गर्भाशय कैंसर संभवतः कैंसर की सबसे ख़तरनाक प्रजातियों में से एक है। जैसे कोई आप पर घात लगाकर हमला कर दे और आपको पता भी न चले, उसी तरह का हमला करता है। जिसके शरीर को यह डैमेज करना शुरू करता है, उसे ही पता नहीं चलता और जब पता चलता है तब तक बहुत देर चुकी हुई होती है। इसीलिए भारत में गर्भाशय कैंसर साइलेंट किलर कहा जाने लगा है, क्योंकि यह महिलाओं की सबसे ज़्यादा मौतों के लिए ज़िम्मेदार कैंसर है।
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भारत में गर्भाशय कैंसर किसी ख़ास उम्र या वर्ग की महिलाओं पर हमला नहीं बोल रहा है, बल्कि इसके चंगुल में हर उम्र और हर वर्ग की महिलाएं फंस रही हैं। इसके बावजूद 30 साल के बाद की महिलाओं को इसका सबसे ज़्यादा ख़तरा होता है। सबसे बड़ी बात गर्भाशय कैंसर दूसरे किस्म के कैंसर के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा भारतीय महिलाओं की जानें ले रहा है। अपने देश में महिलाओं में 23 तरह की कैंसर बीमारियां हैं, इनमें क़रीब 27 फ़ीसदी महिलाएं गर्भाशय कैंसर से पीड़ित हैं। यानी गर्भाशय कैंसर कैंसर की बीमारियों में पहले स्थान पर है। गर्भाशय कैंसर के बाद दूसरी स्थान स्तन कैंसर का है। जिससे 16।5 फ़ीसदी महिलाएं पीड़ित हैं। हाल ही में कराए गए सर्वें में यह पता चला कि लोग गर्भाशय कैंसर की तुलना में स्तन कैंसर के बारे में ज़्यादा जानते हैं। यह भी हैरान करने वाली बात है।
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स्तब्ध करने वाले डेटा
गर्भाशय कैंसर मेडिकल साइंस के लिए गंभीर चुनौती बन गया है। इस मुद्दे को अब और गंभीरता से लेने की ज़रूरत है, क्योंकि भारत में यह सबसे भयावह रूप में है। हाल ही में जारी डेटा स्तब्ध करने वाले हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन के मुताबिक जहां दुनिया में हर साल गर्भाशय कैंसर के 5.10 लाख नए मामले आ रहे हैं, जबकि क़रीब 1.37 लाख मामले हर साल अकेले केवल भारत में सामने आ रहे हैं। अगर गर्भाशय कैंसर से होने वाली मौतों के फीगर पर नजर दौड़ाएं तो पूरे ग्लोब में हर साल 2 लाख 88 हज़ार महिलाओं इस छापामार आतंकी की शिकार होती हैं, जबकि भारत में हर साल 74 हज़ार से ज़्यादा (74118) महिलाएं काल के गाल में समा जाती हैं। गर्भाशय कैंसर से होने वाली मौतों को देखकर लगता है, अपने देश में गर्भाशय कैंसर से पीड़ित महिलाओं को बचाने के लिए बहुत ज़्यादा कुछ नहीं किया जाता है।
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जागरूकता बहुत कम
गर्भाशय कैंसर के बारे में महिलाओं में जागरूकता बहुत ज़्यादा कम है इसलिए इस बीमारी की स्क्रीनिंग भी दूसरी बीमारियों से कम होती है। गर्भाशय कैंसर के आंकड़ो पर गौर करें तब पता चलता है कि यह बीमारी इतनी भयावह क्यों है? दरअसल, हर तीन साल में 18 साल से 69 साल की महज़ 2.6 फ़ीसदी महिलाओं की जांच हो पाती है। यानी नाममात्र की महिलाओं की जांच होने से ही यह बीमारी इतना ख़तरनाक रूप धारण कर रही है। अपने देश में कुल महिलाओं में शहरी महिलाएं 4.3 फ़ीसदी और ग्रामीण महिलाएं 2.3 फ़ीसदी हैं। यही वजह है कि केवल 1, 37, 082 औरतों में गर्भाशय कैंसर का पता चला, जबकि हक़ीक़त यह है कि हमारे देश में, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन के मुताबिक़, 15 वर्ष के अधिक उम्र की 36 करोड़ 65 लाख 80 हजार औरतें गर्भाशय कैंसर के खतरे की जद में हैं।
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नियमित स्क्रीनिंग ज़रूरी
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन की माने तो गर्भाशय कैंसर का सबसे प्रमुख कारण ह्यूमन पैपीलोमा वायरस यानी एचपीवी वायरस है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन कहता है कि 99.7 फ़ीसदी गर्भाशय कैंसर की वजह यही वायरस होता है। एचपीवी को मारने वाली वैक्सीन ही गर्भाशय कैंसर से होने वाली मौतों को कम कर सकती है। परंतु इसके लिए ज़रूरी है नियमित स्क्रीनिंग।
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एडवांस स्टेज में चलता है पता
चूंकि अब तक गर्भाशय कैंसर की जांच के लिए कोई भी भरोसेमंद डाइग्नोस्टिक स्क्रीनिंग उपलब्ध नहीं है, ऐसे में एडवांस स्टेज तक पहुंचने तक या तो इसकी पहचान नहीं हो पाती है अथवा रिपोर्ट ग़लत आती रहती है। इसीलिए 75 फ़ीसदी से भी ज़्यादा मामलों में गर्भाशय कैंसर का पता एडवांस स्टेज में पहुंचने के बाद चलता है। सिर्फ़ 19 फ़ीसदी मामलों में शुरू में पता चल जाता है। जिन महिलाओं की समस्या का एडवांस स्टेज में पहुंचने के बाद पता लगता है उनमें से ज़्यादाकर साल भर के अंदर दम तोड़ देती है, जबकि बेहतर इलाज पाने वाली महिलएं अधिकतम 5 साल तक ही जीवित रह पाती हैं।
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36.5 करोड़ औरतें ख़तरे में
गर्भाशय कैंसर को गंभीरता से लेना होगा वरना यह बीमारी हमारे देश के लिए बहुत भारी पड़ेगी, इसका अनुमान सहज ही लगा सकते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन कहता है कि भारत में महिलाओं पर गर्भाशय कैंसर भविष्य में कितना भारी पड़ेगा जानकार लोगों के होश उड़ सकते हैं। डब्ल्यूएचओ चेतावनी देता है कि अगर गर्भाशय कैंसर के बढ़ने की मौजूदा गति बरक़रार रही तो सन 2025 तक गर्भाशय के कैंसर से रोज़ाना 36.5 करोड़ औरतों की मौत होने का ख़तरा है। एक भारतीय परिवार में महिलओं को धुरी माना जाता है। इस देश में परिवार में नारी पर जिस तरह की निर्भरता है, उसके मद्देनज़र हम इस खतरे को हल्के में नहीं ले सकते।
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लक्षण
गर्भाशय कैंसर के लक्षण बहुत गंभीर या गहरे नहीं होते हैं, खासतौर से शुरूआती दिनों में, लेकिन पूरी तरह साइलेंट भी नहीं होते हैं। जब इसे साइलेंट बीमारी के तौर पर ध्यान देते हैं तो पता चलता है कि गर्भाशय कैंसर से पीड़ित 95 फ़ीसदी महिलाओं को गर्भाशय कैंसर अस्पष्ट होने के स्थाई लक्षण होते हैं। बहरहाल, ओवेरियन कैंसर से पीड़ित महिलाओं में नीचे बताए गए लक्षण हो सकते हैं।
-सूजन
-पेड़ू में या पेट में दर्द
-खाने में परेशानी महसूस होना और जल्दी पेट भरा हुआ महसूस होना
-बार-बार पेशाब आना
वैसे गर्भाशय कैंसर के दूसरे लक्षणों में बहुत ज़्यादा थकान, अपच, छाती में जलन, पेट ख़राब होना, कमर के निचले हिस्से में दर्द और पैरों में दर्द जैसे लक्षण सामने आते हैं। आंतों की आदत में बदलाव जैसे क़ब्ज़ या डायरिया होना, वजन कम होना, अनियमित माहवारी और सांस लेने में कठिनाई जैसे लक्षण भी इसमें दिखाई दे सकते हैं। अगर इनमें से कोई लक्षण दिखाई दें और दो हफ्ते तक बरकरार रहें तो अपने डॉक्टर से सलाह ज़रूर लें।
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