कविता – कब आओगे पापा?

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कविता – शहीद की बेटी
(कारगिल वॉर के समय लिखी मेरी कविता)

कब आओगे पापा?

पापा कब तुम आओगे
तुम्हारी बहुत याद आती है मुझे
अच्छा बाबा खिलौने मत लाना
मैं जिद नहीं करूंगी
नहीं तंग करूंगी तुम्हें
बस तुम आ जाओ
मम्मी हरदम रोती हैं
मांग में सिंदूर भी नहीं भरतीं
मंगल सूत्र निकाल दिया है उन्होंने
चूड़ियां भी तोड़ डाली हैं
सफेद साड़ी में लिपटी
बेडरूम में पड़ी
सिसकती रहती हैं
वह मुझसे बात भी नहीं करतीं
वह किसी से नहीं बोलतीं
घर पर रोज नए नए लोग आते हैं
बॉडी गार्ड वाले लोग आते हैं
चुप रहते हैं फिर चले जाते हैं
मम्मी उनसे भी बात नहीं करतीं
बस रोती रहती हैं
बिलखती रहती हैं
रात को नींद खुलने पर
उन्हें रोते ही देखती हूं
मम्मी के आंसू देखकर
मैं भी रोती हूं पापा
मुझे तुम बहुत याद आते हो
प्लीज पापा आ जाओ
मेरे लिए नहीं तो मम्मी के लिए ही
लेकिन तुम चले आओ
देखो तुम नहीं आओगे तो
मैं रूठ जाऊंगी
तुमसे बात नहीं करूंगी
कट्टी ले लूंगी
तुम कैसे हो गए हो पापा
क्या तुम्हें मेरी और मम्मी की सचमुच याद नहीं आती
तुम तो ऐसे कभी नहीं थे
अचानक तुम्हें क्या हो गया
तुम इतने बदल कैसे गए पापा
आज अखबारों में
तुम्हारी फोटो छपी है
लिखा है
तुम शहीद हो गए
देश के लिए
अपनी आहुति दे दी
यह शहीद और आहुति क्या है पापा
ड्राइंग रूम में
तुम्हारी वर्दी वाली जो फोटो टंगी है
उस पर फूलों की माला चढ़ा दी गई है
अगरबत्ती सुलगा दी गई है
मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आता
आज स्कूल की टीचर भी आईं थी
मेरे सिर पर हाथ फेर रही थीं
स्कूल में उन्होंने कभी इतना प्यार नहीं दिखाया
मम्मी भी फफक फफक कर रो रही थीं
मुझे भी रोना आ रहा था
सब लोग रो रहे थे
पापा तुम आ जाओ प्लीज
मुझे डर लगता है बहुत डर लगता है
मैं छुपना चाहती हूं पापा
बस तुम्हारे सीने में तुम्हारी गोदी में
ये देखो पापा
मेरे आंसू फिर गिरने लगे हैं
मैं रो रही हूं
सच्ची ये अपने आप गिर रहे हैं
मुझे तुम्हारी याद आने लगी है
बस तुम आ जाओ
आ जाओ न!

-हरिगोविंद विश्वकर्मा
(इस कविता का पाठ मैंने 1999 में मोदी कला भारती सम्मान मिलने पर इंडियन मर्चेंट मैंबर के सभागृह में किया था, सबकी आंखें भर आईं थींं)

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