मोटापा : गलत लाइफस्टाइल का नतीजा

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मॉडर्न लाइफ़स्टाइल और भागदौड़ भरी ज़िंदगी में हर इंसान कम समय में सब कुछ हासिल कर लेना चाहता है। इस सब हासिल करने के कुछ के चक्कर में वह अपनी सेहत से समझौता करने लगता है, जिससे उसके खानपान का समय अनियमित हो जाता है। इसका नतीजा मोटापे यानी ओबेसिटी के रूप में सामने आता है। मोटापा दरअसल, सिर्फ़ एक बीमारी ही नहीं है, बल्कि कई गंभीर बीमारियों के लिए ज़मीन तैयार करता है। इस लेख में जानते हैं, मोटापे की वजह और उसे दूर करने के सरल उपाय।

मोटापा (Obesity) एक ऐसी समस्या है जो धीरे-धीरे दुनिया की बहुत बड़ी आबादी को अपनी चंगुल में लेता जा रहा है। मोटापा अपने साथ कई गंभीर बीमारियों को भी लेकर आता है। डायबिटीज़, हाई ब्लडप्रेशर, सांस लेने में तकलीफ़ और अर्थराइटिस जैसे रोग आते हैं। मोटापे से परेशान मरीज़ में तेजस्विता की कमी, मानसिक एवं शारीरिक सुस्ती और डिप्रेशन के लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं। वस्तुतः मोटापा और फिटनेस के बीच का फ़ासला कम होता है। अनियमित खानपान और लापरवाह दिनचर्या से फ़ासले के ख़त्म होते देर नहीं लगती। अगर सही समय पर ध्यान न दिया जाए तो मोटापा किसी बड़ी बीमारी का रूप ले सकता है। अधिक वजन बढ़ने के बाद इससे मुक्ति पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।

शरीर में फैट बढ़ जाना
मोटापा शरीर में फैट यानी चर्बी की मात्रा ज़रूरत से बहुत ज़्यादा बढ़ने की एक अवस्था है। जब शरीर में फैट यानी चर्बी की मात्रा इतनी ज़्यादा बढ़ जाए कि उसका असर शरीर का दूसरी गतिविधियों पर पड़ने लगे, तब उसे अवस्था को मोटापा कहते हैं। दुनियाभर में मोटापा एक गंभीर बीमारी के रूप में सामने आ रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं। वस्तुतः जो लोग काम ख़ूब करते हैं यानी पसीना बहाते हैं, उनके शरीर में फैट जमा नहीं होता, लेकिन जो लोग पसीना बहने वाला काम बहुत कम करते हैं, उनके शरीर में फैट जमा होने लगता है। मोटापे से काम करने की क्षमता घट जाती है।

ओवरइटिंग प्रमुख कारण
मोटापे का सबसे प्रमुख कारण ओवरइटिंग यानी ज़्यादा मात्रा में भोजन करना है। लेकिन समस्या केवल अधिक मात्रा में भोजन करने की नहीं है बल्कि गलत तरीके से भोजन करने की भी है। अधिक मात्रा में फैट, मसाले, शुगर, मिठाइयां और प्रसंस्कृत यानी प्रॉसेस्ड आहार से शरीर का वज़न बढ़ने लगता है। जबकि ऐसा आहार जिसमें अनाज, फल एवं सब्ज़ियों की बहुलता हो, व्यक्ति के शरीर के भार को संतुलित रखता है और सर्वोत्तम स्वास्थ्य भी प्रदान करता है।

फिज़िकल गतिविधियां घटना
दरअसल, जब फिज़िकल गतिविधियां कम हो जाती है, परंतु भोजन की मात्रा उतनी बनी रहती है, तब शरीर में जगह-जगह फैट जमा होने लगता है। ज़्यादा फैट जमा होने से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन अवरुद्ध होने लगता है, इससे शरीर के हर हिस्से को ज़रूरी रक्त या ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। इससे अनेक बीमारियों शरीर में घर करने लगती हैं जो अंततः शरीर की उम्र को ही कम कर दती हैं।

दुनिया भर में मोटापा
कई एजेंसियों की ओर से नियमित तौर पर कराए जा रहे सर्वेक्षणों में कहा गया है कि मोटापा के केसेज़ पूरी दुनिया भर में बढ़ रहे हैं। यह चर्बी भविष्य में शरीर को ऐसा बना देगी कि कभी तंदुरुस्त नहीं हो पाएगा। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि के मुताबिक़, मोटापे की बीमारी सिर्फ़ विकसित देशों में ही न होकर विकासशील देशों में भी गंभीर समस्या का रूप ले चुकी है। 21वीं सदी में भारत में मोटापा बहुत सीरियत बीमारी के रूप में उभरा है। पिछले 15 साल में इस बीमारी ने तीन गुना लोगों को अपने चंगुल में फंसाया है। कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिकी, थाइलैंड, ईरान, नाइजीरिया और ब्राजील जैसे देश में भी मोटापा विकराल समस्या बनकर उभरा है। इन मुल्कों में 50 फ़ीसदी वयस्क और 20 फ़ीसदी बच्चे मोटापे से पीड़ित हैं।

मेट्रोपोलिस कल्चर ज़िम्मेदार
हाल ही में हुए सर्वे के मुताबिक़, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई और देश के दूसरे बड़े शहरो में लोग ओवरवेट रहते हैं। ओबेसिटी एक्पर्ट डॉ। मंजिरी पुराणिक के मुताबिक़ बदलती जीवन शैली और खानपान की ग़लत आदतों के कारण बचपन एवं किशोरावस्था में लोग मेटाबोलिक सिंड्रोम में शिकार हो रहे हैं। मोटापे के संबंध में टीवी तथा कंप्यूटर की भी अहम् भूमिका होती है। शोधकार्य बताते हैं कि रोज़ाना पांच घंटे या उससे अधिक समय टीवी या कंप्यूटर के सामने व्यतीत करने वाले किशोरों या बच्चों को मोटापे का ख़तरा बहुत अधिक होता है।

दो तरह के मोटापे

जेनेटिक वजह
जन्मजात मोटापे की वजह फैमिली हिस्ट्री, जेनेटिक गड़बड़ियां या कोई हॉर्मोनल बीमारी हो सकती हैं। अगर माता या पिता मोटापे के शिकार हैं तो ज़्यादातर संभावना रहती है कि बच्चा भी मोटापे का शिकार हो जाता है।

जीवनशैली वजह
किशोरावस्था में मोटापा लाइफस्टाइल के चलते लोग मोटापे के शिकार हो जाते हैं। दरअसल, जब बच्चे घर का खाना कम और जंक फूड ज़्यादा खाने लगते हैं और फिज़िकल एक्टिविटीज़ नहीं के बराबर होना भी इसकी बड़ी वजहें हैं।

मोटापे के लक्षण

मोटापे के शिकार लोग मोटे दिखने लगते हैं। उनकी तोंद निकलने लगती है। ज़्यादा खाने के बावजूद थकान और कमज़ोरी की शिकायत करते हैं। सोते समय खर्राटे लेते हैं और उसे क़ब्ज़ की भी शिकायत होने लगती है। नींद कम आती है, उसे ब्लडप्रेशर और डायबिटीज़ की आशंका बन जाती है। लड़कियों में पॉलिसिस्टिक ओवेरियन डिसीज़ हो सकता है। पीरियड्स में गड़बड़ी हो जाती है। चेहरे पर बाल उगने जैसी समस्याएं आ जाती हैं।

मोटापे से बीमारियां

मोटापे से शरीर में कई तरह के डिसऑर्डर होने की आशंका रहती है। मसलन – आत्मविश्वास में कमी, चिंता, डिप्रेशन, ईटिंग डिसऑर्डर और अकेलापन बढ़ता है। बड़ी तादाद में माटापे के शिकार लोग डायबिटीज़ टाइप 2, पॉलिसिस्टिक ओवरी और हाइपोगोनैडिस्म जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। कई बार तो कार्डियोवैस्कुलर समस्या भी होती है। इससे हाइपरटेंशन, हार्ट डिज़ीस और स्ट्रोक का जोख़िम हो जाता है। कई लोग रेस्पिरेटरी के भी शिकार हो जाते हैं, इससे उनमें नींद में खर्राटे, स्लीप एपेनिया और अस्थमा जैसी बीमारियां घर कर लेती हैं। मोटे लोगों में गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल की भी आशंका रहती है, जो गाल स्टोन, क़ब्ज़, लिवर पर फैट्स जमने जैसी जटिलता पैदा करती हैं। मोटापे के चलते मस्कुलर प्रॉब्लम भी देखा गया, जिससे जोड़ों में दर्द, बैकपेन, फ्रैक्चर और फ्लैट फीट की आशंका होती है।

प्रजनन क्षमता पर असर

शोधों से पता चला है कि महिलाओं में मोटापा प्रजनन क्षमता प्रभावित करता है। इससे गर्भधारण में तो परेशानियां पेश आती ही हैं, गर्भस्थ शिशु के विकास में भी बाधा पहुंचती है। ऑस्टेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड की प्रोफेसर रिबेका रॉबकर ने कहा कि स्टडी के नतीजों से पता चला है कि फैटी महिलाओं के लिए भी प्रजनन क्षमता और गर्भधारण की संभावनाओं को सामान्य बनाने के लिए भविष्य में इलाज ढूंढ़ा जा सकता है। साथ ही मोटापे से होने वाले नुकसान को पीढ़ी दर पीढ़ी आनुवांशिक रूप से बच्चों में स्थानांतरित होने से भी रोका जा सकता है।

रॉबकर ने कहा कि स्टडी में हमें एक ऐसी प्रक्रिया के बारे में पता चला, जिससे मोटापे का नुकसान मां से बच्चे में स्थानांतरित होता है। मानव शरीर में सभी माइट्रोकॉड्रिया मां के शरीर से ही प्राप्त होते हैं। ऐसे में मां अगर फैटी है, तो खिंचाव उत्पन्न होता है, जिससे माइट्रोकॉड्रिया का संचरण अवरुद्ध होता है। रॉबकर ने कहा कि जब हमने माइट्रोकॉड्रिया के संचरण प्रक्रिया में ऊतकों में उत्पन्न खिंचाव का पता लगाया, तो खिंचाव को कम करने वाले कंपाउंड का इस्तेमाल किया। ये कंपाउंड डायबिटीज़ की बीमारी के इलाज में भी सक्षम पाए गए हैं। ये कंपाउंड टिश्यूज़ के खिंचाव को कम करने में कारगर हैं और इसके इस्तेमाल से मोटापे के नुकसान को मां से बच्चे में स्थानांतरित होने से रोका जा सकता है।

गर्भावस्था में सावधानी

दरअसल, प्लोस मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च में पता चला है कि जिन महिलाओं का वज़न प्रेग्नेंट होने के बाद अचानक बढ़ने लगता है, उनमें मोटे बच्चे पैदा करने का जोख़िम ज़्यादा रहता है। जिन महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान शुगर होती है, उनके बच्चों के मोटा होने के चांस ज्यादा होते हैं। जो बच्चे बचपन में मोटे होते हैं, उनमें से 70-80 फ़ीसदी तक के आगे जाकर भी ओवरवेट या मोटे होने की आशंका ज़्यादा होती है। प्रेग्नेंसी दौरान ज़्यादा चिकनाई वाला आहार बच्चों के विकसित होते मस्तिष्क में बदलाव ला सकता है और यह बाद में मोटापे की संभावनाएं बढ़ाता है। स्वस्थ और संतुलित भोजन लें और यह भी ध्यान रखें कि बच्चे का भोजन भी संतुलित हो।

‘लव हार्मोन’ घटाए मोटापा

जब कभी भी कोई पुरुष किसी महिला को किस करता है या उसे बांहों में भर लेता है, तब उसके शरीर में ऑक्सीटोसिन हार्मोन का रिसाव होता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि सेक्स और सेक्स के चरम आनंद की अवस्था में और भी ज्यादा ऑक्सीटोसिन निकलता है। लव हार्मोन कहे जाने वाले इस ऑक्सीटोसिन का असर मेटाबोलिज्म पर पड़ता है। एक स्टडी से पता चला है कि इससे पुरुषों में मोटापा दूर करने में मदद मिलती है। दरअसल, यह कैलोरी और भूख को कम करता है और भूख को नियंत्रित करने वाले हारमोन के स्तर को भी काबू में रखता है। सेक्स के दौरान महिलाओं के मुकाबले में पुरुष न सिर्फ अधिक कैलोरी बर्न करते हैं बल्कि इस प्रक्रिया में निकलने वाले ऑक्सीटोसिन की वजह से पुरुषों को अपने वजन पर काबू पाने में भी मदद मिलती है।

मोटापा कम करे लेप्रोस्कोपी

अनियमित खानपान और तनावभरी जिंदगी से लोगों में मोटापा बढ़ता जा रहा है। इन मोटे लोगों को पतला करने के लिए लेप्रोस्कोपी सर्जरी संजीवनी साबित हुई है। इसमें बड़े-बड़े चीरे नहीं लगाए जाते, बल्कि एक छोटे छेद से ही पूरी सर्जरी की जाती है। मरीज के लिए भी यह सर्जरी फायदेमंद है, क्योंकि उसकी रिकवरी जल्दी होती है। मरीज के लिए लेप्रोस्कोपिक सर्जरी वरदान है। इस चिकित्सा पद्धति के माध्यम से मरीजों को तत्काल राहत दी जा सकती है, बशर्ते उपचार अनुभवी हाथों से हो। इसके लिए अनुभवी डॉक्टर का होना बहुत आवश्यक है। लेप्रोस्कोपिक सर्जरी से तिल्ली निकाला जाता है। लेप्रोस्कोपी सर्जरी से मात्र 48 घंटे में मरीज ठीक हो जाता है, जबकि पुराने तरीके से ऑपरेशन करने पर मरीज को ठीक होने में कम से कम 15 दिन का समय लगता है। इस तरीके से किए गए ऑपरेशन में रोगी को कोई तकलीफ भी नहीं होती। रोगी को पूर्णत: बेहोश भी नहीं किया जाता है, बल्कि लोकल एनेस्थीसिया देकर सारा काम कर दिया जाता है।