चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ने उइगर मुस्लिम (Uyghur Muslim) आबादी पर अंकुश लगाने के लिए बेहद आक्रामक रुख अपनाया है। चीन ने मुस्लिमों की आबादी को कंट्रोल में रखने के लिए चीन के पश्चिमी प्रांत शिनजियांग में बड़े पैमाने पर एक अभियान चलाया हुआ जिसके तहत उइगर समुदाय के पुरुषों-महिलाओं की जबरदस्ती नसबंदी और गर्भपात किया जा रहा है। गौरतलब है कि देश भर में जहां आईयूडी के इस्तेमाल और नसबंदी में गिरावट आई है वहीं शिनजियांग में ये तेजी से बढ़ रहे हैं। इसकी वजह वहां की बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने की कोशिश है। चचीन पर नज़र रखने वाले कुछ जानकार इसे “जनसांख्यिकी नरसंहार” का नाम भी दे रहे हैं। चीनी सरकार मानती रही है कि मुसलमानों की बढ़ती आबादी गरीबी और कट्टरपंथ बढ़ावा देती है। हालांकि चीनी सरकार ने जबरन नसबंदी और गर्भपात की मीडिया रिपोर्ट को ग़लत क़रार दिया है।
दुनिया में किसी कोने में मुसलमानों पर ज़ुल्म होता है तो आम मुसलमान इस्लाम के भाईचारे का हवाला देते हुए पीड़ितों के समर्थन में उठ खड़ा हो जाता है, लेकिन चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों पर हो रहे ज़ुल्म के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ नहीं उठा रहा है। 2012 में जब रोहिंग्या मुसलमानों को कथित तौर पर म्यानमार से निकाला जाने लगा तो उनके समर्थन में मुंबई के आज़ाद मैदान में मुसलमानों ने भारी उपद्रव किया था। हिंसा की होली खेली और पुलिस बल पर पथराव किया गया था। बहरहाल, मुंबई पुलिस के अत्यधिक संयम के चलते उस समय भारी मारकाट होने से बच गया। इसी तरह भारत में फलिस्तीन के मुसलमानों का इतना अंध समर्थन किया जाता है कि आम मुसलमान इज़राइल को अपना दुश्मन नंबर एक मानता है। मुसलमानों की नाराज़गी के डर से ही इज़राइल जैसे विकसित और समान विचारधारा वाले देश के साथ रिश्ते को बेहतर बनाने में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकारों ने कभी दिलचस्पी ही नहीं ली।
इसे भी पढ़ें – इज़राइल से क्यों नफ़रत करते हैं मुस्लिम ?
शिनजियांग में उइगर मुसलमानों पर ज़ुल्म होने की ख़बरें अक्सर आती रहती हैं। वहां मस्जिदों पर बुलडोजर चलवाया जाता है। उइगरों की धार्मिक स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगा है। मेलबोर्न आस्ट्रेलिया के ला-त्रोबे यूनिवर्सिटी के जातीय समुदाय और नीति के विशेषज्ञ रिसर्चर जेम्स लीबोल्ड कहते हैं, “चीन की सत्ताधारी चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी इस्लाम को ख़तरा मानती है। लंबे समय से चीन सरकार अपने समाज को सेक्यूलर बनाने की कोशिक कर रही है। इसीलिए उइगरों पर अत्याचार किया जा रहा है।” पिछले साल गर्मियों में रमज़ान महीने में ही शिंजियांग के होतन शहर की सबसे प्रमुख हेयितका मस्जिद को ढहा दिया गया। लिहाज़ा, जब रमज़ान में दुनिया के कोने-कोने में मुसलमान ख़ुशी से ईद मना रहे थे, तब दर्जनों मस्जिद गिराए जाने से शिनजियांग के मुस्लिम बस्तियों में सन्नाटा पसरा था, क्योंकि ऊंची गुंबददार मस्जिद की निशानी मिटने से बस्ती वीरान थी। वहां सुरक्षाकर्मियों की भारी मौजूदगी थी। 2014 में शिंजियांग सरकार ने रमज़ान में मुस्लिम कर्मचारियों के रोज़ा रखने और मुस्लिम नागरिकों के दाढ़ी बढ़ाने पर पाबंदी लगा दी थी। अंतरराष्ट्रीय मीडिया के मुताबिक 2014 में ही सख़्त आदेशों के बाद यहां की कई मस्जिदें और मदरसे ढहा दिए गए। 2017 के बाद से अकेले शिनजियांग में 36 मस्जिदें गिराई जा चुकी हैं। हालांकि शिनजियांग सरकार ने कहा कि वह धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करती है और नागरिक कानून की सीमा के दायरे में रहते हुए रमज़ान मना सकते हैं।
भारत में भी रोहिंग्या के लिए हथियार उठाने की बात करने वाले तमाम मुसलमान उइगरों के मुद्दे पर चुप हैं। किसी कोने से उइगरों पर ज़ुल्म के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ नहीं उठा रहा है। कश्मीर मुद्दे पर दुनिया के मुसलमानों से सहयोग की अपील करने वाले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भी शिनजियांग के एक करोड़ से ज़्यादा मुसलमानों की दुर्दशा पर ख़ामोश हैं। उइगर मुद्दे पर चीन को घेरने की जगह नरेंद्र मोदी सरकार ने इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस का हवाला देकर अप्रैल 2016 में वर्ल्ड उइगर कांग्रेस की एग्ज़ीक्यूटिव कमेटी के चेयरमैन डोल्कन ईसा का ई-वीज़ा रद्द कर दिया था। जर्मनी निवासी ईसा धर्मशाला में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से मिलना चाहते थे। हैरानी वाली बात है कि उसी समय चीन जैश-ए-मोहम्मद सरगना मौलाना अज़हर मसूद को आतंकी घोषित कराने के प्रस्ताव का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बार-बार विरोध कर रहा था। इतना ही नहीं, हाल ही में चीन ने कश्मीर मुद्दा भी सुरक्षा परिषद में उठाया, पर प्रस्ताव गिर गया।
इसे भी पढ़ें – शव में तब्दील होती भारत की जनता
दरअसल, शिनजियांग के उइगर मुसलमान पिछले कई दशक से ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ चला रहे हैं। वे चीन से अलग होना चाहते हैं। 1990 में सोवियत संघ के विघटन के समय भी शिनजियांग की आज़ादी के लिए उइगर मुसलमानों ने संघर्ष किया था। उइगर आंदोलन को मध्य-एशिया में कई मुस्लिम देशों का समर्थन भी मिला था, लेकिन चीन के कड़े रुख के आगे किसी की न चली और आंदोलन को सैन्य बल से दबा दिया गया। ‘पूर्व तुर्किस्तान गणतंत्र’ नामक राष्ट्र की पिछली सदी में दो बार स्थापना हो चुकी है। पहली बार 1933-34 में काश्गर शहर में केंद्रित था और दूसरी बार 1944-49 में सोवियत संघ की सहायता से पूर्वी तुर्किस्तान गणतंत्र बना था। 1949 से इस क्षेत्र पर चीन का नियंत्रण है। चीन ‘पूर्वी तुर्किस्तान’ नाम का ही विरोध करता है। वह इसे शिनजियांग प्रांत कहता है। इसकी सीमा मंगोलिया और रूस सहित आठ देशों के साथ मिलती है। यहां की अर्थव्यवस्था सदियों से खेती और व्यापार पर केंद्रित रही है। ऐतिहासिक सिल्क रूट की वजह से यहां संपन्नता और ख़ुशहाली रही है।
शिनजियांग में पहले उइगर मुसलमानों का बहुमत था। लेकिन एक रणनीति के तहत चीन ने वफ़ादार रहे बहुसंख्यक नस्लीय समूह हान समुदाय के लोगों को यहां बसाना शुरू किया। पिछले कई साल से इस क्षेत्र में हान चीनियों की संख्या में बहुत अधिक इज़ाफ़ा हुआ। वामपंथी चीनी सरकार ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ को दबाने के लिए हान चीनियों को यहां भेज रही है। उइगरों का आरोप है कि चीन सरकार भेदभावपूर्ण नीतियां अपना रही है। वहां रहने वाले हान चीनियों को मजबूत करने के लिए सरकार हर संभव मदद दे रही है। सरकारी नौकरियों में उन्हें ऊंचे पदों पर बिठाया जा रहा है। उइगुरों को दोयम दर्जे की नौकरियां दी जा रही हैं। दरअसल, सामरिक दृष्टि से शिनजियांग बेहद महत्वपूर्ण है और चीन ऐसे में ऊंचे पदों पर बाग़ी उइगरों को बिठाकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। इसीलिए हान लोगों को नौकरियों में ऊंचे पदों पर बैठाया जा रहा है।
इसे भी पढ़ें – रोहिंग्या मुसलमान सहानुभूति के कितने हक़दार?
उइगर दरअसल अल्पसंख्यक तुर्क जातीय समूह हैं जो सभ्यता के विकास के बाद मध्य-पूर्व एशिया से आकर पूर्वी तुर्की में बस गया। आज भी ये लोग सांस्कृतिक रूप से मध्य-पूर्व एशिया से जुड़े हैं। इस्लाम के वहां पहुंचने पर ये लोग इस्लाम के अनुयायी हो गए। मध्य एशिया के इस ऐतिहासिक इलाक़े को कभी पूर्वी तुर्किस्तान कहा जाता था, जिसमें ऐतिहासिक तारिम द्रोणी और उइग़र लोगों की पारंपरिक मातृभूमि सम्मिलित हैं। इसका मध्य एशिया के उज़बेकिस्तान, किर्गिज़स्तान और कज़ाख़िस्तान जैसे तुर्क देशों से गहरा धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध रहा है। उइगर आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त चीन के 55 जातीय अल्पसंख्यकों में से एक माना जाता है। साल 2018 अगस्त में संयुक्त राष्ट्र की एक कमेटी को बताया गया था कि शिनजियांग में क़रीब दस लाख मुसलमान हिरासत में रखे गए हैं। हालांकि चीन सरकार ने पहले इन ख़बरों का खंडन किया था, लेकिन इस दौरान शिनजियांग में लोगों पर निगरानी के कई सबूत सामने आए थे। तब पिछले साल चीनी प्रशासन ने माना कि तुर्कभाषी व्यावसायिक शिक्षा केंद्र चला रहे हैं, जिसका मकसद है कि लोग चीनी कानूनों से वाकिफ होकर धार्मिक चरमपंथ का रास्ता त्याग दें।
चीन के पक्षपाती रुख के चलते इस क्षेत्र में हान चीनियों और उइगरों के बीच अक्सर संघर्ष की ख़बरें आती हैं। हिंसा का सिलसिला 2008 से शुरू हुआ। इसके बाद से इस प्रांत में लगातार हिंसक झड़पें होती रही हैं। 2008 में शिनजियांग की राजधानी उरुमची में हिंसा में 200 लोग मारे गए जिनमें अधिकांश हान चीनी थे। अगले साल 2009 में उरुमची में दंगे हुए जिनमें 156 उइगर मुस्लिम मारे गए। इस दंगे की तुर्की ने कड़ी निंदा करते हुए इसे ‘बड़ा नरसंहार’ कहा था। 2012 में छह लोगों को हाटन से उरुमची जा रहे विमान को हाइजैक करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए। चीन ने इसमें उइगर मुसलमानों का हाथ बताया था। 2013 में प्रदर्शन कर रहे उइगरों पर पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें 27 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी। अधिकृत चीनी मीडिया ने तब कहा था कि प्रदर्शनकारियों के पास घातक हथियार थे जिससे पुलिस को गोलियां चलानी पड़ीं। अक्टूबर 2016 में बीजिंग में एक कार बम धमाके में पांच लोग मारे गए जिसका आरोप उइगरों पर लगा। उइगरों पर हिंसा की घटनाएं अक्सर होती हैं, लेकिन ऐसी घटनाओं को चीनी सरकार दबा देती है। यहां मीडिया पर पाबंदी होने के कारण ख़बरें नहीं आ पाती हैं।
इसे भी पढ़ें – क्या महात्मा गांधी को सचमुच सेक्स की बुरी लत थी?
मिस्र में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सुन्नी मुस्लिम शैक्षिक संस्थान अल अजहर में इस्लामिक धर्मशास्त्र का अध्ययन कर रहे उइगर छात्र अब्दुल मलिक अब्दुल अजीज का आरोप है कि एक दिन अचानक मिस्र पुलिस ने उस बिना किसी वजह के गिरफ्तार कर उसकी आंख पर पट्टी बांध दी गई। जब पुलिस ने पट्टी हटाई गई तो वह यह देखकर सकते में पड़ गया कि वह एक पुलिस स्टेशन में है और चीनी अधिकारी उससे पूछताछ कर रहे हैं। उसे दिन-दहाड़े उसके दोस्तों के साथ उठाया गया और काहिरा के एक पुलिस स्टेशन में ले जाया गया, जहां चीनी अधिकारियों ने उससे पूछा कि वह मिस्र में क्या कर रहा है। तीनों अधिकारियों ने उससे चीनी भाषा में बात की और उसे चीनी नाम से संबोधित किया ना कि उइगर नाम से। अब्दुल ने कहा कि चीन में उइगर मुसलमानों पर अत्याचारों की बात किसी से छिपी नहीं है और अब दूसरे देशों में रह रहे उइगरों पर नकेल कसा जा रहा है। दरअसल, पाकिस्तान की तरह मिस्र में भी चीन बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है, इसीलिए वहां भी उइगरों पर नकेल कसी जा रही है।
चीन का कहना है कि उसे उइगर अलगाववादी इस्लामी गुटों से ख़तरा है, क्योंकि कुछ उइगर लोगों ने इस्लामिक स्टेट समूह के साथ हथियार उठा लिए हैं। चीन इसके लिए उइगर संगठन ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ को दोषी मानता है। उसके अनुसार विदशों में बैठे उइगर नेता शिनजियांग में हिंसा करवाते हैं। चीन ने सीधे तौर पर हिंसा के लिए वरिष्ठ उइगर नेता इलहम टोहती और डोल्कन ईसा को जिम्मेदार ठहराता है। ईसा चीन की ‘मोस्ट वांटेड’ की सूची में है। इन्हीं मामलों को लेकर चीन में कई उइगर नेता जेल में हैं। उइगर समुदाय के अर्थशास्त्री इलहम टोहती 2014 से चीन में जेल में बंद हैं। वहीं, उइगर संगठन चीन के आरोपों को गलत और मनगढ़ंत बताते हैं। उधर अमेरिका भी ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ को उइगरों का अलगाववादी समूह मानता है, लेकिन वाशिंगटन का यह भी कहना है कि इस संगठन की आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने की न तो क्षमता है और न ही हैसियत। ऐसे समय जब पूरी दुनिया चीन के ख़िलाफ़ लामबंद हो रही है, तब चीन में उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न का भी मामला उठाया जाना चहिए। ताकि इस विस्तारवादी देश को बैकफुट पर लाया जा सके।
लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा
Share this content: