एक विश्व प्रसिद्ध उपन्यास है क्राइम एंड पनिशमेंट। इस उपन्यास में नायक रोडियन रास्कोल्निकोव किसी की हत्या कर देता है। वास्तव में उसे हत्या करते किसी ने नहीं देखा, लेकिन उसे हर वक़्त लगता था कि कोई उसे हत्या करते ज़रूर देख लिया है। बस वह हरदम डरा रहता है। कोई दरवाज़ा खटखटाता है तो उसे लगता है, कि शायद पुलिस उसे गिरफ़्तार करने आ गई। एक बार उसे किसी दूसरे काम से पुलिस थाने में बुलाती है। तब उसे पक्का यक़ीन हो जाता है कि अब वह शर्तिया गिरफ़्तार हो जाएगा। वह और भी अधिक डर जाता है और पूछने से पहले पुलिस से ख़ुद बता देता है कि उसने हत्या की है। पुलिस हक्का-बक्का रही जाती है और ख़ुश होती है कि उसे एक रहस्यमय हत्या का बिना किसी प्रयास के सुराग ही नहीं मिला बल्कि ग़ुनाहगार भी मिल गया।
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आजकल महाराष्ट्र सरकार की हालत हूबहू हत्या करने वाले रोडियन रास्कोल्निकोव जैसी ही है। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली यह सरकार अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत के बाद से ही ऐसे-ऐसे काम कर रही है, जिससे आम आदमी का संदेह गहराता जा रहा है कि सुशांत सिंह ने ख़ुदकुशी नहीं की, बल्कि शायद उसकी हत्या की गई। लोगों को अब यह भी लगने लगा है कि सुशांत सिंह की मौत की घटना के तार निश्चित रूप में सरकार में शामिल किसी बड़े व्यक्ति से जुड़ें हो सकते हैं, इसीलिए राज्य सरकार काम कर रही है, जिनके बारे में जो भी सुन रहा है, वही हैरान हो रहा है। सबसे ताज़ा क़दम है, सुशांत सिंह की मौत की जांच करने मुंबई पहुंचे आईपीएस अफसर विनय तिवारी को बीएमसी द्वारा क्वारटीन कर देना।
राज्य सरकार के इस क़दम से लोगों का शक पुख़्ता होने लगा है कि सुशांत सिंह की किसी बड़ी साज़िश के तहत हत्या की गई। उस हत्या पर परदा डालने के लिए अभिनेता के डिप्रेशन और आत्महत्या करने की झूठी कहानी गढ़ी गई। लोगों को यह भी लगने लगा है कि यह कहानी सरकार की मिली भगत से गढ़ी गई। लिहाज़ा, सरकार का वह प्रभावशाली व्यक्ति जो इस हत्याकांड के पीछे है, अपने फंसने के डर से इसकी जांच सीबीआई से नहीं होने देना चाहता। यही वजह है कि सरकार सुशांत की रहस्यमय मौत की सीबीआई जांच नहीं करवाना चाहती। सरकार उसी योजना के तहत बार-बार दोहरा रही है कि मुंबई पुलिस सही दिशा में जांच कर रही है, इसलिए सीबीआई जांच की कोई ज़रूरत नहीं। मज़ेदार बात यह है कि मुंबई पुलिस जांच से पहले सुशांत की मौत को ख़ुदकुशी मान लिया और अब उन परिस्थितियों का पता लगाने की कोशिश कर रही है, जिन परिस्थितियों के चलते अभिनेता को मौत को गले लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
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ज़ाहिर सी बात है कि अगर राज्य सरकार का इस केस में कोई वेस्टेड इंटरेस्ट नहीं है, तो वह सीबीआई जांच से क्यों कतरा रही है। यदि सरकार इसे विशुद्ध आत्महत्या मानती है तो जांच करने देना चाहिए सीबीआई को, जांच के बाद अपने आप दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। जब सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत से सरकार में बैठे किसी प्रभावशाली व्यक्ति का कोई कनेक्कशन ही नहीं है, तो जांच कोई भी जांच एजेंसी करे, क्या फ़र्क़ पड़ता है। सबसे बड़ी बात इस मामले में पीड़ित पक्ष यानी सुशांत सिंह के पिता केके सिंह ने साफ़-साफ़ कह दिया है कि मुंबई पुलिस की जांच पर उन्हें बिल्कुल भरोसा नहीं है। ऐसी परिस्थिति में महाराष्ट्र सरकार को जबरन मुंबई पुलिस से जांच कराने की बजाय इसकी जांच सीबीआई से कराने की सिफ़ारिश ख़ुद कर देनी चाहिए थी। लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। यह भी रहस्यमय है।
राज्य सरकार इतने पर ही नहीं रुकी, बल्कि पीड़ित पक्ष यानी सुशांत के पिता द्वारा पटना के पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई गई एफ़आईआर की तहक़ीक़ात के सिलसिले में मुंबई पहुंची बिहार पुलिस की टीम के साथ सहयोग करना तो दूर की बात, सरकार ख़ुद जांच में अड़ंगा डाल रही है। पटना के एसपी विनय तिवारी को क्वारंटीन के नाम पर 14 दिन के लिए घर में बंद कर देना तो प्रत्यक्ष तौर पर इस जांच को प्रभावित करने का सटीक मामला है। राज्य सरकार यह कहकर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती कि यह बीएमसी का फ़ैसला है। बीएमसी या पुलिस सुशांत की मौत के मामले में बिना सरकार की अनुमति के कोई क़दम उठाना तो दूर की बात उठाने की सोच भी नहीं सकती। यह भी नहीं कहा जा सकता कि जांच करने आए बिहार के आईपीएस अफसर को कोरोना संक्रमण के लिए बने नियम के तहत क्वांरटीन किया गया, क्योंकि पहले से आए चार अधिकारियों को क्वारंटीन नहीं किया गया।
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राज्य सरकार इंडियन पैनल कोड में वर्णित अवधारणा कि कोई पुलिस किसी एफ़आईआर की जांच जहां-जहां उसे तार जुड़े हों, वहां-वहां जा सकती है और जो भी संदिग्ध लगे उससे पूछताछ कर सकती है, का खुला उल्लंघन कर रही है। इसका मतलब यह है कि राज्य में विधि का शासन नहीं है। जिसका अर्थ यह भी होता है कि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में दूसरे राज्य में दर्ज एफ़आईआर की निष्पक्ष विवेचना संभव नहीं है। यह तो देश के संविधान की बुनियाद पर प्रहार करने जैसा है। यहां उद्धव ठाकरे के खिलाफ़ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत मामला बनता दिख रहा है। अनुच्छेद 356 केंद्र सरकार को किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में राज्य की सरकार को बर्खास्त करके उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार देता है।
सबसे अहम बिहार विधानसभा ने आम मत से प्रस्ताव पारित करके सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत की सीबीआई जांच की मांग की है। अब केंद्र सरकार को दख़ल देना पड़ सकता है। सुशांत सिंह के परिजनों, रिश्तेदारों, अभिनेता के प्रशंसकों और आम लोगों के मन में पैदा हुई शंका का निवारण भी बहुत ज़रूरी है। यह शंका राज्य सरकार के रहस्यमय फैसले से पुख्ता होती जा रही है। ऐसे में सुशांत की मौत के समय उनके घर या आसपास मौजूद सभी लोगों से गहन इंटरोगेशन की ज़रूरत है। सुशांत वीआईपी इलाक़े में रहते थे, लिहाज़ा, वहां के तमाम सीसीटीवी फुटेज की जांच की भी ज़रूरत है। इतना ही नहीं, इस मामले में बांद्रा पुलिस स्टेशन में घटना के दिन ड्यूटी कर रहे पुलिस वालों से तहक़ीक़ात ज़रूरी है। अब यह तय हो गया है कि मुंबई पुलिस की इस केस की निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती। केके सिंह पहले ही कह चुके हैं कि मुंबई पुलिस जिस तरह से जांच कर रही है, उससे यह लगता है कि उनके बेटे को इंसाफ़ नहीं मिल पाएगा।
ऐसे में केंद्र सरकार कुछ ऐसे क़दम उठाने का राज्य सरकार को औपचारिक निर्देश देना चाहिए, ताकि सुशांत सिंह के परिजनों को न्याय मिले ही नहीं, बल्कि न्याय मिलता हुआ आम आदमी को दिखे भी। इन दिनों सोशल मीडिया पर पोस्ट या फॉरवर्ड की जा रही अपुष्ट ख़बरों का भी संज्ञान लेने की ज़रूरत है। इस बीच यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि सुशांत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती इन दिनों कहां है, क्योंकि उससे पूछताछ करने आई पटना पुलिस की टीम ने कहा है कि रिया उन्हें नहीं मिल रही है। रिया चक्रवर्ती और उनके परिजनों पर सुशांत को मौत को गले लगाने के लिए उकसाने का गंभीर आरोप सुशांत सिंह के पिता केके सिंह ने लगाया है। ऐसे में यह कहना समीचीन होगा कि महाराष्ट्र सरकार के मन में कोई खोट नहीं है, तो उसे ख़ुद सीबीआई जांच की पहल कर देनी चाहिए।
लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा
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