भारत का इजराइल से संबंध ढाई हजार साल पुराना

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हरिगोविंद विश्वकर्मा
अकसर देखा जाता है कि इज़राइल का नाम आते ही मुस्लिम समाज के लोग आक्रामक हो जाते हैं। इज़राइल और वहां के नेताओं का विरोध उनका एकमात्र एजेंडा रहता है। ज़ाहिर है, सेक्यूलरिज़्म का राग आलापने वाले ख़ान्स में कहीं न कहीं वही मुस्लिम मानसिकता है, जिसके तहत यह समाज इज़राइल, नरेंद्र मोदी या राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ का विरोध करता है। इसी तरह का विरोध वे बालासाहेब ठाकरे का भी करते थे। इज़राइली मेहमान का सबने स्वागत किया, लेकिन मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया।

असुरक्षा ने इज़राइल को बनाया आक्रामक
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 29 नवंबर 1949 को संयुक्त राष्ट्रसंघ ने फ़लीस्‍तीन के विभाजन को मान्यता दी, और एक अरब और 20,770 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में एक यहूदी देश बना। इस क़रार को यहूदियों ने तुरंत मान लिया, लेकिन अरब समुदाय ने विरोध किया। 14 मई 1948 को यहूदी समुदाय ने इज़राइल को राष्ट्र घोषित कर दिया। उसी समय सीरिया, लीबिया, सउदी अरब, मिस्र, यमन और इराक ने इज़राइल पर हमला कर दिया। 1949 में युद्धविराम की घोषणा हुई। जोर्डन और इज़राइल के बीच ‘ग्रीन लाइन’ नाम की सीमा रेखा बनी। 11 मई 1949 को राष्ट्रसंघ ने इजराइल को मान्यता दे दी। तभी से इज़राइल बहादुरी से मुस्लिम देशों का मुक़ाबला कर रहा है। उसने अरब देशों के नाको चने चबवा दिए। 5 जून 1967 को इज़राइल ने अकेले मिस्र, जोर्डन, सीरिया और इराक के ख़िलाफ़ युद्ध घोषित कर दिया और महज छह दिनों में ही उन्हें पराजित करके क्षेत्र में अपनी सैनिक प्रभुसत्ता कायम कर ली। तभी से अरब – इज़राइल युद्ध चल रहा है और मुसलमान लोग इज़राइल से नफ़रत करते हैं।

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दुनिया का सबसे अल्पसंख्यक समुदाय
यह सच है कि यहूदी दुनिया का सबसे अल्पसंख्यक समुदाय है। विश्व में इनकी आबादी डेढ करोड़ भी नहीं है। 14 मई 1948 से पहले इनका कोई देश भी नहीं था, जबकि ये लोग दुनिया भर में फैले हुए थे। यहूदियों से मुसलमान ही नहीं, ईसाई भी नफ़रत करते थे। शेक्सपीयर के नाटकों में तो अमूमन यहूदी ही विलेन होते हैं। इससे पता चलता है कि यहूदियों के साथ कितना अन्याय किया गया। इस बहादुर कौम से भारत का रिश्ता महाभारत काल से है। यहूदी धर्म क़रीब 3000 वर्ष ईसा पूर्व अस्तित्व में आया। यहूदियों का राजा सोलोमन का व्‍यापारी जहाज कारोबार करने यहां आया। आतिथ्य प्रिय हिंदू राजा ने यहूदी नेता जोसेफ रब्‍बन को उपाधि प्रदान की। यहूदी कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्य में बस गए। विद्वानों के अनुसार 586 ईसा पूर्व में जूडिया की बेबीलोन विजय के बाद कुछ यहूदी सर्वप्रथम क्रेंगनोर में बसे। कहने का मतलब भारत में यूहदियों के आने और बसने का इतिहास बहुत पुराना है। वह भी तब से है, जब ईसाई और इस्लाम धर्म का जन्म भी नहीं हुआ था।

ढाई हजार साल पुराना संबंध
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इज़राइल यात्रा और बेंजामिन नेतान्याहू की भारत यात्रा से यहूदियों के बारे में आम भारतीयों की जिज्ञासा बढ़ गई, क्योंकि भारत से इज़राइल का ढाई हजार साल पुराना संबंध होने के बावजूद यहां लोग यहूदियों के बारे बहुत कम जानते हैं। भारत में यहूदी 2985 साल पहले से हैं। 973 ईसा पूर्व यहूदी केरल के मालाबार तट पर सबसे पहले आए। दुनिया में जब इन पर अन्याय हो रहा था, तब भारत ने इन्हें आश्रय एवं सम्मान दिया। क़रीब ढाई हज़ार साल पहले ये कारोबारी और शरणा‌र्थियों के रूप में समुद्र के रास्ते भारत आए। भारत में यहूदी हिब्रू और भारतीय भाषाएं बोलते हैं।

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महाराष्ट्र में 2200 साल पुराना इतिहास
महाराष्ट्र में यहूदियों की मौजूदगी क़रीब 2200 साल से है। सर्वप्रथम यहूदी जहाज रास्ता भटक कर अलीबाग के नवगांव पहुंच गया। जहाज में सवार एक दर्जन से ज़्यादा लोगों ने वहीं आश्रय ले लिया। इसीलिए नवगांव यहूदियों का प्रथम स्थान बन गया। यह भूमि यहूदियों के लिए पवित्र समझी जाती है। इसे ‘जेरूसेलम गेट’ कहते हैं। यहां पर यहूदी पूरी तरह मराठी संस्कृति में घुल मिल गए हैं। इतिहासकार दीपक राव बताते हैं कि अधिकतर भारतीय यहूदी रायगड़ में रहा करते थे और वहीं से देश के दूसरे हिस्सों में गए। बेन इज़राइलियों ने मराठी से नाता जोड़ लिया है और वे यहूदी नववर्ष पर पारंपरिक मिठाई पूरनपोली भी बनाते हैं। रायगड़ के अलावा मुंबई और ठाणे में बड़ी संख्या में यहूदी रहते हैं। ठाणे में उनका 137साल पुराना सिनेगॉग ‘गेट ऑफ हेवन’ है।

मुंबई, ठाणे, अलीबाग में सिनेगॉग
अलीबाग में यहूदियों की एक बस्ती है, जहां 15-16 यहूदी परिवार रहते हैं। इसके अलावा, नवगांव, रोहा, पेण, थल, मुरु और पोयनाड में भी यहूदी बसे हैं। इस क्षेत्र में लगभग 70 यहूदी परिवार हैं। अलीबाग शहर के बीचोंबीच ‘इस्राइल आली’ नाम की एक गली भी है। उनका पवित्र स्थान इंडियन ज्वेयिशहेरिटेज सेंटर यानी मागेन अबोथ सिनेगॉग है। इसका निर्माण 1848 में किया गया। अगर किसी यहूदी परिवार में शादी होती है तो दुल्हा-दुल्हन यहां ज़रूर आते हैं। मकर संक्रांति के दिन यहूदी जेरूसेलम गेट पहुंचे और पवित्र स्थल को नमन किया। मुंबई में क़रीब 4 हजार यहूदी हैं। क़रीब 1800 ठाणे में बस गए हैं। 1796 में सैमुअल स्ट्रीट पर बना ‘गेट ऑफ मर्सी’ मुंबई का सबसे पुराना सिनेगॉग है। बच्चों का नामकरण संस्कार लंबे समय से यहां होता आया है। मस्जिद स्टेशन का नाम भी यहूदी शब्द ‘माशेद’ से बना है जिसका प्रयोग यहूदी के लोग सिनेगॉग के लिए करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में’गेट ऑफ मर्सी’ गैरपारंपरिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हुआ है। यहां रोश हशना और योम किपुर जैसे यहूदी त्योहार मनाए जाते हैं। पारंपरिक वेशभूषा किप्पा पहने लोग प्रार्थना वाली शॉल ओढ़े रहते हैं और धार्मिक किताबों का पाठ करते हैं। पूजा के आख़िर में पवित्र यहूदी किताब साफेर तोरा से कुछ हिस्सों का भी पाठ होता है।

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भारत में कितने यहूदी समुदाय?
भारत में यहूदियों के तीन बड़े संप्रदाय हैं। पहला संप्रदाय बेन इज़राइल है जो महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा है। जब रोमन ने उनका जीना हराम कर दिया, तब ये लोग महाराष्ट्र में आकर बस गए। पत्रकार सिफ्रा सैमुअल लेंटिन ने भारतीय यहूदियों पर लिखी किताब ‘इंडियाज़ जूइश’ हेरिटेज में बेन इज़राइल संप्रदाय के 1749 में भारत आने की बात कही है। दूसरा संप्रदाय बग़दादी यहूदियों का है। इनको मिज़राही यहूदी भी कहते हैं। ये क़रीब 280 साल पहले कोलकाता और मुंबई में बस गए। यह शिक्षित और मेहनतकश तबका जल्द ही धनवान हो गया। ये हिंदी, मराठी और बांग्ला भाषाएं बोलते हैं। तीसरा संप्रदाय चेन्नई के यहूदियों का है। पुर्तगाली मूल वाले मद्रास के परदेसी यहूदी 17वीं सदी में भारत आए। यहां हीरे, कीमती पत्‍थरों और मूंगों का कारोबार करते थे। यूरोप से भी इनके अच्छे संबंध रहे। भारत में एक और संप्रदाय है, जो लोस्ट ट्राइब्स का वंशज है। ब्नेई मेनाश लोग मणिपुर और मिज़ोरम में बसे हैं। उन्होंने यहां का सांस्कृतिक और रीति-रिवाज़ अपना लिया है।

अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा
महाराष्ट्र सरकार ने यहूदियों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दिया है। हालांकि इससे इनकी शिक्षा या रोज़गार के लिए शायद ही कोई लाभ हो, क्योंकि इन मामलों में कभी भी यहूदियों को किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। हां, इतना ज़रूर है कि अल्पसंख्यक दर्जा मिलने से कई नौकरशाही अड़चनें कम हो जाएंगी। इसका फायदा यह होगा कि जनगणना के समय या बच्चों के जन्म या विवाह पंजीकरण के समय अब कोई कर्मचारी उन्हें ‘अन्य’ की श्रेणी में नहीं डाल सकेगा।

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मुंबई के निर्माण में बड़ा योगदान
यहूदियों को शांत, उद्यमी और समाज से जुड़े व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। तेल के धंधे और खेती के बाद यहूदियों ने कारोबार का रुख किया और धीरे-धीरे सेना, सरकारी सेवा, तकनीक और कला के क्षेत्र में भी लोहा मनवाने लगे। ब्रिटिश काल के दस्तावेजों में इन की गिनती यूरोप-निवासी के रूप में की जाती थी। उन्हें प्रशासनिक ढांचे में ऊपरी ओहदा मिलता था। उन्नीसवीं शताब्दी में कारोबारी डेविड सासून और उनके परिजनों ने मुंबई को बेहतर बनाने में अहम योगदान दिया था। सासून खानदान ने भायखला के जीजामाता उद्यान में घंटाघर बनवाने के अलावा काला घोड़ा इलाके में सासून लाइब्रेरी और कोलाबा में सासून बंदरगाह भी बनवाया।

फिल्म जगत में भी दस्तक
यहूदी समुदाय की फिल्म जगत में भी अच्छी-खासी मौजूदगी रही है। मूक फिल्मों के दौर की अदाकारा हेनोक आइसैक साटमकर ने ‘श्री 420’ और ‘पाकीजा’ जैसी फिल्मों में भी यादगार भूमिकाएं की। दरअसल लोग उन्हें नादिरा के नाम से ज़्यादा जानते हैं। ‘बूट पालिश’ (1954) और ‘गोलमाल'(1979) जैसी फिल्मों में यादगार अभिनय करने वाले डेविड अब्राहम चेउलकर भी इसी समुदाय से हैं। मशहूर नृत्यांगना और सेंसर बोर्ड की पूर्व अध्यक्ष लीला सैमसन भी यहूदी ही हैं। वैसे भारत में यहूदी की मौजूदगी 1971 युद्ध के हीरो लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब की चर्चा के बिना अधूरी रहेगी, जिन्होंने 93 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दियाथा।

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‘इजरायल पितृभूमि, भारत मातृभूमि
राल्फी जिराद बड़े गर्व से बताते हैं कि 6 यहूदियों को अब तक पद्मश्री मिल चुका है।। जिराद पत्नी येल के साथ मुंबई के यहूदियों पर शोध को बढ़ावा देने में लगे हैं। पति-पत्नी त्योहारों पर बाहर से आने वाले मेहमानों का नेपियन सी रोड के अपने घर में स्वागत करते हैं। उन्हें यहूदियों से जुड़े स्मारकों की सैर पर भी ले जाते हैं। जिराद कहते हैं, ‘इजरायल हमारी पितृभूमि है, तो भारत हमारी मातृभूमि। वह बताते हैं कि ब्रिटिश काल में भारतीय यहूदियों की आबादी 35 हजार के क़रीब थी। फ़िलहाल दुनिया में भारतीय यहूदी क़रीब दो लाख है, जिनमें से ज़्यादा इजरायल में रहते हैं। इन लोगों ने मराठी में यहूदी कीर्तन गाए हैं। मराठी से इनका इतना लगाव है कि अवीव विश्वविद्यालय में मराठी भाषा पढ़ाई जाती है।

हिंदुत्व और यहूदीवाद
यहूदीवाद आंदोलन यूरोप में 19 वीं सदी में शुरू हुआ। इसका मक़सद यूरोप और दूसरी जगह रहने वाले यहूदियों को ‘अपने देश इज़राइल’ भेजना था, क्योंकि उनका कोई देश नहीं था। पराए देशों में उनके लिए अपनी संस्कृति को महफूज़ रखना मुश्किल था। पिछले चंद सालों से हिंदुत्ववादी और ज़ायनिज़्म यानी यहूदीवाद के बीच सकारात्मक समानताएं खोजने की कोशिशें चल रही हैं। ऑनलाइन मैगज़ीन ‘स्वराज्य’ के कंसल्टिंग एडिटर जयदीप प्रभु कहते हैं, “हिंदू और यहूदी धर्म में तीन मूल समानताएं हैं। पहला, दोनों विचारधारा बेघर रही हैं। वैसे 1948 में यहूदियों को अपना देश मिल गया, लेकिन हिंदुत्व का सियासी मक़सद पूरा नहीं हुआ है, क्योंकि भारत अभी हिंदू राष्ट्र नहीं बना है। दूसरा, दोनों विचारधाराओं का दुश्मन एक है, वह है इस्लाम। हालांकि अपनी लड़ाकू प्रवृत्ति के कारण इस्लाम हर धर्म का दुश्मन बन गया है। और तीसरा, असुरक्षा के एहसास से ग्रस्त दोनों विचारधाराओं ने सियासी लक्ष्य हासिल करने के लिए सांस्कृतिक पुनरुद्धार का सहारा लिया।”

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नरसिंह राव ने बनाया राजनयिक संबंध
वैसे इज़राइल ने हमेशा भारत के साथ दोस्ती की पहल की है, क्योंकि वह अपने को इकलौता यहूदी देश और भारत को इकलौता हिंदू देश। लेकिन कांग्रेस की अल्पसंख्यक-तुष्टीकरण नीति इसमें सबसे बड़ी बाधा रही है। आतंकवादी कौम फ़लीस्‍तीन का समर्थन करने से भारत को कुछ हासिल नहीं हुआ। अभी हाल ही में पाकिस्तान में फ़लीस्‍तीनी राजदूत ने आतंकी मौलाना हाफिज़ सईद के साथ मंच शेयर किया। कहने का मतलब फ़लीस्‍तीन भी उसी मानसिकता की शिकार है, जिसके तहत इस धर्म को मानने वाले लोग 14 साल से जिहाद छेड़े हुए हैं। इसके विपरीत इज़राइल हमारा शुभचिंतक है, लेकिन मुस्लिमों के नाराज़ होने के डर से भारत ने उसके कोई संबंध नहीं रखा। वह तो धन्यवाद कहिए पीवी नरसिंह राव को जिन्होंने 1992 में इज़राइल से राजनयिक संबंध बनाया।

आतंक से लड़ने में सबसे माहिर
इज़राइल सर्जिकल स्ट्राइक में मास्टर है। 1976 में अपहृत विमान को छुड़ाने के लिए इज़राइली कमांडो 4000 किलोमीटर दूर यूगांडा की राजधानी एंतेब्बे एयरपोर्ट में घुस गए। संघर्ष में फ़लीस्‍तीनी आतंकियों और सेना के 37 जवानों को मार डाला और अपने106 सभी यात्रियों को सुरक्षित अपने वतन ले आए। उस ऑपरेशन की अगुवाई करने वाले प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू के बड़े भाई योनातन नेतान्याहू शहीद हो गए थे। एयरइंडिया के विमान आईसी-814 को जब आतंकी कंधार ले गए तब इज़राइल ने कमांडो सहायता की पेशकश की थी, लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण ने भारत को बेड़ियों में जकड़ दिया था और नई दिल्ली ने इज़राइल की मदद से कंधार में हमला करने की बजाय ख़तरनाक आतंकी मौलाना मसूद अज़हर, मुश्ताक अहमद जरगर और अहमद उमर सईद शेख को रिहा कर दिया। बहरहाल, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत अपने नैसर्गिक दोस्त इजराइल के साथ संबंधों को आगे बढ़ा रहा है, यह व्यापक राष्ट्रहित में है। यह मोदी सरकार की विदेश नीति में बहुत बड़ी सफलता भी है।

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