चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

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क्या आपको पता है, भारत के लोग चीनी अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक योगदान करते हैं। हर साल चीनी कंपनियां भारत से 5 लाख 60 हजार करोड़ रुपए का मुनाफा कमा कर अपने देश चीन ले जाती हैं। भारत में मोबाइल फोन के बाजार में चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी 72 फ़ीसदी है। इसी तरह आटोमोबाइल सेक्टर में चीन की भागीदारी 40 फीसदी है। इसी तरह फ्रिज-एयरकंडिशन आदि क्षेत्र में चीनी कंपनियां भारत में बड़ा कारोबार कर रही है।

चीन से संबंधित मामलों पर नज़र रखने वाले दुनिया भर के विशेषज्ञ आम राय से मानते हैं कि भारतीय नागरिकों की फितरत ही ऐसी होती है कि वे सस्ते सामान की ओर दुनिया के दूसरे देशों के नागरिकों की तुलना में बहुत अधिक आकर्षित होते रहे हैं और एक तरह से सस्ते सामान के बिना रह ही नहीं सकते हैं। विश्व में सबसे सस्ते सामान बनाने वाला चीन भारतीयों की इस मानसिकता का ही फायदा उठा रहा है और भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने की हिमाक़त करता रहा है। यही वजह है कि चीन और भारत के सैनिकों की झड़प हो रही है।

 

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी सरकार के मुखपत्र “ग्लोबल टाइम्स” ने चीन पर नज़र रखने वाले कई विशेषज्ञों से बातचीत के बाद इस बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन में निर्मित सामान और चीनी सॉफ्टवेयर भारतीय नागरिकों के लिए ऑक्सीजन की तरह हैं। भारतीयों को चीन में बने सामान न मिले तो वे ज़िंदा ही नहीं रह पाएंगे। इसलिए चीनी सरकार को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि भारत से संबंध ख़राब होने पर चीनी कंपनियों के भारत में हो रहे लाखों करोड़ रुपए के मुनाफ़े पर कोई असर पड़ेगा।

संभवतः यही वजह है कि जब चीन ने आतंकवादी मौलाना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने की मांग को वीटो किया था, तभी से भारत में देशभक्ति का राग आलापने वाले लोग पिछले गला फाड़-फाड़ कर चाइनीज़ प्रॉडक्ट के इस्तेमाल को बंद करने की अपील कर रहे हैं, लेकिन हक़ीक़त में चीनी प्रॉडक्ट के व्यसनी हो चुके भारतीय नागरिक अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं। हालत यह है कि पिछले साल चीनी कंपनियों का भारत में कारोबार दिन दूना-रात चौगुना बढ़ता हुआ 5 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपए के फीगर को पार कर गया।

चीन के अस्तित्व को अगर मानवता ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव सभ्यता के लिए ख़तरा कहा जाए तो न तो अतिशयोक्तिपूर्ण होगा और न ही किसी तरह की ग़लत बयानबाज़ी। यही वजह है कि चीन जहां है, वहां विवाद से उसका नाता रहा है। चीन 1949 से तिब्बत पर क़ब्ज़ा कर रखा है। हांगकांग में कत्लेआम शुरू कर दिया है। दक्षिण चीन सागर के बारे में तो चीन ने अंतरराष्ट्रीय अदालत का फ़ैसला ही मानने से इनकार कर दिया। चीन का भारत ही नहीं बल्कि जापान, वियतनाम, दक्षिण कोरिया

इन सबके लिए चीन की मध्यकाल वाली विस्तारवादी सोच ही ज़िम्मेदार है। चीन की इसी नीति के चलते आज सीमा पर कमोबेश यह युद्ध जैसे हालात हैं। चीन की सेना भारत के लद्दाख में कई किलोमीटर अंदर तक आ गई हैं। इसके बावजूद भारत में चीनी कंपनियों के कारोबार का ग्राफ बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है।

यही वजह है कि भारत और चीन के तनावपूर्ण सीमा विवाद के बीच रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता शिक्षविद सोनम वांगचुक का चीनी सामानों और सॉफ्टवेयर्स का बहिष्कार करने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। योगगुरु बाबा रामदेव समेत अनेक नामचीन लोगों ने इस वीडियो में सोनम की कही बातों का समर्थन करते हुए चीनी सामान और सॉफ्टवेयर्स के वहिष्कार की अपील की। लेकिन इसके बावजूद चीन निर्मित सामनों और सॉफ्टवेटर का इस्तेमाल जस का तस है।

चीनी उत्पाद के बायकॉट के आह्वान के बावजूद चीनी कंपनी बाइटडांस का सॉफ्टवेयर टिकटोक भारत में लोकप्रियता के शिखर पर है। इस सॉफ्टवेयर ने भारत में यू-ट्यब को भी पीछे छोड़ दिया है। इस ऐप को आज भी तक़रीबन हर भारतीय ख़ासकर युवाओं के मोबाइल में देखा जा सकता है। इसी तरह शेयर इट के ऐप भारत में बेहद लोकप्रिय हैं। चीनी मोबाइल फोन और टैब बनाने वाली शाओमी एमआई के उत्पाद भारत में सैमसंग को पीछे छोड़ चुके हैं।

चीनी मोबाइल फोन ओप्पो, विवो, वनप्लस, हुवेई, कूलपैड, मोटोरोला, लीइको, लेनेवो, मीज़ू, टेक्नो, होनोर, जियोनी, जीफाइव और टीसीएल भारतीय बाज़ार में छाए हुएं हैं। इनका इस्तेमाल जिस तरह लोग कर रहे हैं, उससे यह तय है कि लाख अपील की जाए, लेकिन भारतीय नागरिक कभी इनसे मुक्त नहीं हो सकते। भारत में लोकप्रिय कई स्वदेसी और गैरचीनी कंपनियों में चीनी कंपनियों ने निवेश कर रखा है। मसलन पेटीएम और स्नैपडील में अलीबाबा, हाइक मेसेंजर, मेक माई ट्रिप और फ्लिकार्ट में चीनी कंपनी टेंसेंट होल्डिंग्स का भारी निवेश है। इसी तरह ओला का बड़ा स्टैक चीन की दीदी चूइंग ने ले रखा है।

चायनीज इंस्टिट्यूट ऑफ़ कन्टेम्पोरेरी इंटरनेशनल रिलेशन से संबंध साउथ एशियन स्टीज़ के उपनिदेशक लॉऊ चुन्हावो कहते हैं, चीनी उत्पादों के ख़िलाफ़ भारत में यह कोई पहला अभियान नहीं है। जब भी चीन ऐसा कुछ करता है, तो भारत के हितों के प्रतिकूल जाता है, तब तब चीनी सामानों के बहिष्कार की बात की जाती है, लेकिन मामला थोड़े दिन में टांयटांय फिस्स हो जाता है। चीनी सामानों के बिना जीवन-यापन भारत के लोगों के लिए बहुत मुश्किल है।

चुन्हावो कहते हैं कि चीनी बाज़ार में चीनी मोबाइल कंपनियों की बागीदारी 72 फीसदी है। इसे खत्म करना असंभव है। चुन्हावो आगे कहते हैं कि स्मार्ट टीवी कारोबार में चीनी कंपनियों का हिस्सेदारी 45 फीसदी है। फिर चीनी टीवी दूसरे ब्रांडों से 20 से 45 फीसदी सस्ता होता है। इसके अलावा चीन में बने रेफ्रिजरेटर, घड़ी, कैलकुलेटर और अन्य सामानों से भारतीय बाज़ार भरे पड़े हैं। इसके अलावा दूसरे ढेर सारे क्षेत्र में भी चीनी उत्पादों पर भरात की बुरी तरह निर्भरता है। भारत में स्वदेशी उत्पादन का देश के जीडीपी में हिस्सेदारी केवल 16 फीसदी है। ऐसे में भारतीय कंपनियां चीन का स्थान लेने की हालत में नहीं हैं।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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