विज्ञान व्रत का गजल पाठ – जिनको पकड़ा हाथ समझकर, वो केवल दस्ताने निकले…

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कवि बिहारी की रचनाओं को गागर में सागर इसलिए कहा जाता था, क्योंकि उनकी रचनाएं अपने अंदर विशद अर्थ समेटे रहती थीं। छोटी बहर में ग़ज़ल लिखने की बेहद कठिन विधा को आत्मसात कर चुके सुप्रसिद्ध शायर एवं चित्रकार विज्ञान व्रत (Vigyan Vrat) की ग़ज़लें भी अपने अंदर असीमित गहराई समेटे हुए हैं। इसीलिए अगर उन्हें आधुनिक दौर का बिहारी कहें तो बिल्कुल अतिरंजनापूर्ण नहीं होगा। मीरा रोड और भाइंदर ही नहीं बल्कि आसपास रहने वाले साहित्यकारों एवं साहित्यप्रेमियों के लिए शनिवार की शाम कई मायने में यादगार और ख़ास शाम रही, क्योंकि लोगों को दिल्ली से पधारे विज्ञान व्रत से रूबरू होने का मौक़ा ही नहीं मिला बल्कि उनसे उनकी ग़ज़ले सुनने का अविस्मरणीय अवसर प्राप्त हुआ।

छोटी बहर में ग़ज़ल लिखने की बेहद कठिन विधा को आत्मसात कर चुके शायर विज्ञान व्रत की छोटी-छोटी बहर में लिखी गई ग़ज़लें सुनकर लोग वाह-वाह कहने और ताली बजाने से खुद को रोक नहीं पाए। विज्ञान व्रत की ग़ज़लों का एकल वाचन संध्या का आयोजन सामाजिक-सास्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था स्वरसंगम फाउंडेशन ने ‘अपने प्रिय लेखक से मिलिए कार्यक्रम‘ की कड़ी में ‘विरुंगला केंद्र मीरा रोड में किया। क़रीब दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम में विज्ञान व्रत ने अपनी कई ग़ज़लें पढ़ी। उनकी ग़ज़ल के शेर जिनको पकड़ा हाथ समझकर, वो केवल दस्ताने निकले या बस अपना ही गम देखा है, तूने कितना कम देखा है। बड़ी प्रभावशाली रहीं। इसी तरह उनकी रचना तुम हो तो ये घर लगता है, वरना इसमें डर लगता है। उसका मुझसे यूँ बतियाना, सच कहता हूँ डर लगता है, को सुनकर दर्शन दीर्घा में बैठे लोग वाह-वाह करने लगे।

विज्ञान व्रत ने अपने अद्भुत हुनर से छोटी बहर की ग़ज़लों को वह ऊँचाई प्रदान की है, जहां तक पहुंचना किसी साधारण शायर तो दूर के बात किसी बड़े शायर के लिए भी सिर्फ सपना ही हो सकता है। एकदम आम भाषा में लिखे और पढ़े गए उनके शेर सपाट बिल्कुल नहीं लगे, बल्कि उनमें काव्य की बड़ी गहराई नज़र आई। छोटी बहर में बड़ी बात कहना वैसे ही है जैसे गागर में सागर भरना, लेकिन यह ऐसा हुनर विज्ञान व्रत में कूट-कूट कर भरा है। संभवतः इसीलिए उनकी गिनती आज के दौर के उस्ताद शायरों में की जाती है। छोटी बहर की ग़ज़ल वही लोग लिख पाते हैं जो अनवरत प्रयास लगन और मेहनत करते रहते हैं। छोटी बहर की रचना करने वाले रचनाकार अपने कथ्य के प्रति निर्विशिष्ट हो जाते हैं।

विज्ञान व्रत हिंदी की उस पीढ़ी के शायर हैं जिन्‍होंने यह बताया कि हिंदी में सलीकेदार ग़ज़ल कैसे लिखी जा सकती है। उनकी ग़ज़लों में जो बिंब आते हैं वह जबरदस्‍त होते हैं। उनकी ग़ज़लें अपने आप में ग़ज़ल की पूरी की पूरी पाठशाला की तरह होती हैं। उनकी पढ़ी रचना पर गौर करिए, मैं कुछ बेहतर ढूँढ़ रहा हूँ, घर में हूँ घर ढूँढ़ रहा हूँ। मेरे क़द के साथ बढ़े जो, ऐसी चादर ढूँढ़ रहा हूँ। या फिर मुझको अपने पास बुलाकर, तू भी अपने साथ रहा कर, अपनी ही तस्वीर बनाकर, देख न पाया आँख उठाकर। अथवा और सुनाओ कैसे हो तुम, अब तक पहले जैसे हो तुम। ऐशपरस्‍ती। तुमसे। तौबा, मजूदरी के पैसे हो तुम। सीधे मानसपटल पर अपना असर छोड़ रही थीं। किसी समीक्षक ने सही ही कहा है कि रिक्शे वाले का सपना, उसका अपना रिक्शा हो जैसा शेर केवल विज्ञान व्रत ही रच सकते हैं।

विज्ञान व्रत के ग़ज़ल पढ़ने का अंदाज़ एकदम निराला था। उनकी पढ़ी ग़ज़ल देखिए – चुप रहता था क्या करता, वो तनहा था क्या करता, कोई भी पहचान नहीं, शहर नया था क्या करता। या फिर अपने मुँह पर ताले रखना, खुद को आज संभाले रखना। शहर बहुत हैं सूरज तनहा, अपने पास उजाले रखना। इसी तरह इतने दिन में घर आये हो, घर जैसे कुछ देर रहो ना। बादल हो तुम या ख़ुशबू हो, बरसो खुलकर या बिखरो ना, बहुत आला दर्जे की रचना थी। कोई दो दर्जन ग़ज़ले सुनाकर विज्ञान व्रत ने समां बांध दिया।

यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि विज्ञान ने ग़ज़लों को एक नई दिशा दी है। उनकी ग़ज़लें जिस सफाई से अपनी बात कहती हैं उससे कभी कभी रश्‍क हो जाता है। और इन सबके पीछे जो कारण है वो ये है कि वे स्‍वयं एक बहुत ही अच्‍छे इंसान हैं। इसकी मिसाल वहा मौजूद लोगों ने तब देखी, जब कथाकार आबिद सुरती सभागार में पहुंचे तो विज्ञान व्रत मंच से उतर कर उनका स्वागत करने पहुंच गए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता लक्ष्मण दुबे नें की। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध कथाकार आबिद सुरती मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनिल गौड़ ने किया। प्रारंभ में संस्था संस्था की ओर से डॉ हरिप्रसाद राय ने अतिथियों का स्वागत किया। डॉ अनिल गौड़ और शायर मुस्तहसन अज़्म नें विज्ञान व्रत की ग़ज़लों पर अपनी टिप्पणियां प्रस्तुत की। आभार हृदयेश मयंक नें व्यक्त किया। दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम में नगर उपनगर के कई वरिष्ठ शायरों, गज़ल गायकों एवं सुशील दुबे, रासविहारी पांडे, कृष्णा गौतम, वर्षा सिंह, गायक सुधीर मजूमदार, दिनेश गुप्ता, मोइन अंसारी, सभाजीत उपाध्याय समेत दर्जनों कवि शायर समारोह में उपस्थित थे। गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति नें कार्यक्रम को सफल बनानें में भरपूर योगदान दिया। अपने संबोधन में आबिद सुरती ने विज्ञान व्रत की ग़ज़लों की खुले दिल से तारीफ़ की।

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