हरिगोविंद विश्वकर्मा
बेचारा रेल विभाग! बहुत लाचार है इन दिनों। दिल्ली हो या मुंबई। हर जगह रेलवे प्लेटफॉर्म पर भारी भीड़ है। यूपी-बिहार के लिए इतनी स्पेशल गाड़ियां चलाई जा रही हैं। फिर भी गाड़ियों में रेलमपेल मची हुई है। सीट की बात तो छोड़ दीजिए। लोग आने जाने के गलियारे और सीट के नीचे सो कर यात्रा कर रहे हैं। बस सबका एक ही इरादा है। घर पहुंचना। किसी भी पहुंचना। चाहे टायलेट में ही यात्रा क्यों न करनी पड़े। वह भी मंजूर है। बस गांव पहुंच जाए।
रेल कितनी ट्रेन चलाए। हर संस्थान की तरह भारतीय रेलवे की भी एक सीमा होती है। वह उससे ज़्यादा काम नहीं कर सकती। भारतीय रेल की भी सीमा है। जितने यात्री गांव जाना चाहते हैं। उतने यात्री भेजने की क्षमता रेलवे के पास नहीं है। रेल विभाग के लोग दिन रात काम कर रहे है। फिर भी हो-हल्ला मचा हुआ है। लोग रेल विभाग की आलोचना कर रहे हैं। सुबह शाम कोस रहे हैं। ऐसे प्रतिसाद की उम्मीद नहीं की थी रेल कर्मियों ने। काम भी कर रहे हैं और आलोचना भी झेल रहे। यह बुरी बात है। केवल बुरी नहीं, बल्कि बहुत बुरी बात है।
ऐसे में मेरा एक सुझाव है। रेल विभाग को यूपी-बिहार के यात्रियों के लिए 85 डिब्बे वाली मालगाड़ी चलानी चाहिए। वैसे भी यूपी जाने वाले लोग किसी भी तरह जा सकते हैं। उन्हें रास्ते में पंखा यानी हवा-पानी की ज़रूरत नहीं पड़ती है। अगर दृढ़ संकल्प कर लें तो हगने-मूतने की तलब भी नहीं होगी। मुंबई के बाद सीधे गांव में प्रधानमंत्री द्रावा बनवाए गए टायलेट में जाएंगे। इसलिए टायलेट का भी इस्तेमाल यात्रा करने के लिए कर रहे हैं। इन दिनों कई बहादुर किस्म के लोग टायलेट में ही यात्रा कर रहे हैं।
कहा भी जाता है। यूपी-बिहार के लोगों को खड़े होने की जगह मिल जाए। बाक़ी व्यवस्था ख़ुद कर लेते हैं। यही हाल यात्रियों का है। बस पांव रखने की जगह मिल जाए। बस सब कुछ मैनेज कर लेंगे। गाते-गुनगुनाते और रील देखते हुए पहुंच जाएंगे गांव। इस तरह के ज़रूरतों से परे यात्रियों के लिए मालगाड़ी सबसे बढ़िया विकल्प हो सकता है। कुछ माल गाड़ियों को यूपी-बिहार के यात्रियों की सेवा में लगा दिया जाए। चार मालगाड़ियां पर्याप्त होंगी। उनका इस्तेमाल सीज़न में किया जाए। जब भी यात्री बढ़ें और रेलगाड़ियां कम पड़ने लगे तो तुरंत मालगाड़ी को सेवा में प्रस्तुत कर दिया जाए।
होली, दिवाली, छठ पूजा में इन मालगाड़ियों को रवाना कर देनी चाहिए। जितने लोग जाना चाहे जाएं। बस मालगाड़ी में थोड़ा परिवर्तन कर दिया जाए। हर डिब्बे जगह-जगह होल बना दिया जाए। ताकि प्राकृतिक हवा डिब्बे में भरपूर आए। डिब्बे में सीट की जगह सोने के लिए उसमें डारमेट्री की तरह रैक बना दिया जाए। उन रैक में यात्रियों को सुला दिया जाए। उनका मुंह होल की ओर कर दिया जाए। हर यात्री को हवा खींचने के लिए एक-एक पाइप दे दी जाए ताकि पाइप से सांस लेते रहे और मरे न। बस पाइप से सांस लेते हुए जिंदा घर पहुंच जाएं।
यूपी-बिहार के लोगों की एक ख़ासियत है। वे बड़े संतोषी होते हैं। किसी चीज़ की डिमांड नहीं करते। जो मिल जाए वहीं सिरोधार्य। कमोबेश यही ख़ासियत यूपी-बिहार के रेल यात्रियों में होती है। वे किसी चीज़ के लिए शिकायत नहीं करते। जो सुविधा रेलवे देता है। उसे सिरोधार्य कर लेते हैं। जो नहीं देता उसकी शिकायत नहीं करते। स्लीपर कोच में पंखा नहीं चल रहा है। तब भी शिकायत नहीं करते। एसी कोच में एसी नहीं चल रहा है। उसकी भी शिकायत नहीं करेंगे। बस चुपचाप यात्रा करते हैं। फिर इन दिनों माहौल राममय है। राममय माहौल में भक्त भी राममय हो गए हैं। जब राम के बारे में सोचने लगते हैं तो न गर्मी लगती है न थकान। कई लोग राम नाम जपते हुए खड़े-खड़े ही यात्रा करते हुए घर पहुंच जाते हैं। तो यूपी-बिहार के रेल यात्रियों की उदारता का भरपूर लाभ रेलवे को लेना चाहिए और यात्रियों के लिए तुरंत मालगाड़ी चलानी चाहिए।
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