कैंसर के मारे, विकासशील देश बेचारे

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कैंसर का नाम सुनते ही लोगों को पसीने छूटने लगते हैं। हम अक्सर अपने किसी परिजन, प्रियजन या परिचित को कभी न कभी इस ख़ौफ़नाक और जानलेवा बीमारी से जूझते हुए देखा होगा और दुर्भाग्य से ज़्यादातर अनुभव दुखद ही रहा होगा। भारत ही नहीं दुनिया के कम विकसित देशों में यह बीमारी बहुत तेज़ी से पांव पसार रही है। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि कम विकसित देशों में कैंसर के मामले 50 फ़ीसदी से ज़्यादा हैं।

कैंसर से बहुत ज़्यादा डरने की ज़रूरत नहीं है। अगर हम अपनी मौजूदा जानकारी को देखें तो कैंसर के 90 फ़ीसदी से ज़्यादा मरीजों का पहले स्टेज में इलाज हो सकता है। सेकंड स्टेज में यह अनुपात क़रीब 70 फ़ीसदी है, तीसरे चरण में 40 फ़ीसदी और चौथे चरण में 10 फ़ीसदी से भी कम रह जाता है। कई तरह के कैंसर को आजकल गंभीर लेकिन क़ाबू में आने लायक बीमारी माना जाता है, जिन्हें कैंसर के अलावा किसी भी दूसरे गंभीर रोगों की तरह दवाओं से कई साल तक क़ाबू में रखा जा सकता है।

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पांव पसारता कैंसर

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज़ कोलाबोरेशन के अध्ययन के मुताबिक़, ग्लोबल स्तर पर सन् 2005 से 2015 के दौरान कैंसर में 33 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई, जबकि कम विकसित देशों में इसी अवधि के दौरान इसमें 50 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। इसके विपरीत उच्च विकास वाले देशों में कैंसर के 44 फ़ीसदी नए मामले सामने आए हैं।

पिछले साल 1।75 करोड़ नए केसेज़

इन निष्कर्षो से पता चलता है कि सन् 2015 में दुनिया में कैंसर के 1।75 करोड़ नए केसेज़ आए और 87 लाख लोगों की इस जानलेवा बीमारी से मौत हुई। शोधकर्ताओं का कहना है कि वैसे तो दुनिया में दिल के रोगों के बाद कैंसर मौत की दूसरा सबसे बड़ी वजह है। लेकिन इस घातक बीमारी के बढ़ने और इससे मरने के कारण बिल्कुल अलग जान पड़ते हैं। दरअसल, इसका इंपैक्ट इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप किस तरह के माहौल में रहते हैं।

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हेल्थ सिस्टम पर बढ़ता दवाब

मशहूर पत्रिका ‘जामा आंकोलॉजी’ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़। अमेरिका के वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर और प्रमुख लेखक क्रिस्टीना फिटमउरिस ने कहा, “कैंसर का प्रसार बड़ी तेज़ी से हो रहा है। कैंसर के नए मामलों की संख्या दुनिया में हर जगह बढ़ती जा रही है, यह उन्नत हेल्थ सिस्टम पर ज़्यादा दवाब बढ़ा रहा है। लेकिन इसका सबसे तेज़ और परेशान करने वाला प्रभाव कम विकसित दर्जे वाले देशों में देखा जा सकता है। जो इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते।”

सोशल स्टैटिस्टिक्स इनडेक्स

अध्ययन के लिए दल ने कैंसर की 32 प्रजातियों और 195 देशों के सोशल स्टैटिस्टिक्स इनडेक्स यानी एसडीआई का विश्लेषण किया। एसडीआई में शिक्षा, आमदनी और प्रजनन का संयुक्त अध्ययन किया जाता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि कैंसर के सभी प्रकारों में सबसे सामान्य प्रकार के कैंसर स्तन, सांस नली, ब्रांकस और फेफड़े (टीबीएल) हैं। इसकी वजह से 12 लाख लोग की दुनिया भर में मौत होती है। इसके बाद बड़ी आंत कैंसर, पेट कैंसरऔर ज़िगर कैंसर आते हैं।

स्तन कैंसर बहुत भयावह

अध्ययन में पाया गया कि स्तन कैंसर से 523,000 मौतें 2015 में हुई। यह महिलाओं में होने वाला सामान्य कैंसर है। अध्ययन के लेखकों का सुझाव है कि सरकारी एजेंसियों और निजी क्षेत्रों को रोकथाम के प्रयासों को बढ़ाने की ज़रूरत है। इसे खास तौर पर निचले एसडीआई वाले देशों में किया जाना चाहिए जहां गर्भाशय ग्रीवा और जिगर कैंसर से ज़्यादातर घातक मौतों की सूची में हैं। इस तरह यह बीमारी बहुत ज़्यादा लोगों की मौत के लिए ज़िम्मेदार हो रही है।

स्टडी करने वाली अमेरिकन टीम ने यह भी सुझाया है कि कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी पर पूरी दुनिया को मिलकर काम करने की ज़रूरत है। ताकि जहां इसका असर ज़्यादा है, वहां इसकी रोकथाम के इंतज़ामात किए जा सकें। दरअसल, यह ऐसी बीमारी है, जिस पर दुनिया भर में जागरूकता के ज़रिए ही अंकुश पाया जा सकती है, वरना कैंसर आने वाले सालों में भी लाइलाज ही रह जाएगा और लोग इसकी चपेट में आते रहेंगे, जो कि इस धरती के लिए कोई शुभ संकते नहीं होगा।

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बच्चों में कैंसर के सबसे ज़्यादा मामले दिल्ली में

पहली बार इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के तहत काम करने वाली नेशनल कैंसर रजिस्ट्री डेटा की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि बच्चों में सबसे ज़्यादा कैंसर के मामले पूरे देश में दिल्ली से ही सामने आए हैं। यानी पहली बार बच्चों के लिए भी कैंसर को रिसर्च में शामिल किया गया है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री डेटा की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में 14 साल तक के बच्चों में कैंसर के सबसे ज़्यादा मामले सामने आए हैं।

दिल्ली के बाद दूसरे नंबर पर चेन्नई है। रिपोर्ट बताती है कि 14 साल से कम उम्र के लडकों में 551 कैंसर के मामले की पुष्टि हुए। यह कुल कैंसर के मामलों का 5।4 फ़ीसदी है। वहीं ल़डकियों में 309 मामले आए हैं। यह कुल कैंसर के मामलों का 3।2 फ़ीसदी है। यानी दिल्ली में कुल कैंसर होने वालों में 4।4 फ़ीसदी बच्चे हैं। इनकी उम्र 14 साल से कम है और ये मामले देश में सबसे ज़्यादा हैं। बच्चों में कैंसर का कारण सबसे ज़्यादा जेनेटिक ही माना जाता है। इसमें मां-बाप के ज़रिए बच्चों में कैंसर के लक्षण आ जाते हैं। दूसरी तरफ़ बड़ों के मुक़ाबले बच्चों में कैंसर खोजना भी कठिन है। आमतौर पर बच्चे बता नहीं पाते हैं कि उन्हें किस तरह की दिक़्क़त आ रही है।

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