फिटनेस जिंदगी का सबसे बड़ा तोहफा – मनीषा कोइराला

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कैंसर सरवाइवर – एक

कभी-कभी, क्या अक्सर, ऐसा होता है कि आप प्लानिंग कुछ और करते हैं, और हो, कुछ और जाता है। यानी, अचानक वह काम करना पड़ता है, जो एजेंडा में ही नहीं होता। ऐसा ही कुछ हुआ नब्बे के दशक की बॉलीवुड की चर्चित अभिनेत्री मनीषा कोइराला के साथ। 2012 में दिवाली के वह वक़्त जीवन को नए सिरे से संवारने की सोच रही थीं, कि अचानक नेपाल के डाक्टर्स ने आशंका जता दी कि उन्हें ओवेरियन कैंसर है। इस ख़बर ने अभिनेत्री के जीवन की दिशा ही बदल दी। ध्यान करियर वगैरह से हटकर अचानक ज़िंदगी की ओर चला गया। कि, ज़िंदा कैसे रहा जाए…

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दरअसल, सम्राट दलाल के साथ दो साल की मैरीड लाइफ़ की उथल-पुथल से उबरने के बाद मनीषा काठमांडो में अपना घर बनवाने में जुटी थीं। इसी बीच अक्टूबर के अंत में उन्हें पेट में हल्का दर्द महसूस हुआ। पीठ के निचले हिस्से में दर्द पहले से हो रहा था। दर्द नवंबर तक बरकरार रहा और वह बीमार पड़ गईं। फ़ेसबुक पर बेहद सक्रिय मनीषा ने अपनी सेहत की जानकारी 20 नंवबर को फ़ौरन फेसबुक पोस्ट कर दिया। अपने प्रशंसकों को बताया कि उन्हें फूड पॉयज़निंग हो गई है। अगले दिन फ़ेसबुक पर एक और पोस्ट डाला, “ये साल मेरे लिए बेहद घटनापूर्ण रहा, कुछ रिश्तों का अंत हुआ तो कुछ का आरंभ। मैं केटीएम में अपने घर की मरम्मत करवा रही थी कि बीमार पड़ गई। मुझे एक पप्पी मिला है। भगवान जब देता है तो छप्पड़ फाड़ के देता है, इन सबका इस्तक़बाल करती हूं।”

इस बीच मनीषा के पीठ के निचले हिस्से और पेट का दर्द बंद नहीं हुआ। 25 नवंबर को पेटदर्द बहुत तेज़ होने पर वह बेहोश हो गईं। फ़ौरन उन्हें नेपाल के नोरविन अस्पताल ले जाया गया और इमरजेंसी वार्ड में उन्हें भर्ती कर लिया गया। डॉक्टरों को जांच में पता चला कि उनके यूटरस की दोनों ग्रंथियों में से एक थोड़ी बड़ी हो गई है। डाक्टर्स को संदेह था कि बढ़ी हुई ग्रंथि में कैंसरस सेल्स हो सकती हैं। लिहाज़ा, अभिनेत्री को मुंबई या दिल्ली जाकर गहन जांच कराने की सलाह दी गई।

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आनन-फानन में मनीषा मां सुषमा के साथ मुंबई पहुंच गईं और 27 नवंबर की शाम जसलोक अस्पताल में भर्ती हो गईं। वहां उनकी बढ़ी ओवेरियन ग्रंथि की बायोस्पी की गई। दूसरे दिन मुंबई की मीडिया में ख़बर लीक हो गई कि मनीषा को ओवेरियन कैंसर है। बहरहाल, बायोस्पी रिपोर्ट में पुष्टि हो गई कि ओवेरियन ग्रंथि कैंसर के ही कारण बढ़ी है। डॉक्टरों ने इसका इलाज भारत में संभव हैं परंतु विदेश जाना ज़्यादा बेहतर होगा। लिहाज़ा, मनीषा को अमेरिका जाने की सलाह दी गई। दरअसल, इसका इलाज न्यूयॉर्क के मैनहट्टन में 131 साल पुराने स्लोआन केटरिंग कैंसर सेंटर में होता है।

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कैंसर की ख़बर ने तो एक बार मनीषा को स्तब्ध कर दिया। अस्पताल में उनकी मां सुषमा बिस्तर पर उनकी बग़ल बैठी थीं और पिता प्रकाश कोइराला और भाई सिद्धार्थ सामने कुर्सियों पर। सभी के चेहरे उतरे थे, चेहरे पर के भाव बदल रहे थे। कभी फ़ीकी मुस्कान आती तो कभी निराशा। दरअसल, लोग मनीषा को मायूस नहीं करना चाहते थे, इसलिए मुस्कुराने की भरसक कोशिश कर रहे थे लेकिन सफल नहीं हो रहे थे। ऐसी ख़बर सुनकर चेहरे पर मुस्कान नहीं आ सकती चाहे जितनी ऐक्टिंग की जाए। लिहाज़ा, लोग मनीषा को दिलासा दे रहे थे। बताने की कोशिश कर रहे थे कि अभी देर नहीं हुई है। रोग का इलाज है। सब कुछ ठीक हो जाएगा।

कुछ देर में ही लगा, मनीषा ने भी इसे हिम्मत से स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा कि जल्द ही कैंसर से जंग में जीत जाएंगी। अमेरिकी रवाना होते समय उनके होंठों पर मुस्कान थी। उन्होंने कहा, “हमें आगे बढ़ने कि लिए, इसे स्वीकार करना सीखना पड़ेगा। किसी चीज़ के चलते हम रुक तो नहीं सकते। भगवान ने हम सबको अपने-अपने अंदर पर्याप्त शक्ति दी है। जिससे हम किसी भी हालात से लड़ सकते हैं और विजेता बनकर उभर सकते हैं।”

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बहरहाल, तीन दिन बाद मनीषा जसलोक अस्पताल से डिस्चार्ज हुईं और तीन दिसंबर को अमेरिका रवाना हो गईं। माता-पिता और भाई साथ थे। पांच दिसंबर को उन्हें स्लोआन केटरिंग कैंसर सेंटर में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने कहा कि चिंता न करें, सब कुछ ठीक रहा तो चार महीने में मनीषा एकदम ठीक हो जाएंगी। ये उम्मीद भरे शब्द मनीषा ही नहीं, पूरे परिवार के लिए संजीवनी बूटी की तरह थे। बहरहाल, अगले दिन यानी गुरुवार को उनकी सर्जरी हुई। वह 18 दिसंबर को अस्पताल से डिस्चार्ज हो गईं और अपने होटल आ गईं। बहरहाल, बीच-बीच में चेकअप के लिए अस्पताल जाती रहीं।

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इस दौरान मनीषा ने ख़ुद को अकेला कभी नहीं पाया। परिवार हर पल उनके साथ था। मम्मी-पाप उन्हें हंसाते थे। सिद्धार्थ मूड हल्का रखने के लिए खूब जोक्स सुनाते रहते थे और फ़िल्में भी दिखाते थे। बॉलीवुड में उनकी सहेली अभिनेत्री तब्बू हमेशा संपर्क में रहीं। तब्बू मनीषा का हालचाल बराबर ले रही थी। शत्रुघ्न सिन्हा और गुलशन ग्रोवर भी समय-समय पर फोन कर उनकी रिकवरी का समाचार लेते थे और उत्साह बढ़ाते थे।

अप्रैल के दूसरे हफ़्ते में ही डॉक्टर्स ने बताया कि मनीषा की सारी कैंसरस सेल्स ख़त्म की जा चुकी हैं। मनीषा ने फ़ौरन फ़ेसबुक प्रशंसकों को लिखा, “मेरे प्यारे दोस्तों, आपके प्यार और शुभकामनाओं के लिए दिल से आभार। मैं बेहतर स्थान पर बेहतर लोगों के दरम्यान हूं। आपकी दुआओं की वजह से अब मैं ऩिश्चित तौर पर जल्दी ठीक हो जाऊंगी। ये ज़िंदगी आश्चर्यो से भरी है और कैंसर मेरी ज़िंदगी का एक आश्चर्य ही था।”

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बहरहाल, 15 मई को इलाज कर रहे डॉक्टर ने जब उन्हें बताया कि वह एकदम ठीक हो गई है तो मनीषा फूट-फूट कर रोने लगी। डॉक्टर ने सिर पर हाथ फेरा और बोले, “रियली यू आर लकी।” मां की भी आंख गीली हो गई, परंतु वे खुशी के आंसू थे, बेटी के कैंसर से उबरने की खुशी। मनीषा ने फ़ेसबुक पर एक बार फिर अपनी भावनाएं उडेला, “अब मैं पूरी तरह से ठीक हूं। हां, पहले की तरह होने में अभी थोड़ा और वक़्त समय लगेगा। जल्दी ही वह दिन आएगा, जब मैं पहले जैसी भली चंगी हो जाऊंगी।”

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‘बॉम्बे’ की अभिनेत्री स्वास्थ लाभ के दौरान जून में न्यूयार्क के थर्ड एवन्यू में लगे मेले में घूम आईं। अनुभव बेहद अच्छा रहा, जिसे, उसने ट्विटर पर पोस्ट किया, ‘‘यहां न्यूयॉर्क में मुझे मेले में घूमने का मौक़ा मिला। मुझे घूमना, ख़रीदारी करना, भुट्टे खाने और पुराने गहनों के लिए बारगेनिंग करना पसंद है। शहर की सड़कों पर घूमना और ख़ुशगवार लगा।’’ अब मनीषा अमेरिकी से वापस लौटने को बेताब थीं। आख़िरकार, छह महीने के इलाज के बाद मुंबई वापस लौट आईं। एयरपोर्ट पर पत्रकारों के साथ पूरे आत्मविश्वास के साथ बात कर रही थीं। उनकी ख़ूबसूरती में भी चार चांद लगा हुआ था।

मनीषा ने बाद में कैंसर मरीज़ों के प्रोग्राम में शिरकत की। मरीज़ों को संदेश देते हुए कहा, “कैंसर मरीज के लिए पॉज़िटिव रहना बेहद ज़रूरी है। इस बीमारी के दोबारा वापस लौटने का डर हमेशा बना रहता है।” ये भी बताया कि कैंसर ने उन्हें अपने शरीर शरीर की देखभाल करना सिखा दिया। पहले वह अपनी केयर बिल्कुल नहीं करती थी। खाने-पीने में कोई डिस्प्लीन नहीं था। लेकिन जबसे अमेरिकी से लौटीं हैं अपना पूरा ध्यान रखती हैं।” उनकी तमन्ना ये नहीं कि लोग कहें कि इस बहादुर महिला ने कैंसर को हरा दिया। सही मायने में वह कैंसर के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाने की हर संभव कोशिश करती हैं।

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बहरहाल, बीच में मनीषा ने अपनी जीवनी को क़लमबद्ध करने का निर्णय लिया था, परंतु जीवनी लिखना आग से खेलने जैसा है, इसलिए उसके आटोबायोग्राफी का प्लान छोड़ देना बेहतर समझा। मौक़ा मिलने पर धार्मिक स्थलों पर जाना नहीं भूलतीं। कुछ साल पहले सूफी संत हज़रत ख्वाज़ा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के दरगाह जाकर मजार पर चादर चढ़ाई थीं। मन्नत का धागा बांधने के बाद मनीषा ने कहा, “मैंने सीखा हैं कि फ़िटनेस ज़िंदगी का सबसे बड़ा तोहफ़ा है और अपना परिवार और दोस्त सबसे बड़ी दौलत। पैसे न हों तो काम चल सकता है, लेकिन अपनों के बिना आप एकदम से ख़त्म हो जाते हैं। कैंसर से संघर्ष में परिवार और दोस्त मेरे कवच बनकर खड़े रहे इसलिए मैंने मुक़ाबला किया और जीती।“

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‘सौदागर’ से बॉलीवुड में कदम रखने वाली मनीषा फ़िलहाल, यूएनएफपीए और सरकार के साथ मिलकर  नेपाल में भूकंप प्रभावित महिलाओं की मदद के लिए काम कर रही हैं। वह कहती हैं, “पूरी ज़िदगी लोग पैसे और शोहरत के पीछे भागते रहते हैं। अपना ख़्याल रखना भूल से जाते हैं। जब फ़िटनेस का ख़्याल आता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। आपके पास अकूत दौलत है, कामयाबी आपके क़दम चूम रही है। लेकिन अगर आपकी फ़िटनेस आपके साथ नहीं तो सब कुछ बेकार है। जब आप ज़िदा ही नहीं रहेंगे तब कामयाबी, पैसा या शोहरत का क्या मतलब? इसलिए हम सब का पहला फ़र्ज़ यही है कि अपना पूरा ध्यान रखें क्योंकि फ़िटनेस ज़िंदगी की सबसे बड़ी नियामत है।

आप या आपका कोई परिजन या परिचित कैंसर से संघर्ष कर रहा है तो, हिम्मत कतई न हारें। हौसला बनाए रखें, यक़ीन मानें, कैंसर को हराया जा सकता है। मेडिकल साइंस ने इसका सफल इलाज़ खोज लिया है। इस स्तंभ में कैंसर को मात देने और नए सिरे से जीवन की शुरुआत करने वाले बहादुर और हिम्मती लोगों की कैंसर से लड़ने की कहानी पढ़ने को मिलेगी ताकि कैंसर से लड़ रहे लोगों को भी थोड़ी ऊर्जा मिले। फ़िलहाल इस अंक में दी गई है नब्बे के दशक में बॉलीवुड में दस्तक देने वाली अदाकारा मनीषा कोइराला की कैंसर से संघर्ष की कहानी।

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क्या है ओवेरियन कैंसर?

ओवरी का आकार बादाम जैसा होता है। ये प्रजनन का अहम अंग होता है। कभी-कभी इसमें ज़्दाया सेल्स बनने लगती हैं जिनमें कैंसरस भी होती हैं। इन्हीं सेल्स को ओवेरियन कैंसर कहा जाता है। महिलाओं में ये बहुत गंभीर समस्या है। अगर इसे सीरियसली न लिया जाए तो मौत दस्तक दे सकती है। पीठ के निचले हिस्से में दर्द, पेटदर्द, मरोड़, गैस या सूजन, कब्ज, पेट में ख़राबी, भूख मरना, अचानक वजन कम होना या बढ़ना इसके लक्षण हैं। फ़िलहाल होल सर्जरी और लैप्रोस्कोपिक सर्जरी से भी ओवेरियन कैंसर का उपचार मुमकिन है।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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