अर्थव्यवस्था को भी टीके की जरूरत

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सरोज कुमार

कोरोना महामारी की पहली लहर से बेपटरी हुई देश की अर्थव्यवस्था अभी पूरी तरह पटरी पर नहीं लौट पाई थी कि महामारी की दूसरी लहर कहर ढाने लगी है। नई लहर अधिक व्यापक और तीव्र है। दैनिक संक्रमण के मामले तीन लाख के ऊपर आने लगे हैं। दुनिया में सबसे आगे। चारों तरफ़ हाहाकार है। मरीज़ों के लिए अस्पतालों में जगह नहीं है, और लाशों के लिए श्मशानों में। असहाय सरकारें फिर से बंदी जैसे उपाय का सहारा लेने लगी हैं।

इस बार की बंदी बेशक विवेकपूर्ण है, और आर्थिक गतिविधियां बनाए रखने की भरसक कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन सख़्त पाबंदियों के कारण अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्र, ख़ासतौर से अनौपचारिक क्षेत्र, बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं और पिछली बंदी की भयावहता से भयभीत प्रवासी श्रमिक एक बार फिर शहरों से अपने गांवों की ओर रुख कर चुके हैं। मौजूदा स्थिति कब नियंत्रण में आएगी, जवाब किसी के पास नहीं है। इस स्थिति का अर्थव्यवस्था पर क्या और कितना असर होना है, अंदाज़ा लगाने के लिए हमारे पास अनुभव और आंकड़े उपलब्ध हैं।

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कोरोना के कारण वित्त वर्ष 1920-21 में भारत की अर्थव्यवस्था इतिहास में पहली बार मंदी में चली गई थी, जब पहली तिमाही में विकास दर शून्य से नीचे 24.4 फ़ीसदी और दूसरी तिमाही में शून्य से नीचे 7.50 दर्ज की गई थी। बंदी हटने और आर्थिक गतिविधियां बहाल होने के बाद तीसरी तिमाही में विकास दर शून्य से ऊपर यानी 0.5 फ़ीसदी आ गई और चैथी तिमाही में इसके और ऊपर उठने का अनुमान है। अनुमान का परिणाम अभी आना है, लेकिन कोरोना की एक नई लहर नए रूप, नए अंदाज़ और नई तीव्रता के साथ कहर ढाने लगी है। संक्रमण के दैनिक आंकड़े हर दिन नई ऊंचाई छू रहे हैं।

महामारी के इस नई ऊंचाई को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रव्यापी बंदी तो लागू नहीं है, लेकिन अलग-अलग राज्यों में लागू सख़्त पाबंदियों और संक्रमण के भय के कारण जो वातावरण तैयार हुआ है, वह आर्थिक गतिविधियों के दरवाज़े बंद करता जा रहा है। उड्डयन, ऑटोमोबाइल, पर्यटन, मॉल, स्पॉ, सैलून, होटल, रेहड़ी-पटरी जैसे क्षेत्र एक बार फिर से ठप होने के कगार पर हैं।

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घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है। उड्डयन मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार, 20 अप्रैल को 155,207 यात्रियों ने घरेलू उड़ानों में यात्रा की। इसके पहले 19 अप्रैल को यह आंकड़ा 169,971 यात्रियों का था और 17 अप्रैल को यह 182,189 यात्रियों का था। जबकि फरवरी के अंत में घरेलू हवाई यात्रियों की एक दिन की संख्या 313,000 थी, जो पिछले मई में उड़ानों की बहाली के बाद यात्रियों की सर्वाधिक संख्या थी।

ऑटोमोबाइल क्षेत्र पर महामारी की नई लहर का बुरा प्रभाव पड़ा है और कई संयंत्रों में उत्पादन बंद हो गया है। देश में बनने वाले कुल वाहनों में एक-चैथाई योगदान अकेले महाराष्ट्र करता है, लेकिन वहां के कारखाने सामान्य दिनों की तुलना में 50-60 फ़ीसदी क्षमता के साथ ही संचालित हो रहे हैं। इससे 100 से 120 करोड़ रुपए प्रतिदिन का नुकसान हो रहा है। मरीज़ों के लिए ऑक्सीजन की भारी मांग के कारण इस्पात संयंत्रों को होने वाली ऑक्सीजन की आपूर्ति अस्पतालों की ओर मोड़ दी गई है, जिससे इस्पात संयंत्रों में भी उत्पादन बंद हो गया है।

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इसी तरह मॉल्स के भी वापस बुरे दिन लौट आए हैं। द शॉपिंग सेटर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के अनुसार, देशभर के मॉल्स में कारोबार 90 फ़ीसदी तक लौट आया था, लेकिन महामारी की नई लहर के कारण अप्रैल में इस क्षेत्र के कारोबार पर एक बार फिर ग्रहण लग गया है। एसोसिएशन ने कहा है कि हर महीने 15 हज़ार करोड़ रुपए की कमाई कर रहे इस क्षेत्र की कमाई स्थानीय पाबंदियों के कारण घट कर आधी रह गई है। पाबंदियों के कारण असंगठित क्षेत्र सबसे ज़्यादा प्रभावित है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के ताजा आंकड़े के अनुसार, भारत की 90.7 फ़ीसदी श्रमशक्ति असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है, लिहाज़ा इस क्षेत्र के प्रभावित होने से बड़ी संख्या में लोगों के बेरोजगार होने का ख़तरा पैदा हो गया है। आर्थिक अनिश्चितता के कारण उपभोक्ता भावना पर बुरा असर पड़ा है। रिफिनिटिव-इप्सास के मासिक प्राइमरी कंज़्यूमर सेंटीमेंट इंडेक्स (पीसीएसआई) के अनुसार, उपभोक्ताओं के भरोसे में पिछले एक महीने के दौरान 1.1 फ़ीसदी की गिरावट आई है। आगामी महीनों में इसमें और गिरावट आ सकती है। उपभोक्ता भावना में गिरावट से मांग घटती है और मांग घटने से बेरोजगारी बढ़ती है।

गूगल मोबिलिटी डेटा के अनुसार, खुदरा और रिक्रिएशन यानी मनोरंजन गतिविधियों में सात अप्रैल तक ही 24 फरवरी की तुलना में 25 फ़ीसदी की गिरावट आ चुकी थी। जबकि उस समय राज्यों में पाबंदियां लागू नहीं हुई थीं। आज महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली सहित कई राज्यों में सख़्त पाबंदियां लागू हैं, जिसके कारण आवश्यक सेवाओं को छोड़ कर बाक़ी गतिविधियां बंद हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि अकेले महाराष्ट्र और गुजरात मिलकर देश की जीडीपी में 22 से 25 फ़ीसदी का योगदान करते हैं। इन दोनों राज्यों में आर्थिक गतिविधियों के बाधित होने से देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान को समझा जा सकता है।

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बेरोजगारी दर अर्थव्यवस्था की सेहत मापने का सटीक पैमाना होता है। सेंटर फाॅर माॅनिटरिंग इंडियन इकॉनामी (सीएमआईई) के आंकड़े के अनुसार, 22 अप्रैल को देश की बेरोजगारी दर 7.65 फ़ीसदी हो गई, जो मार्च में 6.52 फ़ीसदी थी। अप्रैल में बेरोज़गारी दर में लगातार वृद्धि का रुझान बना हुआ है और महीने के अंत तक यह आठ फ़ीसदी से ऊपर जा सकती है। यानी हम अगस्त 2020 की स्थिति में पहुंच जाएंगे, जब बेरोज़गारी दर 8.35 फ़ीसदी थी। उसके बाद दिसंबर (9.06 फ़ीसदी) को छोड़कर बाकी के महीनों में यह छह से सात फ़ीसदी के बीच बनी रही। आंकड़े बताते हैं कि हमने अगस्त से मार्च तक आठ महीनों में जो हासिल किया था, वह एक महीने के दौरान ही हाथ से निकल चुका है।

जापानी ब्रोकरेज कंपनी नोमुरा का कारोबार बहाली सूचकांक भी इस कथ्य को सत्यापित करता है। नोमुरा इंडिया बिज़नेस रिज़म्पशन इंडेक्स (एनआईबीआरआई) कहता है कि कोरोना की पहली लहर के बाद भारत की आर्थिक गतिविधियों में जितना सुधार हुआ था, महामारी की नई लहर ने सब बराबर कर दिया है। कोरोना से पहले एनआईबीआरआई का स्तर 100 पर था और पहली लहर गुज़रने के बाद एनआईबीआरआई के इस स्तर के क़रीब तक पहुंचने में पूरा एक साल लग गया था। 21 फरवरी को समाप्त सप्ताह में एनआईबीआरआई 99.3 के स्तर पर पहुंच गया था। लेकिन उसके बाद लगातार आठ सप्ताहों के दौरान इस सूचकांक में गिरावट आई है और 18 अप्रैल को समाप्त सप्ताह के नवीनतम आंकड़े के अनुसार एनआईबीआरआई गिरकर 83.8 के स्तर पर चला गया है।

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इसके पहले 25 अक्टूबर, 2020 को समाप्त सप्ताह में एनआईबीआरआई 83.8 के स्तर से नीचे 83.3 पर था। यानी एनआईबीआरआई को 83.3 से 99.3 के स्तर तक पहुंचने में 17 सप्ताह लगे थे, जबकि यह पूरी उपलब्धि मात्र आठ सप्ताह में शून्य हो गई। आगामी सप्ताहों में सूचकांक में और गिरावट आ सकती है, क्योंकि वायरस हर दिन नई ऊंचाई छू रहा है, और जिन राज्यों में अभी पाबंदियां लागू नहीं हैं, वहां भी ऐसे क़दम उठाए जाने की आशंका है। बंदी और पाबंदियों के कारण तमाम प्रवासी श्रमिक शहरों से अपने गांवों का रुख कर चुके हैं। लेकिन गांवों में नई मुसीबत इनका इंतजार कर रही है। खेती के मौसमी काम खत्म होने को हैं और गांवों में रोजगार उपलब्ध कराने वाली सबसे बड़ी योजना मनरेगा के लिए फंड ही नहीं है। मौजूदा वित वर्ष का आवंटन घटाकर मात्र 73 हज़ार करोड़ रुपए कर दिया गया है, जबकि 2020-21 में इस योजना पर सरकार ने एक लाख 12 हज़ार करोड़ रुपए ख़र्चे थे। ग्रामीण बेरोजगारी दर में और उछाल आएगा, जो 22 मार्च को 7.07 फ़ीसदी थी।

हालात को देखते हुए रेटिंग एजेंसियों और ब्रोकरेज कंपनियों ने भारत के लिए विकास दर के अपने अनुमान घटा दिए हैं। मूडीज ने भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने क्रेडिट नेगेटिव जोखिम की आशंका जताई है। यानी आर्थिक गतिविधियां सुस्त होने से लेनदार न तो ऋण लेने की स्थिति में रहेंगे और न ऋण चुकाने की स्थिति में। लक्षण स्पष्ट हैं, क्योंकि बैंकिग प्रणाली में अतिरिक्त धनराशि बढ़ती जा रही है। बैंकिंग प्रणाली में जो अतिरिक्त धन राशि यानी बैंकों द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) में जमा राशि 31 मार्च को 38 खरब रुपए थी, वह 18 अप्रैल तक बढ़कर 55.5 खरब रुपए हो गई। यानी बैंकों द्वारा ऋण देने या लेनदारों द्वारा ऋण लेने की रफ़्तार में अप्रत्याशित रूप से गिरावट आई है। अर्थव्यवस्था के लिए यह एक खतरनाक स्थिति होती है।

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मूडीज ने यह भी कहा है कि यदि संक्रमण की स्थिति नियंत्रित नहीं हो पाई तो वित वर्ष 2021-22 में 13.7 फ़ीसदी विकास दर के उसके अनुमान को हासिल कर पाना भारत के लिए कठिन हो सकता है। हालांकि एजेंसी को अभी भी दो अंकों की विकास दर का अनुमान है। फिच ने भी अपने विकास दर अनुमान को घटा दिया है। नोमुरा, जेपी मोरगन, यूबीएस और सिटी रिसर्च जैसी ब्रोकरेज कंपनियों ने भी भारत के लिए अपने विकास दर अनुमान घटा दिए हैं। फिर भी सभी ने विकास दर दो अंकों में रहने की बात कही है। आर्थिक जानकारों का मानना है कि वित वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही तक अर्थव्यवस्था में गिरावट रहेगी। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर गुज़रने के बाद तीसरी तिमाही में मांग बढ़ेगी। जून के बाद टीकाकरण की तेज़ रफ़्तार इसमें मददगार होगी और विकास दर दो अंकों में रह सकती हैं। लेकिन दो अंकों की विकास दर के लिए टीकाकरण एक शर्त है।

अगस्त तक 30 करोड़ और दिसंबर तक 50 करोड़ लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य है। कोशिशें जारी हैं और देसी टीकों के अलावा विदेशी टीकों को भी अनुमति देने की प्रक्रिया चल रही है। कुछ को अनुमति दी जा चुकी है। पहली मई से 18 साल से ऊपर की उम्र के लोगों को भी टीके लगाए जाएंगे। लेकिन टीकाकरण की मौजूदा रफ़्तार निराशाजनक है। 11 अप्रैल तक टीकाकरण की दर महज 36 लाख प्रति दिन थी, और 10 अप्रैल को समाप्त सप्ताह में लगभग दो करोड़ साठ लाख लोगों को टीके लगाए गए थे। यह टीका लोगों की जिंदगियां बचाने के लिए जितना जरूरी है, अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए उतना ही ज़रूरी है। महामारी के इस आर्थिक अंधेरे में टीकाकरण एक टिमटिमाते दीये के रूप में दिख रहा है। देखना अब यह है कि यह दीया कितनी रोशनी दे पाता है।

(वरिष्ठ पत्रकार सरोज कुमार इन दिनों स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।) 

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