द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 12 – जब सुजाता कौर से हुआ दाऊद को इश्क

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हरिगोविंद विश्वकर्मा
एक दिन अचानक दाऊद इब्राहिम कासकर ने अपने अंदर एक बदलाव-सा महसूस किया। उसे लगा कि आसपास की हर चीज़ उसे अच्छी लगने लगी हैं। जिन चीज़ों में अब तक उसकी कभी कोई दिलचस्पी नहीं रही, उन चीज़ों में भी अब वह दिलचस्पी लेने लगा है। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह बदलाव क्यों हुआ और किस कारण से यह सब हो रहा है। हालांकि वह बेहद ख़ुश रहने लगा था। यह 1980 के दशक का दौर था। बाद में उसने महसूस किया कि उसके अंदर हो रहे बदलाव की वजह एक हुस्न की मलिका है। जिसका वह कम से कम रोज़ाना दो बार दीदार करता है।

अभी चंद दिन पहले ही उसने उस ख़ूबसूरत युवती को देखा था। उसके बाद वह रोज़ाना कम से कम दो बार ज़रूर देख लेता है, क्योंकि वह ख़ूबसूरत क़ातिल हसीना रोज़ना वहां से गुज़रती है। उसके चेहरे में इतनी कशिश थी कि किसी की नज़र ही नहीं हटती थी। सौंदर्य तो उस हूर के अंग-अंग से टपकता था। जो भी देखता, बस ठगा-सा देखता रहा जाता। 25 साल का जवान दाऊद भी अपवाद नहीं था। उसे भी वह हसीना अच्छी लगने लगी। चुंबक की तरह खींचने लगी। उसकी बस एक झलक पाने के लिए दाऊद दुकान में घंटों बैठा रहता था। कभी-कभार उसकी बस एक झलक पाने के लिए बेस्ट के स्टॉप पर कई घंटे खड़ा रहता था।

आकर्षक, लंबी और छरहरी उस युवती का ख़ूबसूरत चेहरा उसे रूपहले परदे की किसी तारिका से तनिक भी कम न लगता था। वह जब स्माइल करती तो दाऊद प्लैट हो जाता था। तब तक पूरे ग्रांट रोड ही नहीं पूरे दक्षिण मुंबई में बतौर डॉन दाऊद की धाक जम चुकी थी। उसका नाम ख़ौफ़ पैदा हो चुका था। व्यापारी उसके नाम पर हफ़्ता देने लगे थे। जब दाऊद ने उस युवती के बारे में तफ़्तीश किया तब पता चला कि रूप की उस सुंदरी का नाम सुजाता कौर है और वह हिंदू-पंजाबी लड़की है। पढ़ाई करती है, इसले रोज़ाना वहां से गुज़रती है।

हुस्न की उस मलिका का दीदार करते-करते दाऊद उसके लिए व्याकुल होने लगा। एक दिन उसकी इच्छा हुई कि उस युवती से मिले और उसके सात बातचीत करे। उसने मिलने की पूरी कोशिश की भी लेकिन सुजाता ही उसे नज़रअंदाज़ करती रही। दाऊद का दिल था कि मान ही नहीं रहा था। वह सोते-जागते बस उसी के बारे में सोचता रहता था। उसकी हैसियत ऐसी तो थी ही कि उसके पंटर सुजाता को किडनैप करके उसके पास ला सकते थे, लेकिन दाऊद उससे प्यार करने लगा था और उसे प्यार से पाना चाहता था। वह दाऊद की दिल थी और अपने दिल को तनिक भी कष्ट देना उसे बिल्कुल गंवारा नहीं था। मगर जब भी उसे यह अहसास होता था कि उसका प्यार एकतरफ़ा है तो उसे बहुत पीड़ा होती थी।

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बहरहाल, उसने हार नहीं मानी और अपनी कोशिश जारी रखी। उसकी कोशिश रंग लाने लगी। बहुत लंबे समय तक इग्नोर करने के बाद सुजाता यदा-कदा दाऊद से बात करने लगी। एक बार बात का सिलसिला शुरू हुआ तो आगे बढ़ता ही गया। कहा जा सकता है कि एक बार दो जवां दिल क़रीब आए तो फिर उनके बीच की दूसरी घटती ही गई, निकटता बढ़ती ही गई। दाऊद ने महसूस किया कि सुजाता भी न मिल पाने से उसी तरह बैचैन होती है जिस तरह वह ख़ुद महसूस करता है। काफ़ी जद्दोजहद के बाद मन की बात छुपाते-छुपाते बयां हो गई। आख़िरकार, उसने इज़हार-ए-मोहब्बत कर ही दिया। सुजाता तो मानो इस ढाई अक्षर को सुनने का कब से इंतज़ार ही कर रही थी। उसी दिन दोनों चौपाटी की ओर निकल गए और बेलपुरी खाते हुए लंबे समय तक एक दूसरे से दिल की बात कहते रहे। इसके बाद तो उनकी हर शाम रंगीन होने लगी। वे कभी चौपाटी पर रेत पर बैठकर भेलपुरी खाते तो कभी-कभार गेटवे ऑफ़ इंडिया की ओर निकल जाते थे।

यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि अपराध की दुनिया में पूरी तरह उतर चुके डॉन दाऊद इब्राहिम के जीवन का यह सबसे ख़ूबसूरत दौर था। अंडरवर्ल्ड और अपराध पर नज़र रखने वाले कई रिटायर पुलिस अफ़सरों का मानना है कि सुजाता को दाऊद टूट कर चाहता था। वह सुजाता के लिए कुछ भी कर सकता था। वह सुजाता से न मिल पाने पर व्याकुल हो जाता था। वह इतना चाहता था कि अगर उस समय सुजाता ने कहा होता कि दाऊद उसके लिए अपराध छोड़ दे तो दाऊद अपराध की दुनिया से सदा के लिए तौबा कर सकता था, क्योंकि अपराध की दुनिया भले ही दाऊद को डॉन और मौत के सौदागर के रूप में जानती है लेकिन सुजाता उसके जीवन के रोमांटिक, चाहत और समर्पण की गवाह रही। यही वजह है कि अगर सुजाता चाहती तो दाऊद अपराज जगत से तौबा करके एक शरीफ़ नागरिक की तरह वैवाहिक जीवन गुज़ार सकता था।

दोनों का मिलना इतना अधिक होने लगा कि आसपास चर्चा होने लगी। हालांकि दाऊद का इतना ख़ौफ़ था कि किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी कि कोई उनके रिश्ते की किसी से चर्चा करे। सब लोग सुजाता को बड़ी इज़्ज़त देने लगे थे, क्योंकि वह दाऊद की दिल थी। सुजाता को भी यह सब अच्छा लगने लगा था, उसने तय कर लिया कि उसका जीवन साथी कोई होगा तो वह दाऊद ही होगा। वह यह भी जानती थी कि परिवार वाले दाऊद के साथ उसकी शादी के लिए बिल्कुल तैयार नहीं होंगे, इसीलिए उसने तय कर लिया था कि अगर वह दाऊद की नहीं हो सकी तो किसी की नहीं होगी। आजीवन अकेले रहेगी।

सुजाता ने भी तय कर लिया था कि अगर उसके घर वाले तैयार हुए और उसकी दाऊद के साथ शादी हुई तो वह दाऊद को अपराध की दुनिया से खींच कर अपनी दुनिया में ले जाएगी। उसे कोई अपराध नहीं करने देगी। सात फेरे लेते ही वह दाऊद से कहेगी कि अपराध करने की बजाय कोई नौकरी या कारोबार करे, ताकि जीवन में प्यार और शांति बनी रहे। लेकिन सुजाता की यह हसरत पूरी नहीं हो सकी। उलटे उस पर तमाम तरह की बंदिशे लाद दी गई, जिनके नीचे दब कर असली सुजाता मर गई और ज़िंदा रह गई तो एक चलती फिरती लाश।

(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)

अगला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें – द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 13