द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 24 – कंजरी छोकरे विजय उटकर ने की ‘ब्रा गैंग’ के डॉन बाबू रेशिम की पुलिस लॉकअप में हत्या

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हरिगोविंद विश्वकर्मा
दाऊद इब्राहिम कासकर के मुंबई से दुबई शिफ़्ट होने के बावजूद उसकी विरोधियों के साथ तनातनी बनी रही। पठान गैंग और दाऊद गैंग के बीच संघर्ष शुरू हुआ गैंगवार बहुत भयानक चरण में पहुंच गया था। दोनों गिरोह के लोग एक दूसरे के आदमियों के खून के प्यासे थे और जहां मिलते थे, वहीं टपका देते थे। उस समय दक्षिण-मध्य मुंबई का बेहद ख़तरनाक हत्यारा माने जाने वाले बाबू गोपाल रेशिम की दुस्साहसपूर्ण डंग से हुई अप्रत्याशित हत्या से सब के सब हैरान रह गए थे। 1970 के दशक में रमाकांत नाईक, बाबू रेशिम और अरुण गवली अंडरवर्ल्ड के डॉन बन चुके थे। तीनों साथ काम करते थे और रमाकांत नाईक गैंग का सरगना था। गैंग में बाबू रेशिम नंबर टू था और अरुण गवली तीसरे नंबर पर था। उनके गिरोह को ब्रा गैंग कहा जाता था। ब्रा मतलब बीआरए था।

इन तीनों अपराधियों का मझगांव, भायखला और मुंबई सेंट्रल, के अलावा महालक्ष्मी, चिंचपोकली और परेल जैसे इलाक़े में दबदबा था। दुकानदार और व्यापारी इन तीनों को हफ़्ता दिया करते थे। बाबू रेशिम 12 साल की उम्र से ही अपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया था। वह पहले एक होटल में बर्तन साफ़ करने का काम करता था। बाद में उसे मज़गांव डॉक की कंटीन में नौकरी मिल गई। कई साल तक उसने वहां काम किया, लेकिन अचानक एक गंभीर अपराध में उसका नाम आने पर उसे पुलिस उठाकर ले गई। इस घटना के बाद उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।

बाबू रेशिम के आपराधिक जीवन में निर्णायक मोड़ तब आया जब उसे 1982-83 में दत्ता सामंत के आह्वान पर हुई मिल हड़ताल को तोड़ने के लिए जेल से बाहर लाया गया। उसे जेल से बाहर लाने में कांग्रेस से संबद्ध मजदूर संगठन राष्ट्रीय मिल मजदूर संघ की अहम भूमिका थी। जेल से बाहर आते ही रेशिम ने मजदूरों को धमकाना शुरू किया। रेशिम के आदमी मजदूरों से मारपीट भी करने लगे। इससे खटाऊ मिल के मजदूरों में भय का माहौल बन गया। गुंडगर्दी की बदौलत बाबू रेशिम खटाऊ मिल के कर्मचारी को मनाकर काम पर बुलाने में सफल भी रहा। उस समय वह अचानक से लाइमलाइट में आ गया था। वह एक पेशेवर अपराधी था, किसी पार्टी का लेबल उसे पसंद नहीं था।

मुंबई अपराध पर नज़र रखने वाले कहते हैं, बाबू रेशिम ने पठानों से लड़ने के लिए दाऊद को सहयोग दिया था, लेकिन उसी बाबू रेशिम को मारने के लिए दाऊद के ख़ास लोग ही सामने आए थे। दाऊद के बेहद क़रीबी महेश ढोलकिया और शरद शेट्टी उर्फ़ अन्ना जैसे लोगों ने कंजरी समुदाय के छोकरे विजय उटकर को बाबू रेशिम की हत्या की सुपारी दे दी। कई जानकार दावा करते हैं, छोटा राजन ने भी बाबू को मारने में विजय उटकर को मदद की पेशकश की थी और जिस हथियार से उसने रेशिम की हत्या की उसे वह हथियार छोटा राजन ने ही दिए थे।

दाऊद इब्राहिम की संपूर्ण कहानी पहले एपिसोड से पढ़ने के लिए इसे क्लिक करें…

दरअसल, भायखला के पास कंजरवाड़ा में बाबू रेशिम ने एक कमसिन कंजरी लड़की से छेड़छाड़ कर दी थी। उस समय कंजरी समाज के युवक विजय उटकर ने अपने समाज की लड़की को सबसे सामने छेड़ने का ज़ोरदार विरोध किया तो बाबू रेशिम ने उसे बुरी तरह पीट दिया था। इससे विजय बहुत आहत हुआ। उसने उसी समय सबके सामने बाबू से बदला लेने की सौगंध खा ली। वह ऐन-केन-प्रकारेण बाबू की जान लेना चाहता था। बस वह मौक़े की तलाश करने लगा और इसके लिए ज़रूरी हथियार जुटाने लगा। ठीक उस समय ब्रा गैंग के राइवल श्रीधर शेट्टी के भाइयों अप्पू और जयंत शेट्टी ने उसकी मदद की। एक दिन विजय उटकर ने रवि ग्रोवर के साथ बाबू रेशिम पर तब हमला कर दिया, जब वह अपने पंटरों के साथ सात रास्ता, महालक्ष्मी के एक शराबखाने में बैठा शराब पी रहा था। उस हमले में हालांकि बाबू रेशिम बाल-बाल बच गया।

विजय उटकर किसी भी क़ीमत पर बाबू रेशिम की हत्या करने के फ़िराक़ में था। लोग बताते हैं कि उसके ऊपर मानो रेशिम की जान लेने का भूत-सा सवार हो गया था। वह उसे मार पाता, उससे पहले ही अग्रीपाड़ा की पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर मधुकर झेंडे ने बाबू रेशिम को गिरफ़्तार कर लिया। दरअसल, बाबू ने राजा करमरकर नाम के अपराधी को पीटकर अधमरा कर दिया था। लिहाज़ा, उस पर हत्या का प्रयास करने का आरोप गया और उसी के तहत उसकी गिरफ़्तारी हुई। इसके बाद उसे दक्षिण मुंबई के जेकब सर्किल पुलिस लॉकअप में बंद कर दिया गया। मगर उटकर को उसकी रिहाई तक इंतज़ार करना भी उसे मंज़ूर नहीं था। वह किसी भी तरह उससे अपमान का बदला लेना ही चाहता था। उसने बाबू को लॉकअप में मार डालने की ख़तरनाक योजना बनाई।

5 मार्च 1987 तड़के 3.30 बजे को विजय उटकर ने अपने साथियों के साथ जेकब सर्किल पुलिस लॉकअप पर धावा बोल दिया। उस दिन 7 पुलिस वाले ड्यूटी पर थे, उनमें से दो ही जाग रहे थे, बाक़ी लोग खा-पीकर सो रहे थे। पुलिस लॉकअप का हेड कॉन्टेबल खुद ग़ायब था। हमलावरों ने पुलिस वालों को हटाने के लिए मेनगेट के पास देसी बम फेंक दिया। इससे पूरे लॉकअप में भगदड़ मच गई। इसका फ़ायदा उठाकर विजय अंदर घुस गया। बाबू के सेल में ताला लगा हुआ था, विजय ने हथौड़े से उस ताले को तोड़ डाला और उस तक पहुंच गया। उसे देखते ही रेशिम कांपने लगा लेकिन विजय ने उसे बिना एक पल गंवाए गोलियों से भून डाला। इस दुस्साहसिक फ़ायरिंग में दो पुलिस वाले भी मारे गए।

बाबू रेशिम की लॉकअप में हत्या से मुंबई पुलिस की जमकर किरकिरी हुई। ड्यूटी से गैरहाज़िर हेड कॉन्टेबल को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया गया। बाबू की हत्या की ख़बर फैलने पर खटाऊ मिल और मझगांव डॉक के कर्मचारियों ने काम बंद कर दिया। मझगांव, भायखला, महालक्ष्मी, मुंबई सेंट्रल, चिंचपोकली और परेल में दुकानदारों ने अपना दुकानें बंद रखीं। रेशिम की अंतिम यात्रा में मुंबई के तत्कालीन महापौर छगन भुजबल, कांग्रेस एमएलसी बाबूराव भापसे, यूनियन नेता दत्ता प्रधान और मथाड़ी कामगार के नेता बाबूराव रमिस्थे शामिल हुए। अगर बाबू की हत्या नहीं हुई होती तो मुंबई की कई मजदूर यूनियनों पर उसका वर्चस्व हो जाता और यूनियन नेता बनने वाला वह पहला अंडरवर्ल्ड डॉन होता।

बाबू रेशिम की हत्या आज भी मुंबई में पुलिस के ठिकाने पर किसी अपराधी द्वारा किया गया सबसे दुस्साहसपूर्ण आक्रमण माना जाता है। हालांकि, बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि रेशिम के हमले में आला पुलिस अफ़सरों की भी मिली भगत थी। बहरहाल, रेशिम की हत्या का बदला उसके दोस्त रमाकांत नाईक ने महीना पूरा होने से पहले ले लिया। उसने महेश ढोलकिया की उसके घर के पास दिन-दहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी। लॉकअप पर हमले के बाद पुलिस की राडार पर वियज उटकर आ गया। कुछ महीने बाद एक दिन पुलिस को टिप मिली की विजय एलफिंटन रोड के पास आने वाला है। पुलिस वहां पहुंची तो विजय तेजी से दादर की ओर भाग निकाला। पीछा करती हुई उसे दादर में ही एनकाउंटर में मार गिराया। बाक़ी हमलावरों के ख़िलाफ़ मुक़दमा चला और सज़ा हुई।

(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)

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