हमारा समाज सक्सेस-ओरिएंटेड है, जहां केवल कामयाबी की ही पूजा होती है। यानी यहां केवल सफल आदमी की कद्र होती है। सफल आदमी की ही लोग वाहवाही करते हैं। यही वजह है कि हर जगह केवल विजेताओं का यशोगान किया जाता है। मसलन, परीक्षा में टॉपर्स के पीछे हर कोई भागता है, उन्हें महानायक बनाकर पेश करता है। बेशक कामयाब लोग प्रेरणास्रोत और समाज के हीरो होते हैं। लेकिन, कभी-कभार पराजित लोग भी ऐसा काम कर जाते हैं कि उन पर कलम चलाने का अनायास मन करने लगता है। आइए हम आपको बताते हैं कैंसर से जंग में पराजित होकर दुनिया से रुखसत करने वाली एक ग़ुमनाम लेकिन जुझारू लड़की की कहानी।
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उसे हिरोइन नहीं कह सकते, क्योंकि वह विजेता नहीं थी। वह पराजित योद्धा थी, जो तीन साल से कैंसर से लड़ रही थी। इस दौरान उसने काल के गाल से समा रहे अपने जीवन को यमराज के चंगुल से छीनने की हर संभव कोशिश की। इस लड़ाई में उसका परिवार, उसके दोस्त, शुभचिंतक और डॉक्टर यहां तक कि मेडिकल साइंस भी उसके साथ था, लेकिन उसका अपना शरीर ही उसका साथ नहीं दे रहा था। एक-एक करके धीरे-धीरे एक-एक अंग साथ छोड़ रहे थे। क़रीब महीने भर पहले ज़बान ने भी उसका साथ छोड़ दिया था। वह सदा के लिए मौन हो गई थी, तब से वह चुपचाप कैंसर से लड़ रही थी, लेकिन एक शाम सहसा उसका संघर्ष ख़त्म हो गया और वह दूसरे लोक के लिए प्रस्थान कर गई।
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यह कहानी महाराष्ट्र सरकार के राजस्व विभाग के बांद्रा पूर्व दफ़्तर में काम करने वाली जयमाला गायकर (Jaymala Gaikar) की है। घरवाले प्यार से उन्हें साई कह कर बुलाते थे। उनका जीवन के लिए संघर्ष कमोबेश वैसा ही रहा, जैसा अमूमन कैंसर रोगियों का होता है। यानी पता चलते ही ताबड़तोड़ इलाज शुरू हो गया। दवा खा-खाकर शरीर को मेडिकल स्टोर बना दिया। दरअसल, साई के निधन ने कैंसर को हराने के लिए दवा खोज रहे मेडिकल साइंस की भी चुनौती बढ़ा दी है। यह भी दुखद है कि मेडिकल साइंस में इतनी खोज के बाद भी मौत के सामने इंसान कितना लाचार रहता है। यह एक ऐसी पीड़ा है, जिसे सिर्फ़ वही महसूस कर सकता है, जो उसका भुक्तभोगी है।
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दरअसल, साई ओवरी यानी गर्भाशय कैंसर से पीड़ित थीं। सबसे दुखद बात यह रही कि साई को डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें ओवरी कैंसर है और वह टर्मिनल स्टेज यानी इनक्यूरेबल स्टेज में हैं। यानी साई की बीमारी जब डिटेक्ट हुई, तब वह कुछ कर ही नहीं सकती थीं। इसके बावजूद वह कैंसर से तीन साल तक लड़ती रहीं। डॉक्टर बताते हैं कि शुरू में उन्हें पेट में हल्का दर्द हुआ था। लिहाज़ा, डॉक्टर से दवा ली और ठीक हो गईं। कुछ दिन बाद दोबारा दर्द हुआ, फिर डॉक्टर के पास फिर गईं। डॉक्टर ने सोनोग्राफी करने की सलाह दी। सोनोग्राफी में पूरी परेशानी का पता नहीं चल सका। इसके बाद डॉक्टर को पेट दर्द के लक्षण पर संदेह हुआ तो उन्होंने बायोप्सी करवाई। बायोप्सी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि उन्हें ओवरी कैंसर है। वह आनन-फानन में टाटा मेमोरियल अस्पताल गईं। उनकी कीमोथेरेपी शुरू हुई, जिससे उनका चेहरा ही नहीं, बल्कि पूरा शरीर बिगड़ गया। कोई उन्हें देखकर पहचान ही नहीं पाता था कि यह साई गायकर (Sai Gaikar) हैं। बहरहाल, ख़ुद को बचाने की कवायद में दिनोंदिन साई शिथिल पड़ती गईं और तीन साल से अधिक समय तक मौत से लड़ने के बाद एक शनिवार की शाम उन्होंने मौत के सामने हथियार डाल दिए।