मुंबई। शिवसेना, संजय राऊत और बृहन्मुंबई महानगर पालिका के लिए मंगलवार ठीक नहीं था। अभिनेत्री कंगना राणावत का दफ़्तर आनन-फानन मेंतोड़ने के लिए तीनों को बॉम्बे हाईकोर्ट की कड़ी फटकार झेलनी पड़ी। बृहन्मुंबई महानगर पालिका की ओर से पैरवी कर रहे वकीलों की हवाइयां तब उड़ने लगी, जब ऊपरी अदालत ने पूछा कि ऐसी भी क्या जल्दी थी, कि कंगना राणावत का दफ़्तर केवल 24 घंटे की नोटिस देने के भीतर आनन-फानन में तोड़ दिया गया? इसके जवाब में बीएमसी की ओर से 2012 का सर्कुलर पेश किया गया, जिसमें कहा गया था कि अगर किसी की जान ख़तरे में हो तो बीएमसी 24 घंटे की नोटिस देकर अवैध निर्माण कार्य तोड़ सकती है।
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इस पर जस्टिस शाहरुख जे कथावाला और जस्टिस आर आई चागला की खंडपीठ ने कड़ा ऐतराज़ जताया और बीएमसी के वकील से पूछा कि कंगना राणावत के ऑफिस में किसकी जान ख़तरे में थी, जो इस सर्कुलर का उपयोग करते हुए उनकी ऑपिस तोड़ दी गई? इस पर वहां मौजूद बीएमसी अफसरों और उनके वकीलों की घिग्घी बंध गई। किसी से कोई जबाव देते नहीं बना। लिहाज़ा, बीएमसी के वकीलों ने कहा कि कंगना के ऑफिस में किसकी जान ख़तरे में थी, इसका जवाब देने के लिए अदालत से मोहलत मांगी।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कंगना की ओर से 2 करोड़ रुपए के हर्जाने की मांग करते हुए दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए इस मामले में शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता संजय राउत और बीएमसी के एच-वेस्ट वॉर्ड के अधिकारी भाग्यवंत लाते को अभियोजित करने यानी पार्टी बनाने की इजाजत दे दी। संजय राउत ने कथित तौर पर कंगना का ऑफिस तोड़ने से पहले ‘उखाड़ के रख दूंगा’ और ऑफिस तोड़ने के बाद ‘उखाड़ दिया’ जैसे वाक्य बोले थे और कंगना ने कहा था कि इन वाक्यों के जरिए उन्हें धमकाने की कोशिश की गई।
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बीएमसी ने 9 सितंबर को कंगना के बांद्रा ऑफिस को हिस्सों को अवैध बताकर पूरी तरह तहस-नहस कर दिया था। हाई कोर्ट में कंगना ने बीएमसी की कार्रवाई को रोकने की मांग की थी, लेकिन यथास्थिति बनाए रखने का फैसला आने से पहले ही उनके ऑफिस में तोड़फोड़ की कार्रवाई कर दी गई। इसलिए कंगना की ओर से उनकी याचिका में संशोधन करके बीएमसी से 2 करोड़ रुपए के मुआवजा की मांग की गई है। इसके बाद बीएमसी ने अपने जवाब में दावा किया कि कंगना की याचिका कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है, इसीलिए अभिनेत्री की याचिका ख़ारिज करके उन पर जुर्माना लगाना चाहिए।
हाई कोर्ट की डिविजन बेंच में सुनवाई के दौरान मंगलवार को बीएमसी के वकीलों ने कहा कि अभिनेत्री ने बीएमसी के हलफनामे के जवाब में जो रिजॉइंडर दिया है, उसका जवाब देने के लिए भी मोहलत दी जाए। खंडपीठ ने उनकी अपील को को बेंच ने स्वीकार कर लिया। कंगना के वकील रिज़वान सिद्दीकी और बीरेंद्र सराफ ने हालांकि बीएमसी के वकीलों द्वारा अतिरिक्त समय मांगे जाने का विरोध किया। सराफ ने कहा कि तोड़फोड़ में शामिल अधिकारियों ने कथित अवैध निर्माण की कुछ और फोटो मंगलवार को कोर्ट में जमा किए हैं, यह केस को लटकाने की रणनीति है।
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कंगना ने अपने रिजॉइन्डर में कहा है कि नोटिस में बीएमसी ने उनके बंगले में चल रहे हुए कथित अवैध निर्माण की एक ही तस्वीर दी थी, जिससे साफ है कि बीएमसी का आरोप झूठा है। संजय राउत द्वारा मौखिक रूप से ‘धमकाने’ के सबूत जो कंगना ने कोर्ट में जमा किए थे, उसकी ओर इशारा करते हुए जस्टिस कथावाला ने पूछा कि क्या वह शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता को भी अभियोजित करना चाहती हैं? इस पर कंगना की ओर से सहमति दे दी गई। अब संजय राऊत को भी कोर्ट में पेश होकर अपनी धमकील पर स्पष्टीकरण देना होगा।
इसके बाद कोर्ट ने बीएमसी अधिकारी भाग्यनवंत लाते को भी प्रतिवादी बनाने की इजाजत दे दी, जिन्होंने बीएमसी की तरफ से हलफनामा दाखिल किया था। कोर्ट ने बीएमसी से यह भी पूछा कि तोड़फोड़ के लिए वर्ष 2012 का सर्कुलर लागू करने की जरूरत क्यों पड़ी। इस सर्कुलर के मुताबिक, 24 घंटे में किसी अवैध निर्माण में तोड़फोड़ तभी की जा सकती है, जब इसमें रहने वाले या किसी अन्य की जिंदगी खतरे में हो। हाई कोर्ट ने पूछा कि इस मामले में किसकी जिंदगी खतरे में थी, जो 8 सितंबर को नोटिस भेजने के बाद बीएमसी के अधिकारियों ने 9 सितबंर को तोड़फोड़ की कार्रवाई कर दी।
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीएमसी से यह भी पूछा कि डिजायनर मनीष मल्होत्रा को भी उसी दिन मुंबई नगरपालिका कानून के 354(ए) के तहत नोटिस भेजा गया था। उनको सात दिन का समय और कंगना को केवल 24 घंटे का समय क्यों दिया गया। कंगना की ओर से भी कहा गया कि मनीष मल्होत्रा को जवाब देने के लिए सात दिनों की मोहलत दी गई, जबकि उनके साथ ऐसा नहीं हुआ। जो यह साबित करता है कि बीएमसी की कार्रवाई दुर्भावना से ग्रसित थी। बहरहाल यह मामला शिवसेना, संजय राऊत और बीएमसी तीनों के लिए गले की फांस बन गया है।
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