ठुमरी
तू आया नहीं चितचोर
मनवा लागे नाहीं मोर
रहिया ताके मोरा मन
अंखियां बनी हैं चकोर
बैरन बनी रात चांदनी
काहे रे होत नहि भोर
सबके सजन आए घर
न आयल बलमा मोर
तड़पन है तन मन में
चलत नाहीं मोरा ज़ोर
-हरिगोविंद विश्वकर्मा
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