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चीन में कोहराम मचाने वाले नए वायरस HMPV की भारत में दस्तक, सावधान रहें…

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बेंगलुरु में 8 महीने की बच्ची इस बीमारी से पीड़ित

कोरोना से भी ख़तरनाक बताया जाने वाला चीनी वायरस चीन में कोहराम मचाने के बाद भारत में प्रवेश कर चुका है। कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में 8 महीने की बच्ची इस बीमारी से पीड़ित पाई गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिल्ली और महाराष्ट्र को सतर्क रहने की एडवाइजरी जारी की है।

नए चीनी वायरस के आने की ख़बर से एक बार फिर से लोगों को कोविड-19 से मची तबाही याद आने लगी है, जब लोग घरों में कैद कर दिए थे। HMPV (ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस) एक आम वायरस है जो इंसानों के श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। इससे ग्रसित व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। यह छोटे बच्चों, वृद्धों और मेडिकली अनफिट लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है।

श्वसन वायरस ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (HMPV) फ्लू जैसे लक्षण उत्पन्न करता है, जिनमें खांसी, बुखार, नाक बंद होना और सांस लेने में कठिनाई शामिल है। हालांकि, इस वायरस के लिए अभी तक कोई विशेष टीका या एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है, और लक्षणों के आधार पर ही इसका उपचार किया जाता है।

हाल के दिनों में, चीन में HMPV संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े हैं, जिससे वैश्विक स्वास्थ्य समुदाय में चिंता बढ़ी है। यह वायरस चीन के बाद मलेशिया और हांगकांग जैसे देशों में भी पहुंचा है। भारत में HMPV का पहला मामला बेंगलुरु में सामने आया, जहां एक आठ महीने की बच्ची में इस वायरस की पुष्टि हुई है। यह भारत में इस वायरस के संक्रमण का पहला ज्ञात मामला है।

HMPV वायरस मुख्य रूप से श्वसन बूंदों के माध्यम से फैलता है, जैसे कि खांसने या छींकने पर। इसके अलावा, संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने या दूषित सतहों को छूने से भी संक्रमण हो सकता है। संक्रमण से बचने के लिए मास्क पहनना, नियमित रूप से हाथ धोना और सामाजिक दूरी का पालन करना महत्वपूर्ण है।

भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें HMPV के प्रसार को रोकने के लिए सतर्क हैं। दिल्ली और तेलंगाना सहित कई राज्यों में स्वास्थ्य अधिकारियों ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें अस्पतालों को इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी) और गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण (SARI) के मामलों की तुरंत रिपोर्ट करने के निर्देश दिए गए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी स्थिति की समीक्षा के लिए संयुक्त निगरानी समूह की बैठक बुलाई है और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से समय पर जानकारी साझा करने का अनुरोध किया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि HMPV कोई नया वायरस नहीं है। इसे पहली बार 2001 में खोजा गया था, और सीरोलॉजिकल साक्ष्यों के अनुसार, यह कम से कम 1958 से प्रचलित है। यह वायरस रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस (RSV) के साथ न्यूमोविरिडे परिवार में आता है और मौसमी बीमारी के रूप में सर्दियों और शुरुआती वसंत में अधिक सक्रिय होता है।

HMPV संक्रमण के लक्षणों में खांसी, बुखार, नाक बंद होना, गले में खराश, थकान, और सांस लेने में कठिनाई शामिल हैं। गंभीर मामलों में, निमोनिया या ब्रोंकियोलाइटिस जैसी स्थितियां विकसित हो सकती हैं, विशेषकर छोटे बच्चों और बुजुर्गों में। यदि किसी व्यक्ति में ये लक्षण प्रकट होते हैं, तो उसे तुरंत चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए।

HMPV के प्रसार को रोकने के लिए निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए:

  • मास्क पहनना और श्वसन स्वच्छता का पालन करना।
  • नियमित रूप से हाथ धोना और सैनिटाइज़र का उपयोग करना।
  • भीड़-भाड़ वाले स्थानों से बचना और सामाजिक दूरी का पालन करना।
  • संक्रमित व्यक्तियों से संपर्क से बचना।

चूंकि HMPV के लिए कोई विशेष टीका या एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है, इसलिए लक्षणों के आधार पर उपचार किया जाता है। हल्के लक्षणों के लिए घर पर आराम, तरल पदार्थों का सेवन, और बुखार या दर्द के लिए पेरासिटामोल जैसी दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। गंभीर लक्षणों की स्थिति में अस्पताल में भर्ती की आवश्यकता हो सकती है।

भारत में HMPV के पहले मामले की पुष्टि के बाद, स्वास्थ्य अधिकारियों ने निगरानी और परीक्षण को बढ़ा दिया है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि घबराने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन सतर्कता और सावधानी बरतना आवश्यक है। सामान्य जनसंख्या को सलाह दी जाती है कि वे स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करें और किसी भी संदिग्ध लक्षण के प्रकट होने पर तुरंत चिकित्सा सहायता लें।

HMPV के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसके प्रसार को रोकने के लिए, सरकार और स्वास्थ्य संगठनों द्वारा विभिन्न प्रचार-प्रसार कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता बनाए रखने, मास्क पहनने, और सामाजिक दूरी का पालन करने के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है। इसके अलावा, स्कूलों, कार्यालयों, और अन्य संस्थानों में भी स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित किया जा रहा है।

HMPV के प्रसार को रोकने में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन करके, हम न केवल स्वयं को, बल्कि अपने परिवार और समुदाय को भी सुरक्षित रख सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति में श्वसन संबंधी लक्षण प्रकट होते हैं, तो उसे तुरंत चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए और दूसरों के संपर्क से बचना चाहिए।

अंत में, HMPV एक ज्ञात श्वसन वायरस है, जो विशेष रूप से कमजोर समूहों को प्रभावित करता है। भारत में इसके पहले मामले की पुष्टि के बाद, स्वास्थ्य अधिकारी सतर्क हैं और आवश्यक कदम उठा रहे हैं। सार्वजनिक जागरूकता और सावधानियों के माध्यम से, हम इस वायरस के प्रसार को नियंत्रित कर सकते हैं और अपने समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।

Sanjay Raut Allegedly Assaulted at Matoshree

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Mumbai: Shiv Sena (UBT) spokesperson and Rajya Sabha MP Sanjay Raut was reportedly locked in a room and physically assaulted during a high-level meeting at Matoshree, the residence of party chief Uddhav Thackeray. Senior journalist Bhai Tosrekar broke the sensational news, claiming the altercation lasted several hours and involved multiple senior leaders of the party. However, Sanjay Raut was not available for the comment on this incident as it is reported that currently he was in Shimla.

Meeting Focused on BMC Elections Turns Chaotic

The meeting, convened to strategize for the upcoming Brihanmumbai Municipal Corporation (BMC) elections, was attended by senior leaders of the Shiv Sena (UBT). However, discussions quickly escalated into a confrontation, with leaders airing grievances about the party’s poor performance in the 2019 Maharashtra Assembly elections, where the Shiv Sena won only 20 seats.

Sanjay Raut, a central figure in the party’s decision-making, was heavily criticized during the meeting. Several leaders accused Raut of excessive rhetoric and divisive tactics that they claimed contributed to the party’s electoral decline and alienated traditional supporters.

Raut Assaulted and Locked in a Room

According to insiders, the situation spiraled out of control when four to five leaders physically confronted Raut. They allegedly grabbed him by the collar and dragged him into a separate room at Matoshree, where he was badly assaulted. The sources further revealed that Raut was locked in the room for nearly three hours as tempers flared during the meeting.

Raut’s attempts to defend his actions, particularly his role in the 2019 split with the BJP and the formation of the Maha Vikas Aghadi (MVA), reportedly angered the dissenting leaders. His detractors accused him of prioritizing his public image over the party’s unity and blamed his aggressive stance for the Shiv Sena’s current challenges.

Uddhav Thackeray’s Intervention

Party chief Uddhav Thackeray, who was present at Matoshree during the incident, is said to have intervened to resolve the conflict. However, his efforts to calm the situation reportedly came only after the assault on Raut had taken place.

Thackeray has yet to issue an official statement regarding the incident, but the altercation has exposed deep divisions within the Shiv Sena (UBT) at a critical juncture.

Political Fallout and Reactions

The news of Raut’s alleged assault has sparked outrage among his supporters, who are demanding an explanation and accountability from the party leadership. Opposition parties have also capitalized on the incident, with the BJP and the rival Shiv Sena faction led by Maharashtra Chief Minister Eknath Shinde criticizing the Shiv Sena (UBT) for its internal discord.

Political analysts warn that this incident could further destabilize the Shiv Sena (UBT), which is already grappling with defections and challenges to its traditional voter base. The upcoming BMC elections, a key battleground for the party, are now expected to be even more challenging due to the apparent lack of unity within the ranks.

As the story continues to develop, all eyes are on Uddhav Thackeray and the Shiv Sena (UBT) leadership to see whether they will publicly address the incident and take steps to heal the party’s growing internal rifts.

मनमोहन सरल के जन्मदिन पर गूंजीं अभिलाष अवस्थी की गजलें

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मुंबई, अपनी कहानियों, कला समीक्षा और संपादन से हंदी साहित्यिक दुनिया एवं कला–जगत को समृद्ध करने वाले वयोवृद्ध पत्रकार मनमोहन सरल का 91वां जन्मदिन समारोह एक यादगार और भावपूर्ण कार्यक्रम के रूप में मनाया गया। यह आयोजन न केवल उनके जीवन और लेखन की यात्रा को संजोने का अवसर था, बल्कि धर्मयुग परिवार की पुरानी स्मृतियों और उनके योगदान को भी एक नई दिशा देने वाला बन गया।

धर्मयुग की खट्टी-मीठी यादें साझा की
सहज स्वभाव और संवेदनशील दृष्टिकोण के धनी सरल ने अपने लेखन में मानवीय भावनाओं और समाज के ज्वलंत मुद्दों को बड़ी गहराई से अभिव्यक्त किया। धर्मयुग जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका से जुड़े रहकर उन्होंने पत्रकारिता को नई दिशा और ऊंचाई दी। उनका जीवन और कार्य एक ऐसा प्रेरणास्त्रोत है, जो आने वाली पीढ़ियों को सृजनशीलता और समर्पण का पाठ पढ़ाता रहेगा। मनमोहन सरल के जन्म दिन के कार्यक्रम की शुरुआत में धर्मयुग की खट्टी-मीठी यादें साझा की गईं। धर्मयुग परिवार के सदस्यों द्वारा भेजे गए भावभीने संदेशों को सुनाया गया और सरल जी के सरल स्वभाव, उनके साहित्यिक योगदान और कला समीक्षा पर चर्चा हुई।

लगभग चार दशक तक रहे धर्मयुग में
उत्तरप्रदेश नजीबाबाद में 28 दिसम्बर 1934 को जन्में मनमोहन सरल ने साइंस से बैचलर के अलावा कला से मास्टर और कानून की भी डिग्री हासिल की। उनकी पहली कहानी 1949 में प्रकाशित हुई और पहला कहानी संग्रह ‘प्यास एक : रूप दो’ 1959 में छपकर आया और बहुत चर्चित भी हुआ। उन्होंने 1958 में महानंद मिशन कालेज, गाज़ियाबाद में प्राध्यापक से शिक्षण करियर का प्रारंभ किया। 1961 में भारत के सर्वश्रेष्ठ और बहुचर्चित साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ के उत्कर्ष काल में सहायक संपादक पद संभाला और 1989 तक कार्य किया।

अभिलाष अवस्थी की ग़ज़लें बनीं कार्यक्रम की शान
कार्यक्रम में विशेष आकर्षण प्रतिष्ठित गीतकार और ग़ज़लकार अभिलाष अवस्थी ने अपनी ग़ज़लों से ऐसा समां बांधा कि बांद्रा के पत्रकार नगर में साहित्य की शायद ही कभी ऐसी गूंज सुनाई दी हो। अभिलाष की ग़ज़लें और उनकी प्रस्तुति दोनों ही अद्वितीय रहे। उन्होंने धर्मयुग परिवार को साहित्य और पत्रकारिता के एक नए स्तर पर जोड़ने में अपनी अहम भूमिका निभाई। कार्यक्रम में धर्मयुग परिवार के सदस्यों, ओमप्रकाश सिंह, सुदर्शना द्विवेदी, हरीश पाठक, विनीत शर्मा, रमा कपूर और आशीष पाल ने सरल का शॉल, पुष्पगुच्छ से सम्मान किया और उनके बेहतर स्वास्थ एवं दीर्घायु होने की कामना की।

धर्मयुग की स्मृतियों को मिला नया आयाम
कार्यक्रम में चर्चा हुई कि यदि इस प्रकार की प्रस्तुतियां पहले से होतीं तो धर्मयुग, डॉ धर्मवीर भारती और उनसे जुड़े साहित्य को एक नया आयाम पहले ही मिल गया होता। हरिवंश ने कहा, “हम सब भारती जी के ही बनाए हैं और जो कुछ कर रहे हैं, उसमें धर्मयुग की निरंतरता झलकती है।” मनमोहन सरल कार्यक्रम के दौरान तीन घंटे तक पूरी ऊर्जा के साथ उपस्थित रहे। उन्होंने केक काटा, लड्डू खाया और नाश्ते का आनंद लिया। उनकी प्रसन्नता कार्यक्रम में उपस्थित हर व्यक्ति के लिए एक अद्भुत अनुभव थी।

Atal Bihari Vajpayee: The Poet, Politician, and an Eternal Love Story

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Atal Bihari Vajpayee, one of India’s most celebrated leaders, was much more than a statesman and politician. Known for his eloquence, poetic soul, and humility, Vajpayee’s life was full of human emotions that made him relatable to millions. Among the lesser-known yet significant aspects of his life was his deep and lifelong connection with Rajkumari Haksar-Kaul, a relationship that beautifully blended love, loyalty, and companionship while defying societal norms and expectations.

The Beginning of a Timeless Bond
The story of Atal Bihari Vajpayee and Rajkumari Kaul dates back to the 1940s in Gwalior. Both were students at Victoria College (now Laxmibai College), where their friendship gradually transformed into something deeper. Vajpayee, known for his oratory and poetic talent even as a student, found a kindred spirit in Rajkumari, whose intellect and charm complemented his personality.

Their love story, however, was defined by its subtlety. Vajpayee, as a young man, expressed his feelings in a letter but chose an unconventional way to deliver it—by placing the letter inside a book that Rajkumari was expected to read. Rajkumari’s response, equally heartfelt, was written in another letter that fatefully never reached Vajpayee. This missed communication didn’t deter their bond, which continued to grow despite the lack of formal declarations.

Societal Norms and Forced Separation
Rajkumari Kaul belonged to a prominent Kashmiri Pandit family. Her father, Govind Narayan Haksar, held a high position in Gwalior’s administration and was deeply conservative. He strongly opposed Rajkumari’s relationship with Vajpayee, citing differences in social and familial expectations. Eventually, under familial pressure, Rajkumari married Professor Brij Narayan Kaul, a philosopher and academic at Delhi’s Ramjas College.

This marriage marked a turning point, seemingly separating their lives. Vajpayee, deeply entrenched in his political aspirations, joined the Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS), dedicating his life to public service and vowing to remain unmarried. Despite the separation, the emotional connection between Vajpayee and Rajkumari endured.

Rekindling the Connection in Delhi
Years later, destiny brought them back together in Delhi. Vajpayee’s political career flourished as he emerged as one of the leading voices of the Bharatiya Jana Sangh and later the Bharatiya Janata Party (BJP). During this time, his friendship with Rajkumari Kaul was rekindled, and their bond became stronger than ever.

Vajpayee became a regular visitor to the Kaul household, where he found a sense of belonging and emotional solace. Despite societal perceptions, their relationship was based on mutual respect and companionship. Rajkumari and her family offered Vajpayee unwavering support, becoming an integral part of his personal and professional life. Over time, Vajpayee moved in with the Kaul family, further solidifying their unique relationship.

Mrs Kaul shifted to Atal’s residence
By 1978, when Atal Bihari Vajpayee was the external affairs minister in the Morarji Desai government, Mr and Mrs Kaul and their daughters had all moved in to his Lutyens’ house at 5, Raisina Road. Atal adopted Mrs Kaul’s daughter Namita and later, her granddaughter Niharika.

Former President Pranab Mukherjee told Hindustan Times in an interview, “We lived next door and they made an entrance through a side wall so Vajpayee and his family members could come easily to our place. He was very fond of fish. Namita, his foster daughter, used to regularly play at our place. My wife and Mrs Kaul (Namita’s mother) had a very deep bonding. When Namita’s marriage was decided, my wife helped in preparations because the groom was a Bengali [Namita married Ranjan Bhattacharya].”

A Unique Family Dynamic
Rajkumari Kaul played a pivotal role in Vajpayee’s personal life. Her daughters, Namita and Nandita, saw him as a father figure. Vajpayee eventually adopted Namita and her daughter Niharika, treating them as his own family. This unconventional family dynamic was a testament to the depth of his bond with Rajkumari.

When Vajpayee became India’s Prime Minister in 1998, Rajkumari Kaul and her family moved with him to the official residence at 7, Race Course Road (now Lok Kalyan Marg). Namita and her husband, Ranjan Bhattacharya, played significant roles in managing Vajpayee’s household and supporting him during his tenure.

Atal-Bihari-Vajpayee-with-Rajkumari-Kaul-and-her-daughter-1-300x225 Atal Bihari Vajpayee: The Poet, Politician, and an Eternal Love Story
Atal Bihari Vajpayee with Rajkumari Kaul (left) and her daughter

An Enduring Love Beyond Labels
The relationship between Vajpayee and Rajkumari defied traditional definitions. It was neither a conventional marriage nor a fleeting romance but rather a profound connection that stood the test of time. Their bond exemplified love that transcends societal norms and formalities. Despite living in the public eye, they maintained the sanctity of their relationship with dignity and discretion.

Senior journalist Kuldeep Nayar once described their relationship as “one of the most beautiful love stories in Indian politics.” Rajkumari’s unwavering support for Vajpayee during his political struggles and triumphs was unparalleled. She stood by him as a silent pillar of strength, embodying the essence of loyalty and companionship.

The Poet’s Heart
Atal Bihari Vajpayee’s poetic inclinations often reflected his emotional depth. His first poem was dedicated to the laborers who built the Taj Mahal, a symbol of love. This poem, however, didn’t glorify the monument’s beauty or Shah Jahan’s love for Mumtaz but instead highlighted the sacrifices of the workers who made it possible. This perspective mirrored Vajpayee’s own life—one where love was deeply felt but seldom openly expressed.

Vajpayee’s poetry resonated with Rajkumari, who often admired his ability to articulate complex emotions. Their shared appreciation for literature and art further strengthened their bond, making it a relationship of intellectual and emotional compatibility.

A Legacy of Love and Loyalty
Rajkumari Kaul passed away in 2014, leaving behind a legacy of love and unwavering loyalty. Vajpayee, who had already retreated from public life due to health issues, was deeply affected by her demise. Her death marked the end of an era, but their story remains an enduring testament to the quiet strength of love.

Atal Bihari Vajpayee’s life was a blend of political brilliance, poetic expression, and profound humanity. His relationship with Rajkumari Kaul adds an intimate dimension to his legacy, showcasing the human side of a leader who navigated the complexities of life with grace and dignity. Their story is a reminder that love, in its purest form, transcends societal norms, remaining timeless and eternal.

The Enigma of Atal Bihari Vajpayee
Throughout his life, Vajpayee maintained an enigmatic stance on his personal relationships. When questioned about his bachelorhood, he famously remarked, “I am unmarried but not a celibate,” hinting at the depth of his emotional connections. His decision to remain unmarried was rooted in his commitment to the RSS and his dedication to public service. Yet, his relationship with Rajkumari Kaul highlighted the balance he struck between his personal and professional lives.

Vajpayee’s closest associates often described him as a man who valued relationships deeply. While his public persona exuded charisma and leadership, his private life reflected vulnerability and warmth. His bond with Rajkumari Kaul was a cornerstone of this duality, blending the personal and political seamlessly.

Remembering a Timeless Leader
Atal Bihari Vajpayee’s legacy is multifaceted. As a politician, he was a visionary leader who steered India through critical junctures. As a poet, he captured the essence of human emotions with remarkable sensitivity. And as a human being, he exemplified love, loyalty, and compassion.

His relationship with Rajkumari Kaul remains one of the most poignant chapters of his life, offering a glimpse into the man behind the leader. It is a story of love that thrived despite societal norms, a bond that endured the passage of time, and a connection that defined the essence of companionship. In remembering Vajpayee, one cannot overlook the quiet strength of this relationship, which continues to inspire generations.

Will Bhujbal Join BJP?

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Chhagan Bhujbal

A significant development unfolded in Maharashtra politics when senior Nationalist Congress Party (NCP) leader Chhagan Bhujbal met with Chief Minister Devendra Fadnavis. This meeting took place at a time when Bhujbal had been excluded from the MahaYuti government’s cabinet, making his displeasure quite evident.

Bhujbal’s primary grievance appears to be his exclusion from the cabinet. He expressed his frustration, revealing that when he wished to go to the Rajya Sabha, he was asked to contest the Assembly elections instead. Now, after being denied a ministerial position, he is being offered a Rajya Sabha seat. Bhujbal sharply questioned, “Am I a toy? Should I stand when you say so and sit when you wish?”

Meanwhile, Deputy Chief Minister Ajit Pawar downplayed Bhujbal’s dissatisfaction, labeling it as an internal party matter. He also hinted that Bhujbal was unhappy with the BJP’s interference, asserting that the NCP would resolve its internal issues independently.

Following the meeting between Bhujbal and Fadnavis, political circles have been abuzz with speculation about whether Bhujbal plans to join the BJP. However, no clear statement has been made regarding this possibility. Chief Minister Fadnavis commented that discussions about Bhujbal’s potential role at the national level are ongoing, and a decision will be made in the next 10-12 days.

This development could have significant repercussions for Maharashtra’s political landscape. Should Bhujbal choose to join the BJP, it would deal a major blow to the NCP and potentially shift the state’s political equations. As a prominent OBC leader, Bhujbal’s decision could also influence the voting patterns of this community.

In conclusion, Chhagan Bhujbal’s dissatisfaction and his meeting with Chief Minister Fadnavis have stirred political dynamics in Maharashtra, and the full impact of this episode will become clearer in the coming days.

अब कैंसर को पड़ेगा खुद मरना

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पूरी दुनिया में कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी से जूझ रहे करोड़ों लोगों के लिए उम्मीद की नई किरण आने ही वाली है। रूसी वैज्ञानिकों ने उन्होंने कैंसर की वैक्सीन बना ली है। वर्ष 2024 के आरंभ में ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि उनका देश कैंसर की वैक्सीन डेवलप करने के बेहद करीब हैं। इस नई दवा का नाम mRNA वैक्सीन है। इसके क्लिनिकल ट्रायल से पता चला है कि इससे कैंसर ट्यूमर का इलाज करने में मदद मिलेगी। इस खोज को सदी की सबसे बड़ी खोज माना जा रहा है।

रशियन स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि कैंसर बीमारी के इलाज के लिए उसने कैंसर की वैक्सीन बना ली, जो नए साल में सभी नागरिकों के लिए फ्री में उपलब्ध होगी। जानकारी के अनुसार ये पहली mRNA वैक्सीन और दूसरी दूसरी ऑन्कोलिटिक वायरोथेरेपी है। इस थेरेपी के तहत लैब में मॉडिफाई किए गए इंसानी वायरस से कैंसर सेल्स को टारगेट कर संक्रमित किया जाता है। इस थेरेपी के लिए बनाई जा रही वैक्सीन का नाम एंटेरोमिक्स है।

कैंसर दुनिया की सबसे घातक बीमारियों में से एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, पूरी दुनिया में कार्डियोवस्कुलर डिजीज के बाद सबसे ज्यादा मौतें कैंसर के कारण होती हैं। पूरी दुनिया में हर साल लगभग 6.1 करोड़ लोगों की मौत होती है, जिसमें से 1 करोड़ लोगों की मौत कैंसर के कारण होती है। इसका मतलब है कि दुनिया में हर 6 मौतों में से एक मौत कैंसर के कारण होती है। इसलिए रूस की इस खोज को पूरी दुनिया बड़ी उम्मीद की नजर से देख रही है। इससे सबकुछ बदल सकता है। हर साल लाखों लोगों की जान बच सकती है।

वैसे कैंसर को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की सबसे घातक चुनौतियों में से एक माना जाता है। यह बीमारी हर साल लाखों जिंदगियां निगल रहा है। इस घातक बीमारी से लड़ने के लिए विश्वभर में अनेक शोध और प्रयास किए जा रहे हैं। हाल ही में रूस ने कैंसर को जड़ से खत्म करने वाली एक वैक्सीन की खोज का दावा किया है, जिसने चिकित्सा जगत में एक नई उम्मीद जगाई है। यह लेख रूस की इस खोज, कैंसर के वैश्विक और भारतीय संदर्भ, और इससे जुड़े प्रमुख पहलुओं पर प्रकाश डालता है।

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कैंसर: एक वैश्विक संकट
कैंसर दुनिया भर में मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 2020 में लगभग 1 करोड़ लोगों ने कैंसर के कारण अपनी जान गंवाई। फेफड़े, कोलोरेक्टल, पेट, लिवर, और स्तन कैंसर सबसे घातक प्रकारों में गिने जाते हैं। भारत में भी स्थिति बेहद गंभीर है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम (NCRP) के अनुसार, 2022 में भारत में लगभग 14 लाख नए कैंसर मामलों का अनुमान लगाया गया था, और इनमें से 8 लाख से अधिक मौतें कैंसर के कारण हुईं। स्तन कैंसर, ओरल कैंसर, और सर्वाइकल कैंसर भारत में सबसे सामान्य प्रकार हैं।

कैंसर की वर्तमान चिकित्सा चुनौतियां
कैंसर के उपचार के लिए वर्तमान में कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, सर्जरी और इम्यूनोथेरेपी जैसी विधियों का उपयोग किया जाता है। हालांकि, इन उपचारों के गंभीर साइड इफेक्ट्स और सीमित सफलता दर के कारण कैंसर को पूरी तरह से खत्म कर पाना अभी भी असंभव है। यही कारण है कि कैंसर के इलाज के लिए वैक्सीन जैसे प्रभावी और सुरक्षित समाधान की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी।

रूस की वैक्सीन: एक नई उम्मीद
रूस के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक ऐसी वैक्सीन विकसित करने का दावा किया है, जो कैंसर कोशिकाओं को न केवल खत्म करती है, बल्कि उनके पुनः विकसित होने की संभावना को भी समाप्त करती है। इस वैक्सीन का मुख्य उद्देश्य रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली को इतना सशक्त बनाना है कि वह स्वयं कैंसर कोशिकाओं को पहचानकर उन्हें खत्म कर सके।

वैक्सीन की कार्यप्रणाली
यह वैक्सीन ट्यूमर-संबंधित एंटीजन (Tumor-Associated Antigens) को लक्षित करती है। ये एंटीजन कैंसर कोशिकाओं पर पाए जाते हैं और इन्हें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा पहचानने में कठिनाई होती है। वैक्सीन इन एंटीजन को पहचानने और नष्ट करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रशिक्षित करती है। प्रारंभिक परीक्षणों में इस वैक्सीन ने प्रभावशाली परिणाम दिखाए हैं।

क्लीनिकल परीक्षण और सफलता
रूस ने इस वैक्सीन के प्री-क्लीनिकल और प्रारंभिक क्लीनिकल परीक्षणों को सफलतापूर्वक पूरा किया है। इन परीक्षणों में कैंसर के कई प्रकारों, जैसे फेफड़े, स्तन, और प्रोस्टेट कैंसर, पर इसके प्रभाव का अध्ययन किया गया। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह वैक्सीन न केवल ट्यूमर के विकास को रोकती है, बल्कि मेटास्टैसिस (कैंसर के फैलाव) को भी नियंत्रित करती है।

विश्व और भारत में प्रभाव
रूस की इस खोज से न केवल वैश्विक स्वास्थ्य जगत में उत्साह है, बल्कि यह भारत जैसे देशों के लिए भी वरदान साबित हो सकती है, जहां कैंसर के इलाज तक पहुंच सीमित है। यदि यह वैक्सीन व्यापक रूप से उपलब्ध हो जाती है, तो यह कैंसर से होने वाली लाखों मौतों को रोकने में मदद कर सकती है। यह न केवल रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करेगी, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को भी कम करेगी। भारत में कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है, और महंगे इलाज के कारण बड़ी संख्या में लोग उचित चिकित्सा से वंचित रह जाते हैं। भारत में हर 10 कैंसर मरीज़ों में से 7 की मौत हो जाती है। इस वैक्सीन की सफलता भारत में कैंसर के इलाज को किफायती और प्रभावी बना सकती है। साथ ही, यह ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में भी कैंसर के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

कैंसर से दम तोड़ने वाले प्रमुख लोग
कैंसर ने न केवल आम लोगों, बल्कि दुनिया के कई प्रसिद्ध और प्रभावशाली व्यक्तियों को भी हमसे छीन लिया है। Apple के संस्थापक स्टीव जॉब्स, अभिनेता इरफान खान, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, फिरोज खान, टॉम ऑल्टर, नफीसा अली, सिंपल कपाड़िया संगीतकार रवींद्र जैन और आदेश श्रीवास्तव को कैंसर ने असमय लील लिया।

कैंसर रोकथाम और जागरूकता
वैक्सीन की खोज अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन कैंसर की रोकथाम के लिए जागरूकता और स्वस्थ जीवनशैली अपनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
धूम्रपान और शराब का सेवन कम करें: ये कैंसर के प्रमुख कारणों में शामिल हैं।
संतुलित आहार और व्यायाम: फल, सब्जियां और फाइबर युक्त आहार का सेवन करें।
नियमित जांच: कैंसर के प्रारंभिक लक्षणों की पहचान के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच जरूरी है।
टीकाकरण: सर्वाइकल कैंसर और हेपेटाइटिस के लिए उपलब्ध टीकों का उपयोग करें।

रूस द्वारा विकसित कैंसर वैक्सीन चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में क्रांतिकारी उपलब्धि हो सकती है। यह न केवल कैंसर के इलाज में नई दिशा प्रदान करेगी, बल्कि लाखों जिंदगियों को बचाने में सहायक होगी। हालांकि, इस वैक्सीन की व्यापक उपलब्धता और लागत जैसे सवाल अभी बाकी हैं। इसके बावजूद, यह खोज कैंसर के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है।

The Evolving Concept of Intelligence Beyond IQ

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For centuries, intelligence has been seen as the cornerstone of human potential, traditionally measured on a standard scale. At its core, intelligence was defined as the ability to adapt to people and environments while solving problems effectively. The journey to quantify intelligence began in 1905 when Alfred Binet developed the first IQ test in France, designed to assess school children.

Dr. Shreekant Chorghade, a renowned pediatrician and author, said, “Over time, we’ve learned that intelligence isn’t fixed at birth—it grows with age, shaped by the home, society, and the challenges we face. While IQ initially focused on comparing mental age to chronological age, today’s approach has evolved. The more inclusive Development Quotient (DQ) now offers a broader and holistic perspective on an individual’s growth and abilities, reflecting how far we’ve come in understanding the true nature of intelligence.”

Exploring the Full Spectrum of Human Abilities
In recent decades, researchers and psychologists have identified new ways to measure intelligence, recognising that IQ alone is not sufficient to determine success in life. Today, intelligence is understood in four key categories: IQ (Intelligence Quotient), EQ (Emotional Quotient), SQ (Social Quotient), and AQ (Adversity Quotient).

The distinction between Social Intelligence Quotient (SQ) and Emotional Quotient (EQ) is essential. EQ reflects a person’s ability to understand and manage emotions, fostering inner peace and harmony, while SQ focuses on building and maintaining meaningful, long-term relationships.

Intelligence-Beyond-IQ02-300x200 The Evolving Concept of Intelligence Beyond IQ

Bridging Emotions, Thoughts, and Behaviors for Positive Outcomes
Social Quotient reflects your ability to build and maintain relationships, while Social Intelligence (SI) provides the deeper understanding and skills needed to navigate and strengthen those relationships effectively. Social intelligence plays a crucial role, referring to an individual’s ability to understand and interpret both their own and others’ emotions, thoughts, and behaviors.

Jimmy Mody noted Psychologist and author said that SI is deeply dependent on social instinct, as the latter provides the foundational drive for human interaction and cooperation. Social instinct, an innate, unconscious drive to connect with others, forms the basis of our natural social behavior. This instinct encourages individuals to form bonds, communicate, and act in ways that promote group cohesion and survival. However, social intelligence takes this instinct a step further by applying conscious thought, awareness, and adaptability to social interactions. It builds upon the instinctive behaviors we are born with and enables us to refine and enhance those behaviors in more complex and meaningful ways.

“Social intelligence is developed through experience and interactions with others, specially at home, growing with the successes and failures encountered in social settings. Social intelligence involves several key components: the ability to empathise with others, understand non-verbal cues, and interpret interpersonal dynamics. A socially intelligent person is not only aware of others’ feelings but also responds appropriately to create positive outcomes in social interactions,” added Dr Chorghade.

The Key to Effective Leadership and Meaningful Connections
“The inherent nature of human beings is to be social, meaning we rely on each other and our mutual cooperation. By understanding ourselves and others, we can discover ways to collaborate for mutual benefit. Many strong leaders possess a high level of Social Intelligence (SI), which enables them to motivate, build relationships, and inspire others to take action. SI encompasses both Emotional Intelligence (EQ) and self-awareness, forming the foundation for effective leadership and connection,” said Farzana Contractor, Mental Health Therapist & Counsellor.

“Developing social intelligence involves practices such as creating rapport, thinking before speaking, being confident yet non-judgmental, and understanding social norms. This intelligence is primarily learned through social experiences, where individuals refine their skills in interacting with others, be it in personal relationships, workplaces, or community settings,” she further added.

“Individuals with high IQ, EQ, and SQ are better equipped to navigate life’s challenges, leveraging their intellect, emotional resilience, and social connectivity. In contrast, those with high IQ but low EQ and SQ often struggle to achieve sustained success, as technical intelligence alone is insufficient for managing relationships and understanding human dynamics,” stated Dr Chorghade.

While stressing that Social Intelligence is learned, often beginning with positive social interactions at home, school, or the workplace, Dr Chorghade said that these environments provide opportunities to model and practice effective communication and relationship-building skills, enabling individuals to enhance their SQ.

Dr. Thelma Hunt, a psychologist, developed the George Washington Social Intelligence Test in 1928. This test assessed social intelligence through various skills, including observing human behavior, evaluating social environments, decision-making, remembering names and faces, and demonstrating a sense of humor.

Fostering Positive and Collaborative Interactions
Farzana while mentioning the ability to communicate clearly and confidently is a key aspect of SI said, “Good communication skills are essential for effective interactions and include verbal fluency and body language—both important tools of social intelligence.” She explained that these skills help others understand your intentions and create stronger connections. SI enhances communication by helping you recognize the emotions, body language, and needs of others. It enables you to adjust your tone, words, and actions to fit the situation, making conversations smoother, more meaningful, and impactful.
“By developing skills in empathy, awareness, and adaptability, you can navigate social interactions more effectively, build stronger relationships, and foster a positive, collaborative environment. Social intelligence enables genuine connections by helping you approach others with understanding and respect. Ultimately, socially intelligent individuals make people feel valued and comfortable, establishing trust and lasting relationships,” Farzana added.

Mody, while stating that SI individuals excel not only in one-on-one interactions but also in group settings, said, they can read the room, understand the collective mood, and influence group behavior in a positive direction. This skill is particularly valuable in team environments, where collaboration, coordination, and synergy are key to success. Social intelligence enables individuals to mediate conflicts, motivate teams, and create an atmosphere where everyone feels heard and valued. By understanding group dynamics and managing interactions effectively, socially intelligent people can lead teams more successfully, drive group cohesion, and achieve common goals more efficiently.

By nurturing emotional and social intelligence alongside IQ, one can achieve a balanced, successful, and fulfilling life, unlocking the potential to inspire, connect, and thrive in diverse settings.

Spixels: Empowering Specially Abled Photographers to Shine

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In a world that often overlooks the potential of differently-abled individuals, Spixels is breaking barriers and changing the narrative. Founded by a brand strategist, Meghna Agnihotri, the platform showcases and validates the talent of specially-abled photographers across India, encouraging them to pursue job opportunities and build sustainable careers in photography.

The Spark of an Idea

Meghna’s journey began in Pondicherry, where she first encountered the inspiring work of Satya Special School, an institution that has been pioneering opportunities for special children. “It was at Satya Special School that I realized the immense talent that often goes unnoticed,” she shared. Chitra Shah, the founder of Satya, encouraged her to explore the world of inclusion and assured her of support. With this guidance, Spixels was born, a platform dedicated to showcasing the creativity of specially-abled photographers.

What started as a simple idea quickly turned into a national movement, with blessings from the Sri Aurobindo Ashram and the enthusiastic participation of students from Satya School.

Celebrating Talent Across India

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Spixels 2024: Life in the Bylanes of the City

The theme for Spixels 2024 was “Life in the Bylanes of the City,” inviting differently-abled photographers to capture the essence of city life from their unique perspectives. Whether it’s the hustle of the market, the quiet corners of a neighborhood, or the vibrant street culture, this year’s theme challenges participants to explore the urban landscape through their lenses.

This year, Spixels has brought together over 100 specially-abled photographers from across India. The competition was fierce, with only the most outstanding works were selected for the prestigious exhibition in Mumbai this December. Shortlisted photographers had their work displayed and received certificates recognising their exceptional contribution.

Notable winners include Bharat Kumar from Delhi, who has been a consecutive winner this year, and participants from schools like Punarvas, Victoria Memorial School, and Adapt in Mumbai. These photographers aren’t just taking photos—they are telling stories, capturing moments, and showcasing perspectives that are often left untold.

“Spixels harnesses the power of digital platforms to provide specially-abled photographers with visibility and global reach. It encourages financial independence by urging trainers, parents, and caregivers to explore career opportunities in photography, a viable path for those with passion and skill. The platform fosters real-world interactions, allowing photographers to engage with diverse individuals and capture unique stories. Spixels also offers national recognition, boosting confidence and creating a sense of purpose. As the competition grows fiercer each year, participants are driven to refine their skills and showcase their best work,” said Farzana Contractor, one of the jurists.

Looking Ahead: Global Expansion and More Opportunities

As Spixels celebrated its sixth anniversary, Meghna has her eyes set on global expansion. Spixels 2025 is poised to become an international competition, bringing together specially-abled photographers from across the globe. With the addition of an international celebrity who will sign the pictures, the platform is set to elevate its global stature.

Beyond the competition, Spixels is committed to providing further opportunities for growth. Meghna envisions conducting masterclasses to benefit not only the photographers but also their families, offering them valuable skills and tools to navigate the competitive job market. Discussions on creating job opportunities for specially-abled individuals will be a key focus, aiming to make inclusion an everyday reality, not just a distant dream.

Spixels 2024 celebrated their talent but also challenge societal perceptions of what differently-abled individuals are capable of. Spixels is more than just a photography competition—it’s a movement that empowers specially-abled individuals to tell their stories, seek professional opportunities, and break through the barriers of societal expectations.

किराए की पत्नी के साथ गुजारें वक्त, पसंद आने पर ही करें शादी

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क्या आपकी दिली ख़्वाहिश रही है, कि आपको हमसफ़र के रूप में एक ऐसी बेहद ख़ूबसूरत पत्नी मिले, जो आपको टूट कर चाहे। आपकी ख़ूब केयर करें। आपकी छोटी-मोटी ज़रूरतों का भी ध्यान रखे। शाम को जब आप घर लौटें तो वह आपकी राह देखती मिले। और, आपको भरपूर यौनसुख भी दे… लेकिन किन्हीं भी कारणों से आपकी ख़्वाहिश अधूरी रह गई, क्यों आपको आपकी पसंद के अनुसार लड़की नहीं मिली और आपकी शादी नहीं हो पाई। इस वजह से आप कुंवारे ही रह गए। यानी पत्नी-सुख पाने की आपकी यह अदद ख़्वाहिश पूरी ना हो सकी। तो आप बिल्कुल निराश मत होइए, क्योंकि अब आपकी अतृप्त हसरत पूरी हो सकती है।

जी हां, अब आप पहले ट्रायल के रूप में ‘किराए की पत्नी’ (Rental Wife) के साथ समय बिता सकते हैं। आप उसके साथ जितना चाहें वक़्त गुज़ार सकते हैं और कुछ दिन या महीने उसके साथ अपना क्वालिटी टाइम स्पेंड कर सकते हैं। यह व्यवस्था आपको यह समझने का मौक़ा देती है कि वह महिला आपकी अपेक्षाओं पर खरी उतरती है या नहीं। यदि वह आपकी उम्मीदों के अनुसार जीवनसाथी साबित होती है, तो आप उससे शादी कर उसे स्थायी रूप से अपना हमसफ़र बना सकते हैं। और, किराए की पत्नी आपको पसंद न आए तो आप दूसरी किराए की पत्नी लेकर उसका भी ट्रायल ले सकते हैं। इस तरह दो-तीन या चार-पांच ट्रायल लेने के बाद कोई न कोई किराए की पत्नी ज़रूर आपको पसंद आ जाएगी और वह न केवल आपकी तन्हाई को दूर करेगी बल्कि आपकी वीरान दुनिया को रौशन कर देगी।

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अनोखी बनी वैश्विक बहस का हिस्सा
दुनिया भर में अपने ख़ूबसूरत समुद्र तटों, उदार एवं अनूठी संस्कृति और आतिथ्य-सत्कार के लिए चर्चित एशियाई देश थाईलैंड में हाल ही में ‘किराए की पत्नी’ की इस परंपरा की शुरुआत हुई है। इस अनोखी पहल की वजह से थाईलैंड इन दिनों सुर्खियों में है। इस चलन को रेंटल वाइफ़ के नाम से जाना जा रहा है। इसे ‘वाइफ ऑन हायर’ और ‘ब्लैक पर्ल’ भी कहा जाता है। हाल ही में प्रकाशित किताब “थाईलैंड्स टैबू: द राइज ऑफ वाइफ रेंटल इन मॉडर्न सोसाइटी” ने इस अनोखी प्रथा के बारे में गहराई से जानकारी देकर इसे वैश्विक बहस का हिस्सा बना दिया है।

परंपरा को विस्तार से समझने की ज़रूरत
दरअसल, थाईलैंड के इस अनोखी परंपरा को विस्तार से समझने की ज़रूरत है। मसलन, यह परंपरा कैसे शुरू हुई? इसका समाज और देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव हो रहा है। इसके अलावा इस प्रथा के क़ानूनी और नैतिक पक्ष क्या कहते हैं, और सबसे ऊपर इस चलन पर वैश्विक दृष्टिकोण क्या है। दुनिया के लोग इसके बारे मैं कैसा सोचते हैं और इस परंपरा को कितना प्रतिसाद यानी रेस्पॉन्स मिल रहा है।

पर्यटन अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ
दुनिया जानता है कि थाईलैंड दक्षिण पूर्व एशिया का प्रमुख पर्यटन स्थल है। हर साल करोड़ों की तादाद में पर्यटक इस देश की यात्रा करते हैं। लोग इस देश के प्राकृतिक सौंदर्य, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और मनोरंजन स्थलों का भरपूर आनंद लेते हैं। इस देश में पटाया, बैंकॉक और फुकेट जैसे स्थान अपने नाइटलाइफ और मनोरंजन के लिए दुनिया भर में मशहूर हैं। है। देश में कई उद्योग इसी पर्यटन पर निर्भर हैं, और इससे वहां के लाखों लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है। अब पर्यटन के साथ-साथ थाईलैंड में ‘किराए की पत्नी’ जैसी चर्चित परंपरा भी शुरू हो गई है।

क्या है ‘किराए की पत्नी’ का चलन?
‘किराए की पत्नी’ का मतलब है किसी युवती को पैसे देकर अस्थायी रूप से पत्नी के रूप में अपने साथ रखना। यह कोई औपचारिक विवाह नहीं होता, बल्कि एक अस्थायी कॉन्ट्रैक्ट होता है। इस दौरान युवती पत्नी की भूमिका निभाती है और पति-पत्नी के सभी दायित्व पूरे करती है। वह कॉन्ट्रैक्ट करने वाले पुरुष के साथ एक अपार्टमेंट या होटल में रहती है और पत्नी की हर ज़िम्मेदारी का ईमानदारी से निर्वहन करती है। मतलब, उसके साथ आप कुकिंग का आनंद ले सकते हैं, ड्रिंक का आनंद ले सकते हैं, और बिस्तर पर सेक्स का भी भरपूर आनंद ले सकते हैं। हालांकि यह प्रथा पिछले कई साल से प्रचलन में है, लेकिन हाल के वर्षों में इसका दायरा और प्रभाव तेजी से बढ़ा है। इस प्रथा का प्रमुख केंद्र थाईलैंड का पटाया शहर है। अपने रेड लाइट इलाकों, बार और नाइट क्लबों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।

किताब ने खोला ‘रेंटल वाइफ’ का सच
हाल ही में प्रकाशित किताब “थाईलैंड्स टैबू: द राइज ऑफ वाइफ रेंटल इन मॉडर्न सोसाइटी” ने इस प्रथा को वैश्विक चर्चा का विषय बना दिया। इस किताब के लेखक लावर्ट ए इमैनुएल ने ‘किराए की पत्नी’ प्रथा के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर गहराई से प्रकाश डाला है। किताब में बताया गया है कि यह प्रथा कैसे गरीब और पिछड़े इलाकों की महिलाओं के लिए आय का प्रमुख स्रोत बन गई है। साथ ही, यह भी उजागर किया गया है कि किस तरह यह प्रथा धीरे-धीरे एक व्यवसाय का रूप ले चुकी है और इसके लिए कोई कानूनी नियम नहीं हैं।

कैसे काम करता है यह सिस्टम?
‘किराए की पत्नी’ का सिस्टम पूरी तरह से पैसे पर आधारित है। आमतौर पर यह प्रक्रिया कई चरणों में होती है। बार, नाइट क्लब या रेड लाइट इलाकों में पर्यटक ऐसी महिलाओं से संपर्क करते हैं, जो रेंटल वाइफ़ की सेवा की पेशकश करती हैं। इसके बाद ग्राहक और कुंवारी महिला के बीच बातचीत और सहमति बनने के बाद एक अस्थायी अनुबंध पर हस्ताक्षर किया जाता है। इस अनुबंध में समय यानी अवधि और भुगतान की राशि लिखी की जाती है। यह भी लिखा जाता है कि वह महिला निर्धारित समय तक पत्नी के ही क़िरदार में रहेगी। यह अनुबंध वैधानिक होता है, कोई पक्ष मुकर नहीं सकता।

पत्नी की भूमिका निर्वहन
अस्थायी अनुबंध में वर्णित समय के लिए महिला पुरुष की पत्नी की भूमिका में पूरी सर्विस देती है। पुरुष के साथ एक ही कमरे में रहती है। वह साथ खाती है, ड्रिंक करती है, ज़रूरत पड़ने पर मसाज करती है और भरपूर यौनसुख प्रदान करती है। और हर मनवांछित किरदार में पूरी सर्विस देती है। अनुबंध की अवधि समाप्त होने के बाद यह संबंध भी समाप्त हो जाता है और वह कुंवारी महिला अपने घर चली जाती है। महिला पसंद आने अगर ग्राहक चाहे तो साथ रहने की समय सीमा बढ़ा सकता है। महिला से पुरुष के पूरी तरह से संतुष्ट होने और महिला भी पुरुष के व्यवहार आदि से संतुष्ट होने पर दोनों शादी करके स्थायी रूप से एक दूसरे के साथ सामान्य पति-पत्नी की तरह रह सकते हैं।

रेंट उम्र और सुंदरता पर आधारित
इन दिनों थाईलैंड में कई महिलाएं, खासकर ग्रामीण और गरीब पृष्ठभूमि से आने वाली, इस प्रथा को अपनाने लगी हैं। उनके लिए यह आय का प्रमुख स्रोत बन गया है। रेंटल वाइफ़ के किराए की रकम महिला की उम्र, सुंदरता, शिक्षा और अवधि पर निर्भर करती है। यह रकम 1600 डॉलर से लेकर 116000 डॉलर तक हो सकती है। थाईलैंड की अधिकांश महिलाएं पहले बार या नाइट क्लब में काम करती हैं। बेहतर ग्राहक मिलने पर उसकी ‘किराए की पत्नी’ बनने का फैसला कर लेती हैं।

जापान, कोरिया में ‘रेंटल रिलेशनशिप’
दरअसल, ‘किराए की पत्नी’ की यह प्रथा थाईलैंड में नई नहीं है। जापान और कोरिया में पहले से ही ‘रेंटल रिलेशनशिप’ की अवधारणा मौजूद है। वहां लोग किराए पर पत्नी, मां, पिता और यहां तक कि दोस्त भी रखते हैं। थाईलैंड में यह प्रथा हाल ही में तेजी से फैली है। इसके कई कारण हैं। वस्तुतः शहरीकरण के कारण लोगों की जीवनशैली बदल गई है। व्यस्त जीवन और अकेलेपन के चलते लोग स्थायी रिश्तों के बजाय अस्थायी संबंधों को प्राथमिकता देने लगे हैं। थाईलैंड की संस्कृति में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और रिश्तों को लेकर लचीलापन है। इससे यह परंपरा ख़ूब फल-फूल रही है। आजकल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाएं इस प्रथा को रोज़गार का प्रमुख साधन मान रही हैं।

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थाई सरकार का उदार दृष्टिकोण
थाईलैंड की सरकार ने स्वीकार किया है कि ‘किराए की पत्नी’ की यह प्रथा देश में मौजूद है। यह संस्कृति बड़ी तेजी से फैल रही है। अब यह पटाया के अलावा दूसरे प्रमुख शहरों में फैलती जा रही है। पर्यटन उद्योग से जुड़े होने के कारण इसे पूरी तरह ख़त्म करना मुश्किल है। हालांकि, सरकार का मानना है कि इसे नियंत्रित करने और महिलाओं के शोषण को रोकने के लिए क़ानून बनाए जाने की जरूरत है। ‘किराए की पत्नी’ की प्रथा नैतिक और सामाजिक विवाद का विषय है। कई संगठनों का मानना है कि यह प्रथा महिलाओं के शोषण और उनके अधिकारों के हनन का प्रतीक है। कई लोग कहते हैं कि ‘किराए की पत्नी’ की यह प्रथा पारंपरिक परिवार व्यवस्था को कमजोर करती है और समाज में अस्थिरता पैदा कर सकती है। हालांकि कुछ लोग इसे आधुनिक समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और नए संबंधों की आवश्यकता के रूप में देखते हैं।

प्रथा की आलोचना और समर्थन
‘किराए की पत्नी’ की इस प्रथा को लेकर समाज में मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं। इसका विरोध करने वाले इसे महिलाओं का शोषण और पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ मानते हैं। समर्थक इसे महिलाओं के लिए रोजगार और आर्थिक आत्मनिर्भरता का जरिया मानते हैं। जो भी हो ‘किराए की पत्नी’ का चलन थाईलैंड के पर्यटन उद्योग का विवादित पहलू है। यह एक तरफ महिलाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करता है, तो दूसरी तरफ सामाजिक और नैतिक सवाल खड़े करता है। थाईलैंड सरकार और समाज को मिलकर इस प्रथा के आर्थिक, सामाजिक और कानूनी पहलुओं पर ध्यान देना होगा। इसे नियंत्रित करने के लिए कानून बनाना, महिलाओं की शिक्षा और रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान करना और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना जरूरी है। अंत में, यह प्रथा थाईलैंड की बदलती सामाजिक और आर्थिक संरचना का प्रतीक है। इसे समझने और सही दिशा में ले जाने के लिए गहरी समझ और सतर्कता की जरूरत है।

 

हिंदूवादी पुलिस की तारीफ करती है; तू मुसलमान नहीं बल्कि काफिर है। मैं तुझे तलाक देता हूं।

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संभल हिंसा में पुलिस एक्शन सही कहने पर ट्रिपल तलाक

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से आई एक चौंकाने वाली घटना ने हमारे समाज के बदलते चेहरे और वैवाहिक संबंधों की गहराई पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां एक पति ने महज इस बात पर अपनी पत्नी को तीन तलाक दे दिया क्योंकि उसने संभल हिंसा में पुलिस की कार्रवाई की तारीफ कर दी थी। यह घटना न केवल धार्मिक असहिष्णुता का नमूना है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे एक महिला के विचार व्यक्त करने का अधिकार, पारिवारिक और धार्मिक पहचान के नाम पर कुचला जा सकता है। पति ने पत्नी को “काफिर” कहकर उसकी धार्मिक आस्था पर हमला किया, जो इस बात का संकेत है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक मान्यताओं के बीच खाई कितनी गहरी हो गई है। इस घटना ने ट्रिपल तलाक पर बने कानून और महिलाओं के अधिकारों को लेकर एक नई बहस को जन्म दिया है।

इस घटना का संपूर्ण विवरण
मुरादाबाद के एजाजुल आब्दीन (Ejazul Abdeen) ने अपनी पत्नी निदा जावेद (Nida Javed) को कथित तौर पर “तलाक-तलाक-तलाक (Talaq-Talaq-Talaq)” कहकर छोड़ दिया। इसका कारण सिर्फ इतना था कि निदा ने संभल हिंसा में पुलिस की कार्रवाई की सराहना की थी। निदा दरअसल, शुक्रवार को मोबाइल पर संभल हिंसा का वीडियो देख रही थी। जब उसने देखा के कई मुसलमान पुलिस पर पथराव कर रहे हैं और जवाबी कार्रवाई में पुलिस उनके खिलाफ ऐक्शन ले रही है। निदा ने कहा अच्छा कर रही ही पुलिस। उपद्रवियों से ऐसे ही निपटना चाहिए।

उसके पति एजाजुल ने उसकी बात सुन ली। वह आग-बबूला हो गया। उसने अपनी पत्नी पर हिंदुओं का समर्थन करने का आरोप लगाया और कहा, “तू मुसलमान नहीं, बल्कि काफिर है।” इस घटना ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या एक व्यक्ति के विचार प्रकट करने का अधिकार उसकी धार्मिक पहचान को चुनौती देने का कारण बन सकता है? निदा ने इस मामले में पुलिस के समक्ष गुहार लगाई है। एसएसपी से मुलाकात कर उसने पूरे मामले की जानकारी दी। पीड़िता ने तीन तलाक दिए जाने के मामले में पति और ससुरालवालों पर गंभीर आरोप भी लगाए हैं। एसएसपी ने महिला थाना की एसएचओ को मामले की जांच के आदेश दिए हैं। मामला कटघर थाना क्षेत्र इलाके के गांव का है।

ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध और कानूनी पहलू
भारत में 2019 में ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध लगाकर इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। यह निर्णय मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए लिया गया। कानून के अनुसार, ट्रिपल तलाक देने पर तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इसके बावजूद, ऐसी घटनाएं सामने आना दर्शाता है कि समाज के कुछ हिस्से अब भी इस प्रथा से मुक्त नहीं हो पाए हैं।

महिलाओं के अधिकार और सामाजिक दबाव
निदा का मामला इस बात की ओर इशारा करता है कि भारतीय समाज में आज भी महिलाओं को स्वतंत्र विचार रखने और अपनी राय व्यक्त करने पर सजा भुगतनी पड़ती है। यह सवाल उठता है कि क्या महिलाओं के अधिकार सिर्फ कागजों पर सीमित हैं, या समाज में उनकी वास्तविक स्थिति बदल रही है? निदा ने पुलिस की कार्रवाई की तारीफ की, जो उनकी व्यक्तिगत राय थी। लेकिन इसके लिए उनके धार्मिक विश्वास पर सवाल उठाना और उन्हें तलाक देना समाज में मौजूद पितृसत्तात्मक सोच को उजागर करता है।

धार्मिक विचारधारा बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता
इस घटना में एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि व्यक्तिगत विचारधारा को धार्मिक पहचान के साथ जोड़कर देखा गया। क्या किसी की राय उसके धर्म का निर्धारण कर सकती है? एजाजुल का यह कहना कि “तू मुसलमान नहीं, काफिर है” यह दिखाता है कि कैसे कुछ लोग धर्म का इस्तेमाल निजी संबंधों को तोड़ने के लिए कर रहे हैं। यह समाज में असहिष्णुता की बढ़ती प्रवृत्ति का संकेत है।

पुलिस कार्रवाई पर बहस
संभल हिंसा में पुलिस की भूमिका पर विभिन्न विचार हो सकते हैं, लेकिन निदा ने जो कहा, वह एक नागरिक के रूप में उनकी राय थी। पुलिस की कार्रवाई की सराहना करना एक गैरकानूनी या अनैतिक कार्य नहीं है। लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है। इस संदर्भ में, एजाजुल का ऐसा व्यवहार समाज के उन तत्वों को दर्शाता है जो असहमति या अलग विचारों को स्वीकार नहीं कर सकते।

समाज में बदलाव की आवश्यकता
इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि समाज में अभी भी धार्मिक और पितृसत्तात्मक सोच का गहरा प्रभाव है। हालांकि ट्रिपल तलाक पर कानून बनाकर सरकार ने महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने की कोशिश की है, लेकिन इसका सही प्रभाव तभी दिखेगा जब समाज भी इस बदलाव को स्वीकार करेगा। महिलाओं को स्वतंत्रता, सम्मान, और सुरक्षा प्रदान करना केवल कानून का ही नहीं, बल्कि समाज का भी दायित्व है।

सरकार और कानून की भूमिका
सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ट्रिपल तलाक पर कानून का सख्ती से पालन हो। इसके लिए जागरूकता अभियान चलाना और पीड़ित महिलाओं को कानूनी सहायता प्रदान करना जरूरी है। निदा के मामले में भी यह देखना होगा कि क्या कानून के तहत उन्हें न्याय मिलता है।

मुरादाबाद की यह घटना एक व्यक्ति की स्वतंत्रता, महिला अधिकार, धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक संरचना से जुड़े कई सवाल खड़े करती है। यह केवल एक व्यक्तिगत विवाद नहीं है, बल्कि समाज के गहरे मुद्दों को उजागर करती है। आवश्यकता है कि इस घटना को सिर्फ एक खबर के तौर पर न देखकर, इसे बदलाव का एक अवसर बनाया जाए। महिलाओं को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, और इसे छीनने का किसी को अधिकार नहीं। इस दिशा में समाज और सरकार दोनों को मिलकर काम करना होगा, ताकि ऐसी घटनाएं भविष्य में न हों।