तीन दशक तक क़रीब दर्जनों लोगों को असमय मौत की नींद सुलाने वाले पूर्वांचल के कुख्यात डॉन मुन्ना बजरंगी को उसी की स्टाइल में 9 जुलाई 2018 को मौत की नींद सुला दिया गया था। यह काम मुन्ना की ही बिरादरी के दुर्दांत अपराधी सुनील राठी ने बागपत जेल में किया था। उसने जेल परिसर में ही मुन्ना को गोलियों से भून डाला। मुन्ना को दो दिन पहले ही झांसी जेल से बागपत जेल लाया गया था। उसे अलग बैरक में सुनील राठी और विक्की सुंहेड़ा के साथ रखा गया था। उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपराध जगत में सुनील राठी का नाम बड़ा था। अहम बात यह भी था कि 29 जून 2020 को मुन्ना बजरंंगी की पत्नी सीमा सिंह ने झांसी जेल प्रशासन और एसटीएफ के साथ मिलकर मुन्ना की हत्या करवाने की आशंका जताई थी।
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मुन्ना बजरंगी के एक बेहद क़रीबी जो एसटीएफ से बचने के लिए जौनपुर से मुंबई भाग आया था और इन दिनों मुंबई में ही एक बड़ी कंपनी में काम करता है, ने बताया कि मुन्ना को ख़त्म करने की साज़िश योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही चल रही थी। जेल में उसे एक बार ज़हर भी देने की कोशिश की गई थी। इतना ही नहीं एक बार और उसकी हत्या की साज़िश रची गई थी, लेकिन मुन्ना के सतर्क रहने से दोनों साज़िशें नाकाम हो गईं।
उत्तर प्रदेश समेत देश भर के अपराध जगत में अपने नाम का खौफ़ पैदा करने वाले अपराधी मुन्ना बजरंगी की कहानी ख़त्म होने तक उसके नाम की दहशत लोगों में कायम थी। उसका असली नाम प्रेम प्रकाश सिंह था। उसका जन्म 1965 में जौनपुर के मड़ियाहूं तहसील में पड़ने वाले जमालापुर-रामपुर के पूर्व कसेरू से सटे पूरेदयाल गांव में हुआ था। कसेरू पूरेदयाल के लोगों को पता नहीं था कि जिस प्रेमप्रकाश को प्यार-दुलार दे रहे हैं वही एक दिन क्राइम किंग बनकर उनके सामने आएगा और बुलेट के बल पर अपने नाम का ख़ौफ़ पैदा कर देगा।
प्रेमप्रकाश के पिता पारसनाथ सिंह का सपना था कि उनका सबसे छोटा बेटा पढ़ लिखकर नामचीन और बड़ा आदमी बने। मुन्ना बड़ा आदमी तो बना लेकिन सभ्य समाज का नहीं, बल्कि अपराध जगत का बड़ा आदमी बना। उसने पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी और गांव में ही मटरगश्ती करने लगा। इसी दौरान वह अपराधी किस्म के युवकों की बुरी संगत में आ गया। किशोरावस्था तक आते आते उसे ऐसे शौक लग गए जो उसे ज़ुर्म की दुनिया में ढकेलने के लिए पर्याप्त थे। गांव के लोग बताते हैं कि उसे हथियार रखने का बड़ा शौक़ था।
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मुन्ना ने पहला अपराध 15 साल की नाबालिग उम्र में 1980 में किया, जब कहीं से एक देसी कट्टे का इंतज़ाम कर लिया। गोपालापुर बाज़ार में गोली मारकर छिनैती की। उसके ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 307 के तहत मुक़दमा दर्ज़ किया गया। 17 साल की उम्र में उसने गांव के झगड़े में कट्टा निकाल कर फ़ायर कर दिया। यह 1982 का साल था, जब उसके ख़िलाफ़ पास के सुरेरी थाने मे मारपीट और अवैध असलहा रखने का मामला धारा 147, 148, 323 के तहत दर्ज़ हुआ।
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इसके बाद पुलिस ने उसे धीरे धीरे पेशेवर अपराधी बना दिया। मुन्ना अपराध के दलदल में धंसता ही चला गया। उसने पहली हत्या 1984 में रामपुर के व्यापारी भुल्लन सेठ के पैसे छीनने के लिए की थी। उसी साल रामपुर थाने में उसके ख़िलाफ़ हत्या और डकैती के दो और मुक़दमे दर्ज़ हुए। उसका क्राइम ग्राफ तेज़ी से बढ़ने लगा। अंततः वह कांट्रेक्ट किलर बन गया। जौनपुर से फ़रार होकर वह वाराणसी में डिप्टी मेयर अनिल सिंह के पास गया और उनके साथ रहा। वहां भी कई आपराधिक घटना को अंजाम दिया।
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वहां से वह जौनपुर चला गया। वहां कुख्यात बदमाश विनोद सिंह चितोड़ी उर्फ़ नाटे विनोद का साथी बन गया। नाटे से दोस्ती निभाने के लिए उसने बदलापुर पड़ाव पर पलकधारी पहलवान की हत्या कर दी। विनोद चितोड़ी के इशारे पर 1993 में जौनपुर के लाइन बाज़ार थाना के कचहरी रोड पर दिन दहाड़े भाजपा नेता रामचंद्र सिंह, सरकारी गनर अब्दुल्लाह और भानु सिंह की हत्या कर दी। इसी दौरान मुन्ना जौनपुर के भोड़ा के गांव कादीहद के दबंग माफ़िया डॉन और सहदेव इंटर कॉलेज, भोड़ा के प्रिंसिपल पीटी टीचर गजराज सिंह और उसके अपराधी बेटे आलम सिंह के साथ हो लिया। मुन्ना बाप-बेटे के साथ काम करने लगा था।
नब्बे के दशक में जौनपुर के दो युवक राजनीति के क्षितिज पर बड़ी तेज़ी से उभरे। इनका नाम था कैलाश दूबे और राजकुमार सिंह। कैलाश रामपुर के ब्लाक प्रमुख चुने गए तो राजकुमार पंचायत सदस्य निर्वाचित हुए। दो स्थानीय युवकों का उभरना गजराज सिंह को हजम नहीं हुआ। उसने दोनों को रास्ते से हटाने की सुपारी मुन्ना को दे दी। 24 जनवरी 1996 की शाम जमालापुर बाज़ार के जानकी मंदिर तिराहे पर मुन्ना बजरंगी ने कैलाश, राजकुमार और राजस्व अमीन बांकेलाल तिवारी पर एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग कर उनकी हत्या कर दी। पूर्वांचल में एके-47 राइफल से अपराधी की वह पहली वारदात थी। उस हमले में रामपुर थाने के उपनिरीक्षक लोहा सिंह, जो कुछ साल बाद रामपुर थाने के प्रभारी हुए, घायल हो गए। इस केस में कैलाश के भाई लालता दुबे ने मुन्ना के अलावा गजराज, उनके पुत्र आलम सिंह और अन्य लोगों पर प्राथमिकी दर्ज कराई।
इस सदी के शुरुआती दिनों में पूर्वांचल में सरकारी ठेकों, देसी शराब के ठेकों और वसूली के अवैध धंधे पर माफिया डॉन मुख़्तार अंसारी का क़ब्ज़ा था। मुख्तार किसी को अपने सामने खड़ा नहीं होने देता था। लिहाज़ा, तेज़ी से उभरे गाजीपुर से भाजपा विधायक कृष्णानंद राय उसके लिए चुनौती बन गए। कृष्णानंद राय पर मुख़्तार के जानी दुश्मन बृजेश सिंह का वरदहस्त था। 2004 में कृष्णानंद राय गाजीपुर से विधानसभा चुनाव जीत गए।
बहरहाल, 29 अक्टूबर 2009 को दिल्ली पुलिस ने मुन्ना को मुंबई के मालाड उपनगर से नाटकीय ढंग से गिरफ्तार कर लिया। तब वह ऑटो रिक्शा चालक के भेस में था। कहते हैं कि उसे पुलिस के साथ दुश्मनों से भी ख़तरा था। सो वह मालाड में दिखाने को ऑटो चलाने लगा, ताकि किसी को संदेह न हो। जब उसके ख़ास लोगों को जानकारी हुई तो सब को आश्चर्य हुआ। दरअसल उसे एनकाउंटर का डर सता रहा था। इसलिए योजना के तहत गिरफ़्तार हो गया। दरअसल, मुन्ना की गिरफ़्तार सुनियोजित तरीक़े से हुई थी। कहा जाता है कि इसमें मुंबई में कांग्रेस के बेहद प्रभावशाली नेता रहे कृपाशंकर सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी।