द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – अंतिम एपिसोड – 35 – चेतन शर्मा की आखिरी गेंद पर मियांदाद के छक्के के बाद फूट-फूट कर रोया था दाऊद

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हरिगोविंद विश्वकर्मा
कभी दाऊद इब्राहिम कासकर को अपने मुल्क मे बेपनाह मोहब्बत थी। अपनी टीम को हारते नहीं देख पाता था। 1986 में जब जावेद मियांदाद ने चेतन शर्मा की आख़िरी गेंद पर छक्का लगाकर जीत भारत के जबड़े से छीन लिया तो दाऊद फूटफूट कर रोया। इसका खुलासा पूर्व बीसीसीआई सचिव जयवंत लेले ने नवंबर 2011 में प्रकाशित किताब ‘आई वॉज़ देयरः मेमोएर्स ऑफ़ अ क्रिकेट एडमिनेस्ट्रेटर’ में किया। शारजाह में कई मैच खेल चुके पूर्व कप्तान दिलीप वेंगसरकर ने टीवी इंटरव्यू में कहा था कि 1986 में दाऊद भारतीय ड्रेसिंग रूम में आ गया और खिलाड़ियों से कहा कि पाकिस्तान को हराकर शारजाह कप जीतने पर सबको टोयोटा कोरोला कार गिफ़्ट करेगा। उस समय मारुति कार ख़रीदना भी बड़ी बात होती थी।

क्रिकेट का दीवाना दाऊद मैच देखने नहीं जाता। कराची और दुबई में अपने सहयोगी शोएब ख़ान और सुनील दुबई के जरिए सट्टेबाजी के सिंडिकेट को कंट्रोल करता था और अरबों डॉलर कमाता था। मैच शुरू होने के पहले रिज़ल्ट के बारे में लाखों टेक्स्ट संदेश भेजे जाते थे। पूर्व पुलिस चीफ़ एमएन सिंह के मुताबिक, इन्हें कारोबार की पूरी जानकारी होती है। छोटा राजन दावा करता है कि क्रिकेट में बेटिंग 1990 में शारजाह स्टेडियम से उसके सामने शुरू हुआ। राजन इस बारे में जानता था लेकिन ख़ुद कभी इस सिंडिकेट का हिस्सा नहीं बना। राजन के मुताबिक तब शरद शेट्टी और दाऊद इसमें शामिल थे।

दाऊद इब्राहिम के ख़िलाफ़ पूरे मुल्क में 1993 से ही भारी आक्रोश रहा है। तभी तो 1994 में तत्कालीन कांग्रेस मुख्यमंत्री शरद पवार के उस बयान की पूरे देश में आलोचना हुई जिसमें पवार ने कहा था कि दाऊद की मुंबई में कोई बेनामी संपत्ति नहीं है। पवार ने दाऊद की बेनामी संपत्ति बताने वाले को 15 लाख रुपए नकद पुरस्कार देने की घोषणा की। जब बीएमसी डिप्टी कमिश्नर जीआर खैरनार दाऊद की इमारत मेहज़बीन को तोड़ने लगे तो रातोरात उनका तबादला कर दिया गया। इससे लोग पवार से नाराज़ हुए और 1995 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा।

वैसे तो दाऊद इब्राहिम के पास अकूत दौलत होने का दावा किया जाता है। 1994 में गोविंद राघो खैरनार ने दाऊद की 24 प्रॉपर्टीज़ का ब्यौरा दिया। खैरनार ने मेहज़बीन मेंसन को तोड़ दिया। पाकमोडिया स्ट्रीट की कादरी मंज़िल को फिर से बनाकर दाऊद ने उसे मेहज़बीन नाम दिया था। दाऊद की बहन के नाम दो फ़्लैट, नूरा की पत्नी रेशमा के नाम दो दुकाने। पहली बैप्टी रोड पर स्टोन मार्बल वर्कशॉप और दूसरी मौलाना शौकत अली रोड पर स्टोन टच शॉप। अन्य संपत्तियों में पाकमोडिया स्ट्रीट की रौनक़ अफ़रोज़ होटेल और दारूवाला बिल्डिंग, याकूब स्ट्रीट पर शुभम् गेस्ट हाऊस और कई दुकानें हैं। इस्माइल बिल्डिंग पीरख़ान स्ट्रीट में ग़रीब नवाज़ गेस्टहाऊस। इब्राहिम रहीमतुल्ला रोड पर कुंडुट्टी गेस्टहाऊस। नागपाड़ा थाने के सामने गोर्डन हॉल में पॉश फ़्लैट, जहां हसीना रहती थी। कूपर स्ट्रीट पर हाजी इस्माइल मुसाफ़िरखाना की दूसरी मंज़िल उसके नाम है। सभी संपत्तियां अटैच्ड हैं। आयकर विभाग ने दंगों के बाद उसकी कई बेनामी प्रॉपर्टीज़ ज़ब्त कर 2001 में नीलामी की पर ख़रीदार नहीं आए। इक्का-दुक्का लोगों में दिल्ली के वकील अजय श्रीवास्तव थे। उन्होंने जयराजभाई लेन की बिल्डिंग 2.5 लाख रुपए में खरीदी।

मुंबई के अंग्रेज़ी अख़बार के मुताबिक दाऊद महाराजा की तरह रहता है। 6 हज़ार वर्ग गज के उसके महल में स्वीमिंग पूल, टेनिस कोर्ट, स्नूकर रूम हैं। वह सबसे कीमती मर्सडिज़ कार से घूमता है। उसकी कलाई में पाटेक फिलिप घड़ी रहती है। वह दोपहर बाद उठता है। नहाने के बाद नाश्ता करता है और लोगों से मिलता। अन्य ज़रूरी काम करने के बाद शाम को महल में ही पार्टी होती है जिसमें कराची के अभिजात्य वर्ग के लोग शिरकत करते हैं। पार्टी देर रात तक चलती है। उसकी मनपसंद शराब ब्लैक लेवल है। रसूखदार लोगों के लिए कभी-कभार मुजरा भी होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक वह वर्जिन कंवारी लड़कियों का भी शौक़ीन है और दस गुना पेमेंट करता है। 2004 में सीबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक गिरफ़्तारी से बचने के लिए दाऊद ने प्लास्टिक सर्जरी करवा ली है।

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मुंबई के 50 साल के आपराधिक इतिहास में अपराधियों के निशाने पर पत्रकार भी रहे। मिड डे के क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे उर्फ जे डे से पहले 7 पत्रकारों की गुडों ने हत्या कर दी थी। पत्रकार की हत्या की सबसे पहली घटना 1969 में पनवेल में हुई, जब पठान गिरोह के गुंडों ने पनवेल में पीटीआई के पत्रकार एमपी अय्यर की कार का ब्रेक ढीलाकर दिया जिससे सड़क हादसे में उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई। दूसरी घटना 12 साल बाद 1977 में हुई, जब पठान गिरोह के ही गुंडों ने उर्दू साप्ताहिक राज़दार के संपादक इक़बाल नाटिक़ का अपहरण करके उन्हें बहुत अधिक टॉर्चर किया और अधमरा कर माहिम की खाड़ी में फेंक दिया। खाड़ी में दूसरे दिन नाटिक़ हो होश आया। पुलिस ने उन्हें जेजे अस्पताल में भर्ती कराया। दिन दो दिन जीवन-मौत के बीच झूलने के बाद उनकी मौत हो गई।

मीडिया पर हमले की तीसरी घटना 1982 में दक्षिण मुंबई के नागपाड़ा इलाके में हुई। जब शहर के प्रमुख उर्दू अख़बार इन्कलाब से जुड़े पत्रकार और महाराष्ट्र उर्दू अकादमी के प्रमुख सदस्य सरदार इरफ़ान ख़ान की अपराधियों ने दिन दहाड़े चाकू से हमला कर दिया और उनके पूरेे जिस्म में चाकू से प्ररहार किया। उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई। मीडिया पर हमले की चौथी वारदात मार्च 1984 के पहले हफ़्ते में उल्हासनगर में हुई। जब खतरनाक अपराधी मारुति यादव ने उस समय के सबसे सनसनीखेज साप्ताहिक ब्लिट्ज़ पत्रकार एके नारायण पर चाकू से हमला कर दिया। वह घटना इतनी भयावह थी कि मारुति ने नारायण की हत्या करने के बाद उनके शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिया और उनके ही दरवाज़े पर फेंक दिया।

प्रेस पर हमले के पांचवे शिकार 1990 में जनसत्ता के स्ट्रिंगर नंदलाल सिंह प्रलय हुए। उन्होंने अपराधी नगरसेवक की मिट्टी के तेल का ब्लैक करके बेचने की खबर जनसत्ता में भेज दी और खबर प्रकाशिथ हो गई। इससे खीम बहादुर थापा बहुत नाराज हुआ और उसने चापर-तलवार से प्रलय पर हमला करवा दिया। सायन अस्पताल 40 दिन जीवन-मौत के बीच झूलने के बाद उनकी मौत हो गई। पत्रकारों पर हमले की सबसे भयावह और रोंगटे खड़े करने वाली घटना 10 दिसंबर 1990 को वसई में सामना के पत्रकार जितेंद्र कीर के साथ हुई। माफिया डॉन भाई ठाकुर के खिलाफ ख़बर लिखने पर कीर को ठाकुर के गुंडों ने अपहृत कर लिया और अंबाड़ी ब्रिज में खौलते तारकोल में ज़िंदा डाल दिया गया। बाद में उसी तारकोल को सड़क पर डाल कर उस पर बुलडोजर चढ़ा दिया गया। कीर गुंडों का शिकार होने वाले छठवें पत्रकार थे।

1991 में दादर के किंग जार्ज हाईस्कूल के सामने मीडिया पर हमले की सातवीं वारदात हुई। जब अपराधियों ने सुबह सुबह क्राइम रिपोर्टर सुरेश खानोलकर के सीने में आठ बुलेट उतार दिया। खानोलकर की तत्काल मौत हो गई। इसी तरह मिड डे के क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे की छोटा राजन गैंग के गुंडों ने 11 जून 2011 को पवई परिसर में दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी थी। जेडे की हत्या के आरोप में ‘एशियन एज’ की पत्रकार जिगना वोरा को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद लंबे समय तक जिगना वोरा का मीडिया ट्रायल होता रहा और एक स्त्री के रूप में उनकी इज़्ज़त मान मर्यादा का पोस्ट मार्टम होता रहा। उन्हें छोटा राजन की गर्ल-फ्रेंड तक बताया गया। बहरहाल, नौ महीने भायखला जेल में रहने के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें जमानत दी। छह साल चले ट्रायल के बाद 2018 में विशेष अदालत ने जे डे मर्डर केस में उन्हें सभी आरोपों से मुक्त करते हुए बरी कर दिया। मुंबई पुलिस ने निचली अदालत के फ़ैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन पुलिस को वहां भी मुंह की खानी पड़ी और हाई कोर्ट निचली अदालत के फ़ैसले को बरकरार रखा। इस तरह जिगना वोरा पर लगा कलंक कुछ हद तक धुल गया, लेकिन पुलिस और मीडिया के लोगों ने बतौर पत्रकार उनका करियर खत्म कर दिया।

दाऊद इब्राहिम को उस समय झटका लगा जब संयुक्त अरब अमीरात सरकार ने उसके दूसरे सबसे छोटे भाई इकबाल कासकर को मार्च 2003 में भारत को डिपोर्ट कर दिया। इकबाल कासकर हफ्ता वसूली और ड्रग्स के धंधे में शामिल होने के आरोप में जेल की हवा खा रहा है। फिलहाल मुंबई का गैंगवार, शूटअउट और पुलिस इनकाउंटर लगभग खत्म हो गया है। सभी अपराधी फल-फूल रहे रियल इस्टेट के कारोबार में उतर चुके हैं। सबसे बड़ी बात प्रदीप शर्मा और सचिन वाजे जैसे कथित इनकाउंटर स्पेशलिस्ट जेल की हवा खा रहे हैं। इन लोगों की गिरफ्तारी से साफ हो जाता है कि ये लोग खाकी वर्दी वाले गुंडे थे। इतना ही नहीं मुंबई के पुलिस कमिश्नर बनाए गए परमबीर सिंह पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। परमबीर पर वसूली के लिए उद्योगपति के घर के सामने विस्फोटक रखवाने और कारोबारी मनसुख हीरेन की हत्या करने वाले प्रदीप शर्मा और सचिन वाजे को शह देने का आरोप है।

प्रदीप शर्मा, सचिन वाजे और परमबीर सिंह या फिर तेलगी कांड में गिरफ्तार होने वाले पूर्व पुलिस कमिश्नर रंजीत शर्मा का पुलिस बल में आना ये साबित करता है कि पुलिस में भर्ती करने वालों की प्रक्रिया ही दोषपूर्ण है और अपराधी मानसिकता के लोग पुलिस बनकर आम जनता के लिए परेशानी खड़ी करते हैं।

(The Most Wanted Don समाप्त)

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