खुशबू से बीमारियों का इलाज

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बढ़ रहा है एरोमा थेरेपी का प्रचलन

फूलों से ही जीने की प्रेरणा मिलती है। इंसान इन फूलों की ओट में कभी भी उदास नहीं रह सकता। फूल हमारे जीवन में अहम भूमिका निभाते हैं। फूलों की प्राचीन काल से भारतीय समाज में ख़ास अहमियत रही है। पुष्प देवताओं के शीश पर चढ़कर उनका श्रृंगार करते हैं और हमारी धार्मिक अभिव्यक्ति बनते हैं। गुलाब के फूल अपने रंगों से प्रेम, प्यार, दोस्ती के प्रतीक बनते हैं। फूल माला में गूंथ कर अतिथि का स्वागत करते हैं। मोगरे की लड़ी नारी की चोटी से लिपट कर श्रृंगारित करता हैं। अवसर चाहे सामाजिक हो, धार्मिक या कोई और सजावट में फूलों की सज्जा के बिना बात बनती नहीं। फूलों का महत्व, रंग-रूप, सुंदरता ही हैं कि सज्जा के लिए इन्हें विदेशों से मंगवाया जाता हैं। माखनलाल चतुर्वेदी ने तो पुष्प की अभिलाषा’ कविता में फूलों के जिस सौंदर्य का वर्णन किया है वह फूलों के प्रति हमारे अनुराग की भावनाओं को ही व्यक्त करता हैं।

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आजकल फूल औषधि बनकर हमारे जीवन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। इसीलिए इन दिनों सुगंध यानी महक से बीमारियों के इलाज का चलन ज़ोर पकड़ रहा है। किसी गंध, सुगंध, ख़ुशबू, महक या सेंट वाली वस्तु को सूंघकर या उसे स्पर्श करके उसके अंदर विद्यमान मेडिकल गुणों से लाभ लिया जा रहा है। दरअसल, सुगंधवाले तेल इस ट्रीटमेंट थेरेपी में अहम किरदार निभाते हैं। इनसे शारीरिक और मानसिक बीमारियों का वाक़ई निदान हो रहा है। अक्सर दर्द देने वाली बीमारियों का उपचार भी दर्द भरा होता है परंतु ऐरोमा थेरेपी इंजेक्शन्स और कड़वी दवाइयों के झंझट से मुक्ति दिलाती है।

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अच्छी सुगंध केवल इंसान ही नहीं, बल्कि हर जीव का मिज़ाज बदल देती है। मान लीजिए आप दुखी हैं। अचानक ऐसी जगह पहुंच जाएं, जहां मन को सुकून देने वाली महक हो। वह महक आपकी पूरी परसनॉलिटी को सराबोर कर दे। यानी महक का असर केवल नाक ही नहीं, बल्कि पूरे शरीर पर हो, तो शर्तिया आप अपने दुख भूल जाएंगे। मतलब, सुगंध ने अचानक आपका मूड ही बदल दिया। कुछ देर पहले आप दुखी थे, मगर सुगंध के चलते ख़ुश हो गए। यह ठीक उसी तरह की अवस्था है, जैसे आप किसी बीमारी के कारण दुखी थे और दवा लेने के बाद थोड़ी राहत होते ही ख़ुश हो गए। यहां सुगंध ने आपके लिए दवा का काम किया। यह एक तरह का उपचार है और मेडिकल साइंस की भाषा में इसको एरोमा थेरेपी कहा जात है।

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सुगंध जीवन के लिए अहम
मेडिकल साइंस कहता है कि ख़ुशबू से कोई भी दिमाग़ प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। चाहे वह इंसान का दिमाग़ हो या वन्य जीव का। यह ख़ुशबू हर किसी पर पॉज़िटिव या निगेटिव असर डालती है। इसीलिए सुगंध का हर किसी की ज़िंदगी में अहम किरदार होता है। अब तक हुए अनगिनत प्रयोगों से यह साबित भी हो चुका है कि जब भी कोई किसी भी वजह से ख़ुश होता है, तो इसका असर उसके शरीर के अंदर की क्रियाओं पर पड़ता है। ख़ासकर ख़ुश होने पर इंसान की ज्ञानेंद्रियां बहुत ज़्यादा ऐक्टिव हो जाती हैं। कहा जा सकता है कि ख़ुशबू ज्ञानेंद्रियों को उत्तेजित करती है, जिससे व्यवहार एवं कार्यों में सकारात्मक बदलाव आता है। इसी बदलाव के चलते ख़ुशबू में उपचार की ताक़त पैदा होती है, जिससे नेचुरल ट्रीटमेंट होता है।

कई रिसर्च से पता चला है कि जो लोग नियमित रूप से सुगंध लेते हैं, ज़िंदगी के प्रति उनका नज़रिया सुगंध से दूर रहने वालों की तुलना में ज़्यादा पॉज़िटिव होता है। सामाजिक रूप से वे ज़्यादा सक्रिय, कुशल और प्रैक्टिकल होते हैं। संभवतः मानव सभ्यता के विकास के बाद ख़ुशबू को इतनी अहमियत इसकी इसी क्वालिटी और फिलॉसफी को ध्यान में रख कर दी गई है। ख़ुशबू के लिए सेंट का प्रयोग की परंपरा सदियों पुरानी है। यह ख़ुशबू किसी न किसी फूल या पेड़ के तने से बनती है। इस महक का इस्तेमाल लोगों को तंदुरुस्त रखने और सौंदर्य निखारने में किया जाने लगा है। एरोमा थेरेपी की बुनियाद यही है।

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संवेदना जगाए सुगंध
दरअसल, पंचभूतों का सूक्ष्म रूप- शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध है। इन्हीं सूक्ष्म रूप से गंध का जन्म हुआ है। लिहाज़ा, कह सकते हैं कि यहीं से सुगंधों की नई दुनिया की खोज हुई है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी साबित हो चुका है कि सुगंध केवल संवेदना ही जागृति ही नहीं करती हैं, बल्कि उसे अति संवेदनशील भी बनाती हैं। बीमारियों के उपचार के लिए महक का प्रयोग इसी आधार पर होता है। उदाहरण के लिए क्लोरोफॉर्म को ले सकते हैं। क्लोरोफॉर्म जैसे रसायन की महक मात्र से बेहोश होने लगती है, इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मेडिकल साइंस में सुगंध का कितना महत्व है। एरोमा थेरेपी में केवल सीमित वनस्पतियों का प्रयोग होता है। इसलिए इसे एक वैकल्पिक थेरेपी कहा जाता है, जिसमें सुगंधित तेल या वनस्पति का इस्तेमाल करके कई मरीज़ों का मूड ठीक किया जाता है जिससे अंततः कई बीमारियों का इलाज हो जाता है।

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अगल तरह का विचार
कई लोग इस तरह के उपचार को अवैज्ञानिक और ख़्याली पुलाव मानते हैं, मगर इसके असर का वैज्ञानिक प्रमाण बढ़ रहा है। रिसर्च साबित कर चुके हैं कि एरोमा थेरेपी इंसान को ख़ुश करता है। यह रोग को पूरी तरह ठीक कर देता है, इसका बहुत पुख़्ता प्रमाण नहीं है। इस थेरेपी में इस्तेमाल होने वाले ज़रूरी तेल हर्बल प्रॉडक्ट के मुक़ाबले अलग बनावट का होता है क्योंकि एरोमा थेरेपी में प्रयोग किया गया डिस्टलेशन हल्के फाइटोमालिक्यूल्स को ठीक कर देता है।

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अर्क यानी एसेंशियल ऑयल
ऐरोमा थेरेपी जड़ी−बूटियों और पेड़-पौधों से उपचार करने की थेरपी है। पेड़-पौधे, पत्तियां, जड़, तना, फल-फूल, सब्ज़ी, मसाले की खुशबू को दिमाग़ और नर्वस सिस्टम ग्रहण करता है। इस थेरेपी में बीमारियों के इलाज के लिए पौधों के तनों, जड़ों, फूलों, फलों और पत्तों से निकाले अर्क का प्रयोग होता है। अर्क को ऐसेंशियल ऑयल कहते हैं अर्क डिस्टीलेशन विधि से निकाला जाता है। हर अर्क की अपनी अलग ख़ुशबू और पहचान होती है। हर तरह की स्किन्स और हेयर्स बालों में प्रयोग हो सकने वाले तेल चिपचिपे नहीं होते।

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फ़िलहाल क़रीब तीन सौ किस्म के एसेंशियल ऑयल्स का इस्तेमाल होता है। छोटी मोटी बीमारियों के घरेलू निदान के लिए दर्जन भर ऑयल मुख्य होते हैं। दरअसल, इलाज ऑयल्स की खुशबू के अहसास से होता है। एरोमा थेरेपी का इलाज एसेंशियल ऑयल पर निर्भर करता है। जो पौधों का वेपराइज़्ड ऑयल है। यह जटिल हाइड्रोकार्बन से बनता है, जो फूल, पत्तियों, जड़ों, छालों एवं फलों के छिलकों में पनपता है। एरोमा थेरेपी में इस्तेमाल होने वाले मुख्य ऑयल में बेंजाइन, यूकेलिप्टस, जिरेनियम, लेवेंडर, रोज, वर्गमोट प्रमुख है। घर में इन ऑइल्स का इस्तेमाल मालिश, स्नान जल या भाप के पानी में किए जा सकते हैं। शरीर से दूषित पदार्थों के निष्कासन में ये एंटीसेप्टिक, एंटीबैक्टिरयिल, एंटीफंगस, एंटीन्यूरालाजिक और एंटीडिपरेसेंट तेल बहुत उपयोगी होते हैं

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ऐरोमा थेरेपी से इलाज
-पीरियड के समय महिला महिलाएं चिड़चिड़ी और बैचेन रहती हैं। 30 मिलीग्राम बेस ऑयल में छ बूंद लेमन ऑयल, 10 बूंद क्लैरीसेज आयल, 9 बूंद जिरेनियम ऑयल व पांच बूंदें इवनिंग प्राइमरोज ऑयल मिलाकर पूरे शरीर की मालिश करें। नहाने के पानी में भी इसका प्रयोग करें।
-भारी सामान उठाते या डांस करते समय हाथ-पैर में मोच आने पर बेस ऑयल को 30 मिलीग्राम, पांच बूंद ब्लैक पेपर ऑयल, 15 बूंद यूकेलिप्टस ऑयल, पांच बूंद जिंजर ऑयल और नट मेग ऑयल मिलाकर दिन में तीन बार मालिश करें।
-नकसीर या नाक से खून आना पर पीठ के बल सीधे लेट जाएं और एक टिश्यू पेपर पर एक बूंद साइप्रस ऑयल, एक बूंद लेवेंडर ऑयल, दो बूंद लेमन ऑयल और एक बूंद रोज़ ऑयल डालकर सूंघें।
-नीद न आने पर तीस मिलीग्राम बेस ऑयल में पांच बूंद कैमोमाइल ऑयल, पांच बूंद मेजोरम ऑयल, 15 बूंद सैंडलवुड ऑयल और पांच बूंद क्लैरीसेज ऑयल मिलाकर पूरी पीठ, गले तथा कंधों पर मालिश करें।
-पेट के ऊपरी भाग में दर्द होने पर तीन बूंदें पिपरमेंट ऑयल, दो बूंदें क्लोव ऑयल तथा एक बूंद यूकेलिप्टस ऑयल मिलाकर उसमें एक चम्मच वेजीटेबल ऑयल डालकर मालिश करें।
-अगर पेट के निचले हिस्से में दर्द हो तो दो बूंद जिरेनियम ऑयल, दो बूंद रोजमेरी ऑयल और एक बूंद जिंजर ऑयल में एक चम्मच वेजीटेबल ऑयल डालकर दर्द वाली जगह हल्के हाथ की मालिश करें।
-फिशर होने पर दो लीटर गुनगुने पानी में पांच बूंदें लेवेंडर ऑयल, दो बूंदें जिरोनियम ऑयल व दो बूंदें लेमन ऑयल डालकर एनस को धोएं और ऑयल्स ऐलीवीरा जेल में मिलाकर वहां मालिश करें।
-फोड़े या फुंसियां होने पर दो बूंद लैवेंडर ऑयल, एक बूंद कैमोमाइल ऑयल और एक बूंद टीट्री ऑयल एक कप गुनगने पानी में मिलाकर दिन में दो बार घाव को धोएं।

नोट- हर किसी की मानसिक ही नहीं शारीरिक बनावट और क्षमता एक दूसरे से अलग होती है इसलिए ज़रूरी है कि ऐररोमा थेरेपी का प्रयोग करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह ले लें।

हरिगोविंद विश्वकर्मा

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