सुशांत सिंह की मौत की सीबीआई जांच से शिवसेना नाराज क्यों है?

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अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई ने शुरू कर दी है। हालांकि इस जांच से महाराष्ट्र में सत्ता सुख भोग रही शिवसेना को बहुत अधिक बुरा लग रहा है। शिवसेना को लग रहा है कि राज्य सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश की जा रही है। शिवसेना के इस क़दम पर हैरानी जताई जा रही है। कोई यह नहीं समझ पा रहा है कि संदिग्ध ख़ुदकुशी का यह मामला अगर सच का सच पानी का पानी होने की ओर बढ़ रहा तो इसमें शिवसेना क्यों बुरा मान रही है।

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अमूमन किसी आपराधिक केस की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच वह व्यक्ति नहीं चाहता, जो उस केस से किसी न किसी तरह से कनेक्टेड होता है। यानी निष्पक्ष जांच से उसके भी फंसने की आशंका रहती है। इसी बिना पर लोग सवाल उठाने लगे हैं कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत का हाई कनेक्शन तो नहीं है। सोशल मीडिया की पोस्ट में तो बहुत पहले से दावा किया जा रहा है कि सुशांत इसलिए की हत्या की गई क्योंकि वह अपनी पूर्व मैनेजर दिशा सालियन की कथित तौर पर की गई हत्या के बारे में जानते थे।

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चूंकि सुशांत सिंह की मौत मुंबई में हुई थी, इसलिए नैतिक रूप से राज्य सरकार को ही सीबीआई जांच की सिफ़ारिश करनी चाहिए थी। कम से कम जब सुशांत के पिता केके सिंह ने सुशांत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती पर सनसनीखेज़ आरोप लगाते समय कह दिया था कि उनका मुंबई पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं है। उसके बाद मुंबई पुलिस का जांच करना मर्यादा के ख़िलाफ़ था। लिहाज़ा, उसी समय मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को ख़ुद सीबीआई जांच की सिफ़ारिश कर देनी चाहिए थी, लेकिन उद्धव अड़ गए कि जांच मुंबई पुलिस ही करेगी। तब लोग समझ नहीं पाए कि शिवसेना या उद्धव ठाकरे का इस केस में क्या इंटरेस्ट है जो इतना रहस्यमय व्यवहार कर रहे हैं।

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राज्य सरकार के रहस्यमय व्यवहार से पूरे देश में आम आदमी का संदेह गहराता जा रहा है कि सुशांत ने ख़ुदकुशी नहीं की है, बल्कि शायद उनकी हत्या की गई है। यह भी हो सकता है कि उस घटना के तार किसी बड़े व्यक्ति से जुड़ें, इसीलिए मामले की जांच करने मुंबई पहुंचे बिहार के आईपीएस अफसर विनय तिवारी को कोरोना संक्रमण का हवाला देकर बीएमसी द्वारा क्वारटीन करवा दिया गया। जांच करने गए पुलिस अफ़सर को क्वारंटीन के बहाने घर में बंद करना देश के हर नागरिक को नागवार लगा।

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अब शिवसेना जिस तरह बयान दे रही है, उससे लोगों का शक होने लगा है कि कहीं सुशांत की किसी बड़ी साज़िश के तहत तो हत्या नहीं की गई। हत्या पर परदा डालने के लिए डिप्रेशन और आत्महत्या की झूठी कहानियां गढ़ी गईं। लोगों को यह भी लग रहा है कि यह कहानी हाई कनेक्शन की मिलीभगत से गढ़ी गई। ताकि मामले को डाइवर्ट किया जा सके। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि मुंबई पुलिस डेढ़ महीने में उतनी सूचनाएं नहीं जुटा सकी, जितनी सूचना बिहार पुलिस ने चंद दिनों में जुटा लिया। मुंबई पुलिस ख़ुदकुशी वाले एंगल पर ही जांच करती रह गई।

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बहरहाल, केंद्र सरकार ने बिहार सरकार की सिफ़ारिश को मानते हुए जांच का ज़िम्मा सीबीआई को सौंप दिया। लेकिन जैसे ही सीबीआई ने जांच शुरू की, वैसे ही शिवसेना को बुरा लगने लगा है। शिवसेना के प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य संजय राऊत ने केंद्रीय एजेंसी से जांच को महाराष्ट्र सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश बता दिया। जांच से पहले ही सुशांत की मौत को आत्महत्या करार देने वाले राऊत ने कहा, ”बिहार दिल्ली में सुशांत सिंह राजपूत की मौत मामले में राजनीति की जा रही है। महाराष्ट्र सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश रची जा रही है। इस केस में मुंबई की पुलिस सच्चाई सामने लाने में सक्षम थी। इसके बावजूद केस सीबीआई को सौंप दिया।’

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संजय राऊत ने कई ऐसी जानकारियां जुटा लीं, कि उसे सुनकर आम आदमी का सिर ही चकराने लगा। मसलन शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपे लेख में राउत ने लिखा कि सुशांत अपने पिता की दूसरी शादी से खुश नहीं थे। इस बेतुके बयान पर सफ़ाई देने के लिए सुशांत के चाचा प्रोफेसर देव किशोर सिंह को आना पड़ा। उन्होंने हैरानी जताई कि राऊत को यह अनोखी जानकारी कहां से मिली, जबकि सच यह है कि केके सिंह ने दूसरी शादी कभी की ही नहीं। राऊत पता नहीं किस सच्चाई के सामने लाने की बात कर रहे हैं, उनके अनुसार उस सच्चाई को मुंबई पुलिस सामने लाने का प्रयास कर रही थी, लेकिन उसे काम नहीं करने दिया गया। राऊत ने आरोप लगा दिया कि सुशांत सिंह की मौत के पीछे की असली सच्चाई बाहर न आ सके इसलिए इस मुद्दे पर राजनीति की गई और मुंबई पुलिस से इस केस को छीन लिया गया। राऊत ने सुशांत पर भी निशाना साधा और कहा कि वे अंकिता लोखंडे से क्यों अलग हुए इसकी भी जांच होनी चाहिए।

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सवाल यह है कि सुशांत सिंह मौत को लेकर अगर राज्य सरकार के मन में कोई खोट नहीं था, तो जांच सीबीआई को देने की सिफारिश क्यों नहीं की गई। अब अगर इस केस में कोई वेस्टेड इंटरेस्ट नहीं है, तो वह सीबीआई जांच पर हायतौबा क्यों मचाया जा रहा है। ज़ाहिर है अगर यह विशुद्ध आत्महत्या है तो जांच होने दीजिए, अपने आप दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। जांच सीबीआई करें या कोई और एजेंसी क्या फ़र्क़ पड़ता है।

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बहरहाल, अगर सीबीआई के हाथ जांच में ऐसा कुछ लग गया तो यह महाराष्ट्र सरकार द्वारा देश के संविधान की बुनियाद पर प्रहार करने जैसा होगा। यहां राज्य सरकार के खिलाफ़ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत मामला बन सकता है। अनुच्छेद 356 केंद्र सरकार को किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में राज्य की सरकार को बर्खास्त करके उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार देता है। बहरहाल, वक़्त इंतज़ार करने का है।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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