हरिगोविंद विश्वकर्मा
वह युवा थी। हर युवा की तरह वह भी सपने देखती थी। लेकिन उसका सपना अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों की भलाई के लिए होता था। तभी तो वह सपनों के शहर में ज़िदगियां बचाने के सपने लेकर आई थी, लेकिन देखिए नियति का खेल, सपनों के उसी शहर ने उससे उसकी ही ज़िदगी छीन ली और, इस शहर से 3 जून 2013 को वापस लौटा तो केवल उसका पार्थिव शरीर। उस बदनसीब लड़की का नाम प्रीति राठी (Preeti Rathi) था। एसिड अटैक ने प्रीति से जिंदगी छीन ली, जिसने खुद ज़िंदगियां बचाने की राह चुनी थी। जी हां, प्रीति ने सेवा को करियर बनाने का फ़ैसला किया था इसीलिए नर्सिंग को कोर्स किया था और नेवी के अस्पताल आईएनएचएस अश्विन पर उसकी पोस्टिंग हुई थी।
आईएनएचएस अश्विन में ड्यूटी जॉइन करने के लिए ही वह सपनों के शहर मुंबई आई थी, लेकिन मुंबई नगरी की धरती पर क़दम रखा ही था कि वहशी दरिंदे अंकुर पंवार ने दो मई 1913 को उसके चेहरे पर तेजाब फेंक दिया। दिल्ली की रहने वाली प्रीति महीने भर मौत से लड़ती रही। आख़िरकार पहली जून को शाम क़रीब चार बजे अति आधुनिक मेडिकल साइंस ने भी मौत के सामने सरेंडर कर दिया और बांबे अस्पताल के डॉक्टरों ने ख़ेद के साथ कहा, ‘सॉरी प्रीति ने दम तोड़ दिया’। मुंबई को सपनों का शहर इसलिए कहा जाता है कि यहां जो भी आता है उसके सपने पूरे हो जाते हैं। बॉलीवुड में यह सिलसिला ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख खान तक लंबी परंपरा है। मुंबई ने सबके सपने पूरे किए, लेकिन प्रीति के सपने पूरे करने तो दूर मुंबई ने उसकी जान ही ले ली।
मामले की जांच कर रही मुंबई पुलिस का सारा अटेंशन स्पॉट फ़िक्सिंग पर ही रह गया था जिससे वह प्रीति के साथ जस्टिस करने में फ़ेल रही। तभी तो प्रीति पर एसिड फेंकने वाला दरिंदा कौन है यह पुलिस पुख़्ता तौर पर तय नहीं कर सकी। प्रीति 2 मई 2013 को बांद्रा टर्मिनस के प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर उतरी थी। परिजनों के साथ वह अपना सामान उतार रही थी। इसी बीच दरिंदे ने उसके चेहरे पर एसिड फेंक दिया और फरार हो गया। तब रेल पुलिस ने पहले पवन नाम के शख्स को पकड़ा था। फिर जांच मुंबई क्राइम ब्रांच को दे दी। उस समय कई और घटनाओं ने मीडिया का अटेंशन डाइवर्ट कर दिया था और प्रीति के साथ हुए हादसे को उतनी कवरेज नहीं मिल पाई जितनी दिल्ली गैंगरेप की शिकार ज्योति सिंह को मिली थी।
बहरहाल बाद में प्रीति राठी पर तेजाब फेंकने के असली दोषी अंकुर नारायणलाल पंवार पकड़ लिया गया। क्राइम ब्रांच ने अपनी जांच के बाद अंकुर को आरोपी बनाया। बताया जाता है कि उसने एकतरफा प्यार और उपेक्षा की वजह से प्रीति की जान ले ली। उसे निचली अदालत ने 8 सितंबर 2016 को मौत की सज़ा सुनाई थी, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने 12 जून 2019 को उसकी फांसी की सजा को उम्र क़ैद में तब्दील कर दिया था। मुंबई के चहरे पर लगा यह बदनुमा दाग़ शायद ही कभी धुल पाए।
ख़ैर, प्रीति के साथ जो कुछ हुआ उससे नई जनरेशन की लड़कियों को नसीहत लेने और सतर्क रहने की ज़रूरत है। विकास के तमाम दावों के बावजूद यह देश पुरुष-प्रधान ही रहा। ऐसे समाज में स्त्री ख़ासकर लड़की पर क़दम-क़दम पर ख़तरा रहता है। यह ख़तरा तब तक बना रहेगा जब तक समाज में हर जगह उसकी विज़िबिलिटी पुरुषों के बराबर नहीं हो जाती या जब तक स्त्री आर्थिक रूप से पुरुष के बराबर नहीं हो जाती।
आइए, प्रीति को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए यह संकल्प ले कि समाज में महिलाओं की बढ़ाकर पुरुषों के बराबर करने का अभियान आगे बढ़ाएंगे। जैसा कि हमें पता है घर के चहारदीवारी के बाहर महिलाओं की कम विज़िबिलिटी ही सबसे बड़ी समस्या या प्रॉब्लम है। यानी घर के बाहर महिलाएं दिखती ही नहीं, दिखती भी हैं तो बहुत कम तादाद में। सड़कों, रेलवे स्टेशनों और दफ़्तरों में उनकी प्रज़ेंस नाममात्र की है। चूंकि समाज में महिलाओं की आबादी 50 फ़ीसदी है तो हर जगह उनकी मौजूदगी भी उसी अनुपात में यानी 50 फ़ीसदी होनी चाहिए। अगर लड़कियों की विज़िबिलिटी की समस्या को हल कर लिया गया यानी महिलाओं की प्रज़ेंस 50 फ़ीसदी कर ली गई तो महिलाओं की ही नहीं, बल्कि मानव समाज की 99 फ़ीसदी समस्याएं ख़ुद-ब-ख़ुद हल हो जाएंगी। महिलाएं बिना किसी क़ानून के सही-सलामत और महफ़ूज़ रहेंगी।
इसे भी पढ़ें – कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें…