पत्रकार आम मतदाता से भी अधिक उदासीन, मुंबई प्रेस क्लब में सिर्फ 42 फीसदी वोट, सत्तारूढ़ गठबंधन का ‘क्लीन-स्वीप’

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हरिगोविंद विश्वकर्मा

चीन के वुहान से निकली वैश्विक महामारी कोविड-19 की छाया में 6 जून 2022 को हुए मुंबई प्रेस क्लब के चुनाव में सत्ताधारी प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक अलायंस यानी पीडीए भारी जीत दर्ज करते हुए सभी पदों पर क़ब्ज़ा जमा लिया। ढाई हज़ार से ज़्यादा सदस्यों वाले मुंबई प्रेस क्लब में इस चुनाव में केवल आधे यानी 1309 सदस्य ही मतदान का पात्रता रखते थे। उसमें भी केवल 42 फ़ीसदी लोग ही वोट डालने के लिए सोमवार को मुंबई प्रेस क्लब पहुँचे। बाक़ी पत्रकारों ने वोट डालने की बजाय अपने दूसरे कार्यों को प्राथमिकता दी। कुछ साल से प्रेस क्लब में चल रहे विवाद के चलते भी कई सक्रिय सदस्य भी इन दिनों उदासीन हो गए हैं।

ढाई हज़ार से ज़्यादा सदस्यों में 1309 के अलावा बाक़ी लोग निर्धारित समय में सदस्यता शुल्क न जमा करने के कारण सदस्यता या मतदान के अधिकार से वंचित थे। कोरोना संक्रमण के बाद लगे लॉकडाउन के कारण हर सेक्टर में नौकरियां कम हुई। मीडिया भी इससे अछूता नहीं रहा। शहर के कई अख़बार बंद हो गए। कई जगह छंटनी हो गई। इससे बड़ी संख्या में पत्रकारों ने आजीविका का साधन गंवा दिए। कई पत्रकार तो अब भी आधे वेतन पर काम कर रहे हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब हो गई कि सदस्यता शुल्क ही नहीं भर सके।

मीडिया को जागरूक तबका माना जाता है। इसके बावजूद 1309 में से महज 552 वोट पड़े। 42 फ़ीसदी पत्रकारों के मतदान करने के बाद कहा जा सकता है कि बिना पत्रकारों के हितों की रक्षा करने का दावा करने वाले इस सबसे बड़े मीडिया संगठन का द्विवार्षिक चुनाव महज औपचारिता निभाने हेतु हुआ। अध्यक्ष, चेयरपरसन, वाइस चेयरपरसन और सेक्रेटरी समेत कार्यकारिणी के 16 सदस्यों में से पांच प्रमुख पदों का चयन निर्विरोध हो गया था। वरिष्ठ स्वतंत पत्रकार अयाज़ मेमन, मौजूदा चेयरमैन गुरबीर सिंह (न्यू इंडियन एक्सप्रेस), समर खड़स वाइस चेयरमैन (महाराष्ट्र टाइम्स), राजेश मास्करेन्हास (द इकोनॉमिक्स टाइम्स) सेक्रेटरी और रजनीश काकडे (असोसिएटेड प्रेस) क्रमशः निर्विरोध अध्यक्ष, चेयरमैन, वाइस चेयरमैन, सेक्रेटरी और ट्रेज़रर चुन लिए गए थे।

सोमवार के चुनाव में केवल जॉइंट सेक्रेटरी और 10 कार्यकारिणी सदस्यों के लिए हुए चुनाव में जॉइंट सेक्रेटरी पद के लिए पीडीए के उम्मीदवार ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ के वरिष्ठ फोटोग्राफर संतोष बने ने ‘टीवी9 भारतवर्ष’ के विशेष संवाददाता अखिलेश तिवारी को 200 मतो से हरा दिया। मुंबई प्रेस क्लब में नेतृत्व परिवर्तन और युवाओं को संगठन में काम करने का मौक़ा देने के एजेंडे पर चुनाव मैदान में उतरने वाले अखिलेश तिवारी के पक्ष में 169 वोट जबकि सत्तारूढ़ पीडीए के संतोष बने को 369 वोट मिले। 14 वोट निरस्त कर दिए गए।

मयूरेश गणपतये (टीवी9 भारतवर्ष) को 465, स्वीटी आदीमूलम (फ्री प्रेस जर्नल) और रश्मि पुराणिक (साम टीवी) दोनों को 434, ब्रजमोहन पांडेय (नवभारत) को 428, अनुराग कांबले (मिड-डे) को 426,शशांक पारदे (पीटीआई) को 423, सौरभ शर्मा (महाराष्ट्र टाइम्स) को 420, संजय बी रंजीत (टाइम्स नाऊ) को 408, गौरव लघाटे (इकोनॉमिक्स टाइम्स) को 400 और किरण उमरीगर (स्वतंत्र) को 399 वोट मिले और ये लोग कार्यकारिणी के सदस्य चुन लिए गए। कार्यकारिणी का चुनाव लड़ रही इकलौती विपक्षी उम्मीदवार अनिता शुक्ला (स्वतंत्र) को केवल 200 वोट ही मिल सके।

अखिलेश तिवारी और अनिता शुक्ला ने सदस्यों से भावुक अपील में प्रेस क्लब में नेतृत्व परिवर्तन और युवा पत्रकारों को मौक़ा दिए जाने की अपील की थी। इस बार तो चुनाव में विपक्ष परदे से पूरी तरह से ग़ायब रहा। अगर अखिलेश तिवारी और अनिता शुक्ला चुनाव मैदान में न उतरते तो सभी 16 पदों का चयन निर्विरोध हो जाता। बहरहाल, विरोध का स्वर ऊंचा करने के लिए इन दोनों जुझारू युवा पत्रकारों को प्रशंसा तो बहुत जो़रदार मिली, लेकिन वोट कम मिला। अगर प्रशंसा जितना वोट मिला होता तो दोनों शर्तिया चुनाव जीत जाते। इनका हार का प्रमुख कारण लगभग 58 फ़ीसदी सदस्यों की उदासीनता रही, जो वोट करने के लिए आए ही नहीं।

कोई संगठन, संस्थान, समूह या दल तब तक संतुलित, निष्पक्ष और लोकतांत्रिक नहीं माना जाता है, जब तक उसमें समाज के हर तबक़े, हर वर्ग का उचित प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी नहीं हो जाती है। किसी संस्थान, संगठन, समूह या दल में जब लोगों का प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी असंतुलित हो जाती है तब वह एक ख़ास समूह या ख़ास लोगों का संगठन बन जाता है। यह स्वस्थ एवं निष्पक्ष लोकतंत्र के लिए बेहद ख़तरनाक अवस्था होती है। इसीलिए स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मज़बूत और सक्षम सत्ता पक्ष के साथ-साथ सशक्त विपक्ष का होना अपरिहार्य माना जाता है।

स्वस्थ लोकतंत्र के इसी मन्तव्य के तहत देश के लगभग सभी लोकतांत्रिक संगठनों में एक निश्चित एवं निर्धारित अवधि के बाद निर्वाचन यानी चुनाव कराने का प्रावधान किया गया है। समय-समय पर चुनाव कराने और नेतृत्व में परिवर्तन से कोई व्यक्ति या समूह उस संगठन पर एकाधिकार नहीं कर पाता और संगठन अपने सदस्यों एवं समाज के व्यापक हित में काम करता रहता है। लेकिन जब कोई व्यक्ति या समूह उस संगठन पर क़ाबिज़ हो जाता है यानी संगठन पर एकाधिकार कर लेता है, तो उस संगठन के फ़ैसले के पक्षपातपूर्ण होने की संभावना बनी रहती है।

कभी-कभी कई संगठन निष्पक्ष और लोकतांक्षिक ढंग से काम करते हैं, फिर भी समय समय पर संगठन के लीडरशिप में बदलाव के साथ साथ हमेशा सशक्त विपक्ष की मौजूदगी समय की मांग होती है। मुंबई प्रेस क्लब निष्पक्ष और लोकतांक्षिक ढंग काम करने वाले संगठन का शानदार उदाहरण रहा है। चंद अपवादों को छोड़ दें तो मुंबई प्रेस क्लब अपनी स्थापना से ही देश की आर्थिक राजधानी में पत्रकारों का सबसे बड़ी शक्ति रहा है।

मुंबई प्रेस क्लब पिछले कुछ साल से अंदरूनी विवाद का शिकार हो गया था। कार्यकारिणी ने कथित तौर पर प्रेस क्लब के हितों के विरुद्ध कार्य करने का आरोप लगाकर दो सदस्यों सुश्री लता मिश्र और वरुण सिंह को प्रेस क्लब की सदस्यता से वंचित कर दिया था। चुनाव की घोषणा होने पर दोनों निष्कासित सदस्य ने चुनाव रोकने की मांग को लेकर सिविल सिटी कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। दो सदस्यों सुश्री लता मिश्र और वरुण सिंह के निष्कासन समेत कुछ अपवादों को छोड़ दे तो मौजूदा टीम का काम ख़ासकर कोविड -19 महामारी के दो वर्षों में काफी संतोषजनक रहा।

वैसे मुंबई प्रेस क्लब अपने पांच दशक से ज़्यादा के कार्यकाल के दौरान पुरुष प्रधान संगठन रहा है। दूसरे संगठनों की तरह मुंबई प्रेस क्लब में भी पुरुषों का वर्चस्व और एकाधिकार है। क्लब से बहुत सक्रियता से जुड़े पत्रकार मृत्युंजय बोस ने बताया कि अब तक कोई महिला पत्रकार मुंबई प्रेस क्लब की अध्यक्ष नहीं बन सकी है। मुंबई में मीडिया के सबसे मंच के लिए यह बहुत बड़ी विगंति है। कुछ साल पहले द टाइम्स ऑफ इंडिया की एक महिला पत्रकार चेयरपरसन चुनी गई थी। इस बार चुनाव लड़ने वाली तीन महिला पत्रकारों में से केवल दो ही जीत सकीं।

मुंबई की मीडिया का पिछले कुछ साल से व्यापक विस्तार हुआ है। देश की आर्थिक राजधानी में टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, फ्री प्रेस जर्नल, सकाल टाइम्स और मिड डे जैसे छह बड़े अंग्रेज़ी अख़बार, नवभारत टाइम्स, नवभारत, यशोभूमि, प्रातःकाल, हमारा महानगर और जागरूक टाइम्स जैसे छह हिंदी अख़बार, लोकसत्ता, महाराष्ट्र टाइम्स, लोकमत, नवाकाल, सकाल, पुढारी, प्रहार और पुण्यनगरी जैसे दर्जन भर मराठी अख़बार और एबीपी माझा, टीवी9 मराठी, ज़ी24तास, साम टीवी, जय महाराष्ट्र और लोकशाही जैसे मराठी टीवी न्यूज़ चैनल का पूरा का पूरा सेटअप है।

इसके अलावा प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (PTI), यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ इंडिया (UNI) और एशियन न्यूज़ इंटरनेशनल (ANI) जैसी तीन स्वदेशी न्यूज़ एजेंसी और कई विदेशी न्यूज़ एजेंसियों का ब्यूरो कार्यालय है। एनडीटीवी 24×7, रिपब्लिक टीवी, इंडिया टुडे टीवी, टाइम्स नाऊ, मिरर नाऊ और न्यूज़ एक्स समेत 14 अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल्स और एनडीटीवी इंडिया, आजतक, टीवी9 भारतवर्ष, रिपब्लिक भारत, इंडिया टीवी, न्यूज़ 24, इंडिया न्यूज़ और न्यूज़ नेशन जैसे 30 हिंदी टीवी न्यूज़ चैनल्स का भारी भरकल ब्यूरो कार्यालय है। इतना ही नहीं अब मैदान में डिजिटल मीडिया भी है और अब सैकड़ों की संख्या में न्यूज़ बेवसाइट्स हैं। सब में न्यूज़ का प्रकाशन, प्रसारण और वितरण हो रहा है। यानी मुंबई में पत्रकारों की संख्या कई हज़ारों में है।

इतनी बड़ी संख्या के बावजूद मुंबई प्रेस क्लब में केवल 1309 लोगों का ही वोटर होना बताता है कि मीडिया का एक बड़ा तबक़ा प्रेस क्लब का सदस्य नहीं बन सका है। वैसे भारत में प्रेस क्लब की स्थापना 1930 के दशक में दिल्ली में हुई। मुंबई प्रेस क्लब सौ 1070 के दशक के शुरुआत में ही अस्तित्व में आ गया। कहने का मतलब प्रेस क्लब का संविधान 50 साल से ज़्यादा पुराना है। सबसे अटपटा लगता है कि प्रेस क्लब में प्रेसिडेंट और चेयरमैन (परसन) दोनों पद हैं। सबसे बड़ी बात जब प्रेस क्लब की स्थापना हुई तो मुंबई में गिने-चुने अख़बार और बहुत कम संख्या में पत्रकार थे। तब फोटोग्राफरों को भी पत्रकार नहीं माना जाता था। जब फोटोग्राफरों को पत्रकार का दर्जा मिला तब सदस्यों की संख्या में वृद्धि हुई। टीवी चैनल्स के शुरू होने से पत्रकारों की संख्या में अचानक बढ़ोतरी हुई। अब बड़ी संख्या में पत्रकार डिजिटल मीडिया यानी बड़ी और छोटी दोनों तरह की न्यूज़ वेबसाइट्स से जुड़े हुए हैं।

आज ज़रूरत इस बात की है कि मुंबई प्रेस क्लब मुंबई और आसपास के एक-एक पत्रकार की आवाज़ बने। अभी कुछ साल पहले प्रेस क्लब की सदस्यता रिव्यू करने की परंपरा शुरू की गई। इसमें यह प्रमाण देना पड़ता है कि आप मीडिया में सक्रिय हैं। मतलब या तो संपादक का पत्र या फिर प्रकाशित लेख की क्लिपिंग जमा करने का प्रावधान किया गया है। यह उन बेरोज़गार पत्रकारों के लिए बड़ा असुविधाजनक होता है, जिनके लेख या रिपोर्ट कहीं प्रकाशित नहीं हुए रहते हैं। इससे प्रेस क्लब के सदस्यों की संख्या सिमटने का ख़तरा है, जबकि प्रेस क्लब को सदस्यों की संख्या बढ़ाने की पहल करनी चाहिए। बहरहाल, सभी विजयी उम्मीदवारों को शुभकामनाएं। उम्मीद है कि सभी लोग मिलकर अपने संगठन मुंबई प्रेस क्लब सशक्त बनाने के लिए काम करेंगे।

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