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देवेंद्र फडणवीस हो सकते हैं नरेंद्र मोदी के सबसे योग्य उत्तराधिकारी

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हरिगोविंद विश्वकर्मा
देश को स्वतंत्र हुए लगभग-लगभग आठ दशक बीतने को हैं, लेकिन अब तक कोई मराठीभाषी नेता प्रधानमंत्री पद को सुशोभित नहीं कर सका है। महाराष्ट्र के गौरवशाली राजनीतिक इतिहास में कई नेता हुए, जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका निभाई। संविधान के शिल्पी डॉ. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर भी प्रधानमंत्री बनने की कूवत रखते थे, लेकिन सवर्ण डिमिनेटड भारतीय राजनीति में उनका दलित बैकग्राउड आड़े आ गया। कालांतर में यशवंतराव चव्हाण और शरद पवार जैसे दिग्गजों ने प्रधानमंत्री बनने का सपना देखा और प्रयास भी किए, लेकिन वे उस सर्वोच्च पद तक नहीं पहुंच सके। शिवसेना के संस्थापक हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे में भी देश का प्रधानमंत्री बनने की क्षमता थी, लेकिन न तो उन्होंने चुनाव लड़ा और न ही चुनावी राजनीति में सक्रिय हुए। अब यानी 2024 में इस पृष्ठभूमि में, महाराष्ट्र के नेता देवेंद्र फडणवीस का नाम उभर रहा है, जो आने वाले समय में इस स्थिति को बदल सकते हैं।

महाराष्ट्र के जनमानस में यह भावना गहराई तक बसी हुई है कि कभी तो किसी मराठी मानुस को देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होना चाहिए। हालांकि, राजनीतिक समीकरण और समय के साथ बदलते समीकरणों ने अब तक यह अवसर नहीं दिया। महाराष्ट्र के रामटेक से सांसद पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री जरूर बने, लेकिन वह मराठीभाषी नहीं, बल्कि तेलुगूभाषी नेता थे। ऐसे में, मराठी समाज की दबी इच्छा है कि एक नेता तो ऐसा उभरना चाहिए, जो न केवल उनकी आकांक्षाओं को समझे, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत प्रभाव भी डाल सके। ऐसे समय जब मराठी लीडरशिप पर नज़र दौड़ाते हैं तो केवल एक ही नाम संभावनाशील नज़र आता है और वह नाम है देवेंद्र फडणवीस का। फडणवीस का नाम महाराष्ट्र की राजनीति में स्थिरता और सशक्त नेतृत्व के लिए जाना जाता है। इसलिए निकट भविष्य में मराठी जनता की आकांक्षा को वही साकार कर सकते हैं। यक़ीन मानिए यदि मौजूदा विधानसभा चुनावों में वह भारी जनादेश के साथ मुख्यमंत्री बनते हैं, तो उनका कद राष्ट्रीय राजनीति में और बढ़ सकता है।

भारत की राजनीतिक परंपरा में मुख्यमंत्रियों का प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना कोई नई बात नहीं है। ख़ुद नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी सशक्त प्रशासनिक छवि बनाकर राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाई और प्रधानमंत्री बने। इसी तरह एचडी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बनने से पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे। और पहले जाएं तो विश्वनाथ प्रताप सिंह और चौधरी चरण सिंह भी एक समय में उत्तर प्रदेश के चीफ मिनिस्टर थे। तो देवेंद्र फडणवीस भी इस परंपरा के अगले प्रतिनिधि हो सकते हैं। फडणवीस का प्रशासनिक अनुभव, भ्रष्टाचार-मुक्त छवि, और जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता उन्हें इस पद के लिए एक मजबूत दावेदार बनाती है।

बेशक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व भारतीय राजनीति के इतिहास में अद्वितीय है। कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 और 35-ए को समाप्त करने के उनके कदम ने उन्हें इतिहास-पुरुष बना दिया है। उनकी लोकप्रियता और कार्यशैली ने भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर अजेय शक्ति बना दिया है। लेकिन यह सर्वविदित है कि हर नेता का एक युग होता है। मोदी का भी एक युग है। ऐसे में यह चर्चा स्वाभाविक है कि मोदी के बाद भाजपा का नेतृत्व कौन करेगा। इस दौड़ में फिलहाल मुख्य रूप से तीन नाम सामने आते हैं— गृहमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस। इन तीनों नेताओं की ताकत, राजनीतिक सूझबूझ, और राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता की तुलना करने पर यही लगता है कि ओवरऑल परफॉर्मेंस में तीनों में देवेंद्र फडणवीस बेहतर साबित हो सकते हैं।

अमित शाह को भाजपा के चाणक्य के रूप में जाना जाता है। उन्होंने पार्टी संगठन को मजबूत करने और देशभर में भाजपा के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत में उनकी अहम भूमिका रही। लेकिन उनका की सबसे बड़ी कमजोरी उनकी जनस्वीकार्यता है। शाह का जनता के साथ सीधा जुड़ाव बहुत सीमित है। उनके बेटे जय शाह को लेकर उन पर आरोप लगते रहते हैं। लिहाज़ा, उनकी मौजूदा योग्यता प्रधानमंत्री पद के लिए पर्याप्त नहीं है। इसी तरह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहचान एक मज़बूत, सख़्त और धर्मपरायण नेता की रही है। यूपी में उन्होंने क़ानून-व्यवस्था सुधारने और प्रशासनिक ढांचे को मज़बूत करने के लिए कई क़दम उठाए। उनका हिंदुत्व-प्रेरित राजनीतिक दृष्टिकोण भाजपा के कोर वोट बैंक को मज़बूती देता है। लेकिन योगी की छवि ध्रुवीकरण करने वाले नेता की है। यह उनके प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में बड़ी बाधा बन सकती है।

वस्तुतः भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री पद के लिए आवश्यक है कि नेता सभी समुदायों, वर्गों और विचारधाराओं को साथ लेकर चल सके। प्रधानमंत्री के रूप में एक ऐसे नेता की आवश्यकता होती है, जो न केवल पार्टी के भीतर, बल्कि देशभर में हर वर्ग के लोगों को प्रेरित कर सके। इस सांचे में फडणवीस एकदम फिट बैठते हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत उनकी सौम्य संतुलित छवि और प्रशासनिक कुशलता है। एक मध्यमार्गी नेता के रूप में, वे विभिन्न वर्गों और समुदायों में स्वीकार्य हैं। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने महाराष्ट्र को स्थिर नेतृत्व प्रदान किया और कई महत्वपूर्ण विकास योजनाओं को लागू किया। उनकी छवि भ्रष्टाचार-मुक्त और प्रशासनिक दक्षता वाली है। राष्ट्रीय स्तर पर, फडणवीस का कोई विवादास्पद इतिहास नहीं है, जो उन्हें अमित शाह और योगी की तुलना में सर्वस्वीकार्य और समावेशी नेता के रूप में स्थापित करता है। महाराष्ट्र जैसे प्रमुख राज्य से आने के कारण उनका राष्ट्रीय कद भी बड़ा है।

देवेंद्र फडणवीस की राजनीति कट्टरता से दूर रही है। उनकी छवि प्रगतिशील, विकास-उन्मुख और समावेशी नेता की है। यह उन्हें योगी के मुक़ाबले अधिक व्यापक जनसमर्थन दिलाने में मदद करता है। महाराष्ट्र जैसे आर्थिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य का नेतृत्व करना फडणवीस के अनुभव को और गहरा एवं प्रभावी बनाता है। उनकी योजनाएं और नीतियां किसानों, युवाओं और शहरी वर्ग को साथ लेकर चलती हैं, जो उन्हें अमित शाह से अलग बनाती हैं, जिनकी भूमिका मुख्यतः संगठनात्मक रही है। फडणवीस की छवि एक आधुनिक और प्रगतिशील नेता की है, जो उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी स्वीकार्य बनाती है। प्रधानमंत्री के रूप में यह गुण महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिनिधित्व करने के लिए एक संतुलित और दूरदर्शी नेता की जरूरत है। इसीलिए मोदी के बाद भाजपा के संभावित उत्तराधिकारियों की चर्चा में फडणवीस का नाम बार-बार सामने आता है। अगर महाराष्ट्र के मतदाता उन्हें भारी समर्थन देते हैं, तो यह उनके राष्ट्रीय कद को और मजबूत करेगा।

यह मराठी समाज पर निर्भर करता है कि वह देवेंद्र फडणवीस जैसे समर्थ नेता का समर्थन करे या उन नेताओं को चुने, जिनकी पहचान राज्य के बाहर सीमित है। शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने एक बार कांग्रेस की प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन दिया था, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वह मराठी थीं। क्या मराठी समाज अब वही एकजुटता फडणवीस के लिए दिखाएगा? मराठी जनता को यह समझने की जरूरत है कि फडणवीस का प्रधानमंत्री बनना केवल उनके व्यक्तिगत कद को ही नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका को भी नई ऊंचाई देगा। यह राज्य के लिए गर्व की बात होगी और मराठी अस्मिता को एक नई पहचान देगा।

फडणवीस की सबसे बड़ी ताकत उनकी राजनीतिक सूझबूझ, शालीनता, और जमीनी स्तर पर काम करने की क्षमता है। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए राज्य के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू कीं। उनका फोकस हमेशा युवाओं, किसानों, और उद्योगों पर रहा। इसके अलावा, उनकी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ मजबूत समीकरण उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाता है। नरेंद्र मोदी का उन पर भरोसा उनके लिए राष्ट्रीय राजनीति के दरवाजे खोल सकता है।

हर मज़बूत नेता के सामने चुनौतियां होती हैं, और फडणवीस के मामले में भी ऐसा ही है। महाराष्ट्र यानी उनके अपने राज्य में उनके विरोधियों की लंबी फेहरिस्त है, जिसमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) और शिवसेना (यूबीटी) जैसे दल शामिल हैं। इसके अलावा, मराठी समाज के भीतर भी कई ऐसे वर्ग हैं, जो उनकी नीतियों से असहमत हो सकते हैं। इसलिए राष्ट्रीय राजनीति में उनकी स्थिति मजबूत होने के लिए जरूरी है कि फडणवीस राज्य में अपनी पकड़ बनाए रखें और सशक्त नेतृत्व प्रस्तुत करें। उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनकी सरकार की योजनाएं आम जनता तक पहुंचें और उनका प्रभाव दिखाई दे।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत दिलाने में सफल होते हैं, तो यह उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं को और प्रबल करेगा। महाराष्ट्र जैसे बड़े और महत्वपूर्ण राज्य से आने वाले नेता के रूप में वे राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। फडणवीस की राजनीति केवल सत्ता हासिल करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी दृष्टि में एक ऐसा भारत है, जो प्रगतिशील, सशक्त और एकजुट हो। यदि वे प्रधानमंत्री बनते हैं, तो यह महाराष्ट्र और देश दोनों के लिए एक नई शुरुआत होगी।

देवेंद्र फडणवीस की राजनीतिक यात्रा प्रेरणादायक है और उनकी भविष्य की संभावनाएं उत्साहजनक। मराठी समाज को इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि क्या वे फडणवीस जैसे सशक्त नेता को प्रधानमंत्री पद की दौड़ में देखना चाहते हैं। यदि मराठी जनता एकजुट होकर उनका समर्थन करती है, तो यह न केवल महाराष्ट्र के लिए एक गर्व का क्षण होगा, बल्कि भारत की राजनीति में भी एक नया अध्याय जोड़ेगा। फडणवीस का प्रधानमंत्री बनना मराठी मानुस के सपने को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।

चुनाव प्रचार के नाम पर मुंबई में पार्टी कर रहे हैं यूपी के विधायक

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मुंबई मेट्रो रिजन की लगभग 65 सीटों पर निर्णायक साबित होंगे उत्तर भारतीय मतदाता

मुंबई। अगले महीने होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए विभिन्न पार्टियों ने अपनी चुनावी रणनीति को तेज कर दी है। भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने विधान सभा चुनाव में अपने दल के उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल बनाने और उन्हें उत्तर भारतीय वोट को दिलाने में मदद के लिए अपने विधायकों और वरिष्ठ नेताओं को चुनाव प्रचार सम्पन्न होने तक मुंबई में रहने का निर्देश दिया है। ढेर सारे नेता मुंबई प्रवास पर हैं भी लेकिन ज़्यादा लोग चुनाव प्रचार के नाम पर शहर में घूम-घूम कर पार्टी कर रहे हैं। रोज़ कहीं न कहीं मेहमान नेताजी के लिए मटन चिकन की पार्टियां रखी जा रही हैं।

मुंबई शहर और मुंबई सबर्बन के अलावा ठाणे, पालघर और रायगड़ के मुंबई मेट्रो रिजन की लगभग 65 सीटों पर उत्तर भारतीय मतदाताओं का वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं, क्योंकि लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय मतदाता हैं। ख़ासकर अंधेरी, वर्सोवा, वाकोला, चांदिवली, गोरेगांव, मालाड, कांदिवली बोरिवली, दहिसर, मीरा-भाइंदर, वसई-विरार और बेलापुर जैसे विधान सभा क्षेत्र उत्तर भारतीय बाहुल्य क्षेत्र हैं। इसलिए, सभी प्रमुख पार्टियों ने उत्तर प्रदेश के अपने-अपने नेताओं को मैदान में उतारा है ताकि ये नेता मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर सकें और चुनावी माहौल को पार्टी के पक्ष में मोड़ सकें।

यह देखा जा रहा है कि मुंबई में चुनाव प्रचार की गंभीरता के बजाय, कई नेताओं की प्राथमिकताएं कुछ और ही दिख रही हैं। यहां से स्थानीय नेता आरोप लगाए जा रहे हैं कि यूपी से आए विधायक और नेता वास्तव में चुनावी गतिविधियों से ज्यादा अपनी व्यक्तिगत मौज-मस्ती और पार्टी करने में व्यस्त हैं। ये नेता शहर के विभिन्न हिस्सों में पार्टी करते हुए देखे जा रहे हैं, और अपने समय का अधिकांश हिस्सा मटन, चिकन और अन्य व्यंजनों का लुत्फ उठाने में बिता रहे हैं। इससे राजनीतिक गलियारों में चर्चा गर्म है कि क्या ये नेता वास्तव में पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं या केवल अपना समय आनंद लेने में बिता रहे हैं।

मुंबई के उत्तर भारतीय बाहुल्य इलाकों में वोट का महत्व किसी से छुपा नहीं है। उत्तर भारतीय मतदाता हर चुनाव में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इन सीटों पर उत्तर भारतीय मतदाताओं का वोट किस पार्टी को जाता है, इससे चुनावी परिणाम सीधे तौर पर प्रभावित हो सकते हैं। इसी कारण से भाजपा, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसी प्रमुख पार्टियों ने अपने नेताओं को मुंबई भेजा है ताकि वे मतदाताओं से सीधा संवाद कर सकें और उन्हें अपने पक्ष में वोट डालने के लिए प्रोत्साहित कर सकें।

उत्तर भारतीय मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में भाजपा ने उत्तर प्रदेश के कई बड़े नेताओं और विधायकों को मुंबई भेजा है। वहीं, कांग्रेस ने भी अपनी ओर से उत्तर प्रदेश से कुछ प्रमुख चेहरों को चुनाव प्रचार के लिए बुलाया है। सपा ने भी अपने कई वरिष्ठ नेताओं को मैदान में उतारा है, ताकि वे मुंबई के उत्तर भारतीय समुदाय से जुड़ सकें और उन्हें अपनी पार्टी के पक्ष में वोट देने के लिए प्रेरित कर सकें।

हालांकि, जमीनी स्तर पर प्रचार की स्थिति कुछ और ही नजर आ रही है। स्थानीय नेता कह रहे हैं कि यूपी के नेता चुनाव प्रचार करने के बजाय अपना समय मुंबई की सैर-सपाटा और स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेने में बिता रहे हैं। कई नेता प्रचार के नाम पर मटन और चिकन की पार्टी में व्यस्त हैं और चुनावी अभियान से दूर होते दिख रहे हैं। इससे न केवल राजनीतिक दलों के समर्थकों में निराशा का माहौल है, बल्कि मतदाताओं के बीच भी असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

मुंबई में एक राष्ट्रीय पार्टी के एक स्थानीय कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हमें उम्मीद थी कि हमारे नेता यहां आकर हमारे साथ मतदाओं के पास जाएंगे। जनता से सीधे संवाद करेंगे। उन्हें पार्टी के एजेंडे से अवगत कराएंगे, लेकिन यहां तो ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। उल्टा ज्यादातर अपने निजी कामों और रिश्तेदारों से मिलने में लगे हुए हैं। पार्टी का प्रचार का काम तो बहुत पीछे छूट गया है।”

नेताओं का यह रवैया पार्टियों के चुनावी प्रदर्शन पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। उत्तर भारतीय मतदाता अक्सर अपने राज्य से आने वाले नेताओं की बात मानते हैं और नता भी स्थानीय कार्यकर्ताओं पर निर्भर रहते हैं ताकि उन्हें स्थानीय मुद्दों के बारे में सही जानकारी मिल सकें। अगर ये नेता अपने प्रचार अभियान में गंभीरता नहीं दिखाते हैं, तो इसका असर न केवल पार्टी के वोट बैंक पर पड़ेगा, बल्कि उत्तर भारतीय समुदाय का समर्थन भी कमजोर हो सकता है।

अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि ये नेता कब तक मुंबई में रहेंगे और क्या वे वास्तव में चुनाव प्रचार में सक्रिय भूमिका निभाएंगे या नहीं। महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के लिए मतदान 20 नवंबर को होगा, और परिणाम 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। इस दौरान यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पार्टियों द्वारा भेजे गए ये नेता मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होते हैं या नहीं।

भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपने प्रचार अभियान को तेज करने के लिए बड़े-बड़े रोडशो और रैलियों का आयोजन किया है। लेकिन उत्तर भारतीय नेताओं की गैर-गंभीरता ने पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष पैदा किया है। चुनाव नजदीक होने के बावजूद, प्रचार की गति में अब तक वह उत्साह नहीं दिख रहा, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। हालांकि, कुछ नेता अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से ले रहे हैं और वे मतदाताओं से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐसे नेताओं की संख्या काफी कम है।

महाराष्ट्र चुनाव में उत्तर भारतीय वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं, लेकिन इसके लिए पार्टी नेताओं को अपने प्रचार अभियान को गंभीरता से लेना होगा। यदि नेता प्रचार के बजाय पार्टी करने में व्यस्त रहते हैं, तो इसका असर चुनाव परिणामों पर निश्चित रूप से पड़ेगा। जनता अपने नेताओं से उम्मीद करती है कि वे उनके मुद्दों को सुनेंगे और उनका समाधान निकालने की दिशा में काम करेंगे। अब यह देखना बाकी है कि ये नेता आने वाले दिनों में अपनी चुनावी जिम्मेदारियों को किस हद तक निभाते हैं।

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चित्रनगरी संवाद मंच में डॉ. कनकलता तिवारी के काव्य सग्रह ‘अमलतास के फूल’ पर परिचर्चा

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डॉ. मधुबाला शुक्ल

13 अक्टूबर, 2024 की शाम बहुत खुशगवार और यादगार रही। गोरेगॉंव, मुंबई स्थित केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट के मृणालताई हाल में चित्रनगरी संवाद मंच के साप्ताहिक कार्यक्रम में प्रतीक प्रकाशन की ओर से प्रकाशित मशहूर कवयित्री डॉ. कनकलता तिवारी के काव्य संग्रह अमलतास के फूल पर विविध आयामी चर्चा हुई।

चित्रनगरी संवाद मंच संस्था के प्रमुख संस्थापक, एवं कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित देवमणि पांडेय ने अपने वक्तव्य के दौरान कहा कि, कविता मैदान में प्रवाहित किसी नदी की तरह होती है। नदी के दोनों किनारे प्रवाह को नियंत्रित करते हैं, तभी लहरों की कल-कल में मोहक संगीत सुनाई देता है। डॉ. कनकलता तिवारी की कविताएँ भी मन में प्रवाहित भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति हैं। अपनी सोच, सरोकार और अपने नज़रिये से डॉ. कनकलता अपने अंतर्मन की भावनाओं पर नियंत्रण रखती हैं। उन्होंने समय और समाज के सवालों के साथ ही अपनी परम्परा और संस्कृति को अपनी अभिव्यक्ति का ज़रिया बनाया है। उनकी कविताओं में नारी अस्मिता के साथ ही भूख, ग़रीबी और देश प्रेम भी परिलक्षित होता है। सावन और आषाढ़ के साथ तीज त्यौहार और उत्सव भी हैं। मन की कोमल अनुभूतियों के साथ ही निजी अनुभवों और स्मृतियों के चित्र भी हैं। उनकी काव्य अभिव्यक्ति में सहजता और संप्रेषणयता है। देवमणि पांडेय ने उम्मीद व्यक्त की कि विविध रंगों और सुगंधों से समृद्ध कनकलता का यह संग्रह पाठकों को अवश्य पसंद आयेगा।

अतिथि वक्ता के रूप में उपस्थित सृजनिका पत्रिका के उपसंपादक राजेश सिन्हा के अनुसार, डा. कनकलता की कविताओँ में जीवन का फलसफा, उसकी कड़वी सच्चाई, मानव मन की उथल-पुथल, अनुभूतियों और स्नेहसिक्त संबंधों में उठने वाले संवेगों के अनेक तत्व गुंधे हुए हैं। जिनके सारे अणु मिलकर एक ऐसा परिदृश्य सामने लाते हैं जहाँ सब कुछ साफ-साफ दिखाई देने लगता है। अमलतास के फूल में संग्रहित कविताएँ मन की पीड़ा, आकुलता, संवेदना और दिल के कोमल से रेशे को स्पर्श करती हुई कवयित्री के मन की गहराइयों और उससे पनपी पीड़ा एक बृहद रूप लेकर समाज की पीड़ा बन जाती है। कनक की कविताओं में विविधता है, तरह-तरह के बिंब हैं जो हमारी सूक्ष्म संवेदना को उद्वेलित कर देती हैं। वर्त्तमान समाज के सामाजिक, राजनैतिक आर्थिक और व्यावहारिक समाज का खाका तैयार करती हुई नजर आती है। कवयित्री की संवेदना के आयामों को शब्दो में व्यक्त करता यह संग्रह अवश्य पढ़ा जाएगा।

वक्ता के रूप में उपस्थित कवि एवं विचारक कृपाशंकर मिश्र कहते हैं- डॉ. कनकलता जी के द्वारा लिखित काव्य संग्रह अमलतास के फूल समाज की विद्रूपता के साथ संघर्ष करता दिखायी देता है। इसमें मानवीय पीड़ा है, सुखद अनुभूति है, जिजीविषा है और शांति को तलासती सुखद आनंद की परिकल्पना है, इसमें प्रश्न है तो उत्तर भी है। कनक की रचनाएँ आज की आधुनिक नारी को ललकारने का काम भी करती हैं। स्त्री शापित नहीं वरन शाप देने के लिए तत्पर है, पलायन उसे स्वीकार नहीं है, सूरज की तरह जलकर प्रकाश फैलाने की बातें करती हैं, मौन की भाषा में किसी क्रान्ति का आह्वान करती हैं। आराधना से ईश्वर का स्मरण और फिर अंत में आनंद की बासुरी के बीच सामाजिक विषमता के साथ जीवन की संगति बिठाती हुई नजर आती है। असहजता को सहज बनाना शायद समय की आवश्यकता है। सामाजिक अंतर्विरोधों के साथ इसका समर्पण भाव प्रतिभाषित होता है। इसका भावपक्ष, कलापक्ष, बिम्ब और संगीतपक्ष काव्य संग्रह की विशेषता है।

रंगकर्मी एवं साहित्यकार विजय पंडित जी ने बधाई देते हुए कहा- कनकलता जी के पहले काव्य संग्रह मौन के मुखर से लेकर उनके तीसरे काव्य संग्रह अमलतास के फूल तक की यात्रा का साक्षी रहा हूँ। वर्तमान समय में विमर्श की परंपरा चल पड़ी है, जिसमें स्त्री विमर्श पर अत्यधिक चर्चा होती है। कनकलता के काव्य संग्रह में भी स्त्री अस्मिता विषयक ढेरों प्रश्न उठाये गए हैं परंतु ये कविताएँ पितृसत्ता के विरोध में नहीं है। कनक की कविताएँ जड़ संस्कारों को तोड़ती हुई नजर आती हैं। उनकी कविताओं में सत्य के साथ, भोगा हुआ यथार्थ भी है। उन्होंने लेखन के जिस पक्ष को भी चुना है उसे निष्पक्ष रूप से कागज़ पर उतारा भी है।

प्रकाशक राजीव मिश्रा ने अपने वक्तव्य में कहा- साहित्य प्रकाशित होने के बाद, सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है, उस साहित्य की चर्चा। बिना साहित्य विमर्श के किसी साहित्य की संकल्पना, सृजन और प्रकाशन अधूरा है। साहित्य विमर्श के लिए मुंबई शहर में चित्रनगरी संवाद मंचकी भूमिका महत्वपूर्ण है। यदि आपके साहित्य, आपके पुस्तक पर चर्चा नहीं होगी तो जो गलतियाँ हुई हैं, उनका दोहराव होना संभावित है। अतः चर्चा होना अनिवार्य है। उन्होंने कहा- जब मैं कविताएँ पढ़ने लगा तो कुछ कविताएँ और कविताओं से हल्की लगी तो मेरा सुझाव था कि ऐसी कविताओं को संग्रह में जोड़ा जाए परंतु कनकलता जी का जो उत्तर मुझे मिला उससे मैं प्रभावित हो उठा”। उनका जवाब था, ये कविताएँ मेरे सृजन की साथी हैं, मेरे सृजन के सफर का उतारचढ़ाव हैं। मैं इन्हें संग्रह से काट नहीं सकती”। यह काव्य संग्रह उनके विकास क्रम के यात्रा का चिन्ह है। उसे सहज रूप से ग्रहण किया जाय और भावी रचना के लिए शुभकामनाएँ प्रदान की।

कनकलता ने अपने वक्तव्य के दौरान साझा किया- बड़े घर की होने के बावजूद भी वे हमेशा पर्दे में घिरी रही। वो एक ऐसे समाज से आईं हैं, जहाँ स्त्रियों पर परंपरागत संस्कार डाले जाते हैं। शायद मेरे अंतर के मौन को मुखर होने का रास्ता चाहिए था जो भाषा मुझे कविता और कहानी ने दी। मेरे अन्तर की ध्वनी ही मेरी कविता है। घर से निकलकर मुंबई तक की उनकी यात्रा संघर्षमय रही। उनकी रचनाधर्मिता में कई लोग सहयोगी बनें, जिसमें मुख्य रूप से विजय पंडित और उनकी जीवनसंगिनी मृदुला पंडित का बहुत सहयोग रहा। कनकलता के लिए कविता एक तीर्थ यात्रा की तरह है जो ह्रदय को शुद्ध करती हुई सारे अधिकारों से मुक्त होती है। हर रचनाकार जानता है, सच और सपना दुनिया में वैसा नहीं होता जैसा दिखाई देता है फिर भी रचनाकार अपने सच को पकड़े रहना चाहता है। विश्व के मानचित्र पर अपनी कविता का एक छोटा सा घरौंदा कनकलता ने भी बनाया। तीसरे घरौंदे के रूप में अमलतास के फूलके लिए उन्हें ढेरों शुभकामनाएँ।

काव्य पाठ के सत्र में कवि और कवयित्रियों ने अपनी विविधरंगी कविताओं से माहौल को ख़ुशगवार बना दिया। कवियों की टीम में शामिल थे- डॉ कनक लता तिवारी, गुलशन मदान, डॉ रोशनी किरण, रीमा राय सिंह, प्रज्ञा मिश्र, रीता कुशवाहा, अम्बिका झा, माया मेहता, अर्चना वर्मा, सुरभि मिश्रा, सविता दत्त, के पी सेक्सेना, प्रदीप गुप्ता, अनिल गौड़, प्रिंस ग्रोवर, प्रदीप मिश्रा, सौरभ दुबे, हीरालाल यादव, राजीव मिश्रा, अजय बनारसी, क़मर हाजीपुरी, अनुज वर्मा, ताज मोहम्मद सिद्दक़ी, आरिफ़ महमूदाबादी और मोईन अहमद दहेलवी। हँसते-मुस्कराते ठहाकों और तालियों के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।

चित्रनगरी संवाद मंच में धरोहर के अंतर्गत गायक आकाश ठाकुर ने संत कवि कबीरदास की सुप्रसिद्ध ग़ज़ल हमन हैं इश्क़ मस्ताना पेश की। कार्यक्रम का सुरुचिपूर्ण संचालन डॉ मधुबाला शुक्ल ने किया।

(लेखिका साहित्यकार हैं और लेखिका साहित्यिक विषयों पर लिखती रहती हैं।)

 

बाबा सिद्दीकी की वजह से ख़त्म हुआ था सलमान और शाहरुख के बीच शीतयुद्ध

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फोटो - साभार मोशल मीडिया

वैसे तो बॉलीवुड में सुपरस्टार्स के बीच खटपट कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब यह खटपट दो सबसे बड़े स्टार्स के बीच हो, तो यह मुद्दा गंभीर चिंता और चर्चा का विषय बन जाती है। अपने समय के दो बड़े स्टार्स सलमान खान और शाहरुख खान के बीच कई साल तक शीत युद्ध चलता रहा। लगभग एक दशक तक चली इन दोनों सुपरस्टार्स की आपसी दुश्मनी ने न केवल फिल्म इंडस्ट्री में बल्कि उनके फैन्स के बीच भी गहरी दरार पैदा कर दी थी।

इस शीत युद्ध को समाप्त करने में जो व्यक्ति सबसे महत्वपूर्ण कड़ी बने, वो थे मुंबई के जाने-माने राजनेता और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी। दरअसल, बाबा सिद्दीकी का नाम हर साल रमज़ान के पवित्र महीने में होने वाली इफ्तार पार्टी के साथ जुड़ा हुआ है, और इसी इफ्तार पार्टी ने ही दोनों सुपरस्टार्स के बीच सुलह कराने में अहम भूमिका निभाई। बाबा सिद्दीकी के परिवार का ताल्लुक बिहार की राजधानी पटना से है। लेकिन उनका जन्म और परवरिश मुंबई में ही हुई। बांद्रा से उन्होंने कांग्रेस के माध्यम से अपनी राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियां शुरू कीं।

बाबा चर्चा में तब आए जब उन्होंने अभिनेता-राजनेता सुनील दत्त की सद्भावना यात्रा से जुड़े। इससे पहले सुनील दत्त 1980 के दशक में सिख उग्रवाद के उदय और स्वर्णमंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद के सांप्रदायिक तनाव के बीच शांति का संदेश देने के लिए शांति पदयात्रा पर निकले थे। सांप्रदायिक सौहार्द्र और शांति का संदेश फैलाने के उद्देश्य से महात्मा गांधी की जयंती के दिन 2 अक्टूबर 1984 से मुंबई से अमृतसर तक की पदयात्रा हुई थी जो 78 दिन चली थी। उस ऐतिहासिक पदयात्रा के दौरान ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी। बहरहाल, सुनील दत्त की  उन यात्राओं में शामिल तीन लोगों को कालांतर में बहुत अधिक राजनीतिक माइलेज मिला। उन तीन लोगों के नाम थे बाबा सिद्दीकी, सुरेश शेट्टी और बलदेव खोसा। सुनील दत्त ने अपनी ऐतिहासिक पदयात्रा के दौरान ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी। यह यात्रा लगभग 78 दिनों तक चली और 18 दिसंबर 1984 को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पहुंचकर समाप्त हुई।

इसके बाद बाबा सुनील दत्त के परिवार से अभिन्न रूप से जुड़ गए और बांद्रा में अपनी पहचान बनाई। वह पहले नगरसेवक चुने गए। बांद्रा पश्चिम से फिर महाराष्ट्र विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। आगे चल कर बाबा कांग्रेस के बड़े राजनेता बने। वह न केवल राजनीतिक रूप से सक्रिय थे, बल्कि बॉलीवुड में भी उनके मधुर संबंध बन गए। वह हर साल रमज़ान के मौके पर बैंडस्टैंड के होटल ताज़ लैड्स इंड में भव्य इफ्तार पार्टी का आयोजन करते थे, जिसमें राजनीति, बॉलीवुड और अन्य क्षेत्रों से जुड़ी प्रमुख हस्तियां शामिल होती थीं। उनकी यह पार्टी सिर्फ़ इफ्तार का आयोजन नहीं होती थी, बल्कि इसे एक सामाजिक मेल-मिलाप का मंच भी माना जाता है, जहां लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक-दूसरे से मिलते थे।

सलमान खान और शाहरुख खान दोनों ही बॉलीवुड के सबसे बड़े सितारे हैं और उनकी दोस्ती 1990 के दशक में बहुत गहरी थी। इन दोनों की जोड़ी न केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि फिल्मी दुनिया में भी ख़ूब चर्चा में रही। 1990 के दशक में दोनों ने कई हिट फिल्में दीं और उनके बीच की दोस्ती एक मिसाल बन चुकी थी। लेकिन 2008 में कैटरीना कैफ के जन्मदिन की पार्टी के दौरान दोनों के बीच विवाद हो गया, जिसने उनकी दोस्ती को ख़त्म कर दिया। यह विवाद इतना ज़्यादा गहरा गया था कि दोनों ने एक-दूसरे से बात करना बंद कर दिया और यह दुश्मनी कई-कई साल तक चलती रही।

इस विवाद के बाद सलमान और शाहरुख ने एक-दूसरे के बारे में मीडिया में सार्वजनिक तौर पर कम ही बात की, और जहां भी दोनों एक साथ आते, वहां तनाव का माहौल बना रहता। फिल्मी इंडस्ट्री में भी दोनों खेमों में बंट गया था। शाहरुख के क़रीबी दोस्त और फिल्मकार सलमान से दूर हो गए और सलमान के समर्थक और दोस्त शाहरुख से दूर हो गए। दोनों स्टार्स के फैंस के बीच भी एक अनकहा संघर्ष शुरू हो गया, जो दोनों के पक्ष में बंट चुके थे।

दोनों ख़ान के बीच सालों तक चले शीत युद्ध ने उनके प्रशंसकों और फिल्मी दुनिया के लोगों को निराश किया था। दोनों सितारे एक-दूसरे से नज़रें चुराते हुए नज़र आते थे और सार्वजनिक समारोहों में भी एक-दूसरे से दूरी बनाए रखते थे। ऐसे में किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि उनकी दुश्मनी इतनी आसानी से ख़त्म हो जाएगी। लेकिन 2013 की बाबा सिद्दीकी की इफ्तार पार्टी इस मामले में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई। हर साल की तरह, बाबा सिद्दीकी ने उस साल भी अपनी पार्टी में बॉलीवुड और राजनीतिक जगत के प्रमुख चेहरों को आमंत्रित किया। सलमान और शाहरुख दोनों ही इस पार्टी में आमंत्रित थे, और बाबा सिद्दीकी ने दोनों के बीच की दूरी को कम करने का प्रयास किया।

पार्टी के दौरान बाबा सिद्दीकी ने ऐसा मौका देखा, जब सलमान और शाहरुख दोनों हॉल में मौजूद थे। वह दोनों का हाथ पकड़ एक कोने में ले गए और बातचीत शुरू की। धीरे-धीरे माहौल हल्का होने लगा। यह पहली बार था जब दोनों सुपरस्टार्स ने वर्षों बाद एक-दूसरे के साथ बातचीत की और हाथ मिलाया। इस दृश्य ने मीडिया में हलचल मचा दी, और उस रात की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया और समाचार चैनलों पर वायरल हो गए।

इस घटना से रातोंरात बाबा सिद्दीकी की इफ्तार पार्टी राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गई। बाबा का महत्व और भी बढ़ गया। इसे सिर्फ़ एक इफ्तार पार्टी नहीं माना गया, बल्कि इसे दो बॉलीवुड दिग्गजों के बीच दुश्मनी को समाप्त करने का प्रतीक माना गया। बाबा सिद्दीकी की भूमिका को हर तरफ़ से सराहा गया, क्योंकि उन्होंने न केवल सलमान और शाहरुख को एक साथ लाने का साहसिक कदम उठाया, बल्कि एक ऐसे मंच की भी व्यवस्था की, जहां दोनों एक-दूसरे से बिना किसी तनाव के मिल सकें।

बाबा सिद्दीकी की इस पहल का प्रभाव लंबे समय तक महसूस किया गया। सलमान और शाहरुख के बीच सुलह ने बॉलीवुड के अन्य सितारों के बीच भी एक सकारात्मक माहौल तैयार किया। दोनों ने सार्वजनिक तौर पर एक-दूसरे के प्रति अच्छे विचार प्रकट किए और एक-दूसरे के काम की तारीफ़ की। यह सुलह सिर्फ़ व्यक्तिगत स्तर पर नहीं रही, बल्कि इसका असर उनके पेशेवर जीवन पर भी पड़ा।

दोनों सितारों ने एक-दूसरे के फिल्मी प्रोजेक्ट्स में कैमियो भी किया, जैसे कि शाहरुख खान ने सलमान की फिल्म “ट्यूबलाइट” में एक छोटी भूमिका निभाई और सलमान ने शाहरुख की फिल्म “ज़ीरो” में एक गाने की भूमिका की। इस तरह, दोनों की दोस्ती ने इंडस्ट्री के बाक़ी लोगों को भी यह संदेश दिया कि व्यक्तिगत मतभेदों को किनारे रखकर साथ मिलकर काम किया जा सकता है।

बाबा सिद्दीकी को सलमान और शाहरुख के बीच सुलह कराने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए व्यापक सराहना मिली। मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री ने उनकी पहल की तारीफ की, और उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा गया जो न केवल राजनीति में बल्कि सामाजिक मेल-जोल में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बाबा सिद्दीकी की इस पहल ने साबित किया कि बॉलीवुड में भी आपसी संबंधों को बेहतर बनाने के लिए एक तीसरी पार्टी की ज़रूरत हो सकती है, जो दोनों पक्षों के बीच की खाई को पाट सके।

सलमान खान और शाहरुख खान के बीच का शीत युद्ध बॉलीवुड के इतिहास में एक यादगार घटना रही है, और इसे समाप्त करने में बाबा सिद्दीकी की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। उनकी इफ्तार पार्टी न केवल सामाजिक एकता का प्रतीक बनी, बल्कि यह इस बात का भी उदाहरण बनी कि कैसे व्यक्तिगत और पेशेवर विवादों को सुलझाया जा सकता है। बाबा सिद्दीकी की यह पहल न केवल उनकी व्यक्तिगत कूटनीतिक क्षमता को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि सही समय और सही मंच पर की गई बातचीत कैसे वर्षों की दुश्मनी को समाप्त कर सकती है।

बाबा सुनील दत्त को अपना गॉडफादर मानते थे। सुनील दत्त के निधन के बाद, बाबा सिद्दीकी ने दत्त परिवार के साथ अपना संबंध और भी मजबूत किया। उन्होंने प्रिया दत्त और संजय दत्त को अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने में हर संभव मदद दी। वर्तमान समय में भी बाबा सिद्दीकी और दत्त परिवार के बीच वह पुराना विश्वास और सम्मान बना हुआ था। प्रिया दत्त और बाबा सिद्दीकी राजनीतिक सहयोगी रहे। बाबा का यह रिश्ता राजनीतिक या पेशेवर स्तर तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक पारिवारिक और व्यक्तिगत संबंध था। बहरहाल, बाबा सिद्दीकी को राजनीति और फिल्मी दुनिया में मिसाल के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।

पुस्तक परीक्षण !! एका शिक्षणतज्ञाच्या पुस्तकाची सफर!!

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वेन्सी डिमेलो

आजच्या आधुनिक युगातील एका शिक्षण तज्ञाच्या पुस्तकाची आजच्या शैक्षणिक आस्तेची, संवर्धनाची, समग्र अशी सफर आज मी तुम्हाला घडवणार आहे. ह्या पुस्तकाचे लेखक शैक्षणिक मर्म नि मूल्य शोधणारे नि जाणणारे प्राध्यापक डाॅ. पॅट्रिक डिसोजा हे एक ख्रिस्ती धर्मगुरू आहेत. एक उत्तम लेखक, शिक्षकतज्ञ, वक्ता, निरुपणकार, मानवी व्यक्तित्व संवर्धन तज्ञ, चिंतक, भाषाप्रभू समुपदेशक अशा अनेक बिरुदांनी ते वसईच्या पंचक्रोशीत ओळखले जातात.

चला तर आपण ह्या बाजारात नव्याने आलेल्या त्यांच्या ‘TREASURES OF HUMAN PERSONHOOD’ या नव्या पुस्तकातील शैक्षणिक जाणिवांची सफर आपण करुया. अर्थातच मी सफरीतील फक्त प्रेक्षणीय स्थळांची ओळख नि माहिती करून देणार आहे. प्रत्यक्ष प्रेक्षणीय स्थळांचा आस्वाद घेणे हे आपणास प्रत्यक्ष हे पुस्तक वाचूनच मिळवावा लागेल.
हे पुस्तक इंग्रजी भाषेत प्रसिद्ध झालंच आहे. आता ते मराठी भाषेतही “वसा मानवी व्यक्तित्व संवर्धनाचा.” या नावाने पुढील काही महिन्यांत मराठी भाषेत मराठी भाषिकांना उपलब्ध होणार आहे.

“जीवनात जो रडला नाही. परमेश्वर त्याला कळला नाही.” रडणे देखील खळखळून हसण्यासारखे सकारात्मक कसे असते आणि सर्वांगीण, सर्वस्पर्शी मानवी व्यक्तीमत्व घडविण्यास कसे पूरक असते हे लेखकाने स्पष्ट केलेले आहे. रडणे, शोक करणे, विलाप आक्रोश करणे हा मानवी जीवनाचा एक भाग मानवाने नकारात्मक म्हणून मानलेला आणि म्हणून दुर्लक्षिलेला लेखकाने एक मानवी गुण म्हणून संजीवन देऊन जिवंत नि सकारात्मक केला आहे. आणि “मानवाचे हसरे दुःख” असे त्यांनी त्यांचे वर्णन केले आहे. आणि त्यातून सार्वभौम परमेश्वराचे, विधात्याचे, निर्मात्याचे वा सृजनाचे जी उपाधी लावाल ती त्यातून दर्शन घडवले आहे. व्यक्तित्व घडविण्यासाठी ज्ञान विज्ञान जरी पुरक असले तरी तेवढे पुरे नाही. व्यक्तीच्या अंगी असलेल्या विविधांगी सुप्त गुणांना सुखदुःखाना चेतना देणे हे देखील शिक्षणातील परीपूरणतेचे लक्षण आहे. “Not only Information, but formation too” ज्ञान माहिती केवळ तंत्रज्ञानच नाही. तर मानवाची समग्र घडणही तितकीच महत्वाची. म्हणून जन्मदाती आई कदाचित साक्षर नसेल परंतू शहाणी नक्कीच असते. ते तिच्या दररोजच्या खडतर व्यवहारिक जीवन अनुभवातून. हे तिने तिच्या अंगच्या मुलभूत संस्कारातून मिळविलेले असते. “So not only knowledge but wisdom too”

असे अनेक सिद्धांत लेखकाने पुस्तकात मांडले आहेत. ते केवळ लेखकाच्या कल्पकतेतून नव्हे तर वेळोवेळी काॅलेजमधील विद्यार्थ्यांच्या नैपुण्याच्या कार्यशाळा घेऊन त्या संशोधनातून गोळा केलेला हा जीवनरसाचा समग्र मकरंद आहे. जीवनाचे संकलित सार नि फलीत आहे.

अलिकडे आपल्या स्वातंत्र, समता, सत्य, न्याय अशा विचारांचे, विशाल मनाचे, व्यक्तीमत्वाचे जगात सुसंस्कृत असे विद्यार्थी घडवण्याच्या जागतिक समतेच्या स्पर्धेत आपला देशातील काही ठराविक लोक मात्र छद्मी विज्ञान आणि शिक्षणाचे संकोचित धर्मांध पौराणिकीकरण, भगवीकरण करण्याच्या ह्या जीवघेण्या फंदातील स्पर्धेत अडकलेले दिसत आहेत. आणि दुर्दैवाने राज्यकर्त्यांचा आणि सत्ताधारींचा ह्याला आशीर्वाद आहे. अशा मागास शैक्षणिक विचारांच्या संकोचित मानसिकतेला लेखकाने ह्या पुस्तकात विज्ञाननिष्ठ दृष्टीकोनातून एक चांगलीच चपराक लगावलेली दिसते आहे. यात डुलक्या नि डुबक्या घेणाऱ्या समाजाला खडखडून जाग आणली आहे. त्यातून बाहेर आणण्याचा प्रयत्नही केला आहे.

डाॅक्टर राॅबर्ट रस्क हे ग्लॅक्सो येथील विद्यापीठातले प्राध्यापक व एक शिक्षण तज्ञ आहेत. त्यांनी ‘थोर शिक्षक व त्यांची तत्वज्ञाने’ हा ग्रंथ लिहिला आहे. तो मी अभ्यासला आहे. त्या ग्रंथात तत्वज्ञानी प्लेटोपासून आरंभ करून पाश्चात्य अकरा प्रकांड पंडित शिक्षणतज्ञांचा त्याने समावेश केला आहे. त्यात जेज्वीट संघाचे संस्थापक संत इग्नेशियस लोयोला हा एक आहे. ‘मूलगामी आणि जीवनाचा सर्वस्पर्शी, समग्र, सर्वांगीण, आध्यात्मिक नि ऐहिक विचार करणारा, शिक्षणाद्वारे मानवी व्यवहारांना नवी दिशा दाखविणारा प्रवर्तक’ असे इग्नेशीयसविषयी त्याने लिहिले आहे. असेच शिक्षणाचे मूलगामी विचार करणारे द्रष्टेपण लेखकाने ह्या पुस्तकात जपलेले दिसत आहे.

शिक्षणाचा इतिहास मानवजातीच्या अगदी सुरुवातीपासून सुरू होतो. मनुष्याने या ग्रहावर पाय ठेवला त्या दिवसापासून मानवी शिक्षणाची प्रक्रिया सुरू झाली. त्यानंतर पिढ्यांपिढ्या, विविध ऐतिहासिक कालखंडात असंख्य प्रवृत्ती, बदल आणि नवकल्पनांचा साक्षीदार बनून ती चालू राहिली. तीच्या सध्याच्या अभिव्यक्तीपर्यंत पोहोचण्यापूर्वीच शिक्षणाची संकल्पना आणि त्याची उद्दीष्टे युगानुयुगे विकसित होत असताना परिवर्तनाच्या जोरदार प्रक्रियेतून गेली आहेत.

लेखक अनेक शिक्षणतज्ञांचे संदर्भ आपल्या पुस्तकात देतात. त्यापैकी लेस्टर स्मिथ (१९५७)( Lester Smith) यांनी शिक्षण या संकल्पनेच्या या समजुतीचे तपशीलवार वर्णन लेखकाने उद्धृत केले आहे. ते म्हणतात की… “शिक्षण ही संज्ञा सहजपणे परिभाषित करण्यायोग्य नाही. आणि जर एखाद्या व्याख्येचा प्रयत्न केला गेला तर ती व्याख्या कायम स्वरुपी राहणार नाही. कारण शिक्षणाची प्रक्रिया सतत बदलत असते. त्यात सातत्य असते. गतीशिलता असते. आणि काळ आणि परिस्थितीच्या मागणीशी स्वत:ला जुळवून घेत असते.
शिक्षण हे स्वत:ला विशिष्ट व्याख्येला आधार देत नाही. अडकवून घेत नाही. उधारीही ठेवत नाही. परंतु त्यामुळे आपल्याकडे आलेल्या विविध व्याख्यांकडे पूर्णपणे दुर्लक्ष करण्याची तशी गरजही नाही; आपण त्यांच्याकडून बरेच काही शिकू शकतो, अगदी अधिकृत, निःसंदिग्ध असे उत्तर …

शिक्षण म्हणजे काय? या प्रश्नाला; आणि त्यातील विविध व्याख्या हे देखील सूचित करतात की, शिक्षणाचा विचार करताना आपण हे विसरता कामा नये की, त्यात सजीवांची वाढती गुणवत्ता आहे. त्यात अंतिमतः कायमस्वरूपी गुणदोष असले, तरी शिक्षण हे सतत बदलत असते, नव्या मागण्या आणि नव्या परिस्थितीशी स्वत:ला जुळवून घेत असते. (पृ. ७)
पुस्तकाचे लेखक फादर डॉ पॅट्रिक डिसोजा यांच्या मते विद्यार्थ्यांने प्रवेश घेतलेल्या ज्ञानाच्या विशिष्ट शाखेतील ज्ञान आणि कौशल्य प्रदान करण्याबरोबरच मानवी व्यक्तित्वाची समग्रता आणि त्याच्या पैलूंमध्ये वाढ करणे हे शिक्षणाचे ध्येय असले पाहिजे. जेव्हा शिक्षणाच्या भूमिकेच्या ह्या पैलूकडे दुर्लक्ष केले जाते आणि त्याचा कल केवळ शैक्षणिक ज्ञान व कर्तृत्वावर असतो, तेव्हा शैक्षणिक प्रणाली अविभाज्य मानवी विकास घडवून आणण्यात अपयशी ठरते. अंतिम निकालात उच्च श्रेणी मिळविण्यासाठी जीव घेणी स्पर्धा सुरू राहते. ज्यामुळे नैराश्य उदासीनता आणि अथांग अशा सरोवराऐवजी शेवाळ प्रणित त्याची डबकी बनली जातात. आणि त्या नैराश्यातून जीवन नकोसे वाटू लागते. माझी ह्या जीवनात इतिकर्तव्यता काय? आणि अशाने विद्यार्थ्यांच्या आत्महत्यांचे प्रमाण वाढते. ह्यांची सुदैवाने विद्यार्थ्यांच्या मानवी व्यक्तित्वाच्या वाढीच्या महत्वाची. पालक, शिक्षक शिक्षण संस्थाचालक आणि शिक्षणसंस्थांच्या व्यवस्थापनाला जाणीव झाली आहे. हे स्तुत्यच आहे.

विद्यार्थ्यांच्या मानवी व्यक्तित्त्वाची वाढ हे शिक्षणाचे ध्येय डोळ्यासमोर ठेवून लेखकाने महाविद्यालयीन विद्यार्थ्यांच्या मानवी व्यक्तित्त्वात वाढ करण्यासाठी पूरक शैक्षणिक कार्यक्रमाचा आराखडा आणि महाविद्यालयीन विद्यार्थ्यांच्या मानवी व्यक्तित्वाच्या वाढीसाठी तो आयोजित करण्याची संपूर्ण प्रक्रिया या पुस्तकात स्पष्टपणे वर्णन केली आहे.
पूरक शैक्षणिक कार्यक्रम (SEP- SUPPLEMENTRY EDUCATIONAL PROGRAMME) विकसित करण्याच्या उद्देशाने पेशाने अध्यापक क्षेत्रात असलेल्या ह्या सृजन, अभ्यासू, व्यासंगी लेखकांने संशोधन सुरू केले. यौवनातील महाविद्यालयीन विद्यार्थ्यांच्या मानवी व्यक्तित्वात वाढ करण्यासाठी कार्यक्रम, कार्यशाळा शिबीरे आयोजित करताना प्राप्त झालेल्या अंतर्दृष्टी आणि विविधांगी संसाधन व्यक्ती आणि सहभागींच्या अभिप्रायामुळे लेखकाला त्यात सतत मूल्यांकन आणि आवश्यक बदल करण्यास मदत झाली आहे.

महाविद्यालयीन विद्यार्थ्यांच्या मानवी व्यक्तित्त्वात वाढ करणारा पूरक शैक्षणिक कार्यक्रम विकसित करण्याची ही गरज निर्माण होण्यामागचे एक मुख्य कारण म्हणजे त्याबाबत लेखक म्हणतात….

“महाविद्यालयीन अभ्यासक्रमात प्रामुख्याने विविध शाखांमध्ये विशिष्ट ज्ञानक्षेत्रांवर लक्ष केंद्रित केले जाते. अभ्यासाच्या प्रचलित शैक्षणिक ज्ञान प्रणालीमुळे विध्यार्थी त्यांच्या स्वत: च्या निवडलेल्या ज्ञानाच्या क्षेत्रात तज्ञ बनू शकतात, परंतु ते त्यांच्या प्रशिक्षणाच्या कक्षेच्या बाहेरच्या वस्तुस्थितीला व समस्यांना सामोरे जाण्यासाठी आवश्यक असलेल्या अंगभूत कौशल्याने धैर्य, हिंमत, साहस, विरता सामाजिक, आध्यात्मिक, राजनीती आदि मूल्ये गुणांनी सुसज्ज बनू शकत नाहीत. म्हणून आपल्या देशातील बुद्धिजीवी व्यक्तींनी, सुज्ञ तज्ञांनी, द्रष्ट्यांनी आणि शिक्षणतज्ज्ञांनी, देशभरातील विविध विद्यापीठांच्या कुलगुरूंनी आणि विविध महाविद्यालयांमधील प्राचार्यांनी आणि शिक्षकांनी अशा पूरक शैक्षणिक कार्यक्रमाचे स्वागत करणे अत्यावश्यक आहे.

असा कार्यक्रम विद्यार्थ्यांना त्यांचे मानवी अस्तित्व विकसित करण्यास प्रोत्साहित करेल. आणि मदत करेल. ज्यामुळे ते बाह्य जगाचा आणि त्यांच्या अंतर्मनाचा सामना करण्यास सक्षम होतील. विद्यार्थ्यांना त्यांच्या आयुष्यात ज्या समस्यांना सामोरे जावे लागेल त्या बौद्धिक, भावनिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शारीरिक, वैज्ञानिक, कलात्मक, नैतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक किंवा वैयक्तिक स्वरूपाच्या असू शकतात. आणि विध्यार्थी ह्या समस्या समजून घेण्यास, प्रतिबिंबित करण्यास, त्यांचे गंभीरपणे मूल्यांकन करण्यास आणि त्यांना प्रभावीपणे सामोरे जाण्यास सक्षम असणे आवश्यक आहे” असे लेखक या ग्रंथात आवर्जून आवाहन करतात.

हा पूरक संशोधन शैक्षणिक कार्यक्रम शिक्षकांसाठी आणि महाविद्यालयीन विद्यार्थ्यांच्या मानवी व्यक्तित्व विकसित करण्याच्या उदात्त कार्यात सहभागी असलेल्या सर्वांसाठी उपयुक्त ठरेल. पूरक शैक्षणिक कार्यक्रमाच्या विविध सत्रांमध्ये सहभागींच्या मनात लक्षणीय विकास घडवून आणता यावा म्हणून लेखकाने संसाधन व्यक्तींना ह्या विविध सत्रांचा पद्धतशीरपणे वापर करण्यास मदत करण्यासाठी या पुस्तकात असंख्य मौल्यवान सूचना केल्या आहेत.

महाविद्यालयीन विद्यार्थ्यांच्या मानवी व्यक्तित्वाच्या वाढीसाठी, या पुस्तकात समाविष्ट केलेल्या सत्रांव्यतिरिक्त इतर सत्रे कार्यक्रमात समाविष्ट करता येतील आणि विविध क्षेत्रातील तज्ञांना ही सत्रे तयार करण्याची आणि आयोजित करण्याची विनंती केली जाऊ शकते. ती मोकळीक त्यांना असू शकते.अशी सुचनाही लेखक विनम्रपणे करतात.

लेखक म्हणतात… “त्यांना पीएच.डी.च्या प्रबंधाच्या स्वरूपात एखादे पुस्तक प्रकाशित करायचे नव्हते, तर शिक्षक, विद्यार्थी आणि मानवी व्यक्तित्वाच्या संवर्धनात रस असलेल्या सर्वांसाठी ते एक प्रकारचे माहिती पुस्तक (manual) बनवायचे होते. जेणेकरून ते सहभागींच्या हितासाठी त्यांच्या शैक्षणिक आणि सामाजिक संस्थांमध्ये पूरक शैक्षणिक कार्यक्रमाचे विविध उपक्रम आयोजित करण्यासाठी वापरू शकतील”.

स्वत:चे मानवीय नि निसर्ग प्रेमी मानवेतर व्यक्तित्व वाढविण्यासाठीही या पुस्तकाचा उपयोग करता येईल. सहभागींच्या गटासाठी पुरवणी शैक्षणिक कार्यक्रमातील प्रत्येक उपक्रम आयोजित करण्याची पद्धत आणि जर एखाद्याला ते स्वत:साठी वैयक्तिक स्वरूपात जरी वापरायचे असेल तर ते आयोजित करण्याची पद्धत देखील लेखकाने यात तपशीलवार स्पष्ट केली आहे. पुस्तकाचा हा हेतू लक्षात घेऊन लेखकाने मूळ पीएच.डी.च्या प्रबंधातील काही क्लिष्ट भाग वगळले आहेत. आणि प्रक्रिया अधिक स्पष्ट करण्यासाठी काही भागांची त्यात भर घातली आहे. पुस्तक वाचनीय व्यावहारिक नि सुबोध करण्याचा त्यांचा कल प्रयत्न दिसतो आणि वगळलेल्या विभागांमध्ये संबंधित साहित्याचे पुनरावलोकन, संप्रेषणाच्या परिप्रेक्ष्यात संशोधन, संशोधन पद्धती, डेटा संकलन, डेटा विश्लेषण, अशी प्राथमिक स्वरूपाची माहिती. सांख्यिकीय विश्लेषण, संशोधन साधनाच्या प्रमाणीकरणासाठीच्या तज्ञांची यादी, सारणी, आकडे, आलेख आणि इतर काही साहित्य जे ह्या पुस्तकाचा उद्देश साध्य करण्यास योग्य नव्हते ते त्यांनी वगळले आहेत. त्यामुळे हा ग्रंथ सलग असा वाचनीय होतो. सुबोध होतो.

ह्या पुस्तकाच्या निमित्ताने लेखकाने ज्या गोष्टी मोठ्या कौशल्याने जोडल्या आहेत, त्यात मानवी व्यक्तित्व भागफल Human Personhood Quotient (HPQ) या संकल्पनेचे वर्णन करणारा लेखकाचा एक विभाग आहे. बुद्ध्यांक (IQ), भावनिक बुद्ध्यांक (EQ) सामाजिक बुद्ध्यांक (SI), आध्यात्मिक बुद्ध्यांक (SQ) आणि प्रतिकुलता बुद्ध्यांक (AQ)) या संकल्पनाबरोबरच लेखकाने एखाद्या व्यक्तीच्या मानवी व्यक्तीत्ववाढीची पातळी शोधण्यासाठी मानवी व्यक्तीत्व भागफल (HPQ) प्रस्तावित केला आहे. आणि त्याचे मोजमाप करण्यासाठी एक मापणीची पद्धत (Scale) देखील सादर केली आहे.

पुस्तकाचे महत्त्व:
हे पुस्तक पुढील बाबींवर महत्त्वपूर्ण प्रकाश टाकणारे नि प्रेरणा देणारे ठरेल असे एक वाचक मुक्त अभ्यासाचा नि मुक्त विद्यापीठाचा एक चाहता म्हणून मला वाटते.

१) वाचकांना त्यांचे मानवी व्यक्तित्व वाढविण्यासाठी प्रेरणा देणे.
२) वाचकांना आरोग्याविषयी जागरूक राहण्याची प्रेरणा देणे
३) वाचकांना त्यांच्या विचारसरणीत विवेकनिष्ठ आणि टीकात्मक चिकित्सक बनण्याची प्रेरणा देणे.
४) वाचकांना इतरांच्या विचारांबद्दल आणि समजुतींबद्दल सहिष्णू होण्याची प्रेरणा देणे
५) वाचनसंस्कृती विकसित करण्यासाठी वाचकांना प्रेरणा देणे.
६) मानसिक बळ वाढविण्यासाठी वाचकांना प्रेरणा देणे.
७) भावनिक बुद्धिमत्ता वृद्धिंगत करण्यासाठी वाचकांना प्रेरणा देणे.
८) वाचकांना चारित्र्य घडण नि निर्माण करण्यासाठी आध्यात्मिक आणि नैतिक परिपूर्णतेसाठी प्रयत्न करण्याची प्रेरणा देणे.
९) वाचकांना स्वत:च्या स्वधर्माची आणि इतर धर्मांची समज वाढवण्यासाठी प्रेरणा देणे
१०) इतर धर्मांबद्दल मनापासून आदर निर्माण करण्यासाठी आणि धार्मिक सलोखा निर्माण करण्यासाठी वाचकांना प्रेरणा देणे
११) वाचकांना आत्मसाक्षात्कारासाठी झटण्याची प्रेरणा देणे.
१२) वाचकांना सर्जनशील होण्यासाठी प्रेरणा देणे. केवळ भावोत्कट न होता वास्तवाचे भान असणे.
१३) सामाजिक भान नि बांधिलकी विकसित करण्यासाठी वाचकांना प्रेरणा देणे. विचारात वास्तव पकडून ते कृतीत बदलणे.
१४) समाजात जबाबदारी स्वीकारण्यासाठी वाचकांना प्रेरणा देणे.
१५) समाजाची काळजी घेण्यासाठी आणि समाजसेवेत सहभागी होण्यासाठी वाचकांना प्रेरणा देणे.
१६) बंधुभाव, सामाजिक सलोखा, मानवता आणि संस्कृती विकसित करण्यासाठी वाचकांना प्रेरणा देणे.
१७) हे पुस्तक भविष्यातील अभ्यासकांना महाविद्यालयीन विद्यार्थ्यांचे मानवी व्यक्तित्व संवर्धन या क्षेत्रात पुढील संशोधन करण्यासाठी प्रेरित करेल…
१८) ज्यासाठी लेखकाने पुस्तकाच्या शेवटी समारोपात काही विषय सुचवले आहेत.
ज्यातून शेवटी, वाचकांना त्यांच्या मानवी व्यक्तीत्ववाढीची पातळी शोधण्यासाठी चाचणी घेण्याची प्रेरणा मिळेल. जसे लेखकाने आधी नमूद केले आहे की, पुस्तकाच्या शेवटी ते मानवी व्यक्तित्व भागफल (HUMAN PERSONHOOD QUOTIENT(HPQ) ला एखाद्या व्यक्तीच्या मानवी व्यक्तिमत्व वाढीच्या पातळीचा अंदाज लावण्यासाठी प्रस्तावित केले आहे. आणि त्याचे मोजमाप करण्यासाठी एक मानवी व्यक्तित्व भागफल (HPQ) मापणीची पद्धत (Scale) विकसित केली आहे.
१९) जरी पूरक शैक्षणिक कार्यक्रम प्रामुख्याने महाविद्यालयीन विद्यार्थ्यांच्या मानवी व्यक्तित्वाला चालना देण्यासाठी तयार करण्यात आला आहे, तरी लेखक म्हणतात…

त्यांना असे वाटते की त्यामुळे जीवनाच्या सर्व स्तरातील लोकांसह आणि सर्व वयोगटातील आणि प्रत्येक समुदायाशी संबंधित असलेल्या प्रत्येकाला मदत होईल. कारण मानवी व्यक्तित्व वाढविणे ही केवळ एक गरजच नाही तर प्रत्येक व्यक्तीचे ध्येय असले पाहिजे. पूरक शैक्षणिक कार्यक्रमाचे विविध कार्यक्रम अशा प्रकारे तयार केले गेले आहेत की ते विविध गटांशी संबंधित लोकांच्या गरजा पूर्ण करण्यासाठी बदल आणि नाविन्यपूर्णतेसाठी भरपूर वाव प्रदान करतात.

व्यक्ती किंवा गटातील सदस्य संपूर्ण कार्यक्रम घेऊ शकतात किंवा एका वेळी कार्यक्रमाचा कोणताही भाग निवडू शकतात. आणि त्याचा वापर करू शकतात किंवा त्यांच्या परिस्थितीनुसार त्यात बदल करू शकतात आणि वैयक्तिकरित्या किंवा गटाचे सदस्य म्हणून त्यांचे मानवी व्यक्तित्व वाढवू शकतात. दुस-या शब्दांत सांगायचे तर, पूरक शैक्षणिक कार्यक्रम केवळ शालेय नि महाविद्यालयीन विद्यार्थ्यांच्याच नव्हे तर सर्व सामान्य लोकांच्या मानवी व्यक्तित्वाच्या घडणीसाठी वाढीसाठी देखील आहे.

अंतिमता समग्र शिक्षणासाठीची, व्यक्ती आणि विश्व घडविण्यासाठी शिक्षणातील मर्म शोधून जी मुल्याधिष्टित मूल्ये जशी की श्रम प्रतिष्ठा, राष्ट्रभक्ती, स्त्रीपुरूष समानता, सर्वधर्मसहिष्णुता, राष्ट्रीय वैश्विक एकात्मता, निसर्ग संवर्धन, वैज्ञानिक दृष्टिकोन, संवेदनशीलता, सौजन्यशिलता, वक्तशीरपणा आणि निटनिटकेपणा अशी मूल्ये जागतिक शैक्षणिक तज्ञांनी उद्याच्या जगाच्या उद्धारासाठी उद्धृत केली आहेत. त्याला पुरक असेच हे पुस्तक झाले आहे. ते लवकरच वाचकांच्या भेटीला येत आहे. उद्याचे विश्व हे आजच्या शाळा काॅलेजातूनच घडणार आहे. शालेय जीवनात विद्यार्थ्यांवर एक व्यक्ती म्हणून आणि विश्वाचा भावी जबाबदार नागरिक म्हणून त्यांच्या व्यक्तिमत्त्वावर समग्र संस्कार आवर्जून होणे आवश्यक आहे असे सांगणाऱ्या ह्या ग्रंथाचे आपण स्वागत करुया. आणि शिक्षणातील एक अनुभवी प्रकांडपंडीत तज्ञ फादर पॅट्रिक ह्यांच्या प्रचंड शैक्षणिक कार्याचे, कष्ट, मेहनतीचे अभिनंदन नि कौतुक करून त्यांच्या पुढच्या वाटचालीस शुभेच्छा देऊया.

(हे पुस्तक लेखकाच्या वेबसाईटवर मोफत उपलब्ध ई-बुक आणि ऑडिओ बुक या रुपात FREE downloading साठी उपलब्ध आहे. लेखकाच्या वेबसाईटवर रजिस्ट्रेशन केल्यानंतर हे पुस्तक आपल्याला डाऊनलोड करता येईल. वेबसाईटवर रजिस्ट्रेशन करायला सुद्धा आपल्याला काही मोबदला द्यावा लागणार नाही. लेखकाने हे त्यांचे पुस्तक त्यांच्या वेबसाईटवर मोफत डाऊनलोडिंगसाठी उपलब्ध केलेले आहे. की जेणेकरून तळागाळातील व ग्रामीण भागातील गरीब गरजू विद्यार्थ्यांना नि व्यक्तींना ह्या पुस्तकाचा अधिकाधिक लाभ नि फायदा व्हावा. अशी लेखकाची तीव्र इच्छा आहे.)

आपल्यापैकी कुणाला जर या पुस्तकाची छापील प्रत हवी असेल तर आपण फादर डॉक्टर पॅट्रिक डिसोजा यांच्या व्हाट्सअप नंबर 7030447934 वर त्यांच्याशी संपर्क साधू शकता किंवा
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फोन नंबर 9820356506 यांच्याशी संपर्क साधू शकता.
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संपर्कासाठी:
लेखक फादर डाॅ. पॅट्रिक डिसोजा. 7030447934

तरुण भारत संघ की यात्रा और जलवायु परिवर्तन का समाधान

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सरोज कुमार

यात्राएं अक्सर समाधान का रास्ता दिखाती हैं। महात्मा गांधी की दांडी यात्रा ने देश को आजादी का रास्ता दिखाया। आचार्य विनोबा भावे की भूदान यात्रा ने भूमिहीनों को भूस्वामी बनाने का रास्ता दिखाया। कई राजनीतिक यात्राओं ने राजनेताओं को समाधान के रास्ते दिखाए। और अब जलवायु परिर्वतन के समाधान का रास्ता दिखाने एक अलग तरह की यात्रा शुरू हुई है। पानी और पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था, तरुण भारत संघ (तभासं) के पचास साल पूरे होने के उपलक्ष्य में इस यात्रा की शुरुआत आचार्य विनोबा की जयंती 11 सितंबर को हुई। यह यात्रा विनोबा को तरुण भारत संघ की एक सच्ची श्रद्धांजलि है। ’सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन से जलवायु परिवर्तन अनुकूलन व उन्मूलन अध्ययन यात्रा’ का उद्देश्य बड़ा है, जिस तरह दांडी और भूदान यात्रा का उद्देश्य बड़ा था।

जलपुरुष राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में यात्रा का शुभारंभ चंबल क्षेत्र के अधीन आने वाले धौलपुर (राजस्थान) जिले के मथारा गांव में किसान जागृति शिविर के साथ हुआ। यात्रारंभ के लिए मथारा को चुनने के पीछे की कहानी लंबी, मगर दिल को छू लेने वाली है। तीन नदियों की उद्गमस्थली मथारा न जाने कब से पानी के मामले में बेचारा बन गया था। हरियाली का दर्शन यहां के लिए किसी देव-दर्शन से कम नहीं था। पलायन यहां की प्रकृति बन गई थी और पेट-पालन के लिए लूट-पाट लोगों का पेशा। तरुण भारत संघ ने पूरी परिस्थिति का अध्ययन किया और फिर शुरू हुआ समाधान का अनुष्ठान। गांव वालों को उनके पौरुष, उनके पानी, और पानी-धानी के बारे में बताया, समझाया कराया। पानी सहेजने का काम शुरू हुआ। काम परिणाम में बदलने लगा। जिन नदियों में बारिश के मौसम में चुल्लू भर पानी नहीं होता था, वे अब गर्मी के मौसम में अविरल बहने लगीं। नदियां सदानीरा हो गईं। मथारा जल संरक्षण का मॉडल बन गया। पानी जीवन के साथ समृद्धि भी लाता है। मथारा में ऐसा ही हुआ। पेट की भूख मिटाने जो लूट-पाट पर निर्भर थे, अब वे दूसरों के पेट भरने लगे। मजदूर मालिक बन गए, अच्छी कास्त के किसान गांव की शान बन गए।

साल में 200 कुंतल गेहूं, 100 कुंतल सरसों पैदा करने वाले निर्भय सिंह शिविर में अपने अतीत को याद कर भावुक हो उठते हैं। तभासं, खासतौर से राजेंद्र सिंह की प्रशंसा में निशब्द, ’’…प्रशंसा में लिखना शुरू करूं तो रामायण जैसे कई ग्रंथ भर जाएंगे। हमें पेट के लिए क्या-क्या नहीं करने पड़े। मगर पानी ने हमारा जीवन बदल दिया। अब हम दूसरों के पेट भर रहे हैं। अनाज बेच रहे हैं। सबकुछ राजेंद्र बाबू के कारण हो पाया है। ये न होते तो आज हम नहीं होते। हमारा मथारा आज मथुरा (समृद्धि का प्रतीक) बन गया है।’’

शिविर में गांव के अन्य कई किसानों ने भी मथारा में आए इस बदलाव की गाथा जिस तरह सुनाई, उपस्थित लोगों की आंखें भर आईं। किसानों ने संकल्प लिया कि जहां-जहां पानी सहेजने का काम करने की जरूरत होगी, किया जाएगा और पूरे जिले को पानीदार बनाया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि जलवायु परिवर्तन के शमन की चाबी जल संरक्षण में छिपी हुई है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था एफएओ की तरफ से कई देशों में पानी, पर्यावरण और कृषि संबंधित मामलों के प्रमुख के तौर पर काम कर चुके कृषि विज्ञानी डॉ. प्रेम निवास शर्मा ने सरल शब्दों में किसानों को समझाया कि वे पानी के काम के जरिए सिर्फ अपना नहीं, पूरी दुनिया का भला कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पानी को सहेजना जलवायु परिवर्तन के शमन में सबसे बड़ा योगदान है।

तरुण भारत संघ के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह ने शिविर में पानी के भौतिक और अध्यात्मिक पक्षों की सांख्यिकी प्रस्तुत की और उदाहरणों के जरिए समझाया कि किस तरफ पानी ने इस इलाके को ’पानीदार, मालदार और इज्जतदार’ बनाया है। उन्होंने शिविरार्थियों का आह्वान किया कि पानी की यह पवित्र यात्रा उसकी प्रकृति की तरह अविरल जारी रहनी चाहिए, और तभासं इस अनुष्ठान में हर कदम जलाभिषेक के लिए तैयार है।

वयोवृद्ध गांधीवादी रमेश शर्मा ने पानी के शांति पक्ष का दर्शन प्रस्तुत किया, और नदी गीत के माध्यम से पानी का पूरा विज्ञान सामने रख दिया। यात्रा में हिस्सा लेने आए आगरा के सामाजिक कार्यकर्ता अनिल शर्मा ने मथारा में हुए पानी के इस पुण्य प्रयोग की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इसके पहले यात्रा की पूर्व संध्या पर 10 सितंबर, 2024 को आगरा स्थित शिरोज कैफै सभागार में राजेंद्र सिंह की अध्यक्षता में एक संगोष्ठी हुई, जहां जल कार्यकर्ताओं ने पानी और हवा के संकट पर गहन चिंतन-मंथन किया और ’सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन से जलवायु परिवर्तन अनुकूलन व उन्मूलन अध्ययन यात्रा’ निकाले जाने की प्रासंगिकता को रेखांकित किया।

मथारा में किसान जागृति शिविर के बाद यह यात्रा गांव की तीनों नदियों -बमाया, बामनी और खरवाई- के तट पहुंची और उसके बाद इलाके के अन्य जल स्रोतों के भ्रमण-दर्शन करते हुए आगे बढ़ गई। करौली में रात्रि विश्राम के बाद 12 सितंबर, 2024 को सुबह सात बजे यात्रा अपने अगले गंतव्य की तरफ चल पड़ी। जल-यात्रियों ने कोट गांव, तीन पोखर, मानखुर, श्यामा का पुरा और नया पुरा जैसे गांवों को पानीदार बना रहीं नदियों और तालाबों के भ्रमण किए और इन जल स्रोतों के पुनर्जीवन में भागीदार रहे किसानों के साथ संवाद किए।

यात्रा जैसे-जैसे आगे बढ़ी लोग जुड़ते गए। दोपहर में यह यात्रा देवनारायण मंदिर पहुंची, जहां किसान जागृति शिविर का आयोजन हुआ। यहां किसानों के साथ पानी और पर्यावरण के प्रबंधन पर चर्चा की गई। शिविर में कुल 11 गांवों के कोई 100 किसानों ने हिस्सा लिया। किसानों ने पानी के काम से प्राप्त अपने अनुभव साझा किए और आगे की अपनी योजनाएं भी प्रस्तुत कीं। किसानों ने बताया कि किस तरह पानी उनके जीवन में शांति और समृद्धि का स्रोत बनता जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि तरुण भारत संघ ने इस पूरे इलाके की समृद्धि के लिए ’पानीदार, मालदार और इज्जतदार’ जैसा नारा बुलंद कर रखा है। संस्था ने इसके लिए इलाके की 23 नदियों को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया है। कुछ नदियां पुनर्जीवित हो चुकी हैं और कुछ पर काम चल रहा है। संस्था ने इस काम में समाज को भागीदार और हिस्सेदार बनाने का एक पारदर्शी सहकारी मॉडल पेश किया है। पानी के किसी भी काम में लागत के दो हिस्से का प्रबंधन संस्था करेगी और एक हिस्से के साथ समाज को सहभागी होना होगा। सहकारिता का यह मॉडल चंबल के इस इलाके में सफलता और समृद्धि का मॉडल बनता दिखाई दे रहा है।

दिन भर के किसान जागृति शिविर के बाद यात्रा राजस्थान से हरियाणा की ओर बढ़ गई। हरियाणा के भिवानी जिले में स्थित तरुण भारत संघ के आश्रम में रात्रि विश्राम के बाद जल-यात्रियों ने 13 सितंबर, 2024 की सुबह गांव में उन जलसंरचनाओं का भ्रमण किया, जिनका उद्धार तभासं के कई सालों के अथक परिश्रम का परिणाम है। अरावली पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसा यह गांव अतिक्रमण, अवैध खनन और अंधाधुंध भू-जल दोहन के कारण बेपानी हो गया था। खेती और पीने के पानी का संकट इलाके के लिए किसी आपदा से कम नहीं था। जमीन के नीचे का पानी नमकीन हो गया था। तभासं के प्रयासों से एक बार फिर यह गांव पानी के मामले में अपने प्राकृतिक स्वरूप की ओर लौट रहा है।

सुबह के भ्रमण के बाद आश्रम में जलवायु परिवर्तन के शमन में जल प्रबंधन की भूमिका पर एक शिविर का आयोजन किया गया। कृषि एवं जलवायु विज्ञानी डॉ. प्रेम निवास शर्मा ने शिविरार्थियों को बड़ी बारीकी से समझाया कि वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का संतुलन किस तरह बिगड़ रहा है, उसके कारक क्या हैं और पानी का काम कैसे इस असंतुलन को संतुलित करने में योगदान कर रहा है। डॉ. शर्मा ने पॉवर पॉइंट प्रजेंटेशन के जरिए आंकड़ों के साथ समझाया कि पानी से पैदा होने वाली हरियाली वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को सोख कर जलवायु परिवर्तन को रोकने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

डॉ. शर्मा ने कहा कि वर्षों पहले राजेंद्र सिंह ने कहा था कि ’जल ही जलवायु है’। यह बात बिलकुल सच है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जो लोग पानी को सहेजने और हरियाली बढ़ाने के काम में जुटे हुए हैं, और अपने काम के जरिए कार्बन को वायुमंडल से कम कर रहे हैं, सरकार को चाहिए कि वह ऐसे लोगों को उनके काम का मुआवजा देने की व्यवस्था बनाए। इससे जलवायु परिवर्तन को रोकने के प्रयासों को गति मिलेगी।

पानी का नोबेल कहे जाने वाले स्टॉकहोम वाटर प्राइज (स्टॉकहोम जल पुरस्कार) से सम्मानित राजेंद्र सिंह ने इस मौके पर कहा कि पानी और हवा को प्राकृतिक स्वरूप लौटाने के उद्देश्य से शुरू हुई यह यात्रा पूरे देश और दुनिया भर में जाएगी, और इसके जरिए जलवायु परिवर्तन अनुकूलन व उन्मूलन के लिए जन जन को जागरूक किया जाएगा। लोगों को बताया जाएगा कि पानी का काम जलवायु परिवर्तन को रोकने में किस तरह भूमिका निभा रहा है और सभी को इस काम में सहभागी बनाने का प्रयास किया जाएगा। यात्रा के इस शुरुआती चरण में राजेंद्र सिंह, डॉ. प्रेम निवास शर्मा, रमेश शर्मा, सरोज मिश्र, अनिल शर्मा, रणवीर सिंह, दशरथ आदि लोगों के अलावा बड़ी संख्या में स्थानीय किसान शामिल रहे।

आज से किसी धोखेबाज या ठग को 420 नहीं कह सकेंगे

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अगर आप भारत में रहते हैं तो आज से आपको अपनी क़ानून की भाषा बदल देनी होगी। जी हां, आज से आप किसी धोखेबाज या ठग को 420 नहीं कह सकेंगे, क्योंकि भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) यानी आईपीसी (IPC) आज से भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) यानी बीएनएस (BNS) में तब्दील कर दी गई है। नरेंद्र मोदी सरकार ने अंग्रेजों के जमाने से चल रहे तीन आपराधिक कानूनों, भारतीय दंड संहिता (1860), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1898) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) को बदल दिया है। इनकी जगह भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने ले लिया है।

पिछले साल दिसंबर में संसद में पारित तीनों विधेयक पूरे देश में आज से कानून के रूप में प्रभावी हो गए है। आईपीसी में 511 धाराएं थीं, लेकिन NBS में केवल धाराएं 358 रह गई हैं। NBS में 20 नए अपराध शामिल किए हैं और 33 अपराधों में सजा की अवधि बढ़ा दी गई है। 83 अपराधों में जुर्माने की रकम भी बढ़ा दी गई है। 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान है। 6 अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा का प्रावधान किया गया है।

भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को 12 दिसंबर 2023 को केंद्र सरकार ने लोकसभा में तीन संशोधित आपराधिक विधियकों को पेश किया था। इन्हें 20 दिसंबर, 2023 को लोकसभा और 21 दिसंबर, 2023 को राज्यसभा ने मंजूरी दी थी। 25 दिसंबर, 2023 को राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद विधेयक कानून बन गए लेकिन इनके प्रभावी होने की तारीख 1 जुलाई, 2024 निर्धारित की गई थी। कानूनों में प्रभावी होने के साथ ही इनमें शामिल धाराओं का क्रम भी बदल गया है। अब रेप के किसी आरोपी को अब धारा 376 नहीं बल्कि धारा 101 के तहत सज़ा दी जाएगी।

अहम धाराओं में बदलाव
धारा 376: नए कानून के अस्तित्व में आने से रेप से जुड़े अपराध में सजा को पहले आईपीसी (IPC) की धारा 376 में परिभाषित किया गया था। बीएनएस (BNS) में इसे अध्याय 5 में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में जगह दी गई है। नए कानून में दुष्कर्म से जुड़े अपराध में सजा को धारा 63 में परिभाषित किया गया है। वहीं सामूहिक दुष्कर्म को आईपीसी की धारा 376 डी को नए कानून में धारा 70 में शामिल किया गया है।

धारा 302: IPC में किसी की हत्या करने वाला धारा 302 के तहत आरोपी बनाया जाता था। BNS में ऐसे अपराधियों को धारा 101 के तहत सजा मिलेगी। नए कानून के अनुसार, हत्या की धारा को अध्याय 6 में मानव शरीर को प्रभावित करने वाले अपराध कहा जाएगा।

धारा 307: IPC में हत्या करने के प्रयास में दोषी को आईपीसी की धारा 307 के तहत सजा मिलती थी। BNS में ऐसे दोषियों को भारतीय न्याय संहिता की धारा 109 के तहत सजा सुनाई जाएगी। इस धारा को भी अध्याय 6 में रखा गया है।

धारा 420: IPC में धोखाधड़ी या ठगी का अपराध धारा 420 में दर्ज होता था। BNS में इस अपराध को धारा 316 के तहत दर्ज किया जाएगा। इस धारा को भारतीय न्याय संहिता में अध्याय 17 में संपत्ति की चोरी के विरूद्ध अपराधों की श्रेणी में रखा गया है।

धारा 124: IPC की धारा 124 राजद्रोह से जुड़े मामलों में सजा का प्रावधान रखती थी। BNS में ‘राजद्रोह’ को एक नया शब्द ‘देशद्रोह’ मिला है यानी ब्रिटिश काल के शब्द को हटा दिया गया है। BNS में अध्याय 7 में राज्य के विरुद्ध अपराधों कि श्रेणी में ‘देशद्रोह’ को रखा गया है।

धारा 144: IPC की धारा 144 घातक हथियार से लैस होकर गैरकानूनी सभा में शामिल होना के बारे में थी। इस धारा को BNS में के अध्याय 11 में सार्वजनिक शांति के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में रखा गया है। अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 187 गैरकानूनी सभा के बारे में है।

धारा 399: IPC मानहानि के मामले में आईपीसी की धारा 399 इस्तेमाल की जाती थी। BNS में अध्याय 19 के तहत आपराधिक धमकी, अपमान, मानहानि, आदि में इसे जगह दी गई है। मानहानि को भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 में रखा गया है।

आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम में क्या बदलाव?
आपराधिक प्रक्रिया संहिता यानी CrPC की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ने ले ली है। CrPC की 484 धाराओं के बदले भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं हैं। नए कानून के तहत 177 प्रावधान बदले गए हैं जबकि नौ नई धाराएं और 39 उपधाराएं जोड़ी हैं। इसके अलावा 35 धाराओं में समय सीमा तय की गई है।

वहीं, नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 170 प्रावधान हैं। इससे पहले वाले कानून में 167 प्रावधान थे। नए कानून में 24 प्रावधान बदले हैं।

शाम-ए-मुंबई भी कम खूबसूरत नहीं

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यूं तो दुनिया भर में सुबह-ए-बनारस, शाम-ए-अवध और शब-ए-मुंबई की चर्चा ख़ूब होती है। लेकिन शाम-ए-मुंबई भी कम खूबसूरत नहीं होती। ख़ासकर अरब सागर में सूर्यास्त का ख़ूबसूरत नज़ारा। अगर आप भी शाम-ए-मुंबई के खूबसूरत नजारे का दीदर करना चाहते हैं तो सूर्यास्त के समय मरीन ड्राइव पहुंच जाए। रात ढलते ही मरीन ड्राइव के केला या ‘C’ आकार की घुमावदार सड़क पर लगी स्ट्रीट-लाइट जगमाती दिखने लगती है। यह नज़ारा हूबहू मोती की माला जैसा दिखता है। इसीलिए मरीन ड्राइव को ‘क्वीन्स नैकलेस’ कह जाता है। सड़क के किनारे कई नामचीन होटल्स और रेस्तरां इसके आकर्षण को बढ़ा देते हैं।

नववर्ष का स्वागत करना यहां का सबसे अधिक आकर्षक घटना होती है। नववर्ष के स्वागत के लिए हर साल 31 दिसंबर की शाम लोग मरीन ड्राइव पहुंच जाते हैं। अरब सागर तट पर एनसीपीए से लेकर गिरगांव चौपाटी तक स्ट्रीट-लाइट्स को सजा दिया जाता है। अरब सागर तट की छह लेन की ‘C’ आकार वाली कंक्रीट सड़क 3.6 किलोमीटर लंबी है। सड़क और सैरगाह का निर्माण पल्लोनजी मिस्त्री ने किया था। छह लेन की कंक्रीट की सड़क है जो एक प्राकृतिक खाड़ी के तट पर बनी है।

यह नरीमन पॉइंट को बाबुलनाथ और मालाबार हिल से जोड़ती है। उत्तरी छोर पर धनाढ्य लोगों की बस्ती मलाबार हिल है, जहां राजभवन भी है। दोनों ओर कभी ताड़ व नारियल के पेड़ होते थे। इनकी संख्या धीरे-धीरे कम होती गई। मरीन ड्राइव का चौपाटी भेलपुरी के लिए प्रसिद्ध है। सुरो की मलिका सुरैया यहीं के कृष्णा महल में अपने अंतिम समय तक रहीं। नरगिस और राजकपूर जैसे स्टार शुरुआती दिनों में यही रहते थे। यहां साल भर कोई न कोई आयोजन होता रहता है जिनमें बॉम्बे मैराथन, वायुसेना का एयरशो, फ्रेंच फेस्टिवल, इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू और कई अन्य शामिल हैं।

मरीन ड्राइव 1940 में

अगर मरीन ड्राइव के इतिहास पर गौर करें तो जहां आजकल जहां चर्चगेट रेलवे स्टेशन है। वह इलाका 15वीं सदी तक लिटिल कोलाबा या ओल्ड वूमन आईलैंड हुआ करता था। सवा दो सौ साल पहले तक यह खालिस समुद्र था। पानी ही पानी था। पहले इसे क्षेत्र को स्थानीय लोग सोनापुर कहते थे। आजकल यह मरीन ड्राइव कहा जाता है। 1687 में ईस्ट इंडिया कंपनी मुख्यालय को सूरत से बॉम्बे करने के बाद बॉम्बे के सभी सातों द्वीपों – कोलाबा, लिटिल कोलाबा (ओल्ड वूमन आइलैंड), माहिम, मजगांव, परेल और वरली को जोड़ने का मिशन शुरू हुआ, क्योंकि पूरे इलाके में बीहड़ ही बीहड़ था।

बॉम्बे को विश्वस्तरीय कॉमर्शियल सिटी बनाने का काम सर बार्टले फ्रीर के बॉम्बे का गवर्नर बनने के बाद शुरू हुआ। समुद्र पाटने वाली परियोजना को हॉर्नबाय वेल्लार्ड परियोजना कहा गया। जो एक सदी से ज़्यादा समय तक चलती रही। मकसद यह था कि इस भूभाग को किले के दायरे से निकाल कर आधुनिक शहर में परिवर्तित करना।

वूमन आईलैंड पर समुद्र रिक्लेम करने के लिए बैकबे रिक्लेमशन प्रोजेक्ट 1915 में शुरू हुआ। पश्चिम रेलवे की लोकल गाड़ी शुरू होने के समय मरीन ड्राइव अस्तित्व में नहीं थी। चर्चगेट, मरीन ड्राइव और चर्नीरोड एकदम सी फेस पर थे। इतने करीब कि लहरें प्लेटफॉर्म तक आती थीं। तब मरीन ड्राइव रास्ते को कैनेडी सी-फेस कहते थे। इसकी आधारशिला 18 दिसंबर 1915 को रखी गई। पांच साल में गिरगांव से चर्चगेट तक समुद्र पाट दिया गया। 1930 तक एनसीपीए तक रिक्लेम कर दिया गया।

1928 में चर्चगेट स्टेशन शुरू होने पर पश्चिम की ओर का भूभाग इमारत निर्माण के लिए दे दिया गया। गिरगांव तक धनवान पारसियों और दूसरे कारोबारियों ने इमारतों को विक्टोरियन गोथिक और आर्ट डेको शैलियों में बनवाया। मियामी के बाद आर्ट डेको शैली के भवन मुंबई में ही हैं। यह शैली 1920 और 1930 के दशक में बहुत लोकप्रिय थी। मरीन ड्राइव पर सबसे शुरुआती आर्ट डेको इमारतों में कपूर महल, ज़ेवर महल और केवल महल शामिल थे, जिन्हें 1937 और 1939 के बीच 10 लाख रुपए की कुल लागत से बनाया गया था।

एस्प्लेनेड के किनारे रियल एस्टेट की कीमतें बहुत ज़्यादा हैं। ड्राइव के आस-पास कई होटल हैं। मरीन ड्राइव नरीमन पॉइंट पर स्थित केंद्रीय व्यावसायिक जिले और शहर के बाकी हिस्सों के बीच पसंदीदा कनेक्टिंग रोड है।

मरीन ड्राइव क्षेत्र में समुद्र पाटने के लिए बैकबे रिक्लेमशन प्रोजेक्ट 1915 में शुरू हुआ। पहले चर्चगेट, मरीन ड्राइव और चर्नीरोड सी फेस पर थे। इतने कि समुद्री लहरें प्लेटफॉर्म तक आती थीं। इस रास्ते को केनेडी सी-फेस कहते थे। इसकी आधारशिला 18 दिसंबर 1015 को रखी गई। गिरगांव से चर्चगेट तक समुद्र 1920 तक पाट दिया गया। अगले 10 साल में एनसीपीए तक रिक्लेम कर दिया गया।

अरब सागर के हिलोरे मारती लहरें हैं तो दूसरी ओर आर्ट डेको शैली की इमारतें। मरीन ड्राइव की सड़क का निर्माण उद्योगपति भागोजीशेठ कीर और पलोनजी मिस्त्री ने करवाया था। आरसीसी से बनने वाला मुंबई का यह पहला मार्ग था। इसका आधिकारिक नाम सुभाषचंद्र बोस रोड है, लेकिन शायद ही इसे लोग इस नाम से पुकारते हैं। शाम के समय हमेशा यहां पर्यटकों की भीड़ रहती हैं।

– हरिगोविंद विश्वकर्मा

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समय बलवान

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समय बलवान

  • हरिगोविंद विश्वकर्मा

नहीं शाश्वत
यहां कुछ भी
निश्चित है अंत
हर चीज़ का
किसी को भी नहीं
समझना चाहिए
ख़ुद को स्थायी
यहां जब
मानव नहीं हरा पाता
जिस व्यक्ति को
तब उसे एक न एक दिन
करता है पराजित समय
रह जाता है
सारा वैभव और ऐश्वर्य
सारी शक्ति और सत्ता
धरा का धरा यहीं पर
क्योंकि
समय करता है सबके साथ न्याय
इसलिए
किसी भी को भी
विजेता और सर्वशक्तिमान को भी
नहीं पालना चाहिए
तनिक भी अहंकार
नहीं बघारनी चाहिए शेख़ी
और
नहीं करनी चाहिए
मनमानी
क्योंकि
जो भी आया यहां
मानव काया में
वह अंततः हो गया नष्ट
चाहे वह
अत्याचारी रावण हो
या
कंस हो
या फिर
मर्यादा पुरुषोत्तम राम
या
गीता के प्रवर्तक कृष्ण
***

 

फलों की रानी लीची

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प्रकृति के ख़ज़ाने में कई ऐसे पौधे हैं जो किसी वरदान से कम नहीं। ये पौधे ऐसे फल देते हैं जो फल तो हैं ही, उससे बढ़कर दवा है। पेड़-पौधों की इसी सीरीज़ में लीची आती है। गर्मी और बारिश के बीच आने वाली लीची से स्वाद तो मिलता ही है, तंदरुस्ती भी मिलती है। लीची का तो नाम सुनते ही मुंह मिठास से भर जाता है। देखने में ये जितनी ख़ूबसूरत लगती है, उतनी ही ज़्यादा मीठी और स्वादिष्ट होती है। तभी तो ये फल हरदिल अजीज है। अगर आम फलों का राजा है तो लीची भी फलों की रानी। गर्मियों की जान लीची बच्चे से लेकर बड़े-बढ़े की मनपसंद है।

पौष्टिक तत्वों की इसमें भंडार होता है। कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन सी, पोटैशियम, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम और फॉस्फोरस जैसे खनिज प्रचुर मात्रा होते हैं। इसीलिए इसे रोगों का दुश्मन कहते है। सेहत का ख़ज़ाना लीची अपने अंदर समेटे इन गुणों के कारण ‘सुपरफ्रूट’ भी कहलाती है।

एक लीची हज़ार गुण

ब्लडप्रेशर की दुश्मन
लीची को ब्लडप्रेशर का दुश्मन कहा जाता है। दरअसल इसमें मौजूद पोटैशियम और कॉपर हार्ट की बीमारियों से बचाते हैं। दिल की धड़कन की अनियमितता या अस्थिरता और बीपी को नियंत्रित रखने में ये सहायक होती है। ये हार्ट अटैक के जोखिम को ख़त्म कर देती है।

डायजेशन में मददगार
डायजेशन समस्या का लीची रामबाण इलाज है। इसमें बीटा कैरोटीन, राइबोफ़्लेबिन, नियासिन और फ़ोलेट जैसे विटामिन बी प्रचुर मात्रा में होते हैं। विटामिन बी रेड ब्लड सेल्स का निर्माण होता है। कोलेस्ट्रॉल स्तर को फ़ोलेट कंट्रोल में रखता है। इसीलिए इसके सेवन से डायजेशन समस्या नहीं होती।

कैंसर से करे हिफ़ाजत
लीची में मौजूद विटामिन सी कैंसर से भी लड़ने की क्षमता रखते हैं। रिसर्चे से साबित हो गया है कि इसमें कैंसर, खासतौर पर स्तन कैंसर, से लड़ने के गुण मिलते हैं। नियमित रूप से इसे खाने से शरीर में कैंसरस सेल्स ज़्यादा नहीं बढ़तीं। ये बेहतर एंटीऑक्सीडेंट और आयरन का अवशोषण भी करती है।

मोटापा को करे कम
लीची में एंटीओबेसिटी गुण भी होते हैं। इसमें फ़ायबर बहुत ज़्यादा मात्रा में होता है, जो भोजन बहुत अच्छी तरह पचाता है और फ़ैट कम बनाता है। इसीलिए इसे मोटापा कम करने के लिए रामबाण माना जाता है। फ़ायबर बीमारियों लड़ने के लिए इम्यून सिस्टम को मज़बूत रखता है।

बच्चों की सच्ची सहेली
लीची बच्चों की सच्ची सहेली है। उनके विकास के लिए ज़रूरी हर तत्व लीची में पाए जाते हैं। मसलन- कैल्शियम, फॉस्फोरस और मैग्नीशियम। ये बच्चों के विकास में अहम किरदार अदा करते हैं। लीची में मौजूद मिनरल्स हड्डियों की बीमारी ऑस्टियोपोरोसिस को भी रोकने में सहायक होते हैं।

ऊर्जा का अच्छा स्रोत
लीची को ऊर्जा का बेहतरीन स्रोत माना जाता है। जिनको ज़्यादा थकान या कमज़ोरी महसूस होती है उनके लिए लीची ब्रम्हास्त्र है। इसमें मौजूद नियासिन स्टेरॉयड हार्मोन और हीमोग्लोबिन बनाता है, जो ऊर्जा के लिए आवश्यक है। इसीलिए, लीची नियमित खाने वाले तरोताज़ा और एनर्जेटिक लगते हैं।

एंटीइन्फ़ेक्शन फल
लीची सर्दी-जुकाम, बुखार, खांसी और गले के संक्रमण से बचाती है। दरअसल, इसमें एक ऑलिगनॉल रसायन होता है जो एन्फ्लूएंजा के वायरस से मज़बूती से लड़ता है और बुखार वगैरह से बचाता है। वैसे
बहुत गंभीर हो चुकी सूखी खांसी के लिए तो लीची रामबाण की तरह है।

पानी का अच्छा वाहक
प्रकृति ने लीची को पानी भरपूर दिया है। इसके अंदर के पौष्टिक तरल में पानी प्रचुर मात्रा में होती है। ये शरीर में पानी सप्लाई भी करती है। इसीलिए इससे डिहाइड्रेशन नहीं होता है। इसका सेवन करने से गर्मी की बीमारियों से भी दूर रहा जा सकता है। यह गर्मी दूर करके शरीर को ठंडक पहुंचाती है।

सुंदरता निखार दे
लीची सौंदर्य का चमकाने का भी काम करती है। दरअसल, ये सूरज की अल्ट्रावॉयलेट किरणों से त्वचा की रक्षा करती है। इसीलिए, इसके नियमित सेवन करने से तैलीय त्वचा को भरपूर पोषण मिलता है, जिससे चेहरे पर पड़ने वाले दाग-धब्बों में कमी तो आती ही है, सौंदर्य भी निखर आता है।

बीज-छिलका भी उपयोगी
बढ़िया लीची ही नहीं ख़राब लीची भी काम की है। इसके बीज का पाउडर शहद के साथ खाने पर पेट के कीड़े मर जाते हैं। डायजेशन प्रॉब्लम में पाउडर की चाय आराम देती है। पाउडर न्यूरो सिस्टम में दर्द से भी राहत दिलाता है। इसके गूदे और छिलके से हाइड्रोक्सीकट, लीची-60 सीटी और एक्सेंड्रीन बनाई जाती है, जिसका प्रयोग वेट लॉस, ब्लडप्रेशर नियंत्रण और हॉर्ट डिज़ीज़ की सप्लीमेंट्री दवा के रूप मे होता है। इससे बने स्किन क्रीम चेहरे की झुर्री घटाकर चमक भी बढ़ाती है।

बहुत ज़्यादा न खाएं
लीची हैं फ़ायदेमंद लेकिन ज़रूरत से ज़्यादा खा लेने से ये नुकसान भी कर सकती है। 10-12 लीची से ज़्यादा कतई न खाएं। अन्यथा नकसीर और सिरदर्द की समस्याओं हो सकती है। ज़्यादा लीची जीभ और होंठों में सूजन, सांस समस्या के साथ शरीर में खुजली भी पैदा कर सकती है।

भारत में लीची का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। देहरादून की लीची बड़ी स्वादिष्ट मानी जाती है। बिहार भी लीची का बड़ा उत्पादक है। इसका वैज्ञानिक नाम लीची चिनेन्सिस है। जीनस इसका इकलौता सदस्य है। इस ट्रॉपिकल फ़ल का परिवार सोपबैरी है। इसका मूल चीन है। वहां प्राचीन काल में तंग वंश के राजा ज़ुआंग ज़ांग की प्रिय फल थी। वहां बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। सामान्यतः मैडागास्कर, ताइवान, वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, लाऔस, कंबोडिया, जापान, बांग्लादेश, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में पाई जाती है। अब कैलिफ़ोर्निया और फ्लोरिडा में भी पैदा होने लगी है। इसका सदाबहार पेड़ मध्यम ऊंचाई का यानी 15 से 20 मीटर लंबा होता है। इसकी अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि मुजफ्फरपुर (बिहार) की लीची हर साल राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित अन्य गणमान्य व्यक्तियों को भेजी जाती है।