अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत की जांच कर रही सीबीआई की जांच में इस रहस्य की गांठ खुले या न खुले, लेकिन अब यह पूरी तरह से साफ़ हो चुका है कि पहले बड़े ही पेशेवराना ढंग से सुशांत की हत्या की गई, और उसके बाद पोस्टमॉर्टम से लेकर लाश जलाने तक के तमाम कार्य इतने शातिराना और सफ़ाई के साथ किए गए कि अब सच तक पहुंचना लगभग नामुमकिन ही है। इसीलिए केंद्रीय एजेंसी के सामने उनकी मौत की जांच करने में कई मुश्किलात सामने आ रही हैं। फिर भी सीबीआई जी जान से जांच में जुटी हुई है।
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सीबीआई घटना को रिक्रिएट भी कर चुकी है। एजेंसी ने ही बताया कि सुशांत सिंह के बिस्तर के ऊपरी सतह और पंखें के निचले सतह की दूरी 5 फीट 11 इंच है और सुशांत का क़द 5 फीट 10 इंच था। मतलब खड़े होते तो उनके सिर के बाल पंखे को स्पर्श करने लगते। इसका तात्पर्य यह है कि फ़ांसी का फंदा गले में डाल कर पंखे से लटकने के बाद सुशांत ने अपने पांव को तब तक बिस्तर से ऊपर उठाए रखा, जब तक वह मर नहीं गए। आत्महत्या की अनगिनत घटनाओं का विश्लेषण करने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि इतनी कम दूरी में गले में फ़ंदा डालकर लटका तो जा सकता है, लेकिन उससे किसी का मरने की संभावना बिल्कुल नहीं होती है।
सुशांत सिंह ने कथित तौर पर जिस तरीक़े से ख़ुदकुशी की, उस तरीक़े के सफल न होने की वजह समझने के लिए आदमी के जीवन से मोह के दर्शन को समझना पड़ेगा। वस्तुतः इंसानी ज़िंदगी मिलना क़ायनात में सबसे ख़ूबसूरत घटना मानी जाती है। इसलिए हर इंसान को अपना जीवन सबसे प्यारा होता है। मानवीय रिश्ते की चाहे जितनी दुहाई दे लें, परंतु जब ज़िंदगी की बात आती है तो हर आदमी चाहता है कि वह ज़िंदा रहे। इसलिए संकट के समय हर इंसान तमाम रिश्ते भूल जाता है और अपने को बचाने के लिए हाथ पांव मारने लगता है। यानी जब मौत सामने हो तो हर किसी की कोशिश होती है कि किसी तरह वह बच जाए। और, अगर बचना उसने बस में होता है तो वह ख़ुद को बचा लेता है। आप देखे होंगे, जब कोई डूबने लगता है, तो जो उसके पास पहुंचता है, बचने की उम्मीद में वह उसे ही पकड़ लेता है।
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दरअसल, ज़िंदगी से मायूस होकर कोई इंसान बिना सोचे-समझे ख़ुदकुशी का क़दम उठा लेता है, लेकिन मौत सामने दिखने पर इरादा बदल जाता है। लेकिन यदि तब तक मरने का प्रॉसेस शुरू हो चुका होता है और मौत को रोकना मरने वाले के वश में नहीं होता। लिहाज़ा, न चाहते हुए भी उसे मरना ही पड़ता है। इसीलिए ख़ुककुशी के लिए वही तरीक़े सबसे अधिक सफल होते हैं जिनमें जान बचने की गुंजाइश बिल्कुल नहीं होती है। यानी एक बार आत्महत्या का क़दम उठा लेने पर मरने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता। लेकिन ख़ुदकुशी के लिए सुशांत ने जिस तरीक़े का प्रयोग किया उसमें मरने से बचने का विकल्प रहता है। यानी मौत का प्रॉसेस शुरू होने पर जब दम घुटने लगता है तब आदमी अपना इरादा बदल देता है। इसीलिए, ख़ुद की जान लेने का सुशांत का तरीक़ा आज तक सबसे फिसड्डी रहा है और किसी भी व्यक्ति ने ख़ुदकुशी के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया।
दुनिया में फ़ांसी लगाकर जान देने का तरीक़ा चौथे नंबर पर है। यहां यह बताना ज़रूरी है कि इतिहास में आज तक इतनी कम दूरी में किसी भी पुरुष या महिला ने फ़ांसी नहीं लगाई। जहां भी फांसी लगाई गई, वहां मृतक के पैर के नीचे ज़मीन या ठोश धरातल से इतनी दूरी पाई ही गई कि फ़ांसी लगाने के बाद पांव ज़मीन को स्पर्श न कर सके। कहा जा सकता है कि सुशांत सिंह ने अपनी जान लेने के लिए आत्महत्या उस तरीक़े का प्रयोग किया जिसका इतिहास में आज तक किसी भी व्यक्ति ने नहीं किया। इसी बिना पर इस आत्महत्या को हत्या कहना ही सबसे सही होगा।
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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की बेवसाइट पर उपलब्ध जांच एजेंसियों की जांच रिपोर्ट का ग़ौर से अध्ययन करें तो यही निष्कर्ष निकलता है कि सुशांत सिंह के डिप्रेशन में आत्महत्या की थ्यौरी पूरी तरह ग़लत और आधारहीन है। अगर सुशांत ने आत्महत्या नहीं की तो इसका मतलब उनकी सुनियोजित तरीक़े से हत्या की गई। हत्या उन लोगों द्वारा की गई या कराई गई, जिनका रसूख़ मुंबई पुलिस और कूपर अस्पताल के शीर्ष प्रबंधन तक है। सुशांत की हत्या से पहले उसके नौकरों, दोस्तों, घटना से संबंधित बांद्रा पुलिस स्टेशन की पुलिस और पोस्टमॉर्टम करने वाले कूपर अस्पताल के डॉक्टरों को बता दिया गया था कि घटना के बाद उन्हें किस तरह के बयान देने हैं।
सबसे पहले चर्चा नौकरों, पुलिस और डॉक्टर्स की ख़ुदकुशी की थ्यौरी की करते हैं। दरअसल, भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व भर में ख़ुदकुशी के अब तक कुल केवल 10 तरीक़े आजमाए गए। मानव सभ्यता के विकास के बाद जितने लोगों ने मौत को गले लगाया, सभी के सभी लोगों ने अपनी हत्या करने के लिए इन्हीं 10 तरीक़ों का प्रयोग किया। पिछले 57 साल से भारत में भी जिन लोगों ने मौत को गले लगाया, उन्होंने भी इन्हीं दस तरीक़े में से किसी एक का इस्तेमाल किया। वैसे ख़ुद को गोली मारकर अपनी जान देने का तरीक़ा पहले नंबर पर है। दूसरे नंबर पर ड्रग्स, नींद की गोली या अल्कोहल के ओवरडोज़ ले लेना है। ज़हर खा लेना तीसरे नंबर पर है, जबकि फांसी लगाने का तरीक़ा चौथे नंबर पर आता है।
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इसी तरह शरीर में आग लगाकर मरना पांचवें नंबर पर है, जबकि बिल्डिंग से या ट्रेन के आगे कूद जाने का तरीका छठे नंबर पर है। पानी में डूबकर जान दे देना सातवें नंबर पर है, तो चालू कार या ज़हरीली गैस वाले कमरे में बंद कर लेना आठवें नंबर पर है। इसमें कॉर्बन मोनो आक्साइड के कारण प्राण निकल जाते हैं। नौवें नंबर पर बिजली करंट या हाई वोल्टेज का तार छू देने का तरीक़ा है, नस काट लेना या पेट में चाकू भोंपना सबसे निचले पायदान पर है। फिल्मों में आप देखते होंगे कि लोग पेट में चाकू भोंप कर जान दे देते हैं। भारत में इस तरह की केवल दो घटनाएं सामने आई। पहली घटना 11 जनवरी 2000 को अंजू इलियासी और दूसरी घटना 22 जून, 2011 को उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएमओ डॉ योगेंद्र सिंह सचान की जेल में कथित आत्महत्या की थी।
हालांकि दोनों आत्महत्याएं बाद में हत्या साबित हुईं। जनवरी 2000 में क्राइम शो इंडियाज़ मोस्टवांटेड के सुहैब इलियासी ने कहा कि उनकी पत्नी अंजू ने चाकू मारकर आत्महत्या कर ली। पुलिस ने उनकी थ्यौरी मान ली और मामला रफ़ा-दफ़ा कर दिया। कुछ दिन बाद एक समाचार एजेंसी ने रिपोर्ट चलाई कि अंजू ने जिस तरह आत्महत्या की थी, वैसी आत्महत्या की घटना कभी भारत में हुई ही नहीं। 26 जनवरी 2000 को अंजू के माता-पिता ने सुहैब के ख़िलाफ़ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई। पूछताछ में सुहैब फंस गए और गिरफ़्तार हो गए। 2017 में अदालत ने उनको हत्या का दोषी माना और उम्रक़ैद की सज़ा दी, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया। हालांकि उस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इसी तरह न्यायिक जांच में पाया गया कि जून 2011 डॉ योगेंद्र सिंह सचान ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उनकी हत्या की गई।
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कहने का मतलब बिस्तर पर कम दूरी में लटक कर या खुद को चाकू मार कर आत्महत्या करने की कोई घटना अब तक भारत में सामने ही नहीं आई है। ऐसे में अगर सुशांत सिंह की मौत आत्महत्या क़रार दी जाती है, तो इस तरह की आत्महत्या करने की यह पिछले लगभग छह दशक में पहली घटना होगी। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की स्थापना 11 मार्च 1986 को हुई, लेकिन ब्यूरो के पास 1967 से आत्महत्या समेत देश में होने वाले विभिन्न तरह के अपराधों का रिकॉर्ड है। पिछले कुछ साल से भारत में ख़ुदकुशी करने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। 1971 में 43,680 लोगों ने आत्महत्या की थी, तो 1992 में डेटा 80,150 ख़ुदकुशी तक पहुंच गया। 2000 में 1,08,590 लोगों ने मौत को गले लगाया तो, 2005 में 1,13,914 लोगों ने अपने हाथ ही अपनी जान ले ली थी। 2010 में 1,33,956, लोगों ने ख़ुदकुशी की थी, 2016 में आत्महत्या करने वालों की संख्या उछल कर 2,30,314 हो गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित विश्व स्वास्थ्य सांख्यिकी 2019 के अनुसार, 2016 में भारत की आत्महत्या की दर 17.8 आत्महत्या प्रति 1,00,000 लोगों पर थी, जबकि वैश्विक आत्महत्या दर 10.5 है। पिछले कुछ दशक से लाखों लोग मौत को गले लगा चुके हैं, लेकिन किसी ने सुशांत सिंह राजपूत की तरह अपनी हत्या नहीं की, यही इस केस का असली पेंच है।
लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा