मोरेटोरियम विंडो राहत नहीं मुसीबत!
हम बचपन में सुना करते थे कि महामारी के दिनों में उन साहूकारों और शव के अंतिम संस्कार से जुड़े लोगों की चांदी हो जाया करती थी, जो कफ़न, शव जलाने की लकड़ियां और दूसरी सामग्रियां बेचा करते थे, क्योंकि अधिक मौत होने पर उनका मुनाफ़ा कई गुना बढ़ जाता था। यानी महामारी का मौसम भी उनके लिए पैसे बनाने और लाभ कमाने की ऋतु होती थी। यही बात इन दिनों भारतीय बैंकों पर लागू हो रही है। कोरोना के संक्रमण काल में, जहां लोगों को अपनी जान बचाने की पड़ी है, जिसे जहां जीवित रहने की गुज़ाइश दिख रही है, वह वहीं भाग रहा है, लेकिन भारतीय बैंकों के लिए कमाने और अपनी तिजोरी भरने का यह सर्वोत्तम मौसम है।
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कहने को तो भारतीय रिज़र्व बैंक ने सभी तरह के लोन, जैसे कि टर्म लोन, पर्सनल लोन, ऑटो लोन और कृषि टर्म लोन के भुगतान पर मोरेटोरियम अवधि 31 अगस्त तक बढ़ा दी है। सरकार ज़ोर-शोर से यह प्रचारित कर रही है कि कोरोना संक्रमण से परेशान लोगों को छह महीने की मोहलत दे दी है। और अब कर्ज़ लेने वाले लोग मोरेटोरियम का लाभ लेकर, सितंबर महीने से EMI का भुगतान कर सकते हैं।
लेकिन याद रखिए।
यह राहत तो बिल्कुल नहीं है, बल्कि बहुत बड़ी मुसीबत है। यह जैसा दिख रहा है या जिस तरह से पेश किया जा रहा है, वैसा बिल्कुल भी नहीं है। अगर कहें कि संकट की घड़ी में मजबूर और लाचार नागरिकों को लूटने की यह सरकार की अमानवीय और अवसरवादी साज़िश है तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। इसलिए जो लोग मोरेटोरियम जैसी योजना का फायदा उठाने की सोच रहे हैं, वे सरकार और बैंकों के हिडेन एजेंडे को अच्छी तरह समझ लें। वस्तुतः मोरेटोरियम का लाभ लेने पर आपकी EMI में एक निश्चित राशि जोड़ दी जाएगी, जो क़र्ज़ की अंतिम किस्त चुकाने तक जारी रहेगी। इससे यह भी संभव हो कि आपके लिए EMI का भुगतान ही मुश्किल हो जाए।
मसलन, अगर आपने किसी बैंक या वित्तीय संस्थान से 25 लाख रुपए का कर्ज़ ले रखा है और हर महीने 25 हज़ार रुपए के आसपास EMI भरते हैं, तो छह महीने यानी मार्च, अप्रैल, मई, जून, जुलाई और अगस्त तक मोरेटोरियम का लाभ लेने पर, सितंबर से आपकी EMI 26 हजार रुपए के लगभग हो जाएगी यानी सितंबर से आपको हर महीने कर्ज चुकाने तक एक हज़ार रुपए अतिरिक्त भुगतान करना पड़ेगा। यह धनराशि आपकी तीन EMI से भी अधिक होगी। इसके अलावा कर्ज़ अदा करने की अवधि भी छह महीने आगे खिसक जाएगी। इसे आप दिए गए चार्ट की सहायता से और अच्छी समझ सकते हैं और अपनी वित्तीय स्थिति के अनुसार उचित फ़ैसला ले सकते हैं।
लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा
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