यह भारतीय राजनीति का सबसे सुनहरा दौर है क्योंकि सही मायने में दलित की एक बेटी देश की प्रथम नागरिक (Fist Citizen Of India) बन रही हैं। कल्पना कीजिए, जिस समाज को सदियों तक इंसान का दर्जा भी देने से परहेज़ किया जाता रहा, उसी समाज की प्रतिनिधि द्रौपदी श्याम चरण मुर्मू (Droupadi Shyam Charan Murmu) देश के सर्वोच्च नागरिक पद पर आसीन होने वाली हैं। भारतीय लोकतंत्र की यही ख़ूबी और ख़ूबसूरती है। बेहतर तो यह होता कि एक आदिवासी महिला के सम्मान में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ख़ुद ही चुनाव मैदान से हट जाते, तब शर्तिया उनका भी क़द बढ़ जाता।
पंचायत सदस्य/पार्षद, विधायक, मंत्री और झरखंड के राज्यपाल के रूप में लोगों की सेवा करने वाली ओडिशा की आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू के देश की 15 वीं राष्ट्रपति बनने के लिए औपचारिकता भर ही बाक़ी रह गई है, क्योंकि भाजपा ने जब उन्हें जनतंत्रिक गठबंधन का उम्मीदवार बनाया है, जिसके पास जीतने भर का बहुमत है। तो आइए, ज़मीन से उठकर आसमान की ऊंचाइयों को चूमने वाली मुर्मू के जीवन सफ़र पर सरसरी नज़र डालते हैं। इस सफर के दौरान उनके द्वारा किए गए संघर्षों से रूबरू होने की कोशिश करते हैं।
द्रौपदी टुडू का जन्म 20 जून, 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बाइदापोसी गांव (Baidaposi Village) में एक आदिवासी संथाल परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू था वह किसान थे। उनके पिता और उनके दादा दोनों ही गाँव के प्रधान रहे। द्रौपदी मुर्मू में अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही शुरू की। उनकी शिक्षा में, उनकी दादी का बड़ा योगदान था। उन्होंने द्रोपदी को शिक्षा के लिए प्रेरित किया। दादी शिक्षित थीं और टूटी-फूटी अंग्रेजी बोला करती थी। जब द्रौपदी कक्षा सात में थी। तब उनके गांव में आगे की शिक्षा के लिए, कोई भी विद्यालय नहीं था।
उसी समय सरकारी अधिकारियों के साथ मंत्री का दौरा हुआ। द्रौपदी मुर्मू ने उनके सामने, अपनी आगे की शिक्षा जारी रखने की इच्छा जाहिर की। उनकी मदद से, उनका दाखिला मयूरभंज केकेबी हायर सेकंडरी उपरबेदा स्कूल में हो गया। इसके बाद, उन्होंने सरकारी योजना की मदद से भुवनेश्वर के रमादेवी वूमंस कॉलेज में दाखिला लिया। यहां से उन्होंने कला में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। शिक्षा पूरी करने के बाद, उनका एक ही मकसद था कि वह कहीं नौकरी कर ले। ताकि अपने परिवार को आर्थिक रूप से मदद कर सके। इसी को ध्यान में रखते हुए द्रौपदी ने 1979 और 1983 के बीच सिंचाई और बिजली विभाग में एक जूनियर क्लर्क के रूप में कार्य किया था।
द्रौपदी टुडू का विवाह रायरंगपुर गांव के श्याम चरण मुर्मू से हुआ और वह द्रौपदी टुडू हो गईं। उनके पति बैंक में कार्यरत थे। विवाह के बाद ससुराल में उनकी नौकरी को लेकर दिक्कतें शुरू हो गई। ससुराल वालों का मानना था कि दोनों लोगों के नौकरी करने की वजह से, बच्चों की परवरिश पर असर पड़ेगा। इसलिए द्रौपदी ने अपनी नौकरी छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने अध्यापिका के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आरंभ किया। वह गांव रायरंगपुर आकर श्री ऑरोबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में पढ़ाने लगीं। 1994 से 1997 तक उन्होंने असिस्टेंट टीचर के रूप में भी कार्य किया था। यहाँ वह वेतन नहीं लेती थी।
मुर्मू ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। वह देश के सबसे पिछड़े इलाके से आती हैं। निजी जीवन में उन्होंने बहुत दुख झेला है। शादी के बाद द्रौपदी के तीन संतानें हुईं। उनके पति का भी हार्ट अटैक से निधन हो गया। छोटे बेटे लक्ष्मण मुर्मू की 2009 में रहस्यमय परिस्थियों में मौत हो गई। जिससे कारण वह डिप्रेशन में चली गई। इससे बाहर निकलने के लिए, उन्होंने अध्यात्म का रास्ता चुना। जिसके तहत वह ब्रह्मकुमारी संस्था से जुड़ गई। वह जब अवसाद से बाहर आ ही रही थी कि तभी 2012 में एक सड़क दुर्घटना में उनके दूसरे बेटे की भी मृत्यु हो गई। कुछ साल के अंतराल में उनकी माँ और एक भाई की मौत हो गई। जीवन में इतने दुख-दर्द झेलने के बावजूद मुर्मू ने समाज सेवा करना नहीं छोड़ा।
पति और दो बेटों की मौत के बाद द्रौपदी ने अपने ससुराल पहाड़पुर की सारी जमीन ट्रस्ट बनाकर स्कूल के नाम कर दी। ट्रस्ट का नाम पति और बेटों के नाम पर एसएलएस ट्रस्ट रखा। चार एकड़ में फैला यह स्कूल रेसिडेंसियल है और इसमें कक्षा छह से दसवीं तक की पढ़ाई होती है। फिलहाल इस स्कूल में 70 छात्र व छह शिक्षक हैं। इसी स्कूल के अहाते में द्रौपदी मुर्मू व उनके दो बेटों की याद में बना स्मृति स्थल है, जहां तीनों की प्रतिमाएं लगी हुई है।
द्रौपदी ने अपनी बेटी इतिश्री को पढ़ा लिखाकर, इस काबिल बनाया। ताकि वह एक अच्छा और जाना-माना नाम हो। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद। इति ने एक बैंक में नौकरी हासिल कर ली। इतिश्री मुर्मू रांची में रहती हैं। वही उनका झारखंड के गणेश गणेश हेम्ब्रम से विवाह हो गया। इति की एक बेटी आध्या श्री है। रायरंगपुर 25 किलोमीटर दूर उपरबेड़ा गांव में घर छोटा लेकिन खूबसूरत है। यहां मुर्मू के भाई भगत टुडू का बेटा डुलाराम टुडू और छोटा भाई सारणी टुडू रहते हैं।
द्रौपदी मुर्मू ने समाज सेवा में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। उन्होंने निशुल्क शिक्षा देने के लिए, कई विद्यालयों में शिक्षण कार्य किया। उन्होंने आदिवासी समुदाय की शिक्षा और उत्थान के लिए कार्य किए। वह कई एनजीओ के संपर्क में आई। जिसके लिए, उन्होंने गांव-गांव में घूमकर जागरूकता अभियान चलाएं। जिनमें उन्होंने शैक्षणिक और के साथ-साथ सामाजिक उत्थानके क्षेत्र में बहुत सारे काम किए। आदिवासियों के लिए, समर्पण की भावना को देखते हुए। कई राजनीतिक दलों ने उनके ऊपर दवाब बनाना शुरू किया। ताकि वह राजनीति के क्षेत्र में आए। द्रौपदी मुर्मू को लगा कि राजनीति में जाने से वह अपने समाज के लिए, अधिक कुशलता से कार्य कर पाएंगी।
उनके राजनैतिक सफ़र की शुरुआत 1997 में हुई, जब उन्होंने रायरंग की पार्षद बनी और सिविक बॉडी के काउंसिलर और वायस चेयरपर्सन का पद संभाला। 1997 में ही वह ओडिशा बीजेपी के आदिवासी मोर्चा के अध्यक्ष का दायित्व संभाला। 2000 के विधान सभा चुनाव में वह रायरंगपुर की विधायक चुनी गईं। उसी साल जब ओडिशा में नवीन पटनायक के नेतृत्व में बीजेपी और बीजू जनता दल की गठबंधन की सरकार बनी, तब उन्हें वाणिज्य और परिवहन मंत्रालय में राज्यमंत्री की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। द्रौपदी ने बाद में पशु पालन और मत्स्य पालन मंत्रालय का भी दायित्व संभाला। उन्हें 2007 में सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए ‘नीलकंठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। मुर्मू ने 2009 में तब भी अपनी विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया था, जब बीजद ने राज्य के चुनावों से कुछ हफ्ते पहले भाजपा से नाता तोड़ लिया था।
मुर्मू 2015 से 2021 तक छह साल एक महीना और 18 दिन तक झारखंड की राज्यपाल रही। कार्यकाल पूरा करने वाली झारखंड की पहली महिला राज्यपाल हैं। इस दौरान इनकी एक सख्त छवि भी उभर कर सामने आई। जब मई 2017 में सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन विधेयक को बगैर दस्तखत किए। सरकार को वापस कर दिया। उनका कहना था कि यह विधेयक आदिवासियों के हित में नहीं है। उन्होंने कहा कि इससे संशोधन विधेयक के खिलाफ राजभवन को करीब अब तक 200 आपत्तियां मिली है।
इस संयोग ही कहा जाएगा कि साधारण गृहणी, शिक्षिका और राजनेता द्रौपदी शाम को अपने घर में अपने जन्म दिन का केक काटने की तैयारी कर रही थीं, उसी समय ही दिल्ली से उन्हें फोन किया गया और उन्हें सूचित किया गया कि वह भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनाई गई हैं। उनके पास एक समृद्ध प्रशासनिक अनुभव है। उनकी नीतिगत मामलों में समझ और उनका दयालु स्वभाव, देश के लिए लाभकारी सिद्ध होगा। उनकी महिला आदिवासी समाज और विवादों से हमेशा दूरी रही है। आदिवासियों और बालिकाओं के हितों के लिए वह हमेशा से समर्पण भाव से काम करती रही हैं। द्रौपदी मुर्मू प्रतिभा पाटिल के बाद देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनेंगी। वह ओडिशा से देश की पहली राष्ट्रपति होंगी।
लेख – हरिगोविंद विश्वकर्मा
इसे भी पढ़ें – क्या है नेहरू-गांधी खानदान का सच, क्या राहुल गांधी के पूर्वज मुस्लिम थे?