दहेज की प्रचलन हिंदुओं से ज़्यादा ईसाइयों में
दहेज की प्रथा भारत ही नहीं संपूर्ण दक्षिण एशिया में प्राचीन रही है। संभवतः यह परंपरा मानव सभ्यता के साथ ही अस्तित्व में आया। इसीलिए लोग कहते हैं कि दहेज लेना और देना शताब्दियों पुरानी प्रथा है। पहले यह उपहार के स्वरूप में था। दुल्हन के परिजन कपड़े, गहने आदि दूल्हे के परिजनों को देते हैं। बाद में इसमें पैसे जुड़ गए और इस उपहार में जैसे ही पैसे की एंट्री हुई या परंपरा लालच में तब्दील हो गई और धीरे-धीरे इसने इतना भयानक रूप लिया कि यह सामाजिक बुराई बन गई।
हाल में विश्व बैंक दहेज के बारे में एक विस्तृत अध्ययन किया है। अध्ययन में पाया गया है कि पिछले कुछ दशकों में, भारत के गाँवों में दहेज प्रथा काफ़ी हद तक स्थिर रही है। लेकिन लाख कोशिश के बाद भी यह प्रथा बदस्तूर जारी है। विश्व बैंक के लिए शोध करने वाले रिसर्चर्स ने भारत में ग्रामीण भारत में 1960 से लेकर 2008 तक हुई 40,000 शादियों का विस्तृत अध्ययन किया है। शोध में ग्रामीण भारत पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है। इसमें 17 राज्यों को शामिल किया गया है। जहाँ भारत की बहुसंख्यक आबादी यानी देश के 96 फ़ीसदी लोग रहते हैं।
भारत में 1961 में ही दहेज को ग़ैर-क़ानूनी घोषित किया जा चुका है, इसके बावजूद रिसर्चर ने पाया कि अध्ययन में पता चला कि कि 95 फीसदी शादियों में दहेज दिया गया। दहेज के लिए कई बार शादियां टूट जाती हैं। लड़कियों के साथ घरेलू हिंसा होती है और कई बार तो दुल्हन की मौत तक हो जाती है। शोधकर्ताओं ने शादी के दौरान दिए या लिए जाने वाले पैसे और तोहफ़ों की क़ीमत की जानकारियां जुटाई हैं। इसके आधार पर जो रिपोर्ट तैयार की गई है, वह आँख खोलने वाली है।
शोधकर्ताओं ने शादी में संपूर्ण कुल दहेज का आकलन किया है। इसके लिए उन्होंने कन्या पक्ष ओर से वर पक्ष को दिए गए तोहफ़ों की रक़म और वर पक्ष से कन्या पक्ष को दि गए तोहफे की कीमत के बीच अंतर निकाला है। इससे यह निष्कर्ष निकला कि शादी में कन्या पक्ष वर पक्ष की तुलना में सात गुना पैसे खर्च करता है। दहेज में कन्या परिवार की बचत और आय का एक बड़ा हिस्सा ख़र्च हो जाता है। 2007 में ग्रामीण भारत में कुल दहेज वार्षिक घरेलू आय का 14% था। रिसर्च ग्रुप की अर्थशास्त्री डॉ. अनुकृति का मानना है कि ग्रामीण भारत में औसत आय बढ़ने के साथ दहेज कम हुआ है। लेकिन खत्म नहीं हुआ है। वह कहती हैं कि दहेज कितना बड़ा है, इसकी गणना हर परिवार की अलग-अलग आय से ही पता चल सकती है। हमें घरेलू आय या व्यय पर आंकड़े की आवश्यकता होगी, लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे पास ऐसा कोई आँकड़ा उपलब्ध नहीं है।
इस रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि भले दहेज के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य बदनाम हैं, लेकिन केरल में सबसे अधिक दहेज लेने की परंपरा आज भी कायम है। अगर धर्म की बात करें तो रिसर्च के अनुसार हिंदुओं की तुलना में ईसाई और सिख धर्म के दूल्हे अपनी भावी जीवनसाथी से 40 फीसदी अधिक दहेज लेते हैं। रिसर्च में यह भी पाया गया है कि हिंदीभाषी बेल्ट में दहेज के लिए लोग दुल्हन की हत्या करने में बिल्कुल संकोच नहीं करते। रिसर्चरों ने निष्कर्ष निकाला है कि दहजे प्रथा दिनोंदिन भयावह होती जा रही है।
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