श्मशान बन जाएगा बड़ी जल्दी
चीखना-चिल्लाना थम जाएगा बड़ी जल्दी
अभी तड़प रहा है मर जाएगा बड़ी जल्दी।
किसी काम की भी नहीं थी उसकी ज़िंदगी
इलाज नहीं हो रहा मर जाएगा बड़ी जल्दी।
उसका ज़िंदा रहना किसी के हित में न था
राह से ख़ुद-ब-ख़ुद हट जाएगा बड़ी जल्दी।
सवाल ही पूछता रहा जब तक रहा जीवित
यह सिलसिला भी थम जाएगा बड़ी जल्दी।
एक तरफ़ से लोगों की रुक रही हैं सांसें
चारो ओर वीराना रह जाएगा बड़ी जल्दी।
शरीर महज़ रह गया है कंकाल का ढांचा
घास-फूस से ही जल जाएगा बड़ी जल्दी।
ऐसे ही अगर मरते रहे लोग अकाल मौत
यह देश श्मशान बन जाएगा बड़ी जल्दी।
इल्म नहीं था ऐसे भी दिन भी देखने पड़ेंगे
हाहाकार भी आम बन जाएगा बड़ी जल्दी।
जनाज़े ही जनाज़े हैं जहां भी जाती है नज़र
परंतु सब सामान्य बन जाएगा बड़ी जल्दी।
किसका पांव पकड़ें किससे मांगें सहायता
कोई भी मददग़ार न रह जाएगा बड़ी जल्दी।
किसको दोष दें किसको ठहराएं ज़िम्मेदार
सब कुछ फ़साना बन जाएगा बड़ी जल्दी।
केवल मानव ही नहीं भावनाएं भी मर रहीं
सिर्फ़ संवेदनहीन ही रह जाएगा बड़ी जल्दी।
यह शोहरत, यह दौलत, यह कुर्सी बेतलब
कोई भी दावेदार न रह जाएगा बड़ी जल्दी
क्या कहें या क्या लिखें समझ में नहीं आता
आदमी जानवर बस बन जाएगा बड़ी जल्दी।
– हरिगोविंद विश्वकर्मा