अमर सिंह ने मुलायम सिंह की साधना गुप्ता से शादी करवाने में अहम भूमिका निभाई थी

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अमर सिंह को भावपूर्ण श्रद्धांजलि

अपने हाईप्रोफाइल कनेक्शन के चलते हमेशा चर्चा में रहने वाले राज्यसभा सदस्य ठाकुर अमर सिंह गजब के लड़ाकू और ज़िंदादिल तबियत के इंसान थे। दोस्ती तो वह बड़ी शिद्दत से निभाते थे। मुलायम सिंह यादव से लेकर अमिताभ बच्चन तक, अनिल अंबानी से लेकर कुमार मंगलम बिड़ला तक से उनके मधुर संबंध रहे। अमर सिंह ने हर किसी की किसी न किसी रूप मे मदद की। कह सकते हैं कि वह सुख में ही नहीं, बल्कि दुख में भा साथ निभाते थे। वह अपने घर आने वाले किसी भी ज़रूरतमंद को वापस नहीं करते थे।

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अमर सिंह का जन्म 27 जनवरी 1956 को पूर्वांचल उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में राजपूत परिवार हरीश चंद्र सिंह और श्रीमती शैल कुमारी सिंह के घर हुआ। यह पिरवार मूल रूप से आजमगढ़ का रहने वाला था। अमर सिंह कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक और एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज और यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लॉ कोलकाता में शिक्षा ली। खुद सियासत में छाए रहने वाले अमर सिंह अपने परिवार को लाइम लाइट से दूर रखते थे। उनकी दो जुड़वा बेटियां हैं। उनका नाम दृष्टि और दिशा है। अमर सिंह की शादी पंकजा कुमारी सिंह से 1987 में हुई थी। लेकिन औलाद के लिए उनको 14 साल तक इंतजार करना पड़ा था। दोनों बेटियों दृष्टि और दिशा का जन्म वर्ष 2001 में हुआ।

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अमर सिंह के कभी बहुत क़रीबी दोस्त रहे अमिताभ बच्चन ने अमर सिंह के निधन आने के बाद नानावटी अस्पताल के  आइसोलेशन वार्ड से ही अमर सिंह को श्रद्धांजलि दी। पहली अगस्त की शाम अपने ब्लॉग और ट्विटर फोटो साझा की, जिसमें वह गर्दन झुकाए दिख रहे हैं। ट्विटर पर तो कोई कैप्शन नहीं है, लेकिन ब्लॉग पर दो इमोशनल लाइन लिखी हैं।
‘‘शोक ग्रस्त, मस्तिष्क झुका, प्रार्थनाएं केवल रहीं,
निकट प्राण, संबंध निकट, वो आत्मा नहीं रही !’’

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हैरानी की बात है कि पहली अगस्त को ही अमिताभ बच्चन के ट्विटर पर दो और पोस्ट शेयर किया था, दोनों का मतलब समान ही था। दोनों पोस्ट किसी के किसी के बारे में कुछ बोल देने के बारे में था, लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि अमिताभ ने यह पोस्ट किसके लिए शेयर किया। पहला पोस्ट सुबह 7.51 बजे का है, जबकि दूसरा पोस्ट सुबह 11.35 बजे का। यह संयोग ही है कि दोनों पोस्ट के कुछ घंटे बाद अमर सिंह के निधन की ख़बर आ गई।

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भारतीय राजनीति में अमर सिंह को एक पोलिटिकल मैनेजर के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे। मुलायम सिंह अमर सिंह पर बहुत भरोसा करते थे। राजनीति में जिस तरह की जरूरतें रहती हैं, चाहे वो संसाधन जुटाने की बात हो या जोड़ तोड़ यानी नेटवर्किंग का मसला हो, उन सबको देखते हुए वह अमर सिंह को पार्टी के लिए उपयुक्त मानते थे। इसलिए उन्हें ज़िम्मेदारी सौंपी थी। ये बात भी अपनी जगह एकदम सही है कि अमर सिंह नेटवर्किंग के बादशाह रहे थे। समाजवादी पार्टी की आज जो हैसियत है, उसे इस मुकाम पर लाने का काफी कुछ श्रेय अमर सिंह को भी जाता है। अमर सिंह समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के साथ अपना दोस्ती का बड़े साहसिक तरीक़े से निभाया था और मुलायम सिंह की उनकी लंबे समय से प्रेमिका रहीं साधन गुप्ता से शादी करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष अखिलेश सिंह यादव ने अमर सिंह को कभी पसंद नही किया। एक तरह से वह अपने दल के पोलिटिकल मैनेजर से चिढ़ते थे। दरअसल, अखिलेश अपने पिता की दूसरी के बाद अमर सिंह से सदा के लिए दूरी बना ली थी। समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव का दबदबा जैसे-जैसे बढ़ता गया, वैसे-वैसे अमर सिंह पार्टी से अलग-थलग पड़ने लगे और अतंतः समाजवादी पार्टी से ही बाहर हो गए।

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2015 में मुलायम सिंह यादव पहले अपने राजनीतिक जीवन के सबसे नाजुक दौर से गुज़र रहे हैं। लोग देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के महाभारत के लिए अमर सिंह को ही जिम्मदार मानते थे। यही वजह थी कि मुलायम का अपना बेटा ही उनके सामने खड़ा हो गया था। हालांकि उस समय समाजवादी पार्टी में जो कुछ हो रहा था, ऊपर से लगा था कि मुलायम और अखिलेश यादव के बीच संघर्ष है। जो घमासान चला, उसकी जड़ें महीने या साल दो साल नहीं, बल्कि तीन दशक से ज़्यादा पुरानी थीं।

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वह संघर्ष चाचा-भतीजे यानी अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच की वर्चस्व की लड़ाई भी नहीं थी। दरअसल, शतरंज के उस खेल में शिवपाल तो महज़ एक मोहरा भर थे, जिन्हें अपने बेटे पर अंकुश रखने के लिए नेताजी इस्तेमाल कर रहे हैं। सबसे अहम बात यह थी कि मुलायम अपनी इच्छा से यह सब नहीं कर रहे थे, बल्कि उनसे यह सब करवाया जा रहा था। मुलायम जैसी शख़्सियत से यह सब कराने की क्षमता किसके पास थी। यह भी समझने की बात थी।

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गौरतलब बात यह रही कि उस समय अमर सिंह पूरी तरह ख़ामोश थे, इसके बावजूद समाजवादी पार्टी के संकट में उनका नाम बार-बार आ रहा था। ऐसे परिवेश में आम लोगों के मन में यह सहज सवाल उठ रहा था कि आख़िर अखिलेश अपने पिता के जिगरी दोस्त से इतना चिढ़ते क्यों हैं। इसका उत्तर जानने के लिए अस्सी के दौर में जाना पड़ेगा, जब समाजवादी पार्टी या जनता दल का अस्तित्व नहीं था और तब मुलायम सिंह यादव लोकदल के नेता हुआ करते थे।

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1967 में बतौर विधान सभा सदस्य राजनीतिक सफ़र शुरू करने वाले मुलायम सिंह अस्सी के दशक तक राज्य के बहुत प्रभावशाली और शक्तिशाली नेता बन गए। चौधरी चरण सिंह के बाद संभवतः वह उत्तर प्रदेश के पिछड़े वर्ग और यादवों के सबसे ज़्यादा कद्दावर नेता रहे। राजनीतिक सफ़र में नेताओं के जीवन में महिलाएं आती रहीं। जब मुलायम उत्तर प्रदेश के शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे तो उनके जीवन में अचानक उनकी फ़िलहाल दूसरी पत्नी साधना गुप्ता की एंट्री हुई।

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मुलायम सिंह और साधना गुप्ता की प्रेम कहानी कब शुरू हुई, इस बारे में अधिकृत ब्यौरा किसी के पास नहीं है। कहा जाता है कि 1982 में जब मुलायम लोकदल के अध्यक्ष बने तब एक दिन उनकी नज़र अचानक पार्टी की नई युवा पदाधिकारी साधना पर पड़ी। 20 साल की तरुणी साधना इतनी ख़ूबसूरत कि जो भी उन्हें देखता, बस देखता ही रह जाता था। मुलायम भी अपवाद नहीं थे। पहली मुलाक़ात में वह उम्र में 23 साल छोटी साधना गुप्ता को दिल दे बैठे। यहीं से मुलायम-साधना की अनोखी प्रेम कहानी शुरू हुई, जो तीस-बत्तीस साल बाद अंततः देश के सबसे ताक़तवर राजनीतिक परिवार में विभाजन की वजह बनी।

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अस्सी के दशक में साधना गुप्ता और मुलायम सिंह के बीच क्या चल रहा है, इसकी भनक लंबे समय तक किसी को नहीं लगी। मुलायम के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति वाले मामले की जांच के दौरान सीबीआई की स्टेट्स रिपोर्ट में दर्ज है कि साधना गुप्ता और फर्रुखाबाद के चंद्रप्रकाश गुप्ता की शादी 4 जुलाई 1986 को हई थी। अगले साल 7 जुलाई 1987 को प्रतीक गुप्ता (अब प्रतीक यादव) का जन्म हुआ था। बहरहाल, 1962 में जन्मी औरैया जिले की साधना गुप्ता का मुलायम के चलते पति चंद्रप्रकाश गुप्ता से साल 1990 में औपचारिक तलाक हो गया। इसी दौरान 1987 में साधना ने एक पुत्र प्रतीक गुप्ता  को जन्म दिया। कहते हैं कि साधना गुप्ता के साथ प्रेम संबंध की भनक मुलायम की पहली पत्नी और अखिलेश की मां मालती देवी को लग गई। वह बहुत ही आकर्षक और दान-धर्म में यक़ीन करने वाली महिला थीं। यहां यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मुलायम का पूरा परिवार अगर एकजुट बना रहा है तो इसका सारा श्रेय मालती देवी को ही जाता है। मुलायम राजनीति में सक्रिय थे। उस दौरान वे एक-दूसरे को शायद ही कभी-कभार देख पाते थे, लेकिन मालती देवी अपने परिवार और 1973 में जन्मे बेटे अखिलेश यादव का पूरा ख़्याल रख रही थीं।

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नब्बे के दशक (दिसंबर 1989) में जब मुलायम मुख्यमंत्री बने तो धीरे-धीरे बात फैलने लगी कि उनकी दो पत्नियां हैं, लेकिन वह इतने ताक़तवर थे कि किसी की मुंह खोलने की हिम्मत ही नहीं पड़ती थी। अलबत्ता सीबीआई को प्रतीक के रिकॉर्ड से पता चला है कि उन्होंने 1994 में अपने घर का पता मुलायम के आधिकारिक निवास को बताया था। नब्बे के दशक के अंतिम दौर में अखिलेश को साधना गुप्ता और प्रतीक गुप्ता के बारे में पता चला। उन्हें यकीन नहीं हुआ, लेकिन बात सच थी। उस समय मुलायम साधना गुप्ता की कमोबेश हर बात मानने लगे थे। आरोप लगता है कि मुलायम के शासन (1993-2007) में साधना गुप्ता ने अकूत संपत्ति बनाई। आय से अधिक संपत्ति का उनका केस आयकर विभाग के पास लंबित है। 2003 में अखिलेश की मां मालती देवी का बीमारी से निधन हो गया और मुलायम का सारा ध्यान साधना गुप्ता पर आ गया। हालांकि वह इस रिश्ते को स्वीकार करने की स्थिति में तब भी नहीं थे।

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मुलायम और साधना के संबंध की जानकारी मुलायम परिवार के अलावा जिगरी दोस्त अमर सिंह को थी। मालती देवी के निधन के बाद साधना चाहने लगी कि मुलायम उन्हें अपनी आधिकारिक पत्नी मान लें, लेकिन पारिवारिक दबाव, ख़ासकर अखिलेश के चलते मुलायम इस रिश्ते को कोई नाम नहीं देना चहते थे। इस बीच साधना 2006 में अमर सिंह से मिलने लगीं और उनसे आग्रह करने लगीं कि वह नेताजी को मनाएं। लिहाज़ा, अमर सिंह नेताजी को साधना गुप्ता और प्रतीक गुप्ता को अपनाने के लिए मनाने लगे। 2007 में अमर सिंह ने सार्वजनिक मंच से मुलायम से साधना को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का आग्रह किया और इस बार मुलायम उनकी बात मानने के लिए तैयार हो गए।

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जो भी हो, अमर सिंह के बयान से मुलायम परिवार में खलबली मच गई। लोग साधना को अपनाने के लिए तैयार ही नहीं थे। बहरहाल, अखिलेश के विरोध को नज़रअंदाज़ करते हुए मुलायम ने अपने ख़िलाफ़ चल रहे आय से अधिक संपत्ति से संबंधित मुक़दमे में सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दिया, जिसमें उन्होंने साधना गुप्ता को पत्नी और प्रतीक को बेटे के रूप में स्वीकार कर लिया। उसके बाद साधना गुप्ता साधना यादव और प्रतीक गुप्ता प्रतीक यादव हो गए। अखिलेश साधना गुप्ता के अपने परिवार में एंट्री के लिए अमर सिंह को ज़िम्मेदार मानते हैं। तभी से वह अमर सिंह से चिढ़ने लगे थे। वह मानते हैं कि साधना गुप्ता और अमर सिंह के चलते उनके पिताजी ने उनकी मां के साथ न्याय नहीं किया।

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बहरहाल, मार्च सन् 2012 में मुख्यमंत्री बनने पर अखिलेश यादव शुरू में साधना गुप्ता को कतई घास नहीं डालते थे। इससे मुलायम नाराज़ हो गए और अखिलेश को झुकना पड़ा। इस तरह साधना गुप्ता ने मुलायम के ज़रिए मुख्यमंत्री पर शिकंजा कस दिया और अपने चहेते अफ़सरों को मनपसंद पोस्टिंग दिलाने लगीं। ‘द संडे गार्डियन’ ने सितंबर 2012 में साधना गुप्ता की सिफारिश पर मलाईदार पोस्टिंग पाने वाले अधिकारियों की पूरी फेहरिस्त छाप दी, तब साधना गुप्ता पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आईं।

इसके बाद यह साफ़ हुआ कि मुलायम की विरासत को लेकर चल संघर्ष में अखिलेश की लड़ाई सीधे लीड्स यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले अपने सौतेले भाई प्रतीक यादव से थे। लखनऊ में रियल इस्टेट के बेताज बादशाह बन चुके प्रतीक को अपनी माता साधना गुप्ता का समर्थन मिल रहा था। चूंकि साधना नेताजी के साथ रहती थीं और उनकी बात मुलायम टाल ही नहीं सकते थे। यानी बाहरवाली से घरवाली बनी साधना गुप्ता की बात टालना फ़िलहाल मुलायम सिंह के वश में नहीं था।

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उस समय लखनऊ के गलियारे में साधना गुप्ता को कैकेयी कहा जा रहा था। आमतौर पर परदे के पीछे रहने वाली साधना अखिलेश से तब से बहुत ज़्यादा नाराज़ चल थीं, जब अखिलेश ने उनके आदमी गायत्री प्रजापति को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। दरअसल, प्रतीक के बहुत ख़ासमख़ास गायत्री प्रजापति को मुलायम के कहने पर खनन जैसा मलाईदार महकमा दिया गया था। वह विभाग हुक्मरानों को हर महीने दो सौ करोड़ की अवैध उगाही करवाते थे। जब इसकी भनक अखिलेश को लगी तो वह प्रतीक के रसूख और कमाई के स्रोतों पर हथौड़ा चलाने लगे। यह बात साधना को बहुत बुरी लगी। नाराज़ साधना गुप्ता को मनाने के लिए ही मुलायम ने पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी अखिलेश से छीनकर साधना खेमे के शिवपाल यादव को दे दी। उसी के चलते बाप-बेटे यानी अखिलेश और मुलायम आमने-सामने आ गए थे।

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इटावा जिले के सैफई में स्व. सुघर सिंह यादव और स्व. मूर्ति देवी के यहां 22 नवंबर, 1939 को जन्में और पांच भाइयों में तीसरे नंबर के मुलायम सिंह यादव तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उत्तर प्रदेश के लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने कुछ किया तो केवल और केवल अपने परिवार के लिए किया। परिवार को उन्होंने राजनीतिक और आर्थिक रूप से इतना ताक़तवर बना दिया कि आने वाले साल में उनके कुटुंब के सैकड़ों लोग सांसद या विधायक होंगे। फ़िलहाल मुलायम समेत उनके परिवार में छह सांसद और तीन विधायक समेत 21 लोग महत्वपूर्ण पदों पर क़ाबिज़ रहे। भारतीय राजनीति में वंशवाद का तोहमत कांग्रेस पर लगता है, लेकिन यूपी में मुलायम परिवार ने कांग्रेस को मीलों पीछे छोड़ दिया।

 

अखिलेश यादव से अमर सिंह भी नाराज़ रहते थे। एक बार खुलासा करते हुए कहा था कि अखिलेश की शादी डिंपल से नहीं बल्कि लालूप्रसाद यादव की बेटी से होने जा रही थी। हालांकि, उन्‍होंने यह नहीं बताया कि शादी लालू की किस बेटी से होने वाली थी। अमर सिंह ने कहा कि अखिलेश को उनका एहसानमंद होना चाहिए, क्योंकि अगर वह नहीं होते तो उनके जीवन में डिंपल नहीं आती हैं, न ही उनका प्रेम होता और न ही मनपंसद शादी हो पाती।

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वैसे अमर सिंह ने राजनीति सफर कांग्रेस से शुरू किया था। जिला कांग्रेस कमेटी, कलकत्ता के सचिव रहे। कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी के कार्यकाल में 1996 में हुए कांग्रेस महाअधिवेशन में वह व्यवस्थापन समिति के सदस्य थे। बाद में वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए और पार्टी में नंबर दो की पोजिशन पा गए। अमर सिंह राज्य सभा सदस्य थे। वह अपने हिन्दी ज्ञान और राजनैतिक सम्बंधों भी जाने जाते थे। उन पर भ्रष्टाचार के विभिन्न मामले लम्बित थे। जिसके चलते उनकी इमैज ख़राब हुई। समाजवादी पार्टी के महासचिव रह चुके अमर सिंह ने 6 जनवरी 2010 को समाजवादी पार्टी के सभी पदों से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्हें सपा से निष्कासित कर दिया। वर्ष 2011 में संसद घोटाले में वह गिरफ़्तार भी हुए और लंबे समय तक न्यायिक हिरासत में रहे। बाद में उन्होंने राजनीति से सन्यास की घोषणा कर दी। संन्यास की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा, “मैं अपनी पत्नी और अपने परिवार को अधिक समय देना चाहता हूं। फ़िलहाल वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में आए दिन बयान दे रहे थे और उन्होंने अखिलेश यादव को नमाज़वादी भी कह दिया था।

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अमर सिंह ने 2011 में अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय लोक मंच की शुरुआत की और 2012 के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की 403 सीटों में से 360 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए। हालांकि, उनकी पार्टी ने इन चुनावों में एक भी सीट नहीं जीती। वे मार्च 2014 में राष्ट्रीय लोकदल पार्टी में शामिल हुए, उस वर्ष फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश से आम चुनाव लड़े और हार गए। अमर सिंह का अमिता बच्चन समेत बॉलीवुड के कई सितारों से मधुर संबंध रहे। उन्होंने सन् 2000 में रिलीज हिंदी फ़िल्म ‘हमारा दिल आपके पास है’ में अभिनय किया। इसके अतिरिक्त शैलेंद्र पांडे की निर्देशित आगामी फ़िल्म जेडी में भी इन्होंने एक राजनीतिज्ञ का अभिनय किया है। कुछ महीने पहले अमर सिंह ने अमिताभ और दूसरे लोगों से माफ़ी मांग ली थी। एक वीडियो जारी करके अमर सिंह ने कहा था, “आज मेरे पिता जी की पुण्यतिथि है और बच्चन जी की तरफ़ से मुझे संदेश आया। मैं जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहा हूं। मैंने अमित जी और उनके परिवार के प्रति जो भी शब्द कहे थे, उसके लिए पश्चाताप कर रहा हूं। ईश्वर उन सभी को अच्छा रखे। उन्होंने कहा था, आज के दिन मेरे पिता का निधन हुआ और उनकी पुण्यतिथि पर पिछले एक दशक से बच्चन जी मेरे पिता जी को श्रद्धा संदेश भेजते हैं।

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1990 के दशक में अमिताभ बच्चन अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे थे। एक के बाद एक लगातार फ्लॉप फिल्मों और उनकी कंपनी एबीसीएल के डूबने के चलते लगातार आयकर विभाग के नोटिस मिल रहे थे। उस समय केवल 4 करोड़ रुपए न चुकाने के चलते उनके बंगले के बिकने और उनके दिवालिया होने की नौबत तक आ गई थी। तब अमर सिंह ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया और अमिताभ बच्चन को कर्जे से उबारा। फिर यह दोस्ती लंबी चली और बॉलीवुड से लेकर राजनीतिक गलियारों तक में चर्चा का विषय रही।

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जया बच्चन और जया प्रदा को राजनीति में लाने का श्रेय अमर सिंह को ही है। कुछ साल पहले अभिनेत्री बिपाशा बसु और अमर सिंह के बीच रसीली बातों वाली ऑडिया लीक हो गई थी। वैसे अमर सिंह के फिल्म दुनिया में अच्छे कनेक्शन थे।पिछले करीब छह महीने से अमर सिंह का सिंगापुर में  किडनी का इलाज चल रहा था।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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