हिप-हिप हुर्रे – अब मुंबई पुलिस मुझसे पूछताछ नहीं कर सकेगी!

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हरिगोविंद विश्वकर्मा

मैं पिछले दो महीने से भयानक टेंशन में था। मेरे टेंशन की वजह चीन का कोरोना वाइरस नहीं था। उसे तो मैंने चित कर दिया था। दरअसल, मेरे टेंशन की वजह सुशांत सिंह राजपूत थे। हां, जबसे उनकी रहस्यमय मौत (कृपया सुशांत समर्थक इसे हत्या और शिवसेना समर्थक आत्महत्या पढ़ें) हुई थी, तब से मैं टेंशन में था। यह टेंशन इसलिए भी था, कि पहली ख़बर यही आई कि सुशांत ने सुसाइड कर लिया।

मुंबई पुलिस ने भी उनके मरते ही कह दिया, यह आत्महत्या का मामला है। पोस्टमॉर्टम से पहले ख़बर चलने लगी कि सुशांत ने ख़ुदकुशी कर ली। लिहाज़ा, मेरा टेंशन और बढ़ गया। जब मुंबई पुलिस ने ख़ुदकुशी का केस मानकर लोगों का बयान दर्ज़ करना शुरू किया, तो मेरे टेंशन में सेंसेक्स की तरह उछाल आया। जैसे-जैसे नामचीन लोगों के बयान दर्ज़ हो रहे थे, वैसे-वैसे मेरा गला सूखता जा रहा था।

दरअसल, मुंबई पुलिस को लगा सुशांत ने नेपोटिज़्म यानी भाई-भतीजावाद के चलते ख़ुदकुशी की तो बड़े-बड़े प्रोडक्शन हाउसेज़ के लोगों के बयान दर्ज़ करने लगी। फिर मुंबई पुलिस को लगा कि सुशांत ने अपनी फ़िल्मों की निगेटिव रेटिंग के चलते आत्महत्या की। तब पत्रकारों और समीक्षकों के बयान लेने लगी। मुझ लग रहा था, अब मेरी भी बारी आने वाली है। पुलिस स्टेशन जाना पड़ेगा। निगेटिव रेटिंग का ग़ुनहगार तो मैं भी था।

मेरे ग़ुनाह की वजह मेरे एक मित्र हैं। वह फ़िल्में देखकर सोशल मीडिया पर उसकी समीक्षा पोस्ट कर देते हैं। मैं उनका अमूमन हर पोस्ट लाइक कर देता हूं। दरअसल, उनके बहुत ऊंचे संपर्क हैं, मुमकिन है कभी कोई काम दिला दें। इसी उम्मीद में गड़बड़ी हो गई। उन्होंने सुशांत की फ़िल्म को निगेटिव रेटिग देते हुए, अपनी समीक्षा पोस्ट की। मैंने भी उनकी उस समीक्षा को लाइक कर दिया।

14 जुलाई 2020 के बाद लगातार मुझे लग रहा था, कहीं सुशांत ने मेरे लाइक करने का बुरा तो नहीं मान लिया और मुझे सज़ा दिलवाने के लिए ख़ुदकुशी कर ली। सुशांत की मौत से पहले मैंने उनकी कोई फ़िल्म नहीं देखी थी। लेकिन निगेटिव रेटिंग वाली समीक्षा को लाइक कर दिया। इससे संभव हो कि सुशांत ने सोचा हो कि इस बंदे ने मेरी कोई फ़िल्म देखी नहीं, लेकिन फ़िल्म की निगेटिव रेटिंग वाली समीक्षा को लाइक कर दिया, अब मैं ख़ुदकुशी करके इसे मज़ा चखाता हूं।

बहरहाल, जब पुलिस ने समीक्षकों-पत्रकारों को बुलाना शुरू किया तो मेरी नींद ही उड़ गई। लॉकडाउन में भी आराम करना हराम हो गया। जब घर भी बेल बजती, मुझे लगता शायद पुलिस आ गई, बयान दर्ज़ करने का सम्मन लेकर। दरवाज़ा खोलता तो सामने वॉचमैन को देखकर राहत की सांस लेता। बार-बार बेल बजने से परेशान होकर मैंने घर की बेल बंद ही कर दी।

बेल बंद करने पर भी ध्यान दरवाज़े पर ही रहता था। कोई नॉक करता तो मुझे लगता पुलिस आ गई सम्मन लेकर। फिर डरते-डरते दरवाज़ा खोलता तो सामने वॉचमैन होता। मैं फिर भारी राहत महसूस करता। मैं चाह रहा था कि सुप्रीम कोर्ट जल्दी से केस को सीबीआई को दे दे। ताकि मैं पुलिस स्टेशन जाने से बच जाऊं। आज सुप्रीम कोर्ट ने मेरी दुआ सुन ली। सुशांत के समर्थकों के अनुसार हत्या, शिवसेना के अनुसार आत्महत्या की जांच सीबीआई को दे दी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि अभी तक केस की जांच नहीं हुई है। इसलिए केस की जांच सीबीआई करेगी। महाराष्ट्र के वकील ने कोर्ट से कहा, जांच तो मुंबई पुलिस कर रही थी माई लॉर्ड। तब कोर्ट ने धीरे से कहा, मुंबई पुलिस केस की जांच नहीं बल्कि बयान दर्ज़ कर रही थी। बयान दर्ज करना जांच नहीं होती। इसलिए, केस की जांच सीबीआई करेगी।

मैंने बड़ी राहत से ऊपरवाले को देखा। वहां देर है अंधेर नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने मुझे बचा लिया। अब पुलिस स्टेशन में बयान दर्ज करवाने मुझे नहीं जाना पड़ेगा। मुंबई पुलिस मुझसे पूछताछ नहीं कर सकेंगी। थैक्स सुप्रीम कोर्ट। हिप-हिप हुर्रे! हिप-हिप हुर्रे!

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