सॉरी पापा, सब कुछ खत्म हो गया — दहेज प्रताड़ित रिधन्या की दर्दनाक दास्तां

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Ridhanya

तमिलनाडु के तिरुपुर जिले से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। एक नवविवाहित युवती, रिधन्या, ने दहेज की मांग और ससुरालवालों की प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली। मरने से पहले उसने अपने पिता के लिए एक मार्मिक संदेश छोड़ा: “सॉरी पापा, सब कुछ खत्म हो गया।” यह एक ऐसा वाक्य है, जो एक पिता के दिल को जीवन भर चीरता रहेगा।

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रिधन्या कौन थी?
रिधन्या, 23 वर्षीय एक होशियार और आत्मनिर्भर युवती थी। वह तमिलनाडु के तिरुपुर ज़िले के एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी। पढ़ाई में तेज़, रिधन्या ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री ली थी और हाल ही में एक स्थानीय कपड़ा कंपनी में नौकरी शुरू की थी। उसके माता-पिता, खासकर उसके पिता, उसे हमेशा आत्मनिर्भर और खुश देखना चाहते थे।

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शादी का सपना बुरे सपने में बदला
रिधन्या की शादी कुछ महीनों पहले ही हुई थी। शुरुआत में सब कुछ सामान्य था। परिवार ने रिधन्या की शादी एक संभ्रांत और पढ़े-लिखे युवक से की थी। लेकिन जल्द ही ससुराल के असली चेहरे सामने आने लगे। शादी के कुछ हफ्तों के भीतर ही रिधन्या को दहेज को लेकर ताने मिलने लगे। कभी फ्रिज की मांग, कभी गाड़ी की, तो कभी कैश देने की बात।
उसके पति और सास-ससुर अक्सर उसे ताना देते:
“तुम्हारे पापा ने हमारे लायक दहेज नहीं दिया। हम सोचते थे कि तुम अमीर घर से आई हो।”
रिधन्या चुपचाप सब कुछ सहती रही, शायद इस उम्मीद में कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा।

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अकेलेपन व पीड़ा का गहराता अंधेरा
रिधन्या ने कई बार अपने माता-पिता से फोन पर रोते हुए बात की, लेकिन हर बार कहा, “मैं ठीक हूं पापा, आप चिंता मत करो।” वह अपने माता-पिता को दुखी नहीं करना चाहती थी। मगर भीतर ही भीतर वह टूटती जा रही थी।
उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा था। उसे खाना नहीं दिया जाता, अपशब्द कहे जाते और मारपीट भी होने लगी थी। रिधन्या धीरे-धीरे एक ऐसे अंधेरे में डूब गई जहां से बाहर निकलने की कोई राह नज़र नहीं आ रही थी।

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सॉरी पापा, सब कुछ खत्म हो गया
एक दिन, जब तकलीफ़ असहनीय हो गई, रिधन्या ने आत्महत्या करने का फैसला कर लिया। उसने एक छोटा सा सुसाइड नोट लिखा: “सॉरी पापा, सब कुछ खत्म हो गया। मैं अब और नहीं सह सकती। मैंने कोशिश की, बहुत कोशिश की। लेकिन ये लोग मुझे इंसान नहीं समझते। मुझे माफ करना। मुझे आपकी बेटी होने पर गर्व था।” उसके कमरे में वह चिट्ठी मिली, साथ ही एक मौन चीख — जो पूरे समाज के कानों को चीरती है।

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समाज की चुप्पी और व्यवस्था की नाकामी
रिधन्या की मौत अकेले उसकी नहीं थी — यह पूरे समाज की विफलता की मौत थी। क्या एक पढ़ी-लिखी लड़की, जो आत्मनिर्भर थी, उसके लिए भी यह समाज सुरक्षित नहीं है? दहेज जैसी सामाजिक कुप्रथा, जो कानूनन अपराध है, आज भी कितने घरों को निगल रही है। रिधन्या के माता-पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। तिरुपुर पुलिस ने पति और ससुरालवालों के खिलाफ FIR दर्ज की है और मामले की जांच चल रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या रिधन्या को न्याय मिलेगा?

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रिधन्या की मौत से क्या सीखा जाना चाहिए?
• दहेज को ‘परंपरा’ कहना बंद करें
यह सिर्फ एक अपराध है, जो महिलाओं को मौत की ओर धकेलता है।
• लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ आवाज़ उठाना भी सिखाएं
रिधन्या ने शायद डर या समाज के कारण चुप्पी ओढ़ ली थी। हर लड़की को यह समझना होगा कि आवाज़ उठाना कमजोरी नहीं, ताकत है।
• समाज को चुप्पी तोड़नी होगी
पड़ोसी, रिश्तेदार और दोस्त – जब किसी महिला के साथ अन्याय हो रहा हो, तो चुप न रहें।

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रिधन्या की मौत नहीं, आंदोलन बने
रिधन्या आज नहीं है, लेकिन उसकी कहानी उन लाखों लड़कियों की कहानी है, जो दहेज की आग में झुलस रही हैं। यह समय है कि रिधन्या की मौत को एक आंकड़ा न बनने दिया जाए, बल्कि यह एक सामाजिक जागृति का कारण बने। यह एक बेटी की आखिरी पुकार थी, जिसने हमें एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है: कब तक बेटियां यूं ही मिटाई जाती रहेंगी? कब तक समाज दहेज के नाम पर औरतों की ज़िंदगी बर्बाद करता रहेगा? रिधन्या अब नहीं है, लेकिन उसकी कहानी, उसकी पीड़ा और उसका साहस इस समाज को आईना दिखाता है। यदि हम अब भी नहीं जागे, तो शायद अगली बार कोई और बेटी चुपचाप “सॉरी पापा” कहकर हमें हमेशा के लिए छोड़ जाएगी।

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बदनसीब रिधन्या
रिधन्या की मौत सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं है, यह पूरे समाज की अंतरात्मा को झकझोरने वाली घटना है। जब एक शिक्षित, आत्मनिर्भर और संवेदनशील लड़की भी इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था और दहेज के दानव से हार जाती है, तो यह हमारी सामूहिक विफलता बन जाती है। आज ज़रूरत है सिर्फ सहानुभूति जताने की नहीं, बल्कि ठोस बदलाव लाने की —कानून को सख्ती से लागू करने की, बेटियों को चुप्पी के बजाय विरोध की ताक़त देने की, और हर उस परंपरा को नकारने की जो किसी और की ज़िंदगी छीन ले। उसकी कहानी को हम अगर एक बदलाव की शुरुआत बना सकें, तो शायद उसकी दर्दनाक विदाई एक अर्थपूर्ण संदेश बन पाएगी – कि अब कोई और बेटी यूं “सॉरी पापा” कहकर इस दुनिया को अलविदा न कहे।

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