भारत में 51 फीसदी महिलाओं के शरीर में खून की कमी

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2011

ऐसे समय जब पूरा देश हर्षोल्लास से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है, आप तब यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की अपनी रिपोर्ट में भारत में महिलाओं के सेहत चिंताजनक बता रहा है। इस विकासशील देश में 15 से 49 वर्ष यानी प्रजनन आयु की सभी महिलाओं में आधे से अधिक यानी 51 फ़ीसदी एनीमिया (Anemia)से पीड़ित हैं यानी उन्हें ज़रूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाने से शरीर में हीमोग्लोबीन (ख़ून) की कमी है।

ग्लोबल अलायंस फॉर इम्प्रूव्ड न्यूट्रिशन (गेन) की हाल ही में की गई स्टडी में पुरुषों के मुक़ाबले महिलाएं ज़्यादा कुपोषित पाई गई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर दूसरी गर्भवती महिला कुपोषण की बीमारी एनीमिया यानी ख़ून की कमी से पीड़ित हैं। इसके अलावा 24 फ़ीसदी तंदुरुस्त पैदा होने वाले बच्चे भी बाद में सही भोजन न मिलने से कुपोषित हो जाते हैं क्योंकि देश के हर चार बच्चे में तीन बच्चे के शरीर में ख़ून की कमी पाई जा रही है।

ख़ून की कमी और कुपोषण को रोकने की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की तमाम कोशिशे नाकाम हो रही हैं। सरकार की फाइलों में तो कई योजनाएं चल रही हैं, परंतु ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि एनीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाओं की खोज-ख़बर लेने वाला कोई नहीं। इन महिलाओं के गर्भ से ऐसे बच्चे पैदा हो रहे हैं जिनके शरीर में पर्याप्त हीमोग्लोबीन (ख़ून) ही नहीं है।

शरीर में आयरन और विटामिन ए की कमी के चलते बच्चे जन्म से ही कुपोषित हो जाते। इनमें से अधिकांश को प्रॉपर केयर और मेडिकेशन नहीं मिलने पर या तो पांच साल पूरा करने से पहले ही उन्हें मौत उठा ले जाएगी या अगर वे ज़िंदा रहे तो जब तक जीएंगे तब तक मरियल ही दिखेंगे। अपने देश में महिलाओं और बच्चों के अलावा पुरुष भी हीमोग्लोबीन की कमी से जूझ रहे हैं लेकिन गेन रिपोर्ट चौंकाने वाली है।

क्या है एनीमिया?
दरअसल, एनीमिया शरीर में ख़ून की कमी को कहते हैं। आमतौर पर ख़ून (रेड सेल्स) में हीमोग्लोबीन की संख्या में कम होने पर कमज़ोरी महसूस होने लगती है। उसे ही एनीमिया यानी रक्ताल्पता कहा जाता है। दरअसल, हीमोग्लोबिन पूरे शरीर मे ऑक्सीजन को प्रवाहित करता है। ज़ाहिर है इसकी संख्या मे कमी आने का मतलब शरीर मे ऑक्सीजन की सप्लाई कम हो जाना है। शरीर के जिस हिस्से में ऑक्सीजन नहीं पहुंचेगी वह अंग प्रभावित होगा। इसी कारण थकान और कमज़ोरी महसूस होती है।

कुछ साल आई पहले यूनीसेफ की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि भारत में महिलाओं, ख़ासकर गर्भवती महिलाओं को ज़रूरी ख़ुराक नहीं मिल पाती है, जिससे 11.50 करोड़ लड़कियों में 56 फ़ीसदी के शरीर में ख़ून की कमी होती है। रिपोर्ट के मुताबिक असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल की महिलाओं को आर्थिक तंगी के कारण या तो पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता है और अगर भोजन मिलता भी है तो उसमें पर्याप्त पोषक तत्व नहीं होते हैं।

सबसे अहम बात यह है कि हाल ही में की गई स्टडी से पता चला है कि कई संपन्न परिवार के बच्चे भी एनीमिया से पीड़ित पाए गए हैं। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ अप्लाइड एंड बेसिक न्यूट्रिशनल साइंसेज ने दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्टडी किया था। इसमें बच्चों के जागरूक पैरेंट्स को शामिल किया गया जो बच्चों पर अच्छा-खासा ख़र्च भी कर रहे थे। आंकड़ों के मुताबिक बच्चों में एनीमिया 19 फ़ीसदी से लेकर 88 फ़ीसदी तक पाई गई। इन बच्चों में जिन अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी पाई गई उनमें फोलेट, राइबोफ्लाविन, नियासिन, विटामिन सी, विटामिन ए और विटामीन बी 12 शामिल हैं।

बाल रोग विशेषज्ञ हेमंत जोशी का मानना है कि अगर गर्भवती महिला के शरीर में आयरन की कमी है तो इसका असर बच्चे की सेहत पर ज़रूर पड़ेगा। बच्चा गर्भ में ही ज़रूरी पोषक तत्व से वंचित होगा तो उसका सही विकास नहीं हो पाएगा। उसका दिमाग़ मंद या अर्धविकसित ही रह सकता है जो उसकी पर्सनॉलिटी को कमज़ोर कर देगा। डॉ. जोशी के मुताबिक आयरन की कमी की वजह से ही हर तीसरा बच्चा जन्म के समय अंडरवेट होता है।

दरअसल, एनीमिया को लेकर भारत की छवि दुनिया में ठीक नहीं है। भारत में कुपोषण और शरीर में खून की कमी बड़ी तादाद में लोगों में पाई जाती है। यूनाइटेड नेशन्स फूड ऐंड ऐग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक भारत में कुपोषण के शिकार लोगों की तादाद 19.46 करोड़ है, जो दुनिया में सबसे ज़्यादा है। पिछले साल मई में जारी चाइल्ड डेवल्पमेंट इंडेक्स में 182 देशों में भारत 113वें स्थान पर है।

इंडियन नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 42 फ़ीसदी बच्चे अंडरवेट हैं जबकि 58 फ़ीसदी दो साल की उम्र तक बच्चे अविकसित ही रहते हैं। यह रिपोर्ट साबित करती है कि 70 फ़ीसदी भारतीय महिलाओं और बच्चों में आयरन, जिंक और कैल्शियम जैसे पौष्टिक तत्वों की गंभीर कमी होती है। विमेनस ऐंड चाइल्ड डेवलपमेंट मिनिस्ट्री की रिपोर्ट के मुताबिक डिलीवरी के दौरान होने वाली 20 से 40 फ़ीसदी मौतें एनीमिया के चलते होती हैं। यानी विश्व में जितनी मौते होती हैं उनका आधा केवल भारत में होती है। भारत में 5 करोड़ से ज़्यादा बच्चे कम या ज़्यादा एनीमिया से पीड़ित हैं।

वैश्विक पोषण रिपोर्ट में सिर्फ़ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के 140 देशों में कुपोषण की स्थिति पर स्टडी की गई है। जिसमें कुपोषण के तीन महत्वपूर्ण रुप सामने आए हैं। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत कुपोषण की गंभीर समस्या से ग्रस्त हैं। खून की कमी के कारण बच्चों में विकास की कमी सबसे ज़्यादा देखी गई है। गर्भवती महिलाओं में खून की बहुत कमी पाई गई और अधिक वजन वाली वयस्क महिलाएं भी शामिल हैं।

कुपोषण के हाल ही में सामने आए आंकड़ों के अनुसार, पांच वर्ष से कम के लगभग 38 फीसदी बच्चे विकासहीनता से प्रभावित हैं। जिसमें बच्चों की लंबाई पोषक तत्वों की कमी के कारण अपनी उम्र से कम रह जाती है और इससे उनकी मानसिक क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं बल्कि रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि पिछले पांच वर्ष में करीब 21 फीसदी बच्चों में पोषक तत्वों की कमी के कारण विकास ही नहीं हो पाया। जिस वजह से उनका वजन और लंबाई उनकी उम्र के हिसाब से काफी कम रह गई।

इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि भारत में मां बनने की उम्र वाली करीब 51 फीसदी महिलाएं खून की कमी से पीड़ित हैं। यह एक ऐसी समस्या है जिसमें दीर्घावधि में मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। रिपोर्ट यह भी दावा करती है कि हमारे देश में लगभग 22 फीसदी महिलएं ऐसी हैं जिनका वजन जरूरत से बहुत ज़्यादा है।

वस्तुतः भारत में महिलाओं की सेहत प्राथमिकताओं में ही नहीं होता। परिवार में महिलाओं की सेहत सबसे निचले क्रम पर होती है। ख़ुद महिलाएं अपनी सेहत के प्रति लापरवाह होती हैं। अमूमन महिलाएं पीरियड के दौरान बहुत सारा रक्त गवां बैठती हैं। रक्त के साथ बहुत सारे जरूरी खनिज एवं धातुएं भी निकल जाती हैं। यदि उसकी पूर्ति न हो तो महिलाएं गंभीर समस्या से ग्रस्त हो जाती हैं। प्रकृति ने महिलाओं को इस तरह बनाया है कि वे प्रायः खून की कमी से जूझती हैं, खासकर वे महिलाएं, जो मां बनने के दौर में हैं। इस रक्तक्षीणता के पीछे एक बड़ा कारण है- माहवारी। इससे महिलाओं की काम करने की क्षमता घट जाती है और वे जल्द थक जाती हैं।रक्तक्षीणता रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करती है। इस कारण वे रोगों से भी शीघ्र संक्रमित हो जाती हैं। मासिक धर्म की वजह से स्त्रियां लगभग एक लीटर रक्त खो बैठती हैं, जो एक साल में तीन बार रक्तदान के बराबर है।

एक महिला के जीवन में मासिक धर्म अतिमहत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्त्री को जननी बनने के लिए तैयार करता है। इस दौरान नारी में बड़े नाजुक परिवर्तन होते हैं, जिस कारण उसके शरीर में कमजोरी आ जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए जोखिमपूर्ण है। एक जननी का स्वस्थ होना जरूरी है, क्योंकि उस पर एक नए जीवन को धरती पर लाने का जिम्मा है। ऐसे में यदि माहवारी के कारण शरीर से रक्त निकल जाए तो जाहिर है स्वास्थ्य की हानि तो होगी ही।

रक्त प्रवाह हमारे शरीर की वह जीवनधारा है, जो सभी जरूरी पोषक पदार्थ लिए पूरे शरीर में चलती रहती है। अब यदि यह अमूल्य रक्त शरीर से बाहर बह जाएगा तो उसमें मौजूद पोषक पदार्थ भी बाहर चले जाएंगे। यदि कोई स्त्री पहले ही आयरन की कमी झेल रही है तो उसका एनिमिया और अधिक हो जाएगा।

ध्यान देने वाली बात
51 फ़ीसदी गर्भवती महिलाए एनीमिया से पीड़ित
74 फ़ीसदी बच्चे एनीमिया से पीड़ित
24 फ़ीसदी नवजात बच्चे एनीमिया से पीड़ित
62 बच्चे विटामिन ए की कमी से एनीमिया से पीड़ित

एनीमिया के कारण
एनीमिया बीमारी कुल चार सौ से ज़्यादा रूपों में हमला करती है। इन सबको तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

ख़ून की कमी से हुई एनीमिया
रेड ब्लड सेल के उत्पादन के कमी से हुई एनीमिया
रेल ब्लड सेल के नष्ट होने से हुई एनीमिया

एनिमिया के लक्षण
अक्सर एनिमिया के कोई लक्षण प्रकट नहीं होते।
चेहरा पीला पड़ जाना।
थकान महसूस होना।
व्यायाम के वक्त असामान्य तरीके से साँस की अवधि घट जाना।
दिल का तेजी से धड़कना।
हाथ-पांव बेहद ठंडे हो जाना।
नाखूनों का नाजुक हो जाना।
सिरदर्द।