रीमा राय सिंह के काव्य संग्रह ‘अक्षर तूलिका’ पर परिचर्चा

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संवाददाता

मुंबई, चित्रनगरी संवाद मंच मुंबई के साहित्यिक परिचर्चा में वरिष्ठ कथाकार सूरज प्रकाश, निर्देशक राजशेखर व्यास और गीतकार देवमणि पांडेय की उपस्थिति में कवयित्री रीमा राय सिंह के काव्य संग्रह ‘अक्षर तूलिका’ पर परिचर्चा हुई। पहले सत्र में सृजन संवाद कार्यक्रम में साहित्य और सिनेमा के रिश्तों पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई और अंत में कुछ चुनिंदा कवियों का काव्यपाठ भी हुआ।

गोरेगांव पश्चिम के केशव गोरे हाल में रविवार की शाम हुए साप्ताहिक प्रोग्राम में अपनी कविताओं का जिक्र करते हुए रीमा राय ने कहा, “जीवन में जब मौन प्रस्फुटित होता है तो शब्द का आकार लेता है और वे शब्द जब भावों के मोतियों के रूप में संकलित होतें है तब कविता का जन्म होता है। ‘अक्षरतूलिका’ ऐसे भावों को समेटती विविध प्रकार की कविताओं का वह संकलन है जिसे मैंने अपने दैनिक जीवन में महसूस किया।”

रीमा राय ने कहा, “एक स्त्री के रूप में घर और घर से बाहर होने वाली घटनाओं और उस पर विविध प्रकार प्रतिक्रियाएं एक रचनाकार के रूप में जाने अनजाने मुझे भी आंदोलित करती रहती हैं जिसे मैंने मानवीय सम्वेदनाओं के आधार पर एक भावनात्मक स्वरुप प्रदान करने का एक प्रयास किया है। इस किताब की कविताएँ उन मनोभाओं पर आधारित है जिन्होनें मेरे अपने जीवन और मेरे आस-पास की होने वाली परिस्थितियों के आधार पर मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया।”

अक्षर तूलिका की कविताएं छंद मुक्त और सरल भाषा में हैं। पाठक इनमें मौजूद वेदनाओं, संवेदनाओं, खामोशियों और रुसवाइयों जैसे भावों से रूबरू हो सकते हैं। किताब में सूरज प्रकाश, डॉ प्रमोद कुश ’तन्हा’ और डॉ रोशनी किरण की टिप्पणियां हैं। इस परिचर्चा में डॉ वर्षा महेश, डॉ पूजा अलापुरिया, सविता दत्त और राजीव मिश्र ने हिस्सा लिया। इस मौके पर रीमा राय सिंह ने अपने कविता संग्रह की कुछ कविताओं का पाठ भी किया, जिसे बौद्धिक वर्ग के श्रोताओं ने खूब सराहा।

पहले सत्र में चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई के सृजन संवाद कार्यक्रम में साहित्य और सिनेमा के रिश्तों पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। कार्यक्रम में प्रस्तावना पेश करते हुए कथाकार सूरज प्रकाश ने चर्चा के लिए कुछ मुद्दे सामने रखे। उन्होंने कहा कि साहित्य को सिनेमा में तब्दील करते समय क्या चुनौतियां आती हैं इस पर विचार की ज़रूरत है। साहित्य पर आधारित फ़िल्म की सफलता और असफलता के मानदंड क्या हैं? एक ही कथाकार मन्नू भंडारी की कहानी पर ‘रजनीगंधा’ फ़िल्म कामयाब होती है और उन्हीं की कथा ‘आपका बंटी’ पर आधारित फ़िल्म क्यों फ्लाप हो जाती है, इस पर चर्चा की आवश्यकता है।

सुप्रसिद्ध लेखक संपादक, निर्माता निर्देशक एवं दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक राजशेखर व्यास ने कहा कि जब कोई साहित्यकार अपनी कृति फ़िल्म निर्माण के लिए किसी फ़िल्मकार को देता है तो उसे भूल जाना चाहिए कि इस पर मेरा कोई हक़ है। जब साहित्य पर फ़िल्म बनती है तो उस पर निर्देशक का अधिकार हो जाता है। सिनेमा निर्देशक का माध्यम है। इसलिए निर्देशक सिनेमाई ज़रूरत के अनुसार साहित्यिक कृति में मनचाहा बदलाव कर सकता है।

श्री व्यास ने अपने पिता पद्मभूषण सूर्यनारायण व्यास को याद करते हुए कहा कि उन्होंने सम्राट विक्रमादित्य और कवि कालिदास पर फ़िल्मों का निर्माण किया था और दोनों फ़िल्में कामयाब हुई थीं। सिने जगत में साहित्यकारों का आवागमन काफ़ी पुराना है। सन् 1924 में यानी मूक फ़िल्मों के ज़माने में पांडेय बेचन शर्मा उग्र मुंबई आ गए थे। उन्होंने यहां के फ़िल्मी माहौल पर संस्मरण भी लिखा। व्यास जी ने उग्र जी का रोचक संस्मरण पढ़कर सुनाया।

इस सृजन सम्वाद में फ़िल्म, गोदान, और ‘तीसरी क़सम’ से लेकर ‘शतरंज के खिलाड़ी’ तक पर बढ़िया चर्चा हुई। ‘धरोहर’ के अंतर्गत अभिनेता शैलेंद्र गौड़ ने प्रख्यात कवि राजेश जोशी की कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ का पाठ असरदार ढंग से किया। प्रतापगढ़ से पधारे वरिष्ठ कवि राजमूर्ति सौरभ का परिचय राजेश ऋतुपर्ण ने दिया। सौरभ ने अपनी चुनिंदा ग़ज़लें, दोहे और गीत सुनाए। उनकी रचनाओं को भरपूर सराहा गया। श्रोताओं की फरमाइश पर उन्होंने अवधी भाषा में भी काव्य पाठ किया। शायर नवीन जोशी नवा और कवि राजेश ऋतुपर्ण ने काव्य पाठ के सिलसिले को आगे बढ़ाया।