वक्त नहीं है

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वक़्त नहीं है
आपस में लड़ने का वक़्त नहीं है,
ग़लतियां गिनाने का वक़्त नहीं है।
मोहब्बत बांटें जब तक है जीवन
नफ़रत फैलाने का वक़्त नहीं है।
वो बुरा था तो क्या आदमी तो था
बुराई बयां करने का वक़्त नहीं है।
संभव है किसी का भी चले जाना
मातम पे हंसने का वक़्त नहीं है।
मज़हब कोई भी हो इंसान तो हो
बेमुरव्वत बनने का वक़्त नहीं है।
जो नियति में है वह हो कर रहेगा
गंदी सोच दिखाने का वक़्त नहीं है।
एक हो जाएं मिलाएं कंधे से कंधा
बेग़ैरत हो जाने का वक़्त नहीं है।
बहुत संभलकर निकलिए घरों से
बेफ़िक्री दिखाने का वक़्त नहीं है।
– हरिगोविंद विश्वकर्मा