नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत पर सांस्कृतिक अतिक्रमण का आरोप लगाते हुए कहा कि भारत ने नेपाल के ‘असली अयोध्या’ के महत्व को कम करने के लिए ‘नकली अयोध्या’ खड़ा किया। राम की नगरी अयोध्या उत्तर प्रदेश में नहीं, बल्कि नेपाल के वाल्मीकि आश्रम के पास है। सीता का विवाह जिस राम से हुआ, वह भारतीय नहीं, बल्कि नेपाली थे। इसके बाद से ही देश में हिंदू धर्म के रक्षक ओली पर पिल पड़े हैं। लोग वेदों-पुराणों का हवाला देकर अयोध्या को भगवान राम की जन्मस्थली साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में आम नागरिक के लिए यह जानना ज़रूरी हो गया है कि राम की अयोध्या का पौराणिक और ऐतिहासिक सबूत क्या है?
अयोध्या पर कुछ भी कहने या लिखने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनाने की इजाज़त की चर्चा ज़रूरी है। पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने शिया वक़्फ़ बोर्ड की याचिका ख़ारिज़ करते हुए कहा था कि मीर बाक़ी ने बाबर के वक़्त बाबरी मस्जिद बनवाई थी। बाबरी मस्जिद को गैर-इस्लामिक ढांचे पर बनाया गया था। बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) की रिपोर्ट से साबित हो गया कि मस्जिद खाली ज़मीन पर नहीं बनाई गई थी। पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट को ख़ारिज़ नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसे खुदाई में इस्लामिक ढांचे के कोई सबूत नहीं मिले। 18वीं सदी तक वहां नमाज पढ़े जाने के सबूत कोई नहीं मिले हैं। लिहाज़ा, यह साबित हो गया है कि अंग्रेजों के आने से पहले ही हिंदू राम चबूतरे की पूजा करते थे।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने यह भी कहा कि हिंदुओं की आस्था है कि राम का जन्म अयोध्या में हुआ। इस पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। यह भी साबित हो गया कि 1885 से पहले राम चबूतरे पर हिंदुओं का अधिकार था। अहाते और चबूतरे पर हिंदुओं का अधिकार साबित होता है। सीता रसोई की भी पूजा अंग्रेजों के आने से पहले हिंदू करते थे। उस स्थल पर 1949 में दो मूर्तियां रखी गईं। बहरहाल, चंद लोगों और तंजीमों को छोड़ दें तो सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को देश के आम मुसलमान ने स्वीकार कर लिया है। भले भारी मन से ही किया है। इसीलिए अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई है। ऐसे में ओली के बयान पर लोगों की भृकुटी तनना स्वाभाविक प्रतिक्रिया मानी जा सकती है।
जहां तक सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्ष का सवाल है तो उसे सही माना जा सकता है। अयोध्या का राम से संबंध हिंदुओं की आस्था का विषय है। उस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। यह उल्लेखनीय बात है कि भारतीय पुरातत्व को खुदाई से जो अवशेष मिले हैं, उनसे मंदिर जैसा ढांचा होने का निष्कर्ष निकाला जाता है। भारतीय पुरातत्व ने कभी नहीं कहा कि वहां भगवान राम का मंदिर था। ASI ने हमेशा दोहराया कि वहां खुदाई में जो अवशेष मिले, उनसे मंदिर जैसे ढांचे का आभास ज़रूर होता है। सबसे अहम बात यह कि जो अवशेष मिले हैं, वे सब के सब मध्य काल के लगते हैं, जबकि राम त्रेता युग में पैदा हुए थे। त्रेता युग का पौराणिक सबूत भले हो, लेकिन ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
वेदों, पुराणों और उपनिषद जैसे धार्मिक ग्रंथों में त्रेता युग समेत चार युगों का वर्णन मिलता है। चारों युगों को मिलाकर चतुर्युग बनता है। हिंदू कालगणना चतुर्युग पर ही आधारित है। हर चतुर्युग की 43.2 लाख वर्ष बाद पुनरावृत्ति होती है। कलियुग 4.32 लाख वर्ष, द्वापर युग 8.64 लाख वर्ष, त्रेता युग 12.96 लाख वर्ष और सतयुग 17.28 लाख वर्ष का माना गया है। इन सबका कोई प्रमाण नहीं है। धार्मिक ग्रंथों में भी कोई प्रमाण नहीं दिया गया है। केवल विष्णु, ब्रम्हा या शिव कहानियां सुनाते हैं। उन्हीं कहानियों में युगों का जिक्र आता है। राम और रामायण का समय भी त्रेतायुग है। इसके अनुसार राम का समय कलियुग और द्वापर से पहले त्रेता युग यानी 12.96 लाख और 25.88 लाख वर्ष के बीच होना चाहिए। यह निष्कर्ष अतिरंजनापूर्ण लगता है, क्योंकि धरती की उम्र 4 अरब 54 करोड़ वर्ष मानी जाती है और आधुनिक मानव जीवन तो महज 10 हज़ार वर्ष पुराना है।
दरअसल, 19वीं सदी तक पूर्व इतिहासकाल के बारे में बहुत कम जानकारी थी। परंतु पुरातत्ववेत्ताओं यानी आर्कियोलॉजिस्ट के ज़रिए उन स्थानों पर खुदाई की गई, जहां किसी समय मनुष्यों के होने की संभावना थी। खुदाइयों में बर्तन, मनुष्यों एवं जानवरों की हड्डियां और अन्य अवशेष मिले। इनसे मिली जानकारी और हड्डियों के डीएनए टेस्ट के आधार पर पूर्व इतिहासकाल में मनुष्य के जीवन व्यतीत करने की शैली का अनुमान लगाया गया। इसी आधार पर मानव सभ्यता की अवधि का आकलन किया गया। अनुमान है कि धरती पर सबसे पहले मानव जैसे जीव लगभग 53 लाख वर्ष पहले अस्तित्व में आए। धीरे-धीरे अन्य जीव भी पैदा हुए, परंतु कुछ समय बाद मानव जैसे जीव विलुप्त हो गए।
कुछ विद्वानों का मत है कि पशु मानव का इतिहास क़रीब 40 लाख वर्ष पुराना है। जीव विज्ञान के अनुसार मनुष्य का अस्तित्व में आना क्रमिक विकास का परिणाम है। विकास के क्रमबद्ध व्याख्या का श्रेय चार्ल्स डार्विन को जाता है। उसने सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट की अवधारणा दी। बहरहाल, पशु मानव यानी बंदर से 28-30 लाख वर्ष पहले आदि मानव अस्तित्व में आया। परंतु आज का जो मानव (Homo Sapiens) है, वह क़रीब 2 लाख वर्ष पहले धरती पर बंदर जैसे आदि मानव के रूप में अस्तित्व में आया। आदि मानव जीवन के इस लंबे काल में मनुष्य पेड़-पौधे और कंदमूल खाकर अथवा शिकार कर अपना पेट पालता था।
राहुल सांकृत्यायन ने मानव सभ्यता के इतिहास का गहन अध्ययन किया और पाया कि मानव इतिहास लब्बोलुआब 10 हजार वर्ष पुराना है। इसी टॉपिक पर ‘वोल्गा से गंगा’ की रचना की गई है। राहुल ने किताब में मानव सभ्यता के विकास पर विस्तृत प्रकाश डाला है। कहानी तब से शुरू होती है, जब मानव बिना कपड़े के नग्न अवस्था में झुंड में गुफाओं में रहता था। झुंड पर महिलाओं का वर्चस्व होता था। तब मानव के बीच आज की तरह आपसी रिश्ता विकसित नहीं हुआ था। लिहाज़ा, सब केवल नर-मादा थे। लिहाज़ा, पशुओं की तरह एक दूसरे से सेक्स करते थे। इससे बच्चे पैदा होते थे और जीवन चक्र चलता रहता था। बहुत बाद में परिवार और शादी व्यवस्था अस्तित्व में आई और दुनिया के विभिन्न इलाकों में सभ्यताओं ने जन्म लिया। इन सभ्यताओं की अवधि पर गौर करें, तो सब कुछ 10 हज़ार वर्ष में सिमट जाता है। इसलिए ‘वोल्गा से गंगा’ में दिए गए तथ्य एकदम सही और वैज्ञानिक जान पड़ते हैं। लिहाज़ा, रामायण काल और महाभारत काल अगर काल्पनिक नहीं हैं, तो इन्हीं दस हज़ार साल की अवधि के दौरान किसी समय अस्तित्व में रहे होंगे।
इस समय तक ज्ञात कोई भी मानव सभ्यता आठ हज़ार साल से पुरानी नहीं है। मसलन सबसे पुरानी सुमेरी सभ्यता का समय ईसा पूर्व 2300-2150 वर्ष पहले यानी आज से 4170 से 4320 वर्ष के बीच माना जाता है। इसी तरह बेबिलोनिया सभ्यता का समय ईसा पूर्व 2000-400 वर्ष यानी 2420 से 4020, ईरानी सभ्यता ईसा पूर्व 2000-250 यानी 2270 से 4020 वर्ष, मिस्र (इजिप्ट) सभ्यता ईसा पूर्व 2000-150 यानी 2170 से 4020 वर्ष, असीरिया सभ्यता ईसा पूर्व 1450-500 यानी 2520 से 3470 वर्ष, ग्रीस (यूनान) सभ्यता ईसा पूर्व 1450-150 यानी 2170 से 3470 वर्ष, रोम सभ्यता ईसा पूर्व 800-500 यानी 2520 से 2820 वर्ष और अमेरिका की माया सभ्यता सन् 250 ईसवी से 900 ईसवी के बीच माना जाता है।
इस अवधारणा को 19वीं सदी तक पूरी दुनिया मानती थी, लेकिन बीसवीं सदी के पहले दशक में खुदाई से निकली सिंधु घाटी सभ्यता ने पूरा समीकरण ही बदल दिया, क्योंकि हड़प्पा और मोहन जोदड़ो सभ्यता यानी सिंधु-सरस्वती घाटी सभ्यता का समय ईसा पूर्व 5000-3500 वर्ष यानी आज से 5520 से 7020 वर्ष के बीच का आंका गया। सिंधु-सरस्वती घाटी सभ्यता में मूर्ति पूजा का प्रचलन था, क्योंकि हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में असंख्य देवियों की मूर्तियां मिलीं। सिंधु घाटी सभ्यता को दुनिया की सबसे रहस्यमयी सभ्यता माना जाता है, क्योंकि इसके पतन के कारणों का खुलासा नहीं हो सका है। वैसे मूर्ति की पूजा का जिक्र सुमेरी से लेकर रोम सभ्यता तक नज़र आता है। यानी कहा जा सकता है कि पूरी दुनिया भले हिंदू धर्म की अनुयायी न रही हो, लेकिन उनका रहन-सहन, रीति-रिवाज और पूजा की पद्धति हूबहू हिंदुओं जैसी ही थी।
इस तरह कहा जा सकता है कि हिंदू धर्म भले ही एक धर्म के रूप में अस्तित्व में न रहा हो, लेकिन मानव जीवन शैली के रूप में पिछले सात-आठ हज़ार वर्ष से ज़रूर मौजूद रहा। इस सभ्यता के थोड़ा इधर-उधर वैदिक काल और महाभारत का समय माना जाता है। वैदिक काल में सभी वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों की रचना मानव द्वारा की गई। कहने का मतलब उस समय हिंदू धर्म भी अस्तित्व में था। हम कह सकते हैं कि धार्मिक ग्रंथों की रचना मानव समाज में आदर्श नागरिक और अच्छा-बुरा को परिभाषित करने और मानव की जीवन शैली को और बेहतर बनाने के लिए हुई होगी। धर्म ग्रंथों में उल्लेखित पात्रों का उदाहरण देकर मानव के संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश की गई होगी। यह बताने का प्रयास किया गया होगा कि हम जीवन शांतिपूर्ण कैसे गुजार सकते हैं।
दरअसल, ईसवी सन शुरू होने से पहले यानी आज से 2020 वर्ष पहले ही यूरोप और पश्चिम एशिया में यहूदी धर्म का अस्तित्व था। कई विद्वान यहूदी धर्म को 3500 से 3700 वर्ष पुराना बताते हैं। यहूदियों के धार्मिक स्थल को मंदिर और प्रार्थना स्थल को सिनेगॉग कहते हैं। कमोबेश यही समय पारसी धर्म का भी है। ईसाई धर्म दो हज़ार वर्ष पहले अस्तित्व में आया और लगभग सन् 613 इसवी के आसपास मुहम्मद साहब ने लोगों को अपने ज्ञान का उपदेश देना आरंभ किया था। इसी घटना को इस्लाम का आरंभ माना जाता है। उससे पहले मूर्तिपूजा की हिंदू जीवन शैली ही हर जगह अपनाई जाती थी। इन दोनों धर्मों के उत्थान से पहले हिंदू, यहूदी या पारसी जीवन शैली यानी मूर्ति पूजा का प्रचलन था। यह प्रचलन रामायण काल में भी अस्तित्व में था।
पुराणों में वाल्मीकि रामायण का जिक्र तो मिलता है, लेकिन अयोध्या नगर के संबंध में कोई ख़ास ज़िक्र नहीं मिलता है। वेद में “अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या” श्लोक के माध्यम से अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। यहां भी राम का जिक्र नहीं किया गया है। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह नगर सरयू तट पर बारह योजन और तीन योजन के क्षेत्र में बसा था। अलबत्ता रामायण में अयोध्या का उल्लेख कौशल नरेश राम की राजधानी के रूप में किया गया है।
रामायण का मतलब ‘वाल्मीकि रामायण’ से है, जिसकी रचना आदिकवि वाल्मीकि ने लगभग तीन हज़ार वर्ष पहले संस्कृत में की। कुछ विद्वान कहते हैं कि वाल्मीकि रामायण 600 ईसा पूर्व यानी आज से 2600 वर्ष पहले लिखा गया। उसके पीछे युक्ति यह है कि वाल्मीकि रामायण की रचना महाभारत से पहले हुई होगी। महाभारत में गौतम बुद्ध या बौद्ध धर्म का कोई वर्णन नहीं मिलता है। जबकि इस महा ग्रंथ में जैन, शैव और पाशुपत जैसी परंपराओं का वर्णन मिलता है। इसका मतलब है कि वाल्मीकि रामायण गौतम बुद्ध काल से पहले लिखा गया। भाषा-शैली से भी यह महर्षि पाणिनि के समय से पहले का लगता है।
वाल्मीकि ने इस ग्रंथ में दशरथ और कौशल्या के पुत्र राम की गाथा ‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम’ के रूप में लिखी है। संस्कृत में होने के कारण वाल्मीकि रामायण की कथा की जानकारी आम जन तक नहीं पहुंच सकी। इसीलिए राम के चरित्र के बारे में बारहवीं सदी से पहले बहुत ज़्यादा कोई नहीं जानता था। राम की चर्चा तब शुरू हुई, जब वाल्मीकि रामायण को स्रोत मानकर गोस्वामी तुलसीदास समेत तमाम कवियों ने अलग-अलग काल और अलग-अलग भाषाओं में रामायण की रचना की। यह सिलसिला 12 वीं सदी से शुरू हुआ। हर रामायण का विषयवस्तु वाल्मीकि रामायण ही है। बारहवीं सदी में तमिल में कंपण रामायण, तेरहवीं सदी में थाई भाषा में लिखी रामकीयन और कंबोडियाई रामायण, पंद्रहवीं और सोलहवीं सदी में उड़िया रामायण और कृतिबास की बंगला रामायण लिखा गया। सोलहवीं सदी के अंत में गोस्वामी तुलसीदास ने अवधि में रामायण की रामचरित मानस के रूप में रचना की। लेकिन इन सब में तुलसीदास का रामचरित मानस सबसे अधिक प्रसिद्ध है।
इतना ही नहीं, मूर्धन्य साहित्यकार कमलेश्वर ने भारत और विश्व के इतिहास की जानकारी वाला उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ लिखा है। दस वर्ष के गहन शोध, अध्ययन और तफ़तीश के बाद लिखे गए कितने पाकिस्तान’ में अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद पर इतिहास के हवाले से बहुत महत्वपूर्ण तथ्य हैं। कालजयी लेखक ने कई अध्याय को अयोध्या मसले को समर्पित किया है। सन 2000 में प्रकाशित ‘कितने पाकिस्तान’ को अटलबिहारी सरकार ने बेहतरीन रचना करार देते हुए 2003 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार दिया था। साहित्यकारों ने किताब को विश्व-उपन्यास की संज्ञा देते हुए इसकी दिल खोलकर प्रशंसा की है।
पुस्तक के मुताबिक, गोस्वामी तुलसीदास से पहले जम्बूद्वीप (भारत या हिंदुस्तान) में हिंदू धर्म के अनुयायी फक्कड़ शंकर, नटखट कृष्ण, गणेश, सूर्य, दुर्गा, लक्ष्मी और काली की पूजा करते थे। लेकिन सबसे अधिक पूजा भोलेनाथ की होती थी। भारत में इस समय सबसे पुराना मंदिर बिहार के कैमूर जिले में स्थित मुंडेश्वरी देवी मंदिर को माना जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार इसका निर्माण संभवतः सन् 108 में हुआ है। मुंडेश्वरी मंदिर भगवान शिव और देवी शक्ति को समर्पित है। यानी यह शिव मंदिर है। देश में हर जगह भगवान शिव के मंदिर इसके गवाह हैं, जबकि राम के मंदिर गिनती भर के हैं। इन मंदिरों के निर्माण का समय देखें तो तुलसी के दौर के बाद बनाए गए हैं।
कहने का मतलब ऐतिहासिक तथ्यों के हवाले से कहा जा सकता है कि तुलसीदास से पहले भगवान राम का उतना क्रेज नहीं था। तुलसीदास ने रामचरित मानस रचकर राम को महिमामंडित और हिंदुओं के घर-घर में प्रतिष्ठित किया। तुलसीदास सन 1511 में पैदा हुए जबकि आगरा की गद्दी पर बाबर 1526 में बैठा। तब तुलसीदास की उम्र 16 वर्ष की थी। उन्होंने 71 वर्ष की उम्र में 1582 में रामचरित मानस लिखना शुरू किया और 2 वर्ष 7 महीने 26 दिन में यह ग्रंथ पूरा हो गया। उस समय अकबर का शासन था। रामचरित मानस के प्रचलन में आने के बाद ही राम हिंदुओं के सबसे बड़े देवता बने।
पारंपरिक इतिहास में अयोध्या कौशल राज्य की प्रारंभिक राजधानी बताई गई है। गौतम बुद्ध के समय कौशल के दो भाग हो गए थे। उत्तर कौशल और दक्षिण कौशल जिनके बीच में सरयू नदी बहती थी। बौद्ध काल में ही अयोध्या के निकट नई बस्ती बनाई गई जिसका नाम साकेत था। कई विद्वान अयोध्या और साकेत को एक ही नगर मानते हैं। कालिदास ने भी रघुवंश में दोनों को एक ही नगर माना है। इसका समर्थन जैन साहित्य में भी मिलता है। भारतीय पुरातत्व, ऐतिहासिक भूगोल और इतिहास के जनक सर अलेक्ज़ैंडर कनिंघम ने भी अयोध्या और साकेत को एक ही नगर से समीकृत किया है। वहीं बौद्ध ग्रंथों में भी अयोध्या और साकेत को अलग-अलग नगरों के रूप में बताया गया है। चीनी यात्री हेनत्सांग सातवीं सदी में अयोध्या आया था। उसने यहां 20 बौद्ध मंदिरों और 3000 भिक्षुओं के रहने का जिक्र किया है, लेकिन उसने भी भगवान राम का जिक्र नहीं किया है।
बहरहाल, इतिहास में राम का जिक्र न होने के बावजूद अयोध्या करोड़ों भारतीयों के आराध्य भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में माना जाता है। मान्यता यह भी है कि यहीं भगवान राम ने अवतार लिया था। कहा जाता है कि इस नगर को मनु ने बसाया और इसे ‘अयोध्या’ का नाम दिया था, जिसका अर्थ होता है अ-युध्य अर्थात ‘जहां कभी युद्ध नहीं होता।’ अयोध्या मूल रूप से हिंदू मंदिरों का शहर है। यहां आज भी हिंदू धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत में कहा गया है कि चौबीस तीर्थंकरों में से पांच तीर्थंकरों का जन्म अयोध्या में हुआ था। इसके अलावा जैन और वैदिक दोनों मतों के अनुसार भगवान राम का जन्म भी इसी भूमि पर हुआ। सभी तीर्थंकर और भगवान राम इक्ष्वाकु वंश के थे।
यह भी गौर करने वाली बात है, अयोध्या के भारत में होने के जहां इतने ढेर सारे प्रमाण मिले हैं। भले वे पौराणिक ही क्यों न हों, लेकिन अयोध्या के नेपाल में होने का कोई प्रमाण अब तक सामने नहीं आया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि नेपाल के प्रधानमंत्री ने जानबूझ कर विवाद खड़ा करने की कोशिश की। दरअसल, ओली कम्युनिस्ट हैं और कम्युनिस्ट लोग धर्म या पौराणिक बातों में यकीन ही नहीं करते। इसलिए ओली की बात को गंभीरता से लेने का मतलब उनको महत्व देना है।
लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा