हरिगोविंद विश्वकर्मा
“दाऊद भाई, दाऊद भाई!” बाइक से ग्रांटरोड की ओर जा रहे दाऊद के कान में यह आवाज़ गूंजी।
दाऊद ने बाइक रोक दी। पीछे मुड़कर देखा तो उसकी टोली का एक लड़का हाथ हिला रहा था। उसका चेहरा लहूलुहान था। उसे किसी ने बहुत बेरहमी से पीटा था। दाऊद यू-टर्न लेकर उसके पास पहुंचा। घायल युवक ने बताया कि बाशूदादा का ख़ासमख़ास हमीद ख़ान ने उसकी यह हालत की है। यह वाकया 1974 के एक दोपहर का था।
दरअसल, हमीद और मजीद उन दिनों इलाक़े में अच्छे ख़ासे बदनाम थे। कोई उनसे पंगा नहीं लेता था क्योंकि दोनों बाशू के आदमी माने जाते थे। हमीद हट्टा-कट्टा ताक़तवर पठान था तो मजीद नंबर एक का चरसी। बेलगाम हमीद, जब मन में आता और जिसे मन में आता, पीट देता था। अपनी टोली के लड़के का लहूलुहान चेहरा देखकर दाऊद आग-बबूला हो गया। उसे बाइक पर बिठाया और हमीद के घर पहुंचा।
“हमीद! कहां छिपा है साले, बाहर निकल। आज मैं तेरा थोबड़ा न बिगाड़ दूं तो मेरा नाम दाऊद नहीं। साला अपने को समझता क्या है!”
दाऊद ने उसे ख़ूब गाली दी। खूब खरी-खोटी सुनाई।
“बाशूदादा का मुंह देखकर मैं तुझे बख़्श रहा हूं साले, वरना आज यहीं तेरा काम-तमाम कर देता। हां आइंदा ऐसी हरकत की, तब मैं भूल जाऊंगा कि तू बाशूदादा का आदमी है।” दाऊद ने चेतावनी दी।
उस समय तो हमीद एकदम चुप रहा क्योंकि दाऊद का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर था। अगर उस समय वह कुछ बोलता तो शायद दाऊद उसकी वहीं हत्या कर देता।
शाम को हमीद बाशूदादा की बैठक में पहुंच गया। उसने नमक-मिर्च लगाकर पूरी बात सुनाई।
“दादा, दाऊद ने आपको भी बहुत गाली दी। बहुत भला-बुरा कहा। सबके सामने।”
हमीद की बात सुनकर बाशूदादा भड़क उठा। इब्राहिम को अपनी बैठक में फ़ौरन हाज़िर होने का फ़रमान भिजवाया। उसके आदेश को अनसुना करना इब्राहिम क्या, वहां किसी के लिए मुमकिन नहीं था। सो, वह साबिर के साथ बैठक में पहुंचे। बाशू ने सबके सामने उनको बहुत अपमानित किया। इतना अपमानित किया कि इब्राहिम की आंख में आंसू आ गए। अपमान का घूंट पीकर साबिर घर वापस आ गया। बात दाऊद तक पहुंची, तो उसका ख़ून खौलने लगा। इससे ज़्यादा बेइज़्ज़ती नहीं हो सकती थी। कोई उसके सबसे अज़ीज़ पिता और भाई को एक लब्ज़ भी बोले, उसे बिलकुल बर्दाश्त नहीं था। लिहाज़ा, उसने वह करने की ठान ली जिसे तब करना तो दूर, उस इलके में कोई सोच भी नहीं सकता था।
दाऊद ने तय किया कि बाशूदादा का ग़रूर तोड़ेगा। यह बहुत ज़रूरी है। बाशू पर हमले की योजना बनाई गई। स्थान मस्तान तालाब मुकर्रर किया गया और वक़्त ज़ुमा की नमाज़ के बाद का समय। जुमा के दिन नमाज़ अता कर बाशूदादा बाहर निकलकर जैसे ही अपनी मर्सडिज़ कार में बैठा, कार पर सोडा बॉटल और पत्थर गिरने लगे। तब तक बाशू डॉन ने सपने में नहीं सोचा था कि कभी कोई उसे चुनौती भी दे सकता है। वह बाहर निकल कर मुक़ाबला करना चाहता था लेकिन ड्राइवर ने मना कर दिया। हमला तेज़ होता देखकर ड्राइवर कुशलता दिखाई और बाशू दादा लेकर भाग गया। अगर भागा न होता तो मुमकिन था दाऊद दादा को मार ही डालता। पूरे इलाक़े का जन-मानस हैरत से देख रहा था कि सुपरमैन एक छोकरे से डरकर दुम दबाकर भाग गया। दाऊद अपनी टोली के साथ बाशू के अखाड़े पर पहुंचा। वहां जमकर तोड़फोड़ की।
मुंबई के डॉन बाशू की सारी रेपुटेशन महज़ दस मिनट में ही मिट्टी में मिल गई। जो लोग उसके नाम से थर्राते थे, वे सार्वजनिक तौर पर उसका मज़ाक़ उड़ाने लगे। इस घटना से उसे इतना सदमा लगा कि उसने अपराध से ही संन्यास ले लिया।
1974 की दिसंबर की एक दोपहर थी। मौसम सर्द था लेकिन धूप होने से उसका ज़्यादा अगर नहीं था। कर्नाक बंदर पुल पर इक्का-दुक्का लोग हाथगाड़ी से माल ढो रहे थे। पुल के एक किनारे दाऊद-साबिर, अंतुले और उसकी टोली के लड़के हथियारोंसे लैस किसी का इंतज़ार कर रहे थे। इनमें साबिर के अलावा बॉडी बिल्डर सैयद सुल्तान अयूबी भी था जिसका भीमकाय डील-डौल देखकर कोई भी घबरा जाता था।
दरअसल, कुछ दिन पहले, मस्तान मिर्ज़ा ने पठान के गुंडों से दाऊद के कुछ लड़कों को पिटवा दिया था। दाऊद को पता चल गया कि मस्तान उसे निशाना बना रहा है। बाशू का ग़ुरूर मटियामेट करने के बाद उसका मनोबल आसमान छू रहा था। वह ख़ुद को डोंगरी का बेताज़ बादशाह मानने लगा था।
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लिहाज़ा, मस्तान को सबक सिखाने के लिए दाऊद उसकी कमर तोड़ना चाहता था, सो उसके नेटवर्क पर हमले की योजना बनाई। वह मानता था कि हमला ही सबसे कारगर सुरक्षा है। उसे सूचना मिली कि अंगड़िए तस्करी से जुटाए मस्तान के पांच लाख रुपए मस्जिद बंदर से उसके मलाबार हिल वाले बंगले पर ले जाने वाले हैं। तब इतनी राशि बहुत बड़ी रकम थी।
बहरहाल, पुल पर सतर्क दाऊद और उसके साथियों ने क़रीब दो बजे एक टैक्सी आती हुई देखी। पूरी तरह मुस्तैद अंतुले ने एक हाथगाड़ी सड़क पर ढकेल दिया जिससे टैक्सी रुक गई। दो मारवाड़ी बैग लिए टैक्सी की पिछली सीट पर बैठे थे। दाऊद ने लपककर उनके बाल पकड़ लिया।
“माल कहां रखा है? जल्दी बताओ नहीं तो यहीं टपका दूंगा।“ दाऊद ने डांटकर पूछा।
टैक्सी में बैठे लोग इस अप्रत्याशित हमले से घबरा गए। उन्होंने अपने अपने बैग दे दिए और बताया कि बाकी रुपए की बोरी सीट के नीचे और डिग्गी में रखे हैं।
दाऊद और उसके साथियों ने सारे माल पर हाथ साफ़ कर दिया और नौ दो ग्यारह हो गए। यह एकदम फ़िल्मी स्टाइल में डाली गई डकैती थी। बहरहाल, बाद में पता चला, उसमें 4 लाख 75 हज़ार रुपए ही थे। अंगड़िए भी मस्तान के नहीं बल्कि मेट्रोपोलिटन कॉरपोरेशन बैंक का कैश कहीं लेकर जा रहे थे। डकैती का केस सीआर नंबर 725/1974 से पायधुनी पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया। दूसरे दिन ख़बर शहर के सभी अख़बारों की हेडलाइन बनी। रिपोर्ट में यह भी लिखा गया कि दाऊद-साबिर बंधुओं और उनके पंटरों ने दिन-दहाड़े डकैती डाली। इस केस में दाऊद को चार साल की सज़ा हुई थी, पर उसे ज़मानत मिल गई।
इब्राहिम तब तक पुलिस सेवा छोड़ चुके थे। इसके बावजूद क्राइम ब्रांच में उनकी अच्छी साख़ थी। लोग अपनी समस्याए लेकर उनके पास आते थे। लिहाज़ा दाऊद के डकैती डालने की ख़बर उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं थी। उनके पास कहने को कोई लब्ज़ नहीं था। लोगों को मुंह दिखाना असंभव हो गया। मुंबई, ख़ासकर डोंगरी में हर ज़बान पर डकैती की चर्चा थी। बहरहाल, क्राइम ब्रांच के दो हवलदारों ने शाम को दरवाज़े पर दस्तक दी। इब्राहिम को बताया कि क्राइम ब्रांच के अफ़सर ने बुलाया है। बात करना चाहता है। इब्राहिम को पहले ही अंदेशा था कि यह ज़रूर होगा। वह शाम को क्राइम ब्रांच गए और पुलिस से दो दिन की मोहलत मांगी।
उधर साबिर और दाऊद दो दिन से घर नहीं आए थे। पता चला कि दोनों भायखला में किसी परिचित के यहां छिपे हुए हैं। इब्राहिम ने किसी तरह उन्हें खोज निकाला और लेकर घर आए। वह बहुत ग़ुस्से में थे। भरी दोपहर में, दोनों को बिल्डिंग के नीचे रस्सी से बांध दिया और खूब पीटा। इतनी पिटाई की कि बेटे लहूलुहान हो गए। अमीना की भी हिम्मत नहीं पड़ी कि बीच-बचाव करे। शाम तक दोनों को क्राइम ब्रांच के हवाले कर दिया। दाऊद पर मुक़दमा चलाया गया। सत्र न्यायालय ने 2 मई 1979 को उसे 4 साल की सज़ा सुनाई। हालांकि बाद में हाईकोर्ट में अपील करने पर उसे ज़मानत मिल गई। जो भी हो, उस घटना ने दाऊद को मुंबई में डॉन के रूप में स्टेब्लिश्ड कर दिया। कासकर ब्रदर्स का गिरोह अचानक रातोरात सुर्खियों में आ गया।
(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)
अगला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें – द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 8