बीएचयू में हिंदी विभाग का ‘लेखक के घर चलो’ कार्यक्रम का अभिनव प्रयोग

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साहित्यकार जयशंकर प्रसाद के घर पहुंचे और आयोजित की साहित्यिक गोष्ठी

रोशनी धीरा
वाराणसी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से ‘लेखक के घर चलो’ कार्यक्रम का अभिनव प्रयोग शुरू किया गया है और इस कार्यक्रम के तहत शनिवार को साहित्यकारों, प्रोफेसरों और शोध छात्र-छात्राओं का लगभग दो सौ सदस्यीय दल हिंदी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक कवि, नाटककार और उपन्यासकार जयशंकर प्रसाद के घर का दौरा किया। वहां पर पिछली सदी के कालजयी रचनाकार जयशंकर प्रसाद की पारिवारिक सदस्य कविता कुमारी और प्रपौत्र विजयशंकर प्रसाद ने साहित्यकारों एवं साहित्य-अनुरागियों का स्वागत किया।

जयशंकर प्रसाद के घर के सामने ही प्रांगण में एक गोष्ठी और संगीत संध्या का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में अपने स्वागत संबोधन में जयशंकर प्रसाद की पारिवारिक सदस्य कविता कुमारी ने कहा कि जयशंकर प्रसाद के दर्शन को समझे बिना आप न तो उनको समझ सकते हैं और न ही उनके साहित्य अथवा साहित्य रचने के उनके मंतव्य को समझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपने साहित्यकारों का सम्मान करने की परंपरा शुरू करनी चाहिए और इसी के तहत जयशंकर प्रसाद का एक स्मारक तो बनाना ही चाहिए।

‘लेखक के घर चलो’ कार्यक्रम की सूत्रधार प्रो. आभा गुप्ता-ठाकुर थीं, उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि जयशंकर प्रसाद हिंदी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक रहे हैं और उनका साहित्य निश्चित तौर पर उदात्त भावभूमि पर ले जाने वाला मानवीय साहित्य है। उन्होंने कहा कि आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में प्रसाद के कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। जयशंकर प्रसाद वस्तुतः युगप्रवर्तक लेखक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य को एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित करने वाली कालजयी रचनाएं दीं।

साहित्य-मनीषी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. सदानंद शाही ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। लेकिन अगर हम पिछले तीन दशक के कालखंड पर नज़र दौड़ाएं तो साहित्य और समाज का रिश्ता विछिन्न हुआ दिखता है। आज साहित्य और समाज के रिश्ते की डोर को और मज़बूत करने की ज़रूरत है, क्योंकि लेखक अपने समाज का आकाशदीप होता है।

बीएचयू के हिंदी विभागाध्यक्ष ने लोगों को आगाह करते हुए कहा कि ‘लेखक के घर चलो’ कार्यक्रम सकारात्मक माहौल बनाने के लिए शुरू किया गया है। दरअसल, यह साहित्य और समाज के रिश्ते को मज़बूत करने की एक सकारात्मक पहल है। इसलिए किसी को ‘लेखक के घर चलो’ कार्यक्रम को केवल पर्यटन समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वस्तुतः ‘लेखक के घर चलो’ कार्यक्रम अंतःकरण के आयाम का विस्तार है।

प्रो. सदानंद साही ने इस मौक़े पर घोषणा की कि जयशंकर प्रसाद के साहित्य के प्रति लोगों का रूझान बढ़ाने के लिए ‘लेखक के घर चलो’ कार्यक्रम की अगली कड़ी के तहत काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में 23, 24 और 25 जून को जयशंकर प्रसाद की कालजयी रचना ‘कामायनी’ पर एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जाएगी। जिसमें देश के कई नामचीन साहित्यकार ‘कामायनी’ के आधुनिक संदर्भ पर अपने विचार रखेंगे। उन्होंने कहा कि सवाल मानवता के विजयी होने का है, किसी एक व्यक्ति के विजयी होने का नहीं है। आज की शाम मानवता के लिए साहित्य की ओर लौटने का आरंभ है।

हिंदी विभाग के प्रोफेसर रहे साहित्यकार अवधेश प्रधान ने जयशंकर प्रसाद की आत्मकथात्मक कविता “मधुप गुन गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी” का बड़ी ख़ूबसूरती से पाठ किया। जिसकी गोष्ठी में उपस्थित लोगों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की। संयोग से जयशंकर प्रसाद की यह मशहूर कविता साहित्य की शीर्ष पत्रिका ‘हंस’ के आत्मकथात्मक विशेषांक में प्रकाशित हुई थी। प्रो. अवधेश प्रधान ने बताया कि जयशंकर प्रसाद और कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों कालजयी साहित्यकार प्रतिदिन बनारस के बेनिया बाग मैदान में टहलते हुए साहित्य पर चर्चा किया करते थे। उन्होंने कहा कि किसी समाज का सौंदर्यबोध कतई ख़त्म नहीं होना चाहिए, क्योंकि किसी समाज के सौंदर्यबोध का ख़त्म हो जाना उस समाज के पतन की पराकाष्ठा को व्यक्त करता है।

इस अवसर पर ‘लेखक के घर चलो’ कार्यक्रम के कला दीर्घा के तहत संगीत संध्या का भी आयोजन किया गया जिसमें सुशांत कुमार शर्मा, रूक्मणी राय, शीश कुमारी, विमलेश सरोज और पवन सोनकर ने “अरुण यह मधुमय देश हमारा” के साथ जयशंकर प्रसाद के कई अन्य गीतों को प्रस्तुत किया। यह प्रस्तुतिकरण इतनी कर्णप्रिय और असरदार थी, दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों ने खूब तालियां बजाई। यह ख़ूबसूरत गीत प्रसाद के नाटक चंद्रगुप्त में वर्णित है। इस तरह यह कार्यक्रम ‘लेखक के घर चलो’ कार्यक्रम का सांस्कृतिक पक्ष रहा।

‘लेखक के घर चलो’ कार्यक्रम के समापन पर बीएचयू के हिंदी विभाग की सहायक आचार्या डॉ. प्रियंका सोनकर और डॉ. विवेक सिंह ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया और कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया। ‘लेखक के घर चलो’ कार्यक्रम में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के लगभग डेढ़ सौ छात्र-छात्रा मौजूद थे। बतौर शिक्षक प्रो चंद्रकला त्रिपाठी, प्रो. वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी, प्रो. आनंदवर्धन, प्रो. श्रद्धा सिंह, प्रो. प्रभाकर सिंह, प्रो. अशीष त्रिपाठी, डॉ. रामाज्ञा राय, डॉ. किंग्सन सिंह पटेल, डॉ. रविशंकर सोनकर, डॉ.अजीत कुमार पुरी, डॉ.अशोक कुमार ज्योति, डॉ. प्रभात मिश्र, डॉ. प्रीति त्रिपाठी, डॉ. विंध्याचल यादव, डॉ. हरीश यादव, डॉ. सुभांगी श्रीवास्तव, डॉ. किरन आदि की उपस्थित ने हौसला बढ़ाने का काम किया।

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