स्तन कैंसर के निशाने पर अब पुरुष भी

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इस शीर्षक से आप हैरान होंगे, लेकिन यह ख़बर शत-प्रतिशत सही है। आमतौर पर स्तन कैंसर महिलाओं की बीमारी माना जाता है, लेकिन आजकल यह पुरुष को भी हो रहा है। डॉक्टरों का मानना है कि दूषित खानपान और हार्मोन्स इंजेक्शन से उगाई जा रही सब्ज़ियां खाने से पुरुषों के जीन्स में बदलाव आ रहा है, जिसके कारण यह अजीब तरह की समस्या जन्म ले रही है। वैसे एक फ़ीसदी पुरुषों में वैसे भी स्तन बढ़ने की समस्या आती रही है। बहरहाल, इस रिपोर्ट में देखते है कि क्यों परुष हो रहे हैं स्तन कैंसर के शिकार।

आप यह सोचकर हैरान हो सकते हैं कि पुरुष के पास तो स्तन ही नहीं होते, फिर पुरुष को स्तन कैंसर कैसे हो सकता है। हालांकि सच यह है कि स्त्री के साथ पुरुष में भी स्तन के टिश्यूज़ होते हैं। हां, दोनों में अलग अलग हारमोन्स के चलते स्त्रियों के स्तन पूर्ण विकसित हो जाते हैं, लेकिन पुरुष के विकसित नहीं होते। इस वजह से पुरुष के स्तन के टिश्यूज़ सीधे और छोटे रह जाते हैं, लेकिन असामान्य परिस्थितियों में उनमें कभी-कभार ट्यूमर बन जाते हैं। हालांकि पुरुषों में ब्रेस्ट कैंसर विरला ही होता है। यह पुरुषों में एक फ़ीसदी से भी कम है। 2016 में कुल 2600 पुरुषों में ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण पाए गए। वैसे एक हज़ार में महज़ एक पुरुष को ब्रेस्ट कैंसर का लाइफटाइम ख़तरा रहता है।

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पुरुष भी हैं आसान शिकार

महिलाओं के लिए हमेशा से भय का सबब रहा स्तन कैंसर अब पुरुषों के लिए भी चिंता का सबब बन रहा है। डॉक्टरों का दावा है कि अब पुरुष भी इस बीमारी का आसान शिकार बन रहे हैं। पिछले 25 सालों में पुरुषों में ब्रेस्‍ट कैंसर के मामले बड़ी तेज़ी बढ़ें हैं। गैरअनुशासित जीवन जीने वाले पुरुष ख़ासकर 40 से 60 साल की उम्र में स्तन कैंसर होने के डेंजर ज़ोन में रहते हैं, क्योंकि इस उम्र में पुरुषों में कैंसर के वाइरस बढ़ने का ख़तरा सबसे ज़्यादा होता है। इसलिए उम्र के इस पढ़ाव के बाद स्‍तन कैंसर के प्रति जागरुक रहना चाहिए। मोटापा, लिवर डिसीज़ और रेडियेशन थेरेपी से भी इस बीमारी का ख़तरा बढ़ता है। वैसे ब्रेस्‍ट कैंसर का ख़तरा जेनेटिक भी हो सकता है।

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रोग पुरुषों में ज़्यादा जटिल

स्‍तन कैंसर जानलेवा बीमारी है जिसके शिकार पुरुष भी हो रहे हैं। पुरुषों में ब्रेस्‍ट कैंसर होने की संभावना उम्रदराज लोगों में ज़्यादा होती है, लेकिन यह किसी भी उम्र के व्‍यक्ति में हो सकता है। वैसे जिस तरह से स्तन का विकास महिलाओं में होता है वैसा पुरुषों में बिल्कुल नहीं नहीं होता, लेकिन एक फ़ीसदी पुरुषों स्तन बढ़ने की समस्या से बेशक दो चार होते रहते हैं। इसी वजह से पुरुषों में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बना रहता है। यह बीमारी महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक जटिल होती है।

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तेज़ी से बढ़ रहा है स्तन कैंसर

देश के कई नामचीन डॉक्टरों का मानना है कि पुरुषों में स्तन कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके लिए डॉक्टर बदलती जीवनशैली को प्रमुख वजह मान रहे हैं। पुरुषों में स्तन कैंसर के मामले कुल स्तन कैंसर के मामलों में दो फीसदी तक बढ़े है। पुरुषों में स्तन कैंसर का खतरा एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर बढ़ने के कारण बढ़ता है। यूनिवर्सिटी ऑफ टैक्सॉस एम डी एंडर्सन कैंसर सेंटर के अनुसंधानकर्ताओं ने क़रीब ढाई हज़ार से ज़्यादा केसेज़ के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है। निष्कर्ष के मुताबिक़, पुरुषों में स्तन कैंसर के मामले पिछले ढाई दशक से तेज़ी से सामने आ रहे हैं। महिला मरीजों की तुलना में पुरुष मरीजों को अधिक उम्र बीतने पर स्तन कैंसर का पता लगता है।

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पुरुष के ट्यूमर महिलाओं की ही तरह

पुरुषों में स्तन कैंसर के लक्षण महिलाओं को होने वाले ब्रेस्ट कैंसर की तरह ही होते हैं।ज़्यादातर पुरुषों में स्तन कैंसर सीने पर किसी गांठ से शुरू होता है। लेकिन महिलाओं की तुलना में पुरुष डॉक्टर के पास जाने में बहुत देर कर देते हैं। वे तब डॉक्टर के पास जाते हैं, जब कैंसर बुरी अवस्था में पहुंच चुका रहता है और निपल से ख़ून निकलने लगता है। तब तक कैंसर पूरे सीने में फैल चुका होता है। सबसे अहम् बात यह कि पुरुषों के स्तन में किसी तरह की गांठ या ट्यूमर का पता लगाना अपेक्षाकृत ज़्यादा आसान है। परंतु पुरुषों को लगता है कि इस तरह के ट्यूमर उन्हें गाइनेकोमैस्टिया की समस्या के चलते बनते हैं। बहरहाल, पुरुषों में सबसे आम स्तन ट्यूमर डक्टल कैर्सीनोमा है जिसके केसेज़ की तादाद क़रीब 95 फ़ीसदी पाई जाती है। इतना ही नहीं, पुरुषों के स्तन में एस्ट्रोजन पॉजिटिव ट्यूमर होने की भी आशंका ज़्यादा रहती है, जिसके लिए पुरुष टैमोक्सीफेन इलाज करवाते हैं।

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ध्यान देने वाली बात यह है कि स्तन कैंसर के शिकार महिला और पुरुष मरीजों के बचने की दर क़रीब-क़रीब बराबर है। कई डॉक्टर मानते हैं कि पुरुषों में स्तन कैंसर महिलाओं की तुलना में तेजी से फैलता है। विशेषज्ञों का दावा है कि अगर शुरुआती चरण में पता लग जाए तो पुरुषों में स्तन कैंसर 95 फीसदी तक ठीक हो सकता है।  कई लोगों का मानना है कि सामाजिक मान्यताओं के कारण भी पुरुष खुले तौर पर इस बीमारी के संबंध में सामने नहीं आते हैं। कई संगठन इस बीमारी के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए विभिन्न गतिविधियाँ आयोजित करते हैं। पुरुषों में स्तन कैंसर का पता लगाने के लिए त्रिस्तरीय प्रक्रिया अपनाई जाती है। मैमोग्राफी, क्लिनिकल टेस्ट और स्तनों के स्वपरीक्षण से रोग का पता लगाया जा सकता है, लेकिन देश में अभई अत्याधुनिक टेस्ट की सुविधा की कमी है, जो बीमारी को को शुरुआती दौर में पकड़ ले, जब इसका सौ फीसदी उपचार संभव है।

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ब्रेस्ट कैंसर होने की वजह

उम्रदराज़

उम्र बढ़ने के साथ ब्रेस्‍ट कैंसर के लिए ज़िम्मेदार तत्‍व भी सक्रिय होने की कोशिश करते हैं, क्योंकि उम्र के साथ साथ शरीर शिथिल होता जाता है। हर हज़ार पुरुषों में एक पुरुष जीवनभर डेंजर ज़ोन में रहता है। यह बीमारी 40 और 60 साल की उम्र के बीच ज़्यादा होती है।

मोटापा

ओबेसिटी यानी मोटापे के चलते पुरुष स्‍तन कैंसर के डेंजर ज़ोन में रहते हैं। मोटापे के कारण फैट सेल्‍स की संख्‍या शरीर में बढ़ जाती है जो बाद में ट्यूमर की वजह बनती है। इसके अलावा फैट सेल्‍स और बहुत ज़्यादा अल्कोहल एस्‍ट्रोजन में बदल सकते हैं, जो ब्रेस्‍ट कैंसर का प्रमुख कारण है।

आनुवांशिक

ब्रेस्ट कैंसर आनुवांशिक भी होता है। अगर परिवार में कोई इससे पीड़ित है तो घर के अन्‍य सदस्‍य अपने आप स्‍तन कैंसर के डेंजर ज़ोन में आ जाते हैं। इसलिए परिवार में किसी को ब्रेस्ट कैंसर है तो इसके प्रति जागरूक रहने और कभी किसी तरह का दर्द होने पर डॉक्टर में मिलना चाहिए।

लिवर डिसीज़

जिन पुरुषों को लिवर संबंधी बीमारी होती है उनमें वे भी ब्रेस्ट कैंसर के खतरे की जद में ज्यादा होते हैं। अगर कोई भी पुरुष बीआरसीए 1 या बीआरसीए 2 जीन का वाहक है अथवा क्लीन सेल्टर सिंड्रोम से ग्रस्त होता है, तो उसे भी स्तन कैंसर हो सकता है।

रेडियेशन

सीने के आसपास रेडियेशन थेरेपी कराने वाले पुरुष मरीज़ भी ब्रेस्ट कैंसर के ख़तरे के दायरे में रहते हैं। अगर उनके सीने में किसी अन्‍य प्रकार के कैंसर के इलाज के लिए रेडियेशन थेरेपी का सहारा लिया है तो भविष्‍य में उन्हें ब्रेस्‍ट कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।

स्तन कैंसर के कारण छाती में भारीपन महसूस होता है, पुरुषों में कई बार हार्मोन के बदलाव की वजह से स्तनों के आकार में फर्क आ जाता है। स्तनों के आकार में ज़रा सा भी फर्क आने पर फ़ौरन चिकित्‍सक से संपर्क करें। किसी तरह की लापरवाही भयानक परिणाम दे सकती है।

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अश्वेत महिलाओं में स्तन कैंसर ज़्यादा

स्तन कैंसर के बारे में हाल ही में एक विचित्र रिपोर्ट आई है। जी हां, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्तन कैंसर का हमला महिलाओं पर उनके रंग के अनुसार हो रहा है। यह बीमारी अश्वेत महिलाओं को ज़्यादा टारगेट कर रही है, जबकि श्वेत महिलाओं में यह बीमारी अपेक्षाकृत कम देखी जा रही है। दुनियाभर के विशेषज्ञ इस पर हैरान हैं और पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है?

यूके कैंसर रिसर्च और इंगलैंड पब्लिक हेल्थ के नए शोध में कहा गया है कि इंगलैंड में अश्वेत महिलाओं में श्वेत महिलाओं की तुलना में स्तन कैंसर की संभावना क़रीब दोगुनी पाई गई है। यूके कैंसर रिसर्च और इंगलैंड पब्लिक हेल्थ के नए शोध के मुताबिक़ 25 फ़ीसदी काली अमरीकी और 22 फ़ीसदी कैरेबियाई महिलाओं में स्तन कैंसर की बीमारी गंभीर चरण में पाई गई। उसकी तुलना में गोरी महिलाओं में यह आंकड़ा 13 फ़ीसदी था।

रिसर्च करने वाले जानकारों के मुताबिक़ इस अंतर की कई वजहें हैं: एक वजह है स्तन कैंसर के लक्षणों और स्क्रीनिंग से जुड़ी जागरूकता का बेहद कम होना। यूके कैंसर रिसर्च के अनुसार जब औरतों को मेमोग्राफी यानी स्तन के एक्सरे के लिए बुलाया गया तो काली महिलाएं कम तादाद में आईं। स्तन कैंसर की पहचान अगर शुरू में हो जाए तो इलाज बेहतर ढंग से किया जा सकता है।

उधर इंग्लैंड के लीड्स शहर का एक समूह उन अश्वेत अफ्रीकी और कैरिबियाई महिलाओं की मदद करता है जिन्हें ख़ुद यह कैंसर था या उनके जान-पहचान वालों को कैंसर की बीमारी थी। स्तन कैंसर की शिकार एक काली महिला ने बताया, “हममें से ज़्यादातर महिलाएं इस मामले में चुप्पी साध लेती हैं। मैंने भी यही किया। मुझे इसका इलाज कराने की ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई।” दूसरी महिला ने कहा, “ऐसी कई सारी महिलाएं मिली हैं जिन्हें लगता तो है कि उनके स्तन में कुछ तो गड़बड़ है लेकिन वे किसी को बताती नहीं। बस ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि वह उन्हें ठीक कर दे। इस तरह उनकी बीमारी बढ़ती जाती है।”

2012-13 के आंकड़ें बताते हैं कि स्तन कैंसर के अधिकांश मामले शुरुआती चरण में ही पहचान में आ जाते हैं। यूके कैंसर रिसर्च की जूली शार्प ने स्तन कैंसर की पहचान के बारे में आगाह किया है। वे कहती हैं, “केवल गांठ ही स्तन कैंसर की पहचान नहीं है। उन्हें इस बात पर भी नज़र रखनी चाहिए कि कहीं उनकी छातियों में निप्पल से रिसाव या त्वचा में कोई बदलाव जैसी चीजें तो नहीं दिख रहीं।

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