थाईलैंड में भारतीय मूल के लोगों का धार्मिक सद्भाव कार्यक्रम

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भारत में जहां लोग धर्म के नाम पर लड़ते रहते हैं। इस गौरवशाली देश में इन दिनों सभी समुदायों में अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने की होड़ रहती है, जो अंततः धार्मिक टकराव और दंगे के रूप में सामने आता है, वहीं दुनिया भर में पर्यटन के लिए मशहूर दक्षिण पूर्वी एशिया का ख़ूबसूरत देश थाईलैंड इन दिनों विविधता में एकता का मिसाल पेश कर रहा है।

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इंडो-चाइनीज़ प्रायद्वीप पर बसे ख़ूबसूरत देश थाईलैंड की राजकुमारी महामहिम क्वीन सिरीकिट क्वीन रॉयल प्रिंसेस महाचक्री सिरिंधोर्न के जन्मदिन 12 अगस्त को मेडिकल चेकअप कैंप, सामूहिक चर्चा, वाद-विवाद प्रतियोगिता, सामूहिक पूजा जैसे कार्यक्रम किए जाते हैं। इस साल भी भारतीय मूल के लोगों द्वारा इस समारोह को उत्साह के साथ मनाया गया।
भारतीय समुदाय की ओर से 12 अगस्त को थाईलैंड की राजकुमारी महामहिम क्वीन सिरीकिट क्वीन रॉयल प्रिंसेस महाचक्री सिरिंधोर्न के जन्मदिन के अवसर पर उनके सम्मान में आपसी सामंजस्य और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए विभिन्न धार्मिक समुदाय को एकजुट करने के लिए इस कार्यक्रम का आयोजन किया। इस तरह का आयोजन थाईलैंड के सभी 76 प्रांतों में होता रहता है।

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इस कार्यक्रम में भारतीय मूल के जिन लोगों ने हिस्सा लिया उनमें ग्राम चार पानी के विष्णु मंदिर के प्रधान मकसूदन गोपाल पांडेय, योगेंद्र मिश्रा, अरुण पांडेय, त्रिनेत्र दुबे, मोहन मिश्रा, बुद्धीसागर दुबे, छांगुर तिवारी, गिरजेश नंदिनी पांडेय, दीपक पांडेय, विमला तिवारी, उषा मिश्रा और थाइलैंड में भारतीय समुदाय में लोकप्रिय नारी शक्ति की प्रतीक शोभा सिंह शामिल हैं। शोभा सिंह थाईलैंड में बहुत सक्रिय रहती हैं।

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थाईलेंड जिसका प्राचीन भारतीय नाम श्यामदेश (या स्याम) है दक्षिण पूर्वी एशिया का एक देश है। 513,120 वर्ग किलोमीटर में बसे और 76 प्रांतों वाले थाइलैंड की आबादी 6.6 करोड़ से अधिक है। यहां भारतीय मूल के लोग सदियों से रहते आए हैं, जिनमें केवल उत्तर प्रदेश के गोरखपुर मूल के पांच लाख लोग रहते हैं। इन लोगों के बीच आपसी सामंजस्य बहुत अधिक है। यहां बसने के बाद भी इन लोगों के अपने पूर्वजों से सदियों पहले जैसा संबंध है और जब भी मौक़ा मिलता है, ये लोग यहां आते रहते हैं। अभी पिछले साल राजकुमारी सिरिंधोर्न ने खुद उत्तराखंड का दौरा किया था।

पिछले साल 15 अगस्त को, कल्चरल सेंटर ऑफ थाईलैंड की ओर से धार्मिक एकता और मेल-मिलाप के सम्मान समारोह कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें थाईलैंड के मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर के श्री इथिपोल खूनप्लूएम ने समारोह की अध्यक्षता की थी। जन्मदिन समारोह के अवसर पर श्री कृत्सन पोंगसिरी, स्थायी सचिव, संस्कृति मंत्रालय, कृतिभान फांसुवन, धार्मिक मामलों के विभाग के महानिदेशक, धार्मिक संगठन के संस्कृति मंत्रालय के कार्यकारी नेताओं और धार्मिक संगठन नेटवर्क संगठन के युवाओं के साथ 1000 से अधिक सामुदायिक नेताओं और नागरिकों ने भाग लिया।

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इस अवसर पर अपने संबोधन में श्री इत्तिफी ने कहा था कि शाही परिवार राष्ट्र का प्रमुख अंग है। यह इस देश के लोगों के दिलों में बसा है। महामहिम क्वीन सिरीकिट क्वीन रॉयल प्रिंसेस महा चक्रि सिरिंधोर्न नस्लीय, धार्मिक और संस्कृति की विविधता के बावजूद, थाइलैंड की जनता को एकसूत्र में पिरोने का काम करती हैं। उनके संरक्षण में इस देश में सभी धर्मों को फूलने-फलने का भरपूर अवसर मिल रहा है। यही इस देश की असली शक्ति है, जो इसे और मजबूत बनाती है।
महामहिम के जन्मदिन के अवसर पर थाई लोगों के लाभ के लिए धार्मिक मामलों के विभाग और संस्कृति मंत्रालय की ओर से बौद्ध, इस्लाम, ईसाई, ब्राह्मण-हिंदू, सिख और नेटवर्क ऑर्गनाइजेशन जैसे धार्मिक संगठनों के साथ भागीदारी करके तरह तरह के सामाजिक कार्य करता है।

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संस्कृति मंत्रालय के निर्देश पर धार्मिक मामलों के विभाग (NIDA) आपसी सामंजस्य को मजबूत करने के लिए देश भर में धार्मिक ऊर्जावान आयोजन करता रहता है। जिसमें शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े धार्मिक संगठन हिस्सा लेते हैं। पिछले साल सेवन डे एडवेंटिस्ट फाउंडेशन ऑफ थाइलैंड की ओर से कार्यक्रम में शामिल लोगों के लिए निःशुल्क हेल्थ चेकअप सर्विस का आयोजन किया जाता है।

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थाईलैंड में अनगिनत हिंदू मंदिर हैं, जिन्हें खाओ फ्रा विहार्न कहा जाता है। पिछले साल नवंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थाईलैंड की यात्रा पर गए थे। वहां भारतीय मूल के लोगों द्वारा हाउडी मोदी की तर्ज में ‘सवास्डी पीएम मोदी’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस दौरान भारतीय समुदाय के लोगों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला था। भारतीय समुदाय के लोगों ने मोदी-मोदी के नारे लगाए थे। मोदी ने अपने संबोधन में कहा था कि भारत-थाईलैंड के रिश्ते सिर्फ़ सरकारों के बीच के नहीं हैं। बल्कि इतिहास के हर पल ने, इतिहास की हर घटना ने, हमारे संबंधों को विकसित किया है, विस्तृत किया है, गहरा किया है और नई ऊंचाइयों तक पहुंचा है। ये रिश्ते दिल के हैं, आत्मा के हैं, आस्था के हैं, आध्यात्म के हैं।

 

थाइलैंड विदेशी पर्यटन से पैसा कमाने के मामले में फ़्रांस को भी पीछे छोड़ते हुए दुनिया का तीसरा देश बन गया है। सबसे बड़ी बात फ़ाइनैंशियल टाइम्स के शोध के मुताबिक़ थाईलैंड को इस मुकाम पर भारतीय मूल के लोगों ने अपने अथक प्रयास से लाया है। 2018 में यहां 3.5 करोड़ लोग आए थे। यही गति रही तो पांच सालों के भीतर थाईलैंड स्पेन को पीछे छोड़ दूसरा स्थान हासिल कर सकता है और फिर अमरीका ही उससे आगे रह जाएगा. पर्यटन उद्योग थाईलैंड के लिए सबसे लाभकारी साबित हो रहा है। थाईलैंड के ख़ूबसूरत समुद्र तटों और मंदिरों को देखने के लिए पूरी दुनिया से पर्यटक थाईलैंड आते हैं।

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नई दिल्ली या मुंबई समेत भारत के दूसरे शहरों से से थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक जाने में विमान से चार से पाँच घंटे लगते हैं। भारतीयों के लिए बैंकॉक का किराया भी बहुत ज़्यादा नहीं है। आज की तारीख़ में में आठ से दस हज़ार के किराए में फ्लाइट से बैंकॉक पहुंचा जा सकता है। नजदीक और सस्ता होने के कारण भी भारतीयों को थाईलैंड की यात्रा ख़ूब पसंद आती है। भारत का निम्न मध्य वर्ग, जो यूरोप घूमने का खर्च वहन नहीं कर सकता है, वह थाईलैंड पहुंच जाता है, क्योंकि पिछले कुछ सालों में थाइलैंड एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरा है।

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थाईलैंड अपने ख़ूबसूरत बीच के लिए जाना जाता है। यहां के बीच की ख़ूबसूरती भी दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करती है। भारतीयों के लिए थाईलैंड से ख़ूबसूरत कोई बीच नजदीन में उपलब्ध नहीं है। यही वजह है कि भारत से हर साल लाखों की संख्या में भारतीय थाईलैंड जाते हैं। भारतीय मूल के लोगों से उनका संपर्क भी होता है। जो उनकी यात्रा को और यादगार बना देता है। थाईलैंड के पर्यटन में बूम के पीछे भारत है। पिछले साल 14 लाख भारतीय थाईलैंड गए और यह उसके पहले के साल से 18.2 फ़ीसदी ज़्यादा है।

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थाईलैंड की वेबसाइट के अनुसार 2010 से थाईलैंड जाने वाले भारतीयों हर वर्ष औसत 10 फ़ीसदी बढ़े हैं। यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में भारत 2017 में पांचवे नंबर पर था जबकि 2013 में सातवें नबर पर था। थाइलैंड के खाओ लाक, कोह लांटा, सूरत थानी, कंचनाब्यूरी, नखोन रात्चासीमा, सुखोथाई, च्यांग राय और अयुथिया जैसे डेस्टिनेशन दुनिया भर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। यहां आने का अपना अलग ही मज़ा है।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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