्र से तलाक़ चाहिए।

शाश्वती एक महत्वकांक्षी स्त्री है। वह काल्पनिक दुनिया में नहीं जीना चाहती, उसे यथार्थ के धरातल पर जीना है। उसे खुले आसमान में अपने पंख फैलाकर उड़ना है, दूर बहुत दूर तक और वह समग्र के साथ संभव नहीं है। अतिरेक, शाश्वती का पुरुष मित्र है, वही उसके सपनों की ऊंची उड़ान को हक़ीक़त में रूपांतरित कर सकता है। वह अतिरेक के साथ वैवाहिक सूत्र में बँधना चाहती है। शाश्वती के लिए समग्र एक अतीत है और अतिरेक वर्तमान। वह वर्तमान के साथ अपना जीवन जीना चाहती है।

समग्र को दुःख है कि वह अपनी पत्नी की महत्वाकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहा है, उसे इस बात का भी दुःख है कि वह अपनी बेटी को अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा पा रहा है। समग्र को पूरी दुनिया जानती है, लोग उसे अपना आदर्श मानते हैं। उसकी यश और प्रसिद्धि दुनिया में फैली हुई है, परंतु वह इस बात को भी जानता है कि यश, कीर्ति, आदर्श और मूल्यों से घर-परिवार नहीं चलता। ये सारी चीज़ें उसके लिए बेमानी हैं। शाश्वती और अतिरेक के संबंधों के बारे में वह जानकारी रखता है, फिर भी वह अपने इस रिश्ते को किसी भी हाल में बचाने के लिए प्रयासरत है।

आख़िर में जब समग्र को भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ मिलने की बात शाशा (उन दोनों की बेटी) फोन करके सूचित करती है, तो दोनों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता। दोनों पति-पत्नी टेलीविज़न चालू करके सोफ़े पर आराम से बैठकर समाचार में जारी घोषणा देखते हैं। इस तरह पति-पत्नी के 15 वर्षों का वैवाहिक संबंध एक नई दिशा को प्राप्त होता है। नाटककार ने इस नाटक में पति-पत्नी के संबंधों का चित्रण बख़ूबी किया है। पति-पत्नी का संबंध अन्य सभी संबंधों से श्रेष्ठ है। यही वह रिश्ता है जहाँ दोनों अपनी-अपनी पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए एक दूसरे को इतना क़रीब से जानने लगते हैं कि एक दूसरे से बिछड़कर जीने की कल्पना से ही कौंध उठते हैं।

यह नाटक वर्तमान समय में बहुत ही प्रासंगिक है, जहाँ आज के युवा पति-पत्नी रिश्तों में बिल्कुल समझौता करने के लिए तैयार नहीं है। छोटी-छोटी बातों पर बात तलाक तक पहुँच जाती है। ऐसे समय में यह नाटक युवा पति-पत्नी के लिए मील का पत्थर साबित होगी। नाटक पति-पत्नी के संबंधों की समस्याओं को उजागर तो करता ही है, साथ ही समाज में ‘कला’ और ‘कलाकार’ की क्या स्थिति है, उस पर भी तंज कसता है। सामाजिक समस्याओं को चित्रित करते हुए नाटककार ने बहुत ही सरल, सहज शैली में नाटक लिखा है।

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(डॉ मधुबाला शुक्ला ने हाल ही में ‘स्वातंत्र्योत्तर हिंदी उपन्यासों में व्यक्त साम्प्रदायिकता’ विषय पर अपनी पीएचडी डिग्री पूरी की। लेखन में सक्रिय हैं और इनके लेख और साक्षात्कार विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपते रहते हैं।)

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Harigovind Vishwakarma is basically a Mechanical Engineer by qualification. With an experience of over 30 years, having worked in various capacities as a journalist, writer, translator, blogger, author and biographer. He has written two books on the Indian Prime Minister Narendra Modi, ‘Narendra Modi : Ek Shakhsiyat’, detailing his achievements as the Gujarat chief minister and other, ‘Narendra Modi: The Global Leader’. ‘Dawood Ibrahim : The Most Wanted Don’ is another book written by him. His satires are regularly published in prominent publications.

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