द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 25 – सब-इंपेक्टर राजन कटधरे ने सैलून में रमा नाईक का किया एनकाउंटर

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हरिगोविंद विश्वकर्मा
बाबू गोपाल रेशिम की लॉकअप में हुई हत्या से रमाकांत गिरोह का सबसे मज़बूत स्तंभ ढह गया। अब गैंग में केवल दो डॉन रमाकांत नाईक और अरुण गवली बचे थे। कहा जाता है कि हालांकि बाबू रेशिम की हत्या में अप्रत्यक्ष रूप से दाऊद इब्राहिम की अहम भूमिका थी। इसलिए बाबू की हत्या की घटना के बाद अरुण गवली का दाऊद पर से भरोसा बिल्कुल ही उठ गया था। हालांकि गैंग का सरगना रमाकांत नाईक इसके बावजूद दाऊद को अपना दोस्त मानता रहा। बताया जाता है, रमाकांत नाईक का शरद शेट्टी उर्फ अन्ना के साथ पश्चिमी उपनगर मालाड में एक बड़े भूखंड को लेकर विवाद हो गया था। दोनों ही अपराधी दाऊद के ख़ासमख़ास थे।

अपराध और हफ्ता वसूली के बाद ड्रग और सोने-चांदी की तस्करी से दाऊद को सबसे अधिक पैसे आते थे। शरद अन्ना तस्करी के कारोबार में दाऊद का दाहिना हाथ माना जाता था। शरद अन्ना की बदौलत ही दाऊद का तस्करी का कारोबार बहुत अधिक बढ़ गया था। इसलिए एक तरह से दाऊद का मेन फाइनेंसर बन गया था। इसी तरह रमाकांत नाईक बचपन से दाऊद के साथ खेला-खाया था। वह उसका दोस्त ही नहीं, बल्कि अपराध-जगत में उसका क़रीबी सहयोगी भी था। कई मौक़े पर वह दाऊद के लिए बहुत अधिक उपयोगी साबित हुआ था। समद ख़ान को मारने के लिए बाबू रेशिम के साथ उसने ख़ुद दाऊद का साथ दिया था। इस तरह दाऊद का वह बहुत महत्वपूर्ण सहयोगी बन गया था।

लिहाज़ा, दाऊद दोनों में से किसी को नाराज़ या दुखी नहीं करना चाहता था। वह चाहता था कि कोई एक स्वेच्छा से अपना दावा छोड़ दे, जिससे भूखंड का वह विवाद सुलझ जाए। जब टेलीफोन पर मामला हल नहीं हुआ तो दोनों को दुबई बुलाया गया। दाऊद ने ह्वाइट हाऊस में ही दोनों की बात ध्यान से सुनी। दाऊद को शरद अन्ना का दावा ज़्यादा सही लगा। उसने रमाकांत से कहा कि मालाड का वह भूखंड वह अन्ना को दे दे। रमाकांत को ऐसी उम्मीद नहीं थी, उसे विश्वास था कि भाई उसके पक्ष में फ़ैसला देगा। उसे दाऊद का फ़ैसला एकतरफ़ा लगा। इससे वह ख़ासा नाराज़ भी हुआ लेकिन नाराज़गी ज़ाहिर किए बिना दुबई से वापस लौट आया। गवली ने उसे समझाया कि दाऊद पर अब और भरोसा करना ठीक नहीं है। दाऊद समय के साथ पूरी तरह बदल गया है। लिहाज़ा, रमाकांत नाईक ने भी दाऊद का समझौता ही मानने से ही इनकार कर दिया।

दाऊद दुबई में बैठकर संपूर्ण मुंबई के अंडरवर्ल्ड को कंट्रोल कर रहा था। ऐसा पहली बार हुआ, जब किसी ने उसकी बात मानने से खुले तौर पर इनकार किया हो। दाऊद ने सोचा भी नहीं था कि रमाकांत महज़ एक भूखंड के लिए उसके साथ बचपन की दोस्ती ख़त्म कर सकता है। उसकी बात मानने से इनकार कर सकता है। लेकिन यहां ऐसा ही हुआ। रमाकांत ने शरद अन्ना को बता दिया कि भूखंड पर उसका दावा बरकरार है। वह दाऊद का समझौता नहीं मानता है। अपने आदेश का उल्लंघन दाऊद बिलकुल सहन नहीं कर पाता था। वह तुरंत कोई न कोई एक्शन करता था। रमाकांत के मामले में भी वही हुआ। रमाकांत की बग़ावत दाऊद के लिए बहुत सीरियस और ख़तरे की घंटी थी। दाऊद के मुंह से निकला, “कुछ तो करना पड़ेगा बाप।”

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21 जुलाई 1988 की सुबह नागपाड़ा पुलिस स्टेशन में तैनात सब-इंपेक्टर राजन कटधरे जैसे ही पुलिस स्टेशन पहुंचे। ऑफिस के फोन की घंटी ने उनका स्वागत किया। उन्होंने रिसीवर उठाया तो आवाज़ साफ़ नहीं आ रही थी। फोन में ऐसा डिस्टर्बेंस तब होता था, जब कॉल विदेश से आया हो। फोन करने वाला बहुत तहज़ीब से बातें कर रहा था। दोनों के बीच क्या बात हुई? यह तो किसी को पता नहीं। लेकिन फोन रखते ही राजन कठधरे को एक्शन में देखा गया। चुनिंदा पुलिस वालों की टीम को लेकर वह थाने से फौरन निकल दिया। उनकी पुलिस जीप हवा से बात करती हुई उत्तर-पूर्व की ओर भागी जा रही थी। कटधरे जैसा बता रहे थे, ड्राइवर वैसा ही चला रहा था।

जीप में पीछे बैठे पुलिसवालों को पता नहीं था, वे कहां जा रहे हैं। बहरहाल, जीप चेंबूर पहुंच गई और एक हैयर कटिंग सैलून के सामने रुक गई। पुलिस का ब्रेक सुनते ही सैलून में हरकत हुई। अंदर से किसी ने फ़ायर कर दिया। जवाब में पुलिसवालों ने पोज़िशन ले ली। दोनों तरफ़ से फायरिंग शुरू हो गई। इससे पूरे इलाक़े में ख़ौफ़ पसर गया। राजन कटधरे ने हिम्मत दिखाई और आगे बढ़कर बहुत क़रीब से फ़ायर किया। गोली अंदर से फायरिंग कर रहे व्यक्ति को लग गई। वह ज़ोर से चीख पड़ा। उसके बाद अंदर से फ़ायरिंग बंद हो गई। सूचना पाकर स्थानीय चेंबूर पुलिस स्टेशन की पुलिस फौरन वहां पहुंच गई। सैलून के दरवाज़े पर हमलावर ज़मीन पर गिरा पड़ा था। उसके शरीर में हरकत हो रही थी। अंततः राज़ खुला कि वह तो बेहद ख़तरनाक अपराधी रमा नाईक है। वह इस सैलून में बाल कटाने अकसर आता था, क्योंकि बग़ल में उसकी प्रेमिका हिल्डा काम करती थी।

चेंबूर पुलिस स्टेशन की ओर से एक रिपोर्ट तैयार की गई। वह इस प्रकार थीः 21 जुलाई 1988 को सुबह पुलिस को सूचना मिली कि वांछित अपराधी रमाकांत नाईक चेंबूर के एक सैलून में बाल कटवा रहा है। नागपाड़ा पुलिस स्टेशन में तैनात सब-इंपेक्टर राजन कटधरे के नेतृत्व में नागपाड़ा पुलिस फ़ौरन चेंबूर के लिए रवाना हुई। पुलिस जैसे ही सैलून के पास रुकी, रमाकांत नाईक ने अंदर से पुलिस टीम पर फायर कर दिया। आत्मरक्षा में पुलिस टीम को न चाहते हुए भी जवाबी फ़ायरिंग करनी पड़ी। जवाबी गोलीबारी में रमाकांत बुरी तरह घायल हो गया। घायल अवस्था में रमा को फौरन राजावड़ी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे डेड बीफोर एडमिशन घोषित कर दिया। बाद में यह मुठभेड़ के बारे में पुलिस का यह प्रेस रिलीज मॉडल प्रेस रिलीज बन गई।

बहरहाल, दूसरे दिन अख़बारों में छपी रिपोर्ट्स में एनकाउंटर पर गंभीर संदेह जताया गया। एक राष्ट्रीय अख़बार में क्राइम संवाददाता ने यहां तक दावा किया कि दरअसल, रमाकांत नाईक की हत्या दाऊद के चाचा अहमद अंतुले और डैनी ने मिलकर धोथे से जुहू में कर दी थी। उसे मारने के बाद उसकी बॉडी राजन कटधरे को सौंप दी गई। इस तरह राजन ने रमाकांत को मार गिराने का क्रेडिट ख़ुद ले लिया। कई अख़बारों में यह रिपोर्ट भी छपी कि दाउद के इशारे पर ही राजन कटधरे ने चेंबूर जाकर रमा नाईक का एनकाउंटर किया। हक़ीक़त यह है कि वह नागपाड़ा पुलिस स्टेशन में पोस्टेड था और चेंबूर का इलाक़ा उसके ज्यूरिडिक्शन में भी नहीं आता। फिर वह चेंबूर क्यों और कैसे पहुंच गया? मुठभेड़ और कटधरे की भूमिका की मजिस्ट्रेट जांच हुई।

(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)

अगला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें – द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 26