1980 के दशक के शुरुआती समय में भारत के मीडिल ऑर्डर की रीढ़ रहे यशपाल शर्मा का लगभग पूरा जीवन क्रिकेट को समर्पित रहा। वह तकनीकी रूप से बहुत सक्षम नहीं थे, लेकिन यह कमी उनके साहस, एकाग्रता, दृढ़ संकल्प और धैर्य, गुणों के सामने नहीं आईं। क्रिकेट से रिटायर होकर भी वो इस खेल से जुड़े रहे। वो टीम इंडिया के नेशनल सेलेक्टर भी बने। उनका पहला फेज सेलेक्टर की भूमिका में 2003 से दिसंबर 2005 तक का रहा। इसके बाद 2008 में इस रोल में उनकी दोबारा से वापसी हुई। बतौर सेलेक्टर उन्होंने भारतीय क्रिकेट से जुड़े कई अहम फैसलों में अपना योगदान दिया, जिसमें सौरव गांगुली बनाम ग्रेग चैपल विवाद भी शामिल है। टीम इंडिया के सेलेक्टर बनने से पहले उन्होंने कुछ वक्त तक अंपायरिंग भी की।
लुधियाना में 11 अगस्त 1954 को जन्मे दाहिने हाथ के बल्लेबाज़ यशपाल शर्मा ने घरेलू क्रिकेट में पंजाब, हरियाणा और रेलवे का प्रतिनिधित्व किया। यशपाल ने 1972 में 18 साल की उम्र में पंजाब स्कूल की ओर से खेलते हुए जम्मू-कश्मीर स्कूल के खिलाफ 260 रन बना डाले। पहली बार वह राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में तब आए जब 1977 में दलीप ट्रॉफी में उत्तर क्षेत्र की ओर से खेलते हुए दक्षिण क्षेत्र के बीएमस चंद्रशेखर, एक आबिद अली और इरापल्ली प्रसन्ना के अटैक का बहादुरी से सामना करते हुए मैच विंनिंग 173 रन बना डाले।
इसके बाद उनका चयन पाकिस्तान जाने वाली भारतीय टीम में कर लिया गया। इंटरनेशनल क्रिकेट में यशपाल शर्मा का डेब्यू पाकिस्तान के खिलाफ सियालकोट में खेले वनडे मुकाबले से साल 1978 में हुआ था। हालांकि टेस्ट टीम में जगह नहीं बना पाए। उन्हें टेस्ट मैच खेलने के लिए दो साल इंतज़ार करना पड़ा। अगले ही साल उन्होंने अपना पहला टेस्ट मैच इंग्लैंड के खिलाफ क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स के मैदान पर 2 अगस्त 1979 को खेला। पहला शतक उन्होंने सातवें मैच में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध दिल्ली टेस्ट में लगाया। अगले मैच में उन्होंने इडेन गार्डन में 115 गेंद पर 85 रन बना डाले। अगले साल उन्होंने कोलकाता के ईडन गार्डंस में शानदार पारी खेली। शर्मा ने दूसरा शतक इंग्लैंड के खिलाफ चेन्नई में बनाया। उस मैच में 140 रन बनाने वाले शर्मा ने 222 बनाने वाले गुलडप्पा विश्वनाथ के साथ 316 रनों की भागीदारी की। ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के खिलाफ सीरीज में वह टीम के नियमित सदस्य बन गए।
1983 प्रूडेंशियल वर्ल्डकप में भारतीय टीम की पहली जीत के हीरो रहे। वेस्टइंडीज के खिलाफ मैच में शर्मा जब क्रीज पर उतरे तो टीम का स्कोर तीन विकेट पर 76 रन था जो जल्द ही पांच विकेट पर 141 रन हो गया। यशपाल ने 120 गेंद पर शानदार 89 रन की पारी खेली और भारत का स्कोर 262 रन पर पहुंचाया। उन्होंने अच्छे शॉट तो लगाए ही साथ ही विकेट के बीच अच्छी दौड़ भी लगाई। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आक्रामक 40 रन हों या फिर सेमी फाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ मुश्किल हालात में खेली गई 61 रन की पारी। शर्मा ने विश्वकप में 34.28 के औसत से 240 रन बनाए। भारत ने अंत में वर्ल्ड कप अपने नाम किया।
1983 वर्ल्ड कप में अपने शानदार प्रदर्शन के बाद हालांकि पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के खिलाफ 1983-84 सीजन के दौरान वह अचानक फॉर्म से चूक गए। इसके बाद उन्होंने टेस्ट टीम में अपना स्थान खो दिया, जिसे वह दोबारा हासिल नहीं कर पाए। यह दौरान उनके जीवन का आखिरी दौरा साबित हुआ। यशपाल शर्मा ने 37 टेस्ट मैच और 42 एकदिवसीय मैच में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। 37 टेस्ट मैचों में 33.45 की औसत से 1606 और 42 वनडे मैचों में 28.48 की औसत से 883 रन बनाए। उन्होंने 160 फर्स्ट क्लास मैचों में 44.88 की औसत से 8933 रन बनाए।
यशपाल शर्मा ने कुछ वर्षों के लिए राष्ट्रीय चयनकर्ता के रूप में भी काम किया और 2008 में उन्हें फिर से पैनल में नियुक्त किया गया था। यशपाल दिलीप कुमार के बहुत बड़े फैन थे। उन्होंने कहा भी था कि दिलीप कुमार ने उनका करियर बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। दिलीप कुमार ने पंजाब का रणजी मैच देखने के बाद शर्मा के लिए बीसीसीआई में राजसिंह डुंगरपुर से बात की थी। यशपाल इस बात के लिए दिलीप कुमार का बड़ा अहसान मानते थे। यशपाल का हार्टअटैक से का निधन हो गया। उनके परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटियां और एक बेटा है। वह पूर्व तेज गेंदबाज चेतन शर्मा के चाचा थे।
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