अमिताभ मिश्र की एक कविता

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सतगुरु पारस रूप
अपनी लोहा जात

पारस परस भई मति
कंचन
बैठी गुनि जन पांत,
मति कंचन जब कसी कसौटी
सोन लकीर लजात
सतगुरु पारस रूप…

गुरु कृपा की महिमा ऐसी
शब्दन नाहीं समात,
डूबी कृपा समुंदर में
गोबिंद लख्यो न जात
सतगुरु पारस रूप…

– अमिताभ मिश्र

कवि के बारे में
साहित्यिक वातावरण में पले-बढ़े अमिताभ मिश्र संगीत कलाकार हैं। लेखन इनका शौक है।