इस्लामिक कट्टरपंथियों के दबाव में इस्लामाबाद में पहले हिंदू मंदिर के निर्माण को रोका गया

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हिंदुओं समेत दूसरे अल्पसंख्यों पर उत्पीड़न और उनका धर्म परिवर्तन के लिए पूरी दुनिया में कुख्यात पाकिस्तान का सहिष्णु बनाने का झूठ तब बेनकाब हो गया जब मौलवियों के दबाव में इस्लामाबाद में बन रहे पहले मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया। न्यूयॉर्ट टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व में देश की बढ़ती सहिष्णुता के संकेत के रूप में सरकार ने पहले मंदिर निर्माण का स्वागत किया था, लेकिन इस्लामी कट्टरपंथियों के दबाव के सामने हथियार डाल दिया।

पहले इस्लामाबाद में पहले हिंदू मंदिर की परिकल्पान सहिष्णुता के प्रतीक के रूप में की गई थी। अपने देश में  धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ हिंसा और उनके उत्पीड़न ने के चलते पाकिस्तान की दुनिया में छवि इस तरह बन गई है कि यह देश अपने देश के अल्पसंख्यकों के साथ पक्षपात करता है। जब पाकिस्तान की पूर्व सरकार ने 2018 में श्री कृष्ण मंदिर के लिए भूमि आवंटित की थी, तभी मुस्लिम कट्टरपंथी देश की राजधानी में हिंदू मंदिर बनाने की अनुमति देने से इनकार करते हुए, तुरंत भूखंड को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था। हालांकि मंदिर के हिंदू पैरोकारों का मानना ​​था कि पिछले महीने जब मंदिर की नींव की पहली ईंट रखी गई थी, तो सरकारी अधिकारियों ने घोषणा की कि यह पाकिस्तान में सहिष्णु के नए युग की शुरुआत है। कुछ दिनों बाद ही प्रधानमंत्री इमरान खान ने सरकार लगभग 10 करोड़ रुपए मंदिर ट्रस्ट को देने का आदेश दिया जो को मंदिर निर्माण के लागत का क़रीब बीस फ़ीसदी हिस्सा है।

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पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के हिंदू सांसद लालचंद महली ने कहा, “जब हमने मंदिर की निर्माण शुरू किया, तो प्रधानमंत्री ने एक बैठक में हमसे कहा कि वह काफी खुश हैं कि यह मंदिर दुनिया में पाकिस्तान की अच्छी छवि को बेहतर बनाएगा।” उन्होंने कहा, “राजधानी इस्लामाबाद में हिंदू मंदिर दुनिया को यह दिखाने जा रहा था कि पाकिस्तान में सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है।” लेकिन मुस्लिम मौलवियों के बढ़े दबाव के बाद हालात बदल गए। कई मौलवियों ने साफ़-साफ़ कहा है कि पाकिस्तान एक मुस्लिम देश है, लिहाज़ा, इस्लामाबाद में कोई हिंदू मंदिर नहीं बनाया जाना चाहिए। मुस्लिम नागरिकों ने कहा कि उनसे टैक्स के रूप में वसूले गए पैसे को मंदिर निर्माण के लगाना ग़लत है। इसी बिना पर सरकार की निंदा की गई। बढ़ते दबाव के चलते कॉउंसिल ऑफ़ इस्लामिक आइडियोलॉजी को अनुदान देने का निर्देश देने की बजाय सरकार शुक्रवार को मंदिर के निर्माण के लिए अपने अंशदान की घोषणा से पीछे हट गई।

पाकिस्तान सरकार ने मंदिर के खाली भूखंड के चारों ओर बनाई जा रही चारदीवारी के निर्माण को रोक दिया और फ़ैसला किया कि पहले इस परिसर के निर्माण के ब्लूपिंट को मंजूरी मिलनी चाहिए। दूसरी ओर इस्लामाबाद के हिंदू परिषद ने कहा कि मंदिर की चारदीवारी का निर्माण आवश्यक था, क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो मुस्लिम चरमपंथी भूमि पर कब्जा कर लेंगे और पहले की तरह मंदिर निर्माण में अड़ंगा डालने की कोशिश करेंगे। यही हालात पूरे पाकिस्तान में है। हर जगह मंदिर के भूखंडों को कट्टपंथियों ने अपने क़ब्ज़े मे ले लिया है। चारदीवारी के निर्माणम में बाधा तब पैदा हुई जब पिछले रविवार को मुस्लिम कट्टरपंथियों के एक समूह ने मंदिर की भूमि के चारों ओर आंशिक रूप से निर्मित दीवार को ही तोड़ डाला। कट्टरपंथियों ने दावा किया कि ऐसा करना उनका इस्लामी कर्तव्य था। उन्होंने दीवार को तोड़ने की कार्रवाई की विडियो शूटिंग करके उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट भी किया। सबसे अहम सरकार ने किसी उपद्रवी को गिरफ्तार नहीं किया गया।

इस्लामाबाद में पहले हिंदू मंदिर की उम्मीद महज दो सप्ताह में ही खत्म हो गई। मंदिर परिसर की दीवार तोड़ने की हरकत इमरान ख़ान के 2018 के चुनाव के दौरान किए गए धार्मिक सह-अस्तित्व के वादे की पोल खोलता है। रोचक बात यह है कि पूर्ववर्ती सरकार ने 2017 में मंदिर निर्माण की योजना को मंजूरी दी थी और इमरान खान की सरकार उस योजना को अमली जामा पहनाने में लगी थी। उन्होंने इस बात की प्रशंसा की थी कि पाकिस्तान हिंसक सांप्रदायिक अतीत से निकल कर सहिष्णुता के दौर में पहुंच गया है।

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इमरान खान के चुनाव अभियान के दौरान पाकिस्तान में दोयम दर्जे के नागरिक माने जाने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थितियों में सुधार करने का वादा किया था। उन्होंने देश में हिंदू धर्मस्थलों को बहाल करने की भी कसम खाई थी। इमरान खान अपने किए गए वादे पर पिछले साल के आखिर में तब खरे उतरे, जब सरकार ने सिख धर्म के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक 500 साल पुराने गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर को फिर से खोल दिया। इससे उम्मीद बनी थी कि उनकी अगुआई सरकार धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दे रही है। इमरान बढ़चढ़ कर दावा भी कर रहे थे कि पड़ोसी बारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ जहां नरेंद्र मोदी सरकार असहिष्णुता का प्रदर्शन कर रही है, वही उनकी सरकार उदारता का परिचय दे रही है।

मंगलवार को एमनेस्टी इंटरनेशनल ने हिंदू मंदिर के खिलाफ मुसलमानों की कार्रवाई की निंदा की है और सरकार से हिंदू परिषद को तुरंत मंदिर का निर्माण शुरू करने की अनुमति देने का आग्रह किया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल के साउथ एशिया विभाग के प्रमुख उमर वारिच ने कहा, “प्रधानमंत्री इमरान खान को हर धर्म के लोगों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को साबित करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पाकिस्तान के हिंदू और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक स्वतंत्र रूप से और भय के बिना अपने धार्मिक कार्य करने में सक्षम हैं।”

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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