मूल्यहीनता के बियाबान में चरित्र की तलाश, सज्जनता की राजनीति के लिए आरयू सिंह का सम्मान

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ओम प्रकाश

सही स्मृतियाँ, समुचित मूल्यांकन और भविष्य के लिए प्रेरक मूल्यबोध किसी भी समाज के आगे बढ़ने के लिए आवश्यक होते हैं। 9 जून, 2012 ने इस बारे में मुंबई के हिन्दीभाषी समाज के लिए एक बड़ा यादगार दिन बन गया है। इस दिन समाज ने स्मृतियाँ भी संजोयी, अच्छे-बुरे का समुचित मूल्यांकन भी किया, और भविष्य के लिए मूल्य और मानक भी जुटाए। यह मौका सी पी सिंह स्मृति व्याख्यान ने उपलब्ध कराया था, जिसमें बातचीत का विषय आज के सन्दर्भ में समाजवाद था। व्याख्यान के मुख्य वक्ता राज्य सभा के पूर्व सांसद सुधींद्र कुलकर्णी और लोकसत्ता आंदोलन के प्रणेता डॉ. जय प्रकाश नारायण थे। सुधींद्र जी ने वामपंथी रूझान की और डॉ, जय प्रकाश नारायण ने लोकतान्त्रिक समाजवाद की बातें कीं। जिन्हें लेकर मुंबई विश्वविद्यालय के राजनीति और नागरिक शास्त्र विभाग के छात्रों ने खूब सवाल-जवाब भी किये।

लेकिन, इस चर्चा में इकट्ठा हुए ज्यादातर लोग, जो डॉ. राम मनोहर लोहिया या आचार्य नरेंद्र देव के लेकिन लेकिन जो डॉ. लोहिया के समाजवाद से प्रभावित रहे हैं, और जिन्होंने जेपी आंदोलन से किसी भी किस्म का वास्ता रखा है, उनके मन-मस्तिष्क न वामपंथ की प्रशंसा सुन रहे थे, न चीन को साथ लेकर चलने से बनने वाले किसी महान एशिया का सपना देख रहे थे, न ही ग्रेट ब्रिटेन की किसी फैबियन सोसाइटी के तौर-तरीकों को सुन-गुन रहे थे; उनके दिलो दिमाग में वे स्मृतियाँ तैर रही थीं. उस समाजवाद और उससे जुड़े व्यक्तित्वों की जिन्होंने मुंबई के हिन्दीभाषी समाज को मज़बूती दी और मुंबई के निर्माण में भी उल्लेखनीय भूमिका निभायी।

इसलिए, जब आज के सन्दर्भ में समाजवाद को लेकर व्याख्यान की बात आयी तो समाज के कई लोगों के मन में यह बात भी आयी कि केवल भाषण न हों, अच्छे और बुरे के सन्दर्भ बिंदु भी तय किये जायें। समाज के सामने मानक, समाज की चाहत, और जिसमें समाज का हित है, और जो उसकी पहचान का एक बड़ा बिंदु है, उसे भी सामने रखा जाए। यह विचार रखने और उसके सन्दर्भ निर्मित करने का साथ-साथ का काम होगा। और यह भी कि, समाजवाद अब किसी शुद्ध राजनीतिक दल के रूप में तो रहा नहीं, उसकी भावना विभिन्न दलों में फ़ैली हुई है, इसलिए जहां भी उस तरह की विचारधारा, आचार-विचार, रीति-नीति, समाजनिष्ठा चल रही है, उसे किसी दल के खांचे से भिन्न करके उसे आदर, सम्मान और स्वीकृति दी जाए। समाजवाद का नाम जिस तरह न्यस्त स्वार्थों को पूरा करने के लिए भी इस्तेमाल होने लगा है, उसे उस कारागार से भी इसी से मुक्ति मिलेगी।

लोग और भी हैं, अच्छाई को चिन्हित और संदर्भित करने की प्रक्रिया सतत होनी चाहिए, और सालाना व्याख्यान है तो शायद होगी भी; लेकिन इस सिलसिले में मुंबई के हिन्दीभाषी समाज के सामाजिक मन पर जो पहला नाम आया, वह मुंबई भाजपा के महामंत्री राम उग्रह सिंह (आरयू सिंह) का है। वह सौम्यता, सज्जनता, मिलनसारिता और पाक-साफ़, साफ़-सुथरे और सच्चरित्र स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। उनकी राजनीति भी उसी तरह सच्चाई, ईमानदारी और लोक निष्ठा से भरी है। छल-छद्म, झूठ, पाखंड और दिखावे की, मौकापरस्त और निजी स्वार्थों से प्रेरित राजनीति से उनका वास्ता नहीं। हिंदी, मराठी और अंग्रेजी तीनों भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है, विषयों की वे अच्छी जानकारी रखते हैं, और मुंबई के हिंदी भाषी समाज के साथ-साथ मराठी समाज से भी उनका गहरा ताल्लुक है।

आरयू सिंह उन लोगों में से हैं जो मुंबई के समाज में विभिन्न भाषाभाषियों के बीच संवाद और समन्वय का सेतु बनाते हैं। उनमें वह शालीनता, सरलता, सज्जनता और सौम्यता, गंगा-जमुनी तहज़ीब , और लोकनिष्ठा है, जिसकी आम हिन्दीभाषी अपने नेतृत्व में तलाश करता है। यह ऐसी छवि है जो किसी समाज को सच्चाई और ईमान, विकास और बुलंदियों के रास्ते पर ले जाती है। मुंबई के आम हिंदी भाषी समाज की बसाहट तबेलों, फलों के गोदामों, छोटे-मोटे कल-कारखानों के गिर्द हुई है। जहां साथ-साथ रहना, खाना-पीना, काम-धंधा करना सब एक साथ हुआ है। ये एक अलग किस्म के कम्यून थे। वामपंथियों ने सोचा होता तो देश के अधुनातन विकास का, चीन कमोबेश जिस रास्ते पर चला है, उसका यह एक ज्यादा अच्छा मॉडल होता। तपस्वियों की जिंदगी जियी है हिंदीभाषियों ने इन स्वनिर्मित कम्यूनों में। लेकिन फेबियन सोसाइटी की तरह इनका कोई अध्ययन करने वाला नहीं। श्री सिंह जैसे नेताओं को देख कर यह आश्वस्ति और विश्वास बनता है कि यदि हिन्दीभाषी समाज ने बहुत साधना से अपनी तरक्की का रास्ता पाया है तो कुछ नेता भी हैं जो उसी साधना से उन्हें और बेहतर रास्ते पर ले जाने के लिए योग और यत्न कर रहे हैं।

मूल रूप से आजमगढ़ के रहनेवाले आर यू सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमएससी करने के बाद काम की तलाश में मुंबई आये। उन्होंने कुछ समय मनपा की अंग्रेजी माध्यम की हायर सेकेंडरी शाला में अध्यापन किया। इरादा था आईएएस की तैयारी करेंगे। लेकिन सामाजिक कामों में उनकी बचपन से ही रुचि थी। उसने उन्हें सामाजिक कामों की और खींच लिया। वे आसपास के लोगों की समस्याएं सुलझाने लगे। ऐसे ही किसी प्रयोजन में वे भाजपा नेता वामन राव परब के संपर्क में आये। मुम्बई भाजपा में वामन राव परब का नाम एक द्रष्टा के रूप में जाना जाता है। उन्होंने उन्हें भाजपा की ओर खींच लिया। बाद में श्री राम नाईक से भी उनका प्रगाढ़ संबंध बना।

प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे से भी संबंध मज़बूत हुए। मुंबई भाजपा में उन्हें कई महत्वपूर्ण दिए गए। लेकिन श्री परब ने शुरुआत से ही उनका मुख्य काम निर्धारित कर दिया था- कि उन्हें अपने लोगों, अपने हिंदीभाषियों के बीच काम करना है। उनके सुख-दुःख का साझीदार बनना है। उनकी अधिकारिता की बात करनी है। इस काम को श्री सिंह ने इतनी निष्ठा और सज्जनता से किया है कि मुंबई और महाराष्ट्र के हिंदीभाषियों में भारतीय जनता पार्टी का जो व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ है, जिसका असर उत्तर प्रदेश तक भी गया है, उनकी भूमिका इस विस्तार के एक प्रभावशाली शिल्पकार की रही है। उत्तर प्रदेश में भी उन्होंने कई स्थानीय दलों को भाजपा के साथ जोड़ा है। 9 जून को आरयू सिंह का स्वागत, सत्कार करके समाज ने हिंदीभाषी राजनीति और नेतृत्व दोनों से अपनी अपेक्षाओं को भी रेखांकित किया है। अचरज नहीं, कि सभागार में मौजूद समूचे हिंदी भाषी समाज ने खड़े होकर करतल ध्वनि से उनकी और उनके कार्यों की अभ्यर्थना की, उन्हें आदर और सम्मान दिया। ऐसे क्षण बहुत कम आते हैं। यह क्षण उन विरल क्षणों में था।

सम्मान के इस अवसर की विशेष उपलब्धि तीन और थीं। एक तो यह कि, जिस कार्यक्रम में उन्हें यह सम्मान दिया गया, उसकी अध्यक्षता हिन्दीभाषी समाज के अत्यंत यशस्वी नेता चंद्रकांत त्रिपाठी ने की। वह मिर्ज़ापुर के एक जाने-माने स्वाधीनता सेनानी परिवार से हैं। समाजवादी पृष्ठभूमि से हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के तेजस्वी छात्र नेता रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार में मंत्री के रूप में उनका काम-काज बहुत चर्चित और क्रांतिकारी रहा है। मंत्रालय जाना और सत्ता में अधिकारपूर्वक अपना हक़ लेना आम हिन्दीभाषी समाज ने उनके जमाने में ही जाना। वे मुंबई में हिंदीभाषियों के सशक्तिकरण के शिल्पकार हैं।

दूसरे यह कि, आर यू सिंह का सम्मान करने की प्रस्तावना की शुरुआत कांग्रेस के उपाध्यक्ष राम बक्श सिंह ने की। श्री राम बक्श सिंह भी उन नेताओं में से हैं जिन्होंने साफ़-सुथरी, ईमानदार, समाज से जुडी, चरित्र और चिंतन की राजनीति की है। उनकी राजनीति भी निर्वैयक्तिक, निःस्वार्थ,और सद्गुणों से प्रेरित रही है। तीसरे यह कि, इस सम्मान को मुंबई के आम हिंदीभाषी समाज की समवेत और सामूहिक स्वीकृति थी। सम्मान करने में वे हिन्दीभाषी लोग भी शामिल थे, जिन्हें जड़ों से निबद्ध कहा जाता है, और वे लोग भी शामिल थे जो मुंबई के नए आकार-प्रकार में सम्मिलित हुए हैं, और उसे अपना रूप और रंग दे रहे हैं। इन दोनों का संयोग मुंबई के हिन्दीभाषी समाज को एक अलग गरिमा और एक अलग सातत्य (कॉन्टिनुइटी) देता है।

इस सम्मान ने स्मृतियों को संजोने और नए और पुराने को जोड़ने का एक नया अध्याय भी खोला। हिन्दीभाषी समाज के अप्रतिम नेता डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी कहते थे- मुंबई के हिन्दीभाषी समाज को अपने इतिहास को संजोने की जरूरत है। वह आकाशदीप का काम करता है। सो, उस काम को पूरा करने और नए और पुराने को जोड़ने के लिए श्री राम बक्श सिंह, श्री जय प्रकाश सिंह (बबन सिंह, कोलडोंगरी) और रत्नेश सिंह की एक संयोजन समिति भी बनी है, कार्ययोजना तय करने के लिए जिसकी पहली बैठक रविवार, 19 जून, 2022 को होगी।

(लेखक देश के वरिष्ठतम पत्रकारों में से एक हैं।)

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