ऐसी रेलगांड़ी जिसमें इतने कैंसर मरीज़ होते हैं कि उसका नाम ही कैंसर एक्सप्रेस पड़ गया
क्या आप जानते हैं कि देश में एक ऐसी भी ट्रेन चलती है, जिसे कैंसर एक्सप्रेस कहा जाता है। दरअसल, पंजाब में नशोखोरी के बाद सबसे ज़्यादा लोग कैंसर से पीड़ित हैं। रोज़ाना शाम को अबोहर से जोधपुर के लिए रवाना होने वाली इस ट्रेन में ज़्यादातर मुसाफ़िर कैंसर के मरीज़ होते हैं, जो इलाज के लिए बीकानेर जाते हैं, इसीलिए इस ट्रेन को कैंसर एक्सप्रेस कहा जाता है। कई रिसर्च से यह तथ्य सामने आया है कि हरित क्रांति ने पंजाब को कृषि में भले आगे किया हो, लेकिन फसलों में खाद के ज़्यादा इस्तेमाल से फसलों में कैंसरस तत्व पैदा हो रहे है। इस अनाज को खाने के कारण ही राज्य में कैंसर के बहुत ज़्यादा रोगी है।
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शाम का सात बजे का वक़्त है। सर्दी दिन के मुक़ाबले बहुत ज़्यादा बढ़ गई है। अगर कहें कि कड़ाके की ठंड पड़ रही है तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। अबोहर रेलवे से 54703 अबोहर-बीकानेर पैसेंजर छूटने वाली है, लेकिन प्लेटफॉर्म पर बहुत चहल-पहल नहीं है। दरअसल, यात्री पहले ही ट्रेन में सवार हो चुके हैं। फिर भी ट्रेन खाली है। अब वे ट्रेन के छूटने का इंतज़ार कर रहे हैं। यह ट्रेन रात साढ़े नौ बजे भटिंडा बहुचेगी। वह बड़ी संख्या में लोग सवार होंगे। वस्तुतः इस ट्रेन से सफ़र करने वाले क़रीब 90 फ़ीसदी लोग कैंसर के मरीज़ या उनके परिजन हैं जो इलाज के लिए बीकानेर जा रहे हैं। यह ट्रेन दूसरे दिन सुबह क़रीब छह बजे बीकानेर पहुंचेगी।
आचार्य तुलसी कैंसर संस्थान
चूंकि आचार्य तुलसी कैंसर संस्थान बीकानेर में है और यह ट्रेन बीकानेर जाती है, इसलिए पंजाब ही नहीं, उत्तर भारत के दूसरे कई राज्यों से भी कैंसर के मरीज आचार्य तुलसी कैंसर संस्थान जाने के लिए इस ट्रेन से सफर करते हैं। कैंसर रोगियों के बीच मशहूर हो चुका आचार्य तुलसी कैंसर संस्थान मरीजों को 20 दिन की दवा देता है। इससे मरीज़ हर 20 दिन बाद बीकानेर जाता है। अब तो इस ट्रेन को विधिवत कैंसर एक्सप्रेस ही कहा जाता है।
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ग़रीब तबक़े के कैंसर मरीज़
12 बोगियों वाली यह पैसेंजर ट्रेन हर रात लगभग नौ बजे अबोहर से बीकानेर पहुंचती है और भटिंडा के अलावा मुख्तसर, मनसा, फिरोजपुर, मोंगा, बरनाला, फरीदकोट और संगरूर जिले के कैंसर रोगियों को बीकानेर तक पहुंचाती है। खचाखच भरी ट्रेन को देखकर ही लोग परेशान हो जाते हैं। इसमें पांच साल से लेकर 80 साल के कैंसर मरीज़ कराहते और दर्द से चिल्लाते नज़र आते हैं। कैंसर रोगियों की बढ़तकी तादाद को देखकर ही बीकानेर में इनके ठहरने के लिए कई धर्मशाला और लॉज है। इन ग़रीब मरीज़ों का इलाज सस्ते में मिलता ही है, उनके रहने का इंतजाम भी सस्ते में हो जाता है। ज़्यादातर ग़रीब तबक़े के कैंसर मरीज़ इस ट्रेन से सफ़र करते हैं। इस ट्रेन से यात्रा करने की एक वजह यह भी है कि इसका किराया कम है और मरीज़ सुबह 5।30 बजे बीकानेर उतरने के बाद मरीज़ आठ बजे अस्पताल पहुंचकर ओपीडी जांच के लिए लाइन लगा लेते हैं।
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मालवा में सबसे ज़्यादा कैंसर रोगी
देश में कैंसर मरीजों की संख्य प्रति लाख 71 है, लेकिन पंजाब के मालवा इलाके में यह आंकड़ा 125 से भी ज़्यादा है। कैंसर के इस आंकड़ें को देखकर कहा जा सकता है कि मालवा का ऊर्वर इलाक़ा इंसानों के पैदा किए कैंसर से बर्वादी के कगार पर है। ज़्यादा अन्न उपजाने की लालच की वजह से यहां की नायाब धरती को कैंसर नामक जानलेवा बीमारी एकबार फिर निगलने को तैयार है।
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बीटी कॉटन तबाही की वजह
दरअसल, कोई दो दशक पहले यहां देसी ढंग से कॉटन की खेती शुरू हुई थी, लेकिन बीटी कॉटन ने खेती के तरीके और किसानों की ज़िंदगी भी बदल दी। पंजाब में कपास की खेती 5।65 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर होती है जबकि सिर्फ भटिंडा में 1।65 लाख हेक्टेयर की कपास खेती होती है। पंजाब में पूरे देश की डेढ फीसदी भूमि है और देश के 18 फीसदी पेस्टीसाइड का प्रयोग यहां होता है। पेस्टीसाइड ने यहां के पूरे वातावरण को ही ज़हरीला कर दिया है। इस वजह से यहां कैंसर तेज़ी से पांव परसार रहा है।
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मरीज़ों की जीवन रेखा
जहां तक कैंसर एक्सप्रेस की बात है तो कह सकते हैं कि कैंसर एक्सप्रेस महज़ एक ट्रेन नहीं है, बल्कि यह उन सैकड़ों मरीज़ों की जीवन रेखा भी है, जो कैंसर मुक्त होने की उम्मीद पाले हर तीसरे हफ़्ते अबोहर या बठिंडा से बीकानेर जाते है। बताया जाता है कि कैंसर के बहुत देर से डिटेक्ट होने से बहुत कम लोग भागयशाली होते हैं जो कैंसर को हरा देते है। बाक़ी लोग कैंसर से लड़ ही नहीं पाते।
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गुजरात का कैंसर गांव
गुजरात के महेसाणा जिले के बेचराजी का प्रतापगढ गांव उन दुर्भाग्यशाली गांवों में हैं जहां सबसे ज्यादा मौत कैंसर से हुई है। इसीलिए इस गांव को कैंसर गांव कहा जाने लगा है। सौ साल पुराने इस गांव की आबादी फ़िलहाल 400 लोगों के क़रीब है। बताया जाता है कि गांव में शुरू से ही कैंसर का प्रकोप रहा है। कैंसर से बहुत ज़्यादा लोगों की मौत होती है। हाल के सालों में यहां 100 लोग कैंसर से जान गंवा चुके हैं। पहले बूढ़ों-बुजुर्गों पर कैंसर का आक्रमण होता था, लेकिन आजकल युवक भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। युवाओं में बढ़ता कैंसर चिंता का विषय बन गया है। हालांकि फ़िलहाल गांव में केवल चार ही कैंसर मरीज़ हैं, लेकिन कैंसर के ख़ौफ और इसके इतिहास को लेकर गांव चर्चा में रहता है। गांववालों का कहना है कि इसकी वजह से सामाजिक तौर पर गलत असर पड़ रहा है। लोग अपनी बेटियों की शादी इस गांव में नहीं करना चाहते। कैंसर के विशेषज्ञ गांव में इतने ज़्यादा कैंसर डेथ से परेशान होते हैं। महेसाणा की डॉ। निराली त्रिवेदी के मुताबिक एक ही किस्म का कैंसर हो तो वजह का पता लगाया जा सकता है, लेकिन इस गांव में मुंह, गर्भाशय, लीवर और स्तन कैंसर समेत कई तरह की बीमारी है।
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बिहार का कैंसर गांव
बिहार में दरभंगा के बेनीपुर के महिनाम गांव में 50 लोग कैंसर से पीड़ित है। हाल के वर्षों में दो दर्जन से ज़्यादा लोग कैंसर से काल कवलित हो चुके हैं और जो ज़िंदा हैं वे हर पल इस मौत की तरफ़ बढ़ रहे हैं। क़रीब डेढ़ साल पहले मीडिया में ख़बर आने के बाद हेल्थ डिपार्टमेंट की नज़र इस गांव पर पड़ी। इसके बाद जिला प्रशासन और हेल्थ डिपार्टमेंट की नींद टूटी है। डीएम के निर्देश पर बीमारी का पता लगाने के लिए गांव में मेडिकल टीम भेजी गई है। लीवर, रक्त और त्वचा की गंभीर बीमारी से पीड़ित लोग जब तक अपनी बीमारी के प्रति संजीदा होते कैंसर लाइलाज स्टेज तक जा पहुंचा। 18 हज़ार से ज़्यादा आबादी वाला महिनाम गांव कभी सुखी-संपन्न और जिले के विकसित गांवों में शुमार होता था। लेकिन कैंसर के कहर ने गांव की सूरत ही बदल दी। गांव में कैंसर के असल कारण का अब तक किसी को पता नहीं हैं।
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