चीर-हरण के समय द्रौपदी की कृष्ण ने कोई सहायता नहीं की – डॉ. बोधिसत्व

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चित्रा सावंत
मुंबई, बहुचर्चित किताब ‘महाभारत यथार्थ कथा’ के लेखक डॉ बोधिसत्व ने महाभारत कथा का हवाला देते हुए कहा कि जुए में जब युधिष्ठिर द्रौपदी को हार गए तो दुर्योधन द्रौपदी को दासी बना कर छोड़ दिया था लेकिन उसके मित्र कर्ण ने कहा कि नहीं मित्र इसे हम सबके सामने निर्वस्त्र करने का आदेश दो। इसके बाद दुर्योधन द्रौपदी को वस्त्रहीन करने का आदेश दिया और चीर-हरण की घटना हुई जो अंततः महायुद्ध की वजह बनी।

चित्रनगरी संवाद मंच मुंबई की ओर से रविवार की शाम मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव में आयोजित सृजन संवाद कार्यक्रम में वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से हाल में ही प्रकाशित अपनी किताब ‘महाभारत यथार्थ कथा’ का परिचय देते हुए डॉ बोधिसत्व ने शुरू में ही इस धारणा को भ्रम क़रार दिया कि घर में महाभारत रखने से गृह कलह नहीं होती है। उन्होंने कहा कि महाभारत एक वृहत ग्रंथ है। लिहाजा, इसे पढ़ते समय पाठक में धीरज और विवेक होना बहुत ज़रूरी है।

चीर-हरण प्रसंग की चर्चा करते हुए डॉ बोधिसत्व ने कहा कि चीर-हरण के बाद जब पांडव जंगल में चले गए तो एक दिन वहां कृष्ण उनसे मिलने आए। द्रौपदी से कृष्ण ने कहा कि उन्हें तो पता ही नहीं था कि जुआ या चीर-हरण की घटना हो रही है। अन्यथा मैं जुआ नहीं होने देता। चाहे बलपूर्वक ही उसे रोकना पड़ता। जब जुए या चीर-हरण की कृष्ण को खबर ही नहीं थी, इसका मतलब बहुचर्चित धारावाहिक महाभारत में चीर-हरण या वस्त्रवृद्धि की घटना चिपकाई हुई लगती है।

डॉ बोधिसत्व ने कहा कि जब जुए की घटना हुई तो उस समय कृष्ण बहुत दूर द्वारकापुरी में थे। उन्हें पूरी घटना की जानकारी भी बहुत देर से मिली। इससे स्पष्ट है कि धारावाहिक महाभारत में कृष्ण के द्रौपदी के लाज की रक्षा करने के प्रसंग को अतिरंजनापूर्ण है। उन्होंने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि महाभारत के कई व्याख्याकारों ने मूल कहानी पर परदा डाल दिया। उन्होंने मूल कथा के हवाले से श्रीकृष्ण के गीता ज्ञान के बारे में कुछ रोचक बातें बताईं। उन्होंने पांडव के व्यक्तित्व का आकलन मूल महाभारत में वर्णित यथार्थ के साथ किया और बताया कि कई मानवीय कमज़ोरियों वाले उद्दंड कर्ण को कैसे नायक बनाया गया।

डॉ बोधिसत्व बताया कि वासुदेव शरण अग्रवाल की पुस्तक ‘भारत सावित्री’ पढ़ने के बाद महाभारत को दुबारा पढ़ने की इच्छा हुई और उन्होंने महाभारत पर लिखी गई तक़रीबन हर किताब का अध्ययन किया। इस कार्यक्रम में उन्होंने बड़े आत्मविश्वास और विनम्रता के साथ श्रोताओं के सवालों के जवाब दिया। डॉ बोधिसत्व ने बताया कि उनकी किताब का यह पहला भाग है। महाभारत यथार्थ कथा के अभी दो भाग और प्रकाशित होंगे।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे शायर देवमणि पांडेय ने महाभारत के संवाद लेखक डॉ राही मासूम रज़ा से अपनी मुलाकात का हवाला देते हुए कहा कि रज़ा साहब ने स्वीकार किया कि कर्ण को जानबूझ कर महिमामंडित किया गया, जबकि वास्तविक महाभारत में उसका किरदार वाकई खलनायक जैसा है। देवमणि पांडेय के अनुसार रजा ने बताया था कि महाभारत धारावाहिक बनाते समय कई घटनाएं जोड़ी-घटाई गईं।

प्रतिष्ठित लेखक राजशेखर व्यास ने परिचर्चा के दौरान बताया कि जनमानस में कैसे सुयोधन को दुर्योधन और सुशासन को दुशासन बनाया गया। उनके अनुसार महाभारत में वेद, पुराण और उपनिषद सबका निचोड़ शामिल है। यह ज्ञान लोगों तक न पहुंचे इसलिए एक साज़िश के तहत यह दुष्प्रचार किया गया कि महाभारत घर में रखने से लड़ाई झगड़े होते हैं। चर्चा को पूर्णता पर पहुंचाते हुए उन्होंने कहा कि महाभारत में भारत समाया हुआ है।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कई किताबें लिख चुकी कवयित्री शशि पुरवार ने अपनी रचना यात्रा का परिचय दिया। शशि पुरवार के गीत नवगीत संग्रह ‘भीड़ का हिस्सा नहीं’ को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ने इसी साल संत नामदेव स्वर्ण पदक पुरस्कार से सम्मानित किया। अपने इस संकलन से कुछ चुनिंदा रचनाएं सुना कर शशि पुरवार ने समर्थ रचनाकार होने का परिचय दिया।

कार्यक्रम में आभा बोधिसत्व, सूर्यांश व्यास, डॉ दमयंती शर्मा, डॉ रोशनी किरण, सविता दत्त, नवीन कुमार भास्कर, प्रदीप गुप्ता, नरोत्तम शर्मा, देवदत्त देव, राजेश ऋतुपर्ण, सुधाकर पांडेय, जवाहर लाल निर्झर, ताज मोहम्मद सिद्दीक़ी, रासबिहारी पांडेय, अभिजीत सिंह, संजय गुप्ता, आकाश ठाकुर, गोविंद सिंह राजपूत, मोहन जोशी, सुषमा गुप्ता, सुरभि मिश्र आदि समेते कई रचनाकार और साहित्य प्रेमी मौजूद थे।

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