द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 13 – और दाऊद का दिल टूट गया

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हरिगोविंद विश्वकर्मा
वस्तुतः, जब सुजाता कौर के माता-पिता को पता चला कि उनकी बेटी किसी मुस्लिम लड़के से मिलती है। उसकी बाइक पर बैठकर शहर में घूमती है तो उन्हें सदमा-सा लगा। बेटी के किसी दूसरे धर्म के युवक से इश्क लड़ाने की ख़बर से उसके पिता आग-बबूला हो गए। उन्होंने सुजाता का बाहर निकलना अचानक बंद कर दिया। उसकी पढ़ाई भी बंद हो गई। आनन-फानन में उसकी एक पंजाबी लड़के से सगाई कर दी गई और शादी की तारीख़ भी तय कर दी गई।

यह वह दौर था, जब संपर्क का ज़रिया केवल पत्र हुआ करता था। पत्र को गोपनीय किसी तक पहुंचाना एक कम परेशानी वाली नहीं होती थी। उस समय टेलीफोन भी तब बहुत रईस लोगों के पास ही हुआ करते थे। ऐसे में सुजाता से अचानक बिछड़ जाने और उससे कोई संपर्क न हो पाने से दाऊद इब्राहिम बहुत ज़्यादा व्याकुल हो उठा। तन्हाई की आग में वह बुरी तरह झुलसने लगा। ‘मै तेरे प्यार में पागल’ जैसे दर्द उभारने वाले गाने उसे बेहद सुकून देने लगे थे। इस बीच उसके गुर्गे ने उसे सूचना दी कि सुजाता की ज़बरदस्ती सगाई हो गई। जल्द ही उसकी शादी होने वाली है।

यह सुनकर दाऊद के सब्र का बांध ध्वस्त हो गया। उसने आपा खो दिया। रामपुरी चाकू लेकर सुजाता के घर जा धमका। ज़ोर से दरवाज़े पर लात मारी। पांव इतनी तेज़ी से मारा कि दरवाज़ा झटके से खुल गया। सुजाता के घर वाले दाऊद की इस हरकत देखकर आवाक् रह गए। उन लोगों को यकीन ही नहीं हुआ कि कोई रामपुरी चाकू लिए उनके सामने खड़ा है। दाऊद का सामना सबसे पहले सुजाता के पिता से हुआ। उसने उन्हें ख़ूब खरी-खोटी सुनाई।

दाऊद ने सीधे धमकी देते हुए कहा, “सुजाता मेरी है। मैं उससे बेपनाह मोहब्बत करता हूं। वह भी मुझे टूटकर चाहती है। हम दोनों को शादी करने दो प्लीज़। वैसे भी हम दोनों बालिग हैं, हमें अपनी ज़िदगी के बारे में फ़ैसला लेने का पूरा हक़ है। सुजाता को अपनी ज़िंदगी के बारे में निर्णय करने का पूरा अधिकार है। लिहाज़ा हमें शादी करने से आप नहीं रोक सकते। जिसने हमारे बीच में आने की कोशिश तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।”

सुजाता के पिता ने रोते हुए कहा, “भाई, बेशक तुमको और सुजाता को अपने के बारे में हर फ़ैसले लेने की आज़ादी है, लेकिन मेरी भी सुन लो। सुजाता मेरी बेटी है। अगर सुजाता ने कुछ ग़लत क़दम उठाया तो हम पति-पत्नी इसी बिल्डिंग से कूदकर अपनी जान दे देंगे। हम अपने चेहरे पर कालिख पुतवाकर कैसे ज़िंदा रह सकते हैं। अगर हमारी बेटी ने हमारा नाक काट दिया तो हम अपनी जाति-बिरादरी में क्या मुंह दिखाएंगे। ठीक है, अगर सुजाता चाहे तो तुम्हारे साथ जा सकती है लेकिन आज के बाद वह हम पति-पत्नी का मुंह कभी नहीं देख पाएगी।”

दाऊद इब्राहिम की संपूर्ण कहानी पहले एपिसोड से पढ़ने के लिए इसे क्लिक करें…

सुजाता पिता की धमकी से बुरी तरह डर गई। मां से लिटपकर रोने लगी। उसके आंसू थम ही नहीं रहे थे। उसने दाऊद से एकांत में पांच मिनट मिलने की अनुमति मांगी। अकेले मिलने पर उसने रोते-रोते ही कहा, “अगर हम मिलते तो मेरे जीवन का बड़ा बड़ा सपना साकार होता। जीवन में तुम्हारे साथ वक़्त गुज़ारना मेरे लिए बहुत हसीन पल होता, लेकिन हमारा मिलना शायद किस्मत में नहीं लिखा है। दाऊद, मैं तुमसे बेपनाह मोहब्बत करती हूं, लेकिन तुमसे शादी नहीं कर सकती। मैं अपने माता-पिता के दुख और बदनामी की वजह नहीं बनना चाहती हूं। मेरे लिए, मेरे मां-पिता सबसे ज़्यादा अहमियत रखते हैं। तुम मुझे माफ़ कर दो। मुझे भूल जाओ। तुम्हारे लिए मैं अपने माता-पिता को नहीं छोड़ सकती। यह मेरा आख़िरी फ़ैसला है।”

सुजाता की बात दाऊद ठगा सा सुनता रहा। उसे यक़ीन ही नहीं हुआ कि अभी चंद रोज़ पहले तक जो सुजाता उसके साथ जीने-मरने की कसमें खाती थी। वही उससे इस तरह की बात करेगी। उसके दिल की धड़कन बन चुकी सुजाता उसे प्यार का यह सिला देगी। हाथ में रामपुरी चाकू था, लेकिन हाथ ढीला पड़ गया। चाकू ज़मीन पर गिर पड़ा। दाऊद को लगा उसके शरीर में ऊर्जा बिलकुल नहीं बची है। वह ज़मीन पर गिर जाएगा। समझ में ही न आया कि अब करे तो क्या करे।

उसके अंदर से आवाज़ आई, “दाऊद, तुम जिसके साथ सपनों का महल खड़ा कर रहे थे, वही साथ देने से इनकार कर दिया है तो अब यहां क्यों खड़े हो? दाऊद तुम सुजाता को भूल जाओ। लड़कियां ऐसी ही होती हैं दाऊद। जब प्यार और परिवार में टकराव होता है, तो बहुत कम ही लड़कियां अपने प्यार का साथ देती है। सुजाता उन लड़कियों में नहीं है। लिहाज़ा, वह तुम्हारा साथ नहीं दे पाएगी। उसे भूल जाना ही तुम्हारे और तुम्हारे प्यार के लिए बेहतर होगा।”

क़रीब तीन साल तक सपनों के समंदर में गोता लगाने वाले दाऊद की जब नींद खुली तो सब कुछ बिखरा-बिखरा सा था। इतना बिखरा था कि उसे समेटा ही नहीं जा सकता था। अपने आपको इतना लाचार और असहाय दाऊद ने कभी नहीं पाया था। हारे हुए जुआरी की तरह वह सुजाता के घर से लौट पड़ा। सीढ़ियां उतरते समय पांव लड़खड़ा रहे थे। तीन साल तक हर पल बिज़ी रहने के बाद अचानक वह खाली हो गया था। एकदम ख़ाली। उसने अपने आपको घर में क़ैद कर लिया। कई दिन तक घर से बाहर ही नहीं निकला। उसके दिलों-दिग़ाग से सुजाता हट ही नहीं रही थी। उसे लगा, वह बुरा सपना देख रहा है और नींद खुलते ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन कुछ भी ठीक न हुआ। उसे मोहब्बत का रोग लग गया था जो लाइलाज़ होता चुका था।

उधर, भाई की हालत से साबिर बहुत परेशान हो रहा था। वह सुजाता के परिवार को सबक सिखाना चाहता था लेकिन दाऊद ने ही सख़्ती से मना कर दिया। दाऊद के दोस्त भी उसकी हालत से वाकिफ थे। ग़म-ग़लत करने के लिए उसे एक से एक अच्छे बीयर-बारों में ले गए लेकिन दाऊद ने शराब को हाथ तक नहीं लगाया। कई लोगों ने ध्यान भटकाने के लिए कई लड़कियों को उससे मिलवाने की कोशिश की, लेकिन दाऊद को तो लड़कियों से नफरत-सी हो गई थी। उसने तय कर लिया था कि अब कभी किसी औरत पर भरोसा नहीं करेगा। उसने अपना सारा ध्यान अपने कारोबार में लगाया। सुजाता को मन से निकालने के लिए ख़ुद को हर समय बिज़ी रखना चाहता था। इसलिए चौबीसों घंटे हर समय काम में ही लगा रहता था।

एक अलग कहानी के मुताबिक दाऊद सुजाता नाम की जिस लड़की को चाहता था, हुस्न की उस मलिका पर करीम लाला का गुंडा अयूब ख़ान भी मरता था। उसे लगा दाऊद उसकी प्रेमिका को छीन रहा है। सो, सुजाता को लेकर दाऊद गैंग और पठान गैंग के बीच विवाद बहुत अधिक बढ़ गया। दाऊद ने फिल्म शोले के गब्बर की तरह अयूब के दोनों हाथों पर वार कर उसे काट दिया। उसकी यह हरकत करीम लाला को बिल्कुल पसंद नहीं आई। इसके बाद दोनों गिरोह में तनातनी की कहानी शुरू हो गई। इसके बाद मुंबई में गैंगवार जैसे रोज़ की बात हो गई।

(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)

अगला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें – द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 14