कहानी – हां वेरा तुम!
हरिगोविंद विश्वकर्मा
प्लेटफ़ॉर्म पर काफ़ी चहल-पहल थी। मैं तुम्हें तलाशता हुआ भागा जा रहा था। हर चेहरे को बग़ौर देखता हुआ। एक काया तुम्हारी जैसी...
कविता : चित्रकार की बेटी
तुम बहुत अच्छे इंसान हो
धीर-गंभीर और संवेदनशील
दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने वाले
बहुत कुछ मेरे पापा की तरह
तुम्हारे पास है बहुत आकर्षक नौकरी
कोई भी...
कहानी – बदचलन
हरिगोविंद विश्वकर्मा
उसे लेकर मैं बुरी तरह उलझा था। ऐसा क्यों हुआ... उसने ऐसा क्यों किया... पूरे मामले को नए सिरे से समझने की कोशिश...
व्यंग्य – ‘वो’ वाली दुकान
हरिगोविंद विश्वकर्मा
वह मुस्करा रहा था। मुस्करा ही नहीं रहा था, बल्कि हंस भी रहा था। बहुत ख़ुश लग रहा था। ऐसा लग रहा था,...
गीत – मेरा क्या कर लोगे ज़्यादा से ज़्यादा
गीत
मेरा क्या कर लोगे ज़्यादा से ज़्यादा,
गुफ़्तगू ना करोगे ज़्यादा से ज़्यादा।
पता है वसूलों से समझौते की कीमत,
मालामाल कर दोगे ज़्यादा से ज़्यादा।
ना जाऊंगा...
गीत – आ गए क्यों उम्मीदें लेकर
आ गए क्यों उम्मीदें लेकर
करूं तुम्हें विदा क्या देकर...
लाख मना की पर ना माने
क्यों रह गए तुम मेरे होकर...
अपना लेते किसी को तुम भी
आखिर...
गीत – किस्मत से ज़ियादा
गीत
टूटा है कहर सब पर किस्मत से ज़ियादा
नफरत भरी है यहां मोहब्बत से ज़ियादा
दिल का कदर क्या वह खाक करेगा
जिसके लिए प्यार नहीं तिजारत...
गीत – यूं ही सबके सामने!
गीत - यूं ही सबके सामने!
राज़-ए-दिल क्यूं पूछते हो यूं ही सबके सामने
दिल की बातें क्या बताएं यूं ही सबके सामने
तुम अनाड़ी ही रह...
व्यंग्य : ‘अच्छे दिन’ आ जाओ प्लीज!
हरिगोविंद विश्वकर्मा
वहां बहुत बड़ी भीड़ थी। लोगों में जिज्ञासा थी। सब के सब एक बंकर में झांकने की कोशिश कर रहे थे। जानना चाहते...
कविता – कब आओगे पापा?
कविता - शहीद की बेटी
(कारगिल वॉर के समय लिखी मेरी कविता)
कब आओगे पापा?
पापा कब तुम आओगे
तुम्हारी बहुत याद आती है मुझे
अच्छा बाबा खिलौने मत...